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रविवार, जुलाई 14, 2019

नए दौर की ग़ज़लों का संग्रह

ग़ज़ल-संग्रह – मिलो जब भी हमसे
गज़लकार – डॉ. मेजर शक्तिराज
प्रकाशक – आयुष बुक्स, जयपुर  
पृष्ठ – 80
कीमत – 150/- ( सजिल्द )
ग़ज़ल का संबंध शुरू में भले ही नारी सौन्दर्य और प्रेम से रहा हो, लेकिन वर्तमान में ग़ज़लें सभी समसामयिक विषयों पर रची जा रही हैं | इसी नई परम्परा को निभाया है, डॉ मेजर शक्तिराज ने अपने ग़ज़ल-संग्रह “ मिलो जब भी हमसे” में | इस संग्रह में 66 ग़ज़लें हैं, जो भाषा, कहन और विषय सभी दृष्टियों से नए दौर की ग़ज़लें हैं | शायर का ध्यान राजनीति, समाज की समस्यायों, रिश्ते-नाते, महबूब, प्रकृति आदि पर गया है | वह धर्म के स्वरूप पर भी विचार करता है और नैतिकता का उपदेश भी देता है |
            ग़ज़लकार होने के नाते उसका मानना है, कि ग़ज़ल कहने के लिए खास फन की जरूरत होती है | इस फन में भावुकता का भी अंश जरूरी होगा, तभी तो वह लिखता है –
जिसके नयन न हुए सजल / किस मुँह से वो कहे ग़ज़ल ( पृ. – 18 )
वह जिंदगी को ही ग़ज़ल मानकर चलने की सलाह देता है | वह कहता है, कि लक्ष्य की ओर पैर चलते रहने चाहिए | आपकी मुस्कान छीनने का हक़ किसी में नहीं | उसका दृष्टिकोण आशावादी है –
घोर निराशा की घटाएँ, बेशक हों आकाश में /
नई सभ्यता के अंकुर पनपेंगे घोर विनाश में ( पृ. – 19 )
इसी के चलते वह बंजर भूमि पर प्यार की फसल उगाने की बात कहता है |
            आशावादी होने के साथ-साथ वह समाज के यथार्थ को देखने से भी नहीं चूकता | उसका मानना है, कि अन्नदाता भूखा है, मजदूर को आटे-दाल की फ़िक्र है, हालांकि उसका यह भी मानना है –
काम करे तन-मन-बुद्धि से / सदा न वह कंगाल रहा है ( पृ. – 16 )
शायर वर्तमान समाज और वर्तमान हालात को बड़ी बारीकी से देखता है | उसका मानना है, कि पश्चिम की हवा से तेवर बदल रहे हैं, हवाओं में जहर घुला हुआ है, मोबाइल के कारण मेल-मिलाप का महत्त्व कम हो गया है, वृद्धाश्रम बढ़ गए हैं | रिश्ते जंजाल हो गए है और संस्कार फ़ुटबाल | भ्रूण हत्या से अपराध समाज में हो रहे हैं, लडकियाँ असुरक्षित हैं | आधुनिक दौर भी लड़कों पर ही केन्द्रित है –
लडकियाँ यहाँ अभी सुरक्षित नहीं /अभी यहाँ केवल लाल का मौसम है ( पृ. – 50 )
आरक्षण की समस्या है –
बिना योग्यता अफसर बनते आरक्षण से /
अगड़ों में कुंठा लाचारी रहती है / ( पृ. – 34 )
भारत में क्रिकेट का बोलबाल है, इसका प्रभाव भी उनकी ग़ज़लों पर दिखता है –
गुड बालिंग आउट कर सकती दस के दस /
लेकिन गेम जीतने खातिर रन जरूरी / ( पृ. – 28 )
वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के वर्ण्य-विषय पर भी कलम चलाते हैं और कलमकारों को सलाह देते हैं –
खुले रखो तुम कर्ण नयन / वतन बेहाल जरूर लिखो / ( पृ. – 57 )
वह देश और गाँव का भी चित्रण करता है | उसका मानना है, कि वतन हमसे सिर्फ दो बूँद पसीने की माँगता है | उसकी नजरों में गाँव की तस्वीर आदर्शवादी ही है –
बेशक बढ़ती भूखमरी-बेरोजगारी / हिंसा कभी नहीं पकती इन गाँवों में / ( पृ. – 38 )
लेकिन जो भी गाँव से शहर जाता है, वह वापस गाँव नहीं जा पाता | वह जमाने की रफ्तार से कदम-से-कदम मिलाकर चलने का उपदेश देता है | वह योगाभ्यास और प्राणायाम की भी सलाह देता है |
            प्रकृति भी इन ग़ज़लों का विषय बनी है | शायर ने इसका वर्णन आलम्बन और उद्दीपन दोनों रूपों में किया है | वह नदी, बारिश आदि का चित्रण करता है –
सावन आया चला भी गया, खबर न कानोंकान हुई /
ना रिमझिम सी झड़ी लगी व ना बरखा घमासान हुई ( पृ. – 46 )
