ग़ज़ल-संग्रह – सच का परचम
ग़ज़लकार – अभिनव अरुण
प्रकाशक – अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद
पृष्ठ – 112
कीमत – 120 /- (साहित्य सुलभ संस्करण – 20 /-)
आज की ग़ज़ल मै, मीना,
साकी तक ही सीमित नहीं, बल्कि वह समाज की समस्याओं को लेकर चलती है | उसके तेवर
तीखे हैं | वह चोट भी करती है और आदर्श समाज हेतु समाधान भी बताती है | अभिनव अरुण
का ग़ज़ल-संग्रह ‘ सच का परचम ’ भी कुछ इसी तरह का ग़ज़ल-संग्रह है | इस संग्रह में 98
ग़ज़लें हैं, जिनमें इक्का-दुक्का शे’र ही परम्परागत ढाँचे के हैं, शेष सभी तो
यथार्थ का ब्यान करते हैं | शाइर ख़ुद कहता है -
मेरी ग़ज़लों में कोई छल नहीं है
समस्याएँ बहुत हैं हल नहीं है | ( पृ. – 43 )