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मंगलवार, सितंबर 18, 2018

प्रकृति के साथ-साथ विचरण करती हुई कविताएँ


कविता-संग्रह – जब तुम चुप रहती हो
कवि – रूप देवगुण
प्रकाशक – राज पब्लिशिंग हॉउस , दिल्ली
पृष्ठ – 76
कीमत – 80 /-
रूप देवगुण जी के कविता-संग्रह “ जब तुम चुप रहती हो ” का प्रकाशन 2004 में राज पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली द्वारा किया गया | इस संग्रह में 35 कविताएँ हैं | कवि ने इस संग्रह में प्रकृति के विविध रूपों, विशेषकर पानी और बादल को लेकर कविताओं की सृजना की है | जीवन के विभिन्न पहलुओं को भी विषय बनाया है और तत्कालीन हालातों पर भी रचनाएं लिखी हैं | कवि भूकम्प में तहस-नहस हुए भुज की पीड़ा को अपने भीतर महसूस करता है, तो डबवाली अग्निकांड पर एक माँ की तरफ से लिखता है -
तुम्हारा हलुवा / अब भी /
वैसे ही पड़ा है ( पृ. –  51 )

मंगलवार, सितंबर 04, 2018

सुन्दरता के साथ सच का परचम लहराता ग़ज़ल-संग्रह


ग़ज़ल-संग्रह – सच का परचम
ग़ज़लकार – अभिनव अरुण
प्रकाशक – अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद
पृष्ठ – 112
कीमत – 120 /- (साहित्य सुलभ संस्करण – 20 /-)
आज की ग़ज़ल मै, मीना, साकी तक ही सीमित नहीं, बल्कि वह समाज की समस्याओं को लेकर चलती है | उसके तेवर तीखे हैं | वह चोट भी करती है और आदर्श समाज हेतु समाधान भी बताती है | अभिनव अरुण का ग़ज़ल-संग्रह ‘ सच का परचम ’ भी कुछ इसी तरह का ग़ज़ल-संग्रह है | इस संग्रह में 98 ग़ज़लें हैं, जिनमें इक्का-दुक्का शे’र ही परम्परागत ढाँचे के हैं, शेष सभी तो यथार्थ का ब्यान करते हैं | शाइर ख़ुद कहता है -
मेरी ग़ज़लों में कोई छल नहीं है
समस्याएँ बहुत हैं हल नहीं है | ( पृ. – 43 )

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