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मंगलवार, फ़रवरी 14, 2017

अपार आशाएं जगाता लघुकथा-संग्रह

लघुकथा-संग्रह - आशा की किरणें 
लघुकथाकार - सत्यप्रकाश भारद्वाज 
प्रकाशन -  अंशिका पब्लिकेशन 
कीमत - 150 /-
पृष्ठ - 96 ( पेपरबैक )
साहित्य में लघु विधाओं को देखकर इन्हें लिखना जितना आसान लगता हैं, वास्तव में उन्हें लिखना उतना ही कठिन होता है क्योंकि इनमें गागर में सागर भरना होता है, जिसके लिए विशेष महारत की आवश्यकता होती है | आजकल लघुकथाएँ भी काफ़ी मात्रा में लिखी जा रही हैं लेकिन लघुकथाएँ चुटकला बनने से बचें और वे मात्र सपाट बयानी न हों इसके लिए लघुकथाकार का सजग होना बेहद जरूरी है | यूँ तो जीवन का हर विषय लघुकथा में समेटा जा सकता है, लेकिन विषय को लघुकथा का रूप देना ही लघुकथाकार के लिए चुनौती होती है | लघुकथा-संग्रह “ आशा की किरणें ” पढ़ते हुए यह अहसास होता है कि सत्यप्रकाश भारद्वाज जी ने इस चुनौती का सामना सफलतापूर्वक किया है | इस संग्रह में 83 लघुकथाएं है जो जीवन के विभन्न पहलुओं को समेटे हुए हैं |

         पुस्तक के शीर्षक के अनुसार आशावादी दृष्टिकोण प्रमुख रहा है, लेकिन यथार्थ का भी प्रस्तुतिकरण हुआ है | व्यंग्य की प्रचुरता है तो भाव प्रधान लघुकथाएं भी हैं | लेखक ने आदर्शवाद के प्रस्तुतिकरण में कही-कहीं अतिवादी दृष्टिकोण भी अपनाया है, लेकिन ये सब स्वस्थ समाज की कल्पना करती लघुकथाएं हैं | ‘एयर-टिकट’ और ‘सार्थक’ लघुकथाएं आदर्श पुत्र को दिखाती हैं, तो ‘बहू नहीं बेटी’ आदर्श बहू की लघुकथा है | ‘फिर से’ लघुकथा में बच्चे के कारण तलाक होते-होते बच जाता है | ‘दूरियाँ’ लघुकथा में पत्नी पति को उसके गाँव लेकर जाती है, जो सामान्य स्थितियों के विपरीत है, और यही लेखक का आशावाद है | ‘सवेरा’ भी इसी सोच के अंतर्गत लिखी गई है | बच्चा भीख मांगने की बजाए अपने बाबा को सम्मानपूर्वक जीना सिखाता है | ‘इंसानियत’ लघुकथा में देवेन दुर्घटना का शिकार हुए बच्चे को बचाता है | ‘युग-परिवर्तन’ में लड़की को लेकर दादी की सोच बदलती है | ‘अपना धरातल’ में पत्नी से प्रेरणा पाकर पति आत्मनिर्भर बनता है | ‘अपना-अपना ईमान’ लघुकथा में पत्नी पति को अपने ईमान से डोलने नहीं देती | ‘परिश्रम का फल’ लघुकथा में मेहनती विकास का सफल होना और नकलची सुरेंद्र और राकेश का फ्लाईंग स्क्वैड द्वारा पकड़ा जाना आदर्शवाद की स्थापना करता है | ‘नई भोर’ में बस्ती में स्कूल खुलवाकर और बच्चों के माध्यम से नई भोर आने का सपना देखा गया है | ‘भगवान आए’ लघुकथा में मीनू का पिता पिंकी की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी लेता है और पिंकी के पिता के ईलाज की व्यवस्था भी करता है | ‘नया जीवन’ में आत्महत्या करने जा रही मालती को बुजुर्ग न सिर्फ बचाता है, अपितु बेटी की तरह अपनाता है | ‘संकल्प’ अच्छे लोगों को शक की नजर से देखने की बात करती लघुकथा है लेकिन इसका सच्चे इन्सान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता | ‘भ्रष्टाचार के नए कीर्तिमान’ ईमानदार व्यक्ति के राजनीति में आकर भ्रष्ट होने की बात तो करती है, लेकिन प्रजा का सबक सिखा देना आशावादी दृष्टिकोण है | ‘लोकतंत्र’ का अंत भी इसी सोच को दर्शाता है | ‘सशक्तिकरण’ का विषय भी राजनीति है | शान्ति भ्रष्ट धर्मसिंह को प्रधान पद से उतरवाकर कार्यवाहक प्रधान के रूप में हालात बदल देती है | औरत कमजोर नहीं | ‘उत्तरदायित्व’ लघुकथा में शंकुतला परिवार का उत्तरदायित्व उठाती है | औरत को अन्याय का विरोध करते और जीतते भी दिखाया गया है | ‘पसीने का मोल’ और ‘नया इतिहास’ इस प्रकार की लघुकथाएं हैं | पुरुष भी ‘आत्मसम्मान’ में अन्याय का विरोध करके जीतता है | धार्मिक सहिष्णुता को लेकर भी लेखक ने ‘ईश्वर का दूत’ और ‘राशिद भाई’ जैसी लघुकथाएं लिखी हैं |
        विधुर जीवन को दिखाती तीन लघुकथाएं है – ‘उसका संग’, ‘पराया हुआ गाँव’ और ‘अश्रुकण’ | तीनों लघुकथाओं में पत्नी के महत्त्व को दर्शाया गया है | प्रतीक के रूप में पशु-पक्षियों को लेकर मानवता पर तंज कसा गया है | इस कड़ी में ‘अंतर’, आदमी की परिभाषा’, ‘आदमी जैसा’ और ‘विषैला’ लघुकथाएं आती हैं | व्यंग्य का प्रयोग अनेक लघुकथाओं में हुआ है | ‘वास्तविकता’ तथाकथित विकास पर व्यंग्य है, ‘सहानुभूति’ पत्रकारों की संवेदनशून्यता पर व्यंग्य है, ‘समझदारी’ में अधिकारियों को ख़ुश करके बच निकलने की बात है, ‘दानवता’ सती प्रथा को लेकर पुलिस और आदमियत पर व्यंग्य करती है | ‘सुरक्षा’ में पुलिस की निष्क्रियता पर व्यंग्य है | ’नए दौर का श्रीगणेश’ में पुलिस को लुटेरा दिखाया गया है | ‘नरभक्षी’ भी पुलिस का ऐसा ही रूप दिखाती है | ‘समय बहुत खराब है’ एक तरफ भक्षक पुलिस को दिखाती है तो दूसरी तरफ गुंडे में मानवीयता दिखाती है | ‘किसे सुनाएं’ नाकों पर होने वाले भ्रष्टाचार को दिखाती है | ‘समाज सेवा हो ली’ भी भ्रष्टाचार को विषय बनाती है | कमीशनखोरी को लेकर भी लघुकथाएं कही गई हैं | ‘वाह, विकास कार्य’, ‘लुटेरे’ इसी प्रकार की लघुकथाएं हैं | ‘नया उग्रवाद’ में पुलिस से मिलीभगत करके उग्रवाद के नाम पर निजी दुश्मनियाँ निकाली जाती हैं | ‘व्यवसाय’ लघुकथा में राजनीति को व्यवसाय कहा गया है, ‘ठहाके’ लघुकथा में दंगों के पीछे नेताओं के हाथ को दिखाती है तो ‘उनको किसी ने नहीं देखा’ नेताओं के दोगलेपन को दिखाती है | ‘स्वतन्त्रता का मूल्य’ में स्वंत्रता सेनानी देश के नेताओं के व्यवहार को देखकर आहत होता है |
              ‘जोंक’ और ‘नकली चेहरा’ रिश्तों के सच को ब्यान करती लघुकथाएं हैं | ‘घर’ में मुखिया परिवार की अपेक्षाओं का बोझ ढोता है | ‘प्रेरणा’ में अपने व्यवहार का सन्तान पर प्रभाव दिखाया गया है | ‘उपेक्षा’ में पिता बच्चों के व्यवहार की उपेक्षा करने की बात पत्नी को कहता है, लेकिन वह ख़ुद भी उपेक्षा नहीं कर पाता | ‘अपनी-अपनी श्रद्धा’ पुजारियों की लूट और ‘सुफल’ मन्दिरों में जाती विशेष के लोगों के निषेध को विषय बनाती है | ‘विडम्बना’ लघुकथा दहशतगर्दों का कोई दीन-ईमान नहीं होता, बात को सत्य सिद्ध करती है | ‘जुनून’ में दंगों में स्त्री की अस्मिता को लूटने को विषय बनाया गया है | ‘भीख की लूट’ भिखारिन के प्रति समाज की घटिया मानसिकता को दिखाती है | ‘ममता’ में स्तनपान को लेकर लघुकथा कही गई लेकिन महिला कल्याण समिति में स्तनपान न करवाने की बात अस्वाभाविक लगती है | ‘सत्ता का नशा’ भी अतिशयोक्तिपूर्ण विषय है | यही कमी ‘भाग्यशाली’, दुर्भाग्य और ‘पवित्र-अपवित्र’ लघुकथाओं में दिखती है |
       ‘यह सिलसिला जारी रहेगा’ दहेज को लेकर संवादात्मक लघुकथा है, जिसका कोई निष्कर्ष लेखक नहीं निकालता | लेखक ने इसी शैली में ‘द्वंद्व’ लघुकथा लिखी है जिसमें सत्य-असत्य का वाद-विवाद है | ‘मर्यादा’ में लेखक पहरावे को छेड़छाड़ का कारण बताता है, ‘परोपकार’ में बच्चों के जन्म को लेकर अनपढ़ और गरीब परिवारों की सोच दिखाई गई है, ‘भ्रष्ट व्यवस्था’ में दिखाया गया है कि ईमानदार अधिकारियों को काम नहीं करने दिया जाता | ‘पराए लोग’ गरीबों के प्रति समाज की उपेक्षा को दिखाती है, तो ‘धुएँ का अंबार’ दिल्ली जैसे शहर में ग्रामीण व्यक्ति के असफल होने की बात करती है | ‘धर्म-अधर्म’ में दिखावे की धार्मिकता और पश्चाताप को दिखाया गया है | ‘कर्त्तव्यबोध’ में गुरु का पतित होने से बचना, ‘शहद में डूबे शब्द’ में दहेज़ को लेकर लड़की का खरा-खरा जवाब, ‘बंटवारा’ में लालची बेटे का वर्णन है | ‘कब्जा’ लघुकथा में जमीन पर कब्जा लेने के लिए झुग्गियों को जला दिया जाता है, ‘उनका खुदा’ जेहाद को विषय बनाती है | ‘स्थानांतरण’ में माँ और पत्नी के कटाक्ष हैं, ‘पत्र’ में पत्र के माध्यम से दोस्त की और पूर्व में अपनी दशा का चित्रण है | ‘विकास’ विज्ञान के अच्छे और बुरे पहलू को दिखाती है, ‘रोटी का स्वाद’ भूखे के लिए रोटी का महत्त्व दिखाती है तो ‘बिरादरी’ में बेटी का गैर बिरादरी के युवक से प्रेम का पिता पर प्रभाव दिखाया है |
           विषय को लेकर यहाँ इन लघुकथाओं में पर्याप्त विविधता है, वहीं इनके शिल्प में भी पर्याप्त विविधता है | लघुकथा का अंत अति महत्त्वपूर्ण होता है | लेखक ने कई लघुकथाओं में पंच लाइन का प्रयोग किया है तो कई लघुकथाओं को पाठकों के ऊपर छोड़ा है | कुछ में लेखकीय टिप्पणी भी मिलती है | एक-दो लघुकथाओं को छोड़कर संवाद छोटे, चुटीले और स्वाभाविक हैं | वर्णन और चित्रण के लिए लघुकथाओं में गुंजाइश कम ही होती है लेकिन लेखक ने इनका भी समुचित प्रयोग किया है | वर्तमान में लघुकथा को एक ही समय में कहे जाने की बात कही जाती है, ऐसे में कुछ लघुकथाएं समय दोष से ग्रसित कही जा सकती हैं, लेकिन यह दोष अखरता नहीं बल्कि यह कुछ लघुकथाओं की मांग लगता है | संक्षेप में, सत्यप्रकाश भारद्वाज का लघुकथा-संग्रह “ आशा की किरणें ” अपार आशाएं जगाता है |
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दिलबागसिंह विर्क 

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