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बुधवार, मई 27, 2020

प्रकृति के सान्निध्य में सरल जीवन जीने का सन्देश देती कविताएँ

कविता-संग्रह - युग से युग तक
कवि - राजकुमार निजात
प्रकाशन - बोधि प्रकाशन, जयपुर
पृष्ठ - 124
कीमत - ₹150/-
राजकुमार निजात कृत कविता-संग्रह "युग से युग तक" बोधि प्रकाशन से सितंबर 2018 में प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में 101 कविताएँ हैं, जिन्हें कवि ने छह दिनों की अल्पावधि में सृजित किया है। कवि ने प्रकृति और जीवन से जुड़े सजीव-निर्जीव अवयवों जैसे - नदी, पहाड़, सूरज, आसमान, कुआँ, वृक्ष, परिंद, बच्चा, शिक्षक, दादी, स्कूल, घण्टी, रास्ता आदि के माध्यम से अपनी कविताएँ कही हैं। वह परिंदों से, सूरज से, आसमान से बातचीत करता है।

बुधवार, मई 20, 2020

दाम्पत्य में आई संवादहीनता का परिणाम दिखाता उपन्यास

उपन्यास - कोई फायदा नहीं
उपन्यासकार - श्याम सखा श्याम
पृष्ठ - 120
(त्रैमासिक पत्रिका मसि-कागद के अंक के रूप में प्राप्त)
हरियाणा साहित्य अकादमी से पुरस्कृत उपन्यास 'कोई फायदा नहीं' हरियाणा साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ. श्याम सखा श्याम द्वारा लिखा गया है। इस उपन्यास को उन्होंने 'स्त्री-पुरुष संबंधों की विडम्बना पर आधारित' कहा है। ये कहानी है कुलश्रेष्ठ दम्पति की, जिनका दाम्पत्य जीवन बड़ा दुखदायी रहा। रत्ना का यह कहना -
"क्या, विवाह मजबूरी ही रहेगी हमेशा?
" (पृ. - 84)
इसके कथानक को स्पष्ट करती है। वैवाहिक जीवन क्यों दुखदायी बना, इसको विस्तार से बताया गया है। यह घट चुकी घटनाओं का बयान है, इसलिए क्यों का उत्तर मिल पाता है। घट चुकी घटनाएं डायरी के द्वारा प्रकट होती हैं। एक डायरी नरोत्तम कुलश्रेष्ठ की है और दूसरी डायरी उसकी पत्नी रत्ना की। ये दोनों डायरियाँ मिलती हैं शेखर गोस्वामी को। शेखर कर्णधार की भूमिका निभाता है। 

बुधवार, मई 13, 2020

मन साधकर जीवन को बदलने की बात करती पुस्तक


पुस्तक - सफल एवं स्वस्थ जीवन के सात गुरुमंत्र
लेखक - डॉ. पुष्प कुमार शर्मा
प्रकाशन - आधार प्रकाशन, पंचकूला
पृष्ठ - 119
कीमत - ₹200