BE PROUD TO BE AN INDIAN

मंगलवार, जनवरी 31, 2017

विशुद्ध प्रेम की कहानी

भाग- 1
भाग - 2 
भाग - 3 
पुस्तक प्राप्ति का स्थान 
प्रेम किया नहीं जाता, बस हो जाता है और प्रेम का हो जाना विशुद्ध प्रेम है और ऐसा प्रेम आमतौर पर विपरीत लिंगियों में ही पाया जाता है | ‘ बस ठीक है ’ कहानी में प्रेम के इस रूप को देखा जा सकता है | प्रेम चाहते सब हैं, लेकिन युवा प्रेम करें, यह भारतीय समाज को कम ही स्वीकार्य है, इसी कारण भारत में प्रचलित अधिकाँश प्रेम कहानियाँ दुखांत हैं | प्रेम के दुखांत होने के अनेक कारण हैं | कभी कोई बेवफा हो जाता है, कभी समाज विरोध करता है, कई बार समाज का डर या संस्कार प्रेम की अभिव्यक्ति में बाधा बन जाते हैं और प्रेम अंदर ही अंदर सुलगता रहता है | हालांकि प्रेमी समाज से टकराने की बातें करते हैं और टकराते भी हैं, लेकिन ‘ बस ठीक है ’ एक ऐसे प्रेमी जोड़े की कहानी है जो दुविधा में ही काफी वक्त व्यतीत कर देता है और समय पर सही फैसला नहीं ले पाता | दुविधा में जीने वाले लोग, समय पर सही फैसला न ले पाने वाले लोग ज़िन्दगी जी नहीं पाते, वे बस वक्त काटते हैं | कहानी का शीर्षक ‘ बस ठीक है ’ भी इसी ओर इंगित करता है |  
कहानी का नायक प्रभात ऊहापोह में जीने वाला व्यक्ति है | वह सपना को उसी दिन से चाहता है, जिस दिन से वह एम.ए. प्रथम वर्ष में प्रवेश लेती है, लेकिन दो साल तक वह अपने प्रेम का इजहार नहीं कर पाता – 
दो वर्ष व्यतीत हो चुके थे | मैं अपने मन की बातें उससे न कह सका था | रोज़ सोचता था, ज़रूर कहूंगा |रात को सोचता, ऐसे कहूंगा, वैसे कहूंगा | सुबह उठता तो कुछ बातें मिट जाती | क्लास में जाता तो सब कुछ खत्म हो जाता | कुछ कहने का साहस ही न होता था |
प्यार के इजहार की झिझक अक्सर प्रेमियों में होती है | बतौर हस्ती – 
प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है
नये परिंदों को उड़ने में वक्त तो लगता है |
लेकिन प्रभात ज़रूरत से ज्यादा समय ले लेता है, हालांकि विदाई पार्टी के दिन वह साहस कर ही लेता है | सपना भी प्रभात को चाहती है, लेकिन लड़कियों में पाई जाने वाली स्वाभाविक शर्म के कारण वह पहले इजहार नहीं करती, लेकिन प्रणय निवेदन मिलते ही पत्र व्यवहार शुरू होता है और पत्रों में ही वह अपना दिल खोलकर रख देती है | परीक्षा के दिनों में वे फिर मिलते हैं और परीक्षा के बाद फिर जुदाई, फिर पत्र व्यवहार | पत्रों में भावी जीवन की कोई योजना वे नहीं बनाते, एक होने का कोई उपाय वे नहीं सोचते | बस सूचना आती है – 
प्रभात ! यह मेरा अंतिम पत्र है | मुझे अब पत्र न डालना | मैं तुम्हारी थी, तुम्हारी हूँ, तुम्हारी ही रहूंगी, किन्तु मुझे मिलने की चेष्टा न करना |