वह प्रकृति के माध्यम से जीवन दर्शन की बात भी करता है और मौसम का जीवन पर प्रभाव भी दिखाता है | जीवन-दर्शन की अभिव्यक्ति इस संग्रह के विभिन्न शे’रों में हुई है | उसका मानना है, कि सच बोलने वाले का सिर नहीं झुकता, मुस्कान बाँटने वाले के पास भरपूर खुशियाँ रहती हैं | खुशियाँ पाने के लिए छल करने की जरूरत नहीं होती -
तुम्हें भी मिलेंगी जिंदगी की खुशियाँ
मगर उनके वास्ते न किसी को छलो तुम ( पृ. – 51 )
वह बच्चों के साथ दोस्ती रखने की सलाह देता है -
ख़ुश रहना हो जीवन में / बच्चों के संग यारी रख ( पृ. – 70 )
वह प्यार का हिमायती है, उसे पता है, कि प्यार के बदले प्यार मिलेगा | प्यार संवेदनाओं से ही परिवार चलता है, वह प्यार मांगता है, क्योंकि जीवन की खुशियाँ दया, प्रेम, विश्वास में छुपी हैं | वह नफरत का विरोधी है -
नफरत हिंसा के दम पर ख़ुशी नहीं ठहरा करती /
जीवन में ख़ुश रहना है तो करो सभी से प्रीत  ( पृ. – 42 )
वह दीन-दुखी, लाचार का अपमान न करने की बात कहता है -
जब भी तुझसे हो सके हर मुफलिस की मदद कर
काम क्रोध लोभ मोह औ अहंकार को दूर कर ( पृ. – 35 )
इज्जत की रोटी कमाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है -
इज्जत की रोटी खाने को / सबको करना पड़ता हीला ( पृ. – 80 )
वह परमसंतोषी है –
जितना भी आपको प्राप्त है / उतना ही शायद पर्याप्त है ( पृ. – 53 )
वह आत्ममंथन पर बल देता है –
छिद्र अपनी कश्ती के ढूँढे नहीं / दोष हम देते रहें तूफानों को ( पृ. – 44 )
वह धर्म के वर्तमान स्वरूप पर भी प्रहार करता है | उसका मानना है, कि आजकल के संतों के लिए भी महल जरूरी हैं | वह ध्यान का हिमायती है और धर्म को भीतर खोजने की बात करता है –
जगह-जगह क्यों देवता पूजो ‘शक्ति’ /
मन के अंदर ढूँढ लें भगवान को ( पृ. – 44 )
            ग़ज़ल के परम्परागत विषय प्रेम और सौन्दर्य पर भी इन ग़ज़लों में पर्याप्त मात्रा में कहा गया है | कवि ने इसके लिए राधा-कृष्ण का भी सहारा लिया है | उनका मानना है, कि वो जवानी क्या जिसकी कोई कहानी नहीं | पहला प्रेम सदा याद रहता है | प्रेम पलों का वर्णन वे यूं करते हैं –
रोम-रोम हो जाया करता पुलकित तुझे देखकर /
आलिंगन से ही मिलती थी, प्रीत लता को खाद / ( पृ. – 60 )
प्रेम में असफलता का चित्रण करते हुए वह कहते हैं –
कोशिशें करते रहे हम, पर मंजूरी न मिली /
आशिकी हमको उन्हीं से, हम उन्हें भाए नहीं / ( पृ. – 30 )
प्रेम में असफलता क्यों मिलती है, इसका भी वे वर्णन करते हैं –
जो जानम के दिल की चाह न जान सकें /
यौवन में उनके दिल ही टूटा करते / ( पृ. – 39 )
प्रेम में सुन्दरता के वर्णन का विशेष स्थान है, वे सुंदर चाल का वर्णन करते हैं –
खूब अदा से चलते हैं इठलाकर /
अदा व थिरकती चल का मौसम है / ( पृ. – 50 )
            डॉ. शक्तिराज अपने कहन में व्यंग्य का भी समावेश करते हैं, उनके अनुसार संसद में कातिल और हत्यारों को आरक्षण मिलना चाहिए | आमा व्यवहार पर वे लिखते हैं –
पीछे बेशक टाँगें खींच / सम्मुख गहरी यारी रख /  ( पृ. – 25 )
            सामान्यत: ग़ज़ल  में अलग-अलग विषयों को कहा जता है, लेकिन मुसलसल ग़ज़ल एक ही विषय को लेकर लिखी जाती है | होली, बुद्ध, पत्नी, नदी, क्रोधित मित्र आदि विषयों को लेकर शायर ने मुसलसल ग़ज़लें भी कही हैं | बहर, काफिया, रदीफ़ में कहीं-कहीं चूक के बावजूद ग़ज़लें रवानी लिये हुए हैं | ग़ज़ल में उर्दू शब्दावली का प्रयोग तो सहज होता ही है, शायर ने देशज और तत्सम शब्दों को भी इनमें समाविष्ट किया है | मुहावरों का प्रयोग हुआ है | अलग-अलग आकार की बहरें हैं जिनमें कुछ बहुत छोटी भी हैं, यथा एक मतला देखिए –
अरसे बाद / आई याद ( पृ. – 56 )
            संक्षेप में, ‘ मिलो जब भी हमसे ’ जीवन को करीब से देखते हुए रचा गया ग़ज़ल-संग्रह है, जो भाव पक्ष और शिल्प पक्ष से सफल है और साहित्य जगत में अपनी सशक्त उपस्तिथि दर्ज करवाने को आतुर है |

