भाग- 1
भाग - 2
भाग - 3
भाग - 4
भाग - 2
भाग - 3
भाग - 4
मन को मारने और मन को जीतने में बड़ा अंतर है, लेकिन दुर्भाग्यवश हमारे समाज में मन को जीतने की बजाए मन को मारना सिखाया जाता है | ऋषि-मुनि भी तो यही करते आए हैं | दुनिया छोड़कर जंगल भाग जाना मन को मारना ही है | ऋषियों की तपस्या को भंग करने के लिए अप्सराओं को भेजा जाता था | अगर ऋषियों ने वासना का दमन करने की बजाए उसे जीता होता तो कोई भी अप्सरा सफल नहीं हो पाती | ऋषियों का बात-बात पर क्रोधित हो उठना भी क्रोध को दबाना है, क्रोध को जीतना नहीं | वासना का दमन, क्रोध का दमन, लालच का दमन कितना भी किया जाए, अवसर पाकर विस्फोट जरूर होता, लेकिन जो इन्हें जीत लेते हैं, वो इनसे पार हो जाते हैं |
‘ जवानी और संस्कार ’ कहानी में इसी विषय को उठाया गया है और माध्यम बनाया है प्रणय निवेदन को | अमृत पिता की बातें सुन-सुनकर अज्ञानतावश मन को मार रहा है | पिता की बातें, जो उसे संस्कार लगते हैं, उस पर हावी हो जाती हैं | गृहस्थ का पवित्र रिश्ता भी उसे मंजूर नहीं, इसीलिए वह अविवाहित रहने का निर्णय लेता है | अगर वह इन बातों को सचेत होकर, जागृत अवस्था में देखता और इनसे पार हो जाता तो कोई समस्या पैदा नहीं होनी थी, लेकिन वह जागा हुआ नहीं है | आम इंसान की तरह सोया हुआ जी रहा है | ऊपर से वह खुद की इच्छाओं का दमन कर रहा है और भीतर से जवानी का जोश उठ रहा है | दोनों का टकराव ही इस कहानी का कथानक है |
लेखक ने चार स्थितियों का वर्णन किया है | पहली तीन स्थितियों में उस पर संस्कार भारी पड़ते हैं, जबकि चौथी बार चिड़िया खेत चुग गई होती है | सबसे पहली स्थिति कॉलेज के दिनों की है | अनिता उसके संस्कारों को हरा रही है –
“ उनके नारी विरोधी विचारों के कारण मेरे मस्तिष्क में औरत एक हौवा बन गई थी | मैंने औरत से दूर रहने का इरादा लिया था ... किन्तु अनिता ...”
उसे लगता है कि जवानी का जोश पिता जी के कीमती विचारों की दीवार को तोड़ देगा और होता भी ऐसा ही है, इसी जोश के चलते वह राह चलती अनिता को पुकार बैठता है, हालांकि लोग क्या कहेंगे, यह डर उसे सताता है, जबकि अनिता बेफिक्र है, –
“ अगर डरते हो तो फिर मुझे रोका क्यों था ? ”
अनिता का यह कथन अमृत का हौंसला बढाता है | अनिता ने अमृत को उसके जन्म दिन पर भी फोन किया, लेकिन हड़बड़ाहट के कारण वह जवाब नहीं दे पाया था, आज भी उस बात के सन्दर्भ में अनिता कहती है –
“ वैसे भी कई बार व्यक्ति अपने महत्त्व को नहीं समझता, दूसरे उसे समझाते हैं |”
तमाम बातें अमृत का हौंसला बढ़ाती हैं | उसे लगता है कि अनिता उसके प्रति प्रेम भाव रखती है, लेकिन पिता जी की बातें अचेतन से निकलकर चेतन में आ बैठती हैं और द्वन्द्व की स्थिति में प्रणय निवेदन करने की बजाए वह उसे बहन बनने का निवेदन कर बैठता है |
दूसरी स्थिति उन दिनों की है, जब वह अनिता की याद में कवि बन जाता है और एक एकेडमी में कार्य करने लगता है | सुस्मिता नामक लड़की अपनी कविता दिखाने के बहाने उसके निकट आती है और प्रणय निवेदन करती है | अमृत उस स्थिति में भी घबरा जाता है –
