जब कभी मैं कोई कविता-संग्रह पढ़ता था, तो मुझे लगता था कि कविताओं में सिमटी छोटी कविताएँ घुटनमय जीवन व्यतीत कर रही हैं। उनका अपना कोई अस्तित्व नहीं है। उन्हें कोई पढ़ता नहीं है, उन्हें कोई पूछता नहीं है। कई बार मेरे मन में आता था कि लघुकविता को कविता से अलग कर देना चाहिए। फलस्वरूप मैंने 'हरियाणा की प्रतिनिधि लघुकविताएँ' संकलन का संपादन किया। इस संकलन के एक आलेख में मैंने 'लघु कविता' के तत्वों का निर्धारण किया जिसके अनुसार अब तक हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली, मध्यप्रदेश में साठ से ऊपर लघुकविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। (पृ. - 9)
इस संग्रह में प्रकृति, श्रृंगार, अध्यात्म, गरीबी, संस्कार, कविता, कलम, बचपन, परिवार, समाज, राजनीति, नारी, बचपन, गाँव, खेत, रिश्ते, भाईचारा आदि अनेक विषयों को समाहित करने की कोशिश की है। (पृ. - 12)
कविता संग्रह की शुरूआत में पहली कविता में कवि माँ शारदे का वंदन करता है और अगली दो कविताओं में पुस्तक को ज्ञान का भंडार बताते हुए पुस्तक को गहना मानने की सलाह देता है। कवि हिंदी के महत्त्व का बखान करते हुए इसको हिंद की राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहता है। गाँव का शहर से अंतर और गाँव की महिमा का बखान करती हुई कविताएँ इस संग्रह में हैं। कवि नव वर्ष की बधाई देता है, माँ के त्याग को दिखाता है, मंजिल पाने का तरीका बताता है, हौसला रखने के लिए चींटी का उदाहरण देता है। यह संसार उसे मकड़ी के जाल सा लगता है और वह मोहमाया को छोड़ने और निष्काम कर्म का संदेश देता है। ज़िंदगी चार दिन का बुलबुला है, दुनिया रैन बसेरा है। वह अंतर्मन के चक्षुओं को खोलने और जीवन ढलने पर हरि से नाता जोड़ने की बात करता है। वह बेटा-बेटी को एक समान मानते की बात कहते हुए बेटी को अधिक महत्त्वपूर्ण बता जाता है -
बेटा यदि भाग्य है तो / बेटी होती सौभाग्यशाली (पृ. - 21)
मीठी बोली होती सदा / ज़िंदगी का आधार /बना देती जीवन को / मानो स्वर्ग द्वार (पृ. - 35)
कवि ने समाज पर घटी घटनाओं को विषय बनाया है। वह दशहरे के दिन हुई रेल दुर्घटना पर लिखता है। निर्भय की पुकार न सुनने वालों को पत्थर दिल कहता है। पत्थर के माध्यम से कवि ने किस्मत के महत्त्व को भी दिखाया है। किस्मत राजा को रंक और भिखारी को धनवान बना देती है। कवि किस्मत से न घबराने की बात करता है। वह दृढ़ निश्चय अपनाने को कहता है। नारी, किसान और बंजारों की व्यथा का वर्णन है। अच्छे मतदाता की पहचान बताता है। नेताओं के प्रपंच बताता है। पत्र पेटी को याद करता है। कवि वीर रस के कवियों की तरह सेना को आज़ादी देने की बात करता है, लेकिन यह मानवता के लिए घातक है। दीवाली पर वह एक दीप वीरों के नाम जलाने को कहता है।
कवि ने वर्णनात्मक, संवादात्मक, संबोधनात्मक शैलियों को अपनाया है। काफी कविताओं में तुकांत का प्रयोग है। शिल्प पक्ष के बारे में भूमिका में रूप देवगुण जी कहते हैं -
इस संग्रह के शिल्प की ओर अगर हम ध्यान दें, तो इन लघुकविताओं में अलंकार स्वयं ही प्रस्फुटित हुए हैं। माया रुपी संसार में रूपक, घूँ-घूँ, इंसान इंसान तथा छोटी-छोटी में पुनरुक्ति, पुस्तक सुनाती हमें कहानी में मानवीकरण, मोह-माया, लोभ-लालच में अनुप्रास, मन मेरा पतंग सा, दिल हुआ पत्थर सा, जिंदगी पानी का बुलबुला में उपमा आदि अलंकार लघुकविताओं को अलंकृत कर रहे हैं।" (पृ. - 11)
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