दिलबागसिंह विर्क
गाँव - मसीतां, डबवाली, सिरसा
Pin – 125104
Mo. – 9541521947

रविवार, जुलाई 07, 2019

समीक्षाओं और प्रतिनिधि कविताओं का शानदार संकलन


पुस्तक – रूप देवगुण की काव्य-साधना
लेखिका – कृष्णलता यादव
प्रकाशन – सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल
पृष्ठ – 232     
कीमत – 350/-
रूप देवगुण बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति हैं | साहित्य में उन्होंने कहानी, लघुकथा, कविता, ग़ज़ल, समीक्षा आदि क्षेत्रों में अपनी लेखनी चलाई है | कृष्णलता यादव ने उनके कवि पक्ष को अध्ययन के लिए चुना और उनके सोलह कविता-संग्रहों को आधार बनाकर जिस कृति का सृजन किया है, वह है – “ रूप देवगुण की काव्य-साधना ”| यह कृति न सिर्फ रूप देवगुण के कविता-संग्रहों का मूल्यांकन करती है, अपितु हर संग्रह में उनकी प्रतिनिधि रचनाओं को भी प्रस्तुत करती है | प्रतिनिधि रचनाओं पर भी लेखकीय टिप्पणी है | इस प्रकार लेखिका ने लेखक के साथ-साथ संपादक का दायित्व भी निभाया है |

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