“ दरअसल मुझे घुटन हो रही है | आप दरवाज़ा खोल दीजिए | ”
जाती हुई सुस्मिता को देखकर उसे लगता है जैसे वह कह रही हो –
“ इतना डरते हो तो ख़ाक कविताएँ लिखोगे ? श्रृंगार रस पर लिखते हो और नारी से इतना घबराते हो | ”
अमृत के ये संस्कार हीन भावना का रूप धारण कर चुके हैं | इसी दौरान चचेरे भाई की पत्नी की चचेरी बहन गीता को छोड़ने जाने का अवसर उसे मिलता है | उसके तन का स्पर्श उसे अच्छा लगता है, लेकिन वह खुद को पीछे हटा लेता है |
मन को मारने वाला व्यक्ति हर समय द्वंद्व में जीता है | यह द्वंद्व अमृत में भी है, वह खुद स्वीकार भी करता है –
“ मेरे अंदर यह एक कमी है कि पहले मैं किसी के साथ चुपचाप चलता रहता हूँ और जब रास्ता तय हो जाता है, तो सोचता हूँ अगर मैं यह सब कुछ कह देता तो कितना अच्छा होता | फिर पश्चाताप की अग्नि में जलने लग जाता हूँ | ”
उसे आगे बढ़ता न देख गीता खुद प्रणय निवेदन करती है, लेकिन वह पत्थर का बुत्त बन जाता है | उसका दम घुटने लगता है, वह डर जाता है |
चौथी स्थिति इन स्थितियों से विपरीत है | पहली बार वह प्रणय निवेदन से चूक जाता है, दूसरी, तीसरी बार प्रणय निवेदन मिलता है, लेकिन वह घबरा जाता है | चौथी बार वह पड़ोस की लड़की अर्पणा से प्रणय निवेदन कर देता है तो वह गुस्से से देखते हुए कहती है –
“ शर्म नहीं आती आपको, इस तरह की बातें करते हुए ? मैं तो आपको बड़ा भाई मानती हूँ | कभी आईने में अपनी शक्ल देखी है ? आप मुझसे दुगुनी उम्र के होंगे |”
घर जाकर जब वह आईना देखता है, तो पाता है कि कुछ सफेद बाल कनपटियों के पास मुस्करा रहे थे | ये उसे समय के हाथ से निकल जाने की सूचना देते प्रतीत होते हैं |
अमृत जिस स्थिति से गुजरता है, दुविधा में जीने वाले बहुत से लोग उस स्थिति से गुजरते हैं | इस कहानी में प्रणय निवेदनों के माध्यम से लेखक ने ऐसे लोगों की मनोस्थिति का बखूबी चित्रण किया है | आज के युग में भले ऐसे पात्र कम हैं, लेकिन वो लुप्त हो गए हों, ऐसा नहीं | धार्मिक और संस्कारी परिवारों के बच्चे अक्सर खुद को अमृत की स्थिति में पाते हैं, यहाँ सही-गलत का फैसला वे नहीं ले पाते | लेखक ने प्रणय निवेदन के चार अलग-अलग प्रसंग लेकर तथाकथित संस्कारों पर कटाक्ष किया है | संस्कार बुरे हैं, ऐसा नहीं, लेकिन बच्चों को उनकी सही समझ न दे पाना बुरा है | ब्रह्मचारी रहो या गृहस्थी, यह महत्त्वपूर्ण नहीं बल्कि महत्त्वपूर्ण है, आप जो भी बनो पूरे मन से बनो, जागते हुए बनो, जो भी करो, पूरे मन से करो, जागते हुए करो | अमृत यही नहीं कर पाया | बहुत से लोग यही नहीं कर पाते और इसका नतीजा क्या होता है, लेखक यही दिखाना चाहता है और अपने इस उद्देश्य को वह बड़ी सादगी से हासिल करता है |( क्रमशः )
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दिलबागसिंह विर्क
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