भाग - 2
भाग - 3
पुस्तक प्राप्ति का स्थान
प्रेम किया नहीं जाता, बस हो जाता है और प्रेम का हो जाना विशुद्ध प्रेम है और ऐसा प्रेम आमतौर पर विपरीत लिंगियों में ही पाया जाता है | ‘ बस ठीक है ’ कहानी में प्रेम के इस रूप को देखा जा सकता है | प्रेम चाहते सब हैं, लेकिन युवा प्रेम करें, यह भारतीय समाज को कम ही स्वीकार्य है, इसी कारण भारत में प्रचलित अधिकाँश प्रेम कहानियाँ दुखांत हैं | प्रेम के दुखांत होने के अनेक कारण हैं | कभी कोई बेवफा हो जाता है, कभी समाज विरोध करता है, कई बार समाज का डर या संस्कार प्रेम की अभिव्यक्ति में बाधा बन जाते हैं और प्रेम अंदर ही अंदर सुलगता रहता है | हालांकि प्रेमी समाज से टकराने की बातें करते हैं और टकराते भी हैं, लेकिन ‘ बस ठीक है ’ एक ऐसे प्रेमी जोड़े की कहानी है जो दुविधा में ही काफी वक्त व्यतीत कर देता है और समय पर सही फैसला नहीं ले पाता | दुविधा में जीने वाले लोग, समय पर सही फैसला न ले पाने वाले लोग ज़िन्दगी जी नहीं पाते, वे बस वक्त काटते हैं | कहानी का शीर्षक ‘ बस ठीक है ’ भी इसी ओर इंगित करता है |
प्रेम किया नहीं जाता, बस हो जाता है और प्रेम का हो जाना विशुद्ध प्रेम है और ऐसा प्रेम आमतौर पर विपरीत लिंगियों में ही पाया जाता है | ‘ बस ठीक है ’ कहानी में प्रेम के इस रूप को देखा जा सकता है | प्रेम चाहते सब हैं, लेकिन युवा प्रेम करें, यह भारतीय समाज को कम ही स्वीकार्य है, इसी कारण भारत में प्रचलित अधिकाँश प्रेम कहानियाँ दुखांत हैं | प्रेम के दुखांत होने के अनेक कारण हैं | कभी कोई बेवफा हो जाता है, कभी समाज विरोध करता है, कई बार समाज का डर या संस्कार प्रेम की अभिव्यक्ति में बाधा बन जाते हैं और प्रेम अंदर ही अंदर सुलगता रहता है | हालांकि प्रेमी समाज से टकराने की बातें करते हैं और टकराते भी हैं, लेकिन ‘ बस ठीक है ’ एक ऐसे प्रेमी जोड़े की कहानी है जो दुविधा में ही काफी वक्त व्यतीत कर देता है और समय पर सही फैसला नहीं ले पाता | दुविधा में जीने वाले लोग, समय पर सही फैसला न ले पाने वाले लोग ज़िन्दगी जी नहीं पाते, वे बस वक्त काटते हैं | कहानी का शीर्षक ‘ बस ठीक है ’ भी इसी ओर इंगित करता है |