इस पत्र को पढकर प्रभात पर जो वज्र प्रहार होना चाहिए था, वह होता है, लेकिन सपना को पाने के लिए वह कोई प्रयास नहीं करता | विवाह से वह अब कोसों दूर भागता है, लेकिन ऐसी स्थिति कब तक रह सकती है | पारिवारिक दवाब के चलते उसे शादी करनी पड़ती है और वह गृहस्थी को घसीटने लगता है – 
गृहस्थ धर्म चलता रहा, इसलिए कि गृहस्थी बना दिए गए थे | उसके साथ बाज़ार जाता था कि कारणवश जाना पड़ता था | उसके पास बैठकर खाना खाता था क्योंकि घर वालों ने उसे घर की सदस्य मान लिया था | मैं उसे हृदय में स्थान न दे सका | हृदय के जिस कोने में उसका स्थान होना चाहिए था, वहाँ पहले से ही कोई बैठा था | कंपार्टमेंट खचाखच भरा था और वह बाहर लटक रही थी |
जो बाहर लटक रही थी वो कैसे खुश हो सकती है | सपना के साथ भी ऐसा ही हुआ है | सपना का पति भी बाहर लटका हुआ है | अम्बाला कैंट के रेलवे स्टेशन पर वे दोनों अचानक अपने-अपने जीवन साथियों के साथ आपस में मिलते हैं | हाल-चाल पूछा जाता है और उत्तर मिलता है – ‘ बस ठीक है ’ | यानी विवशतावश जीवन को ठीक मानकर वे दोनों जी रहे हैं और उनके जीवन साथी भी इसकी सजा भुगत रहे हैं | लेखक स्टेशन के धुएँ के माध्यम से उनकी स्थिति का चित्रण करता है – 
स्टेशन पर धुआँ ही धुआँ हो गया था | इधर हम विसंगतियों के धुएँ से घुट रहे थे | किसी के चेहरे पर कोई रौनक न थी |
विपरीत दिशाओं में जाती गाड़ियां अचानक मिले दो प्रेमियों को फिर दूर कर देती हैं | मिलन के समय भी वे खुलकर बात नहीं कर सके | सपना न चाहते हुए भी चली जाती है | प्रभात ‘ बस ठीक है ’ का अर्थ तलाशते हुए दोस्त की बात तक पहुंचता हुआ कहानी को समाप्त करता है – 
या तो विवाह से पूर्व प्रेम होना ही नहीं चाहिए | अगर हो जाता है तो उसे विवाह में परिणत होना चाहिए | नहीं तो उन दोनों की ही नहीं, बल्कि उनके साथ फेरे लेने वाले व्यक्तियों की ज़िन्दगी भी तबाह हो जाती है |
कहानी का अंत सिर्फ प्रभात-सपना जैसे प्रेमियों पर ही लागू नहीं होता, यह उन सब पर लागू होता है, जिनका प्रेम किसी भी कारण असफल रहता है | प्रेम ज्यादातर असफल ही रहता है, ऐसे में ‘ बस ठीक है ’ कहना प्रेमियों की नियति है | इस कहानी में लेखक असफल प्रेमियों का बड़ा सजीव चित्र प्रस्तुत करता है | प्रभात की दब्बू प्रवृत्ति को बड़ी खूबसूरती से उभारा गया है | सपना तो लड़की होने का दुःख भोगती है | वह प्रेम करती है, मगर पहले इजहार नहीं करती क्योंकि लड़की है | विवाह का विरोध नहीं करती, क्योंकि एक तो वह लड़की है, दूसरा उसका प्रेमी आगे क़दम नहीं बढ़ाता है | नब्बे के दशक के प्रेमियों का यह सजीव चित्रण है | अम्बाला के स्टेशन को दिखाकर लेखक कहानी को रोचक मोड़ देता है और इसे शिखर की और लेकर जाता है | कहानी का अंत पाठकों को भी उस स्थिति में ले जाता है, जिसमें प्रभात खुद को पाता है | ( क्रमशः
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दिलबागसिंह विर्क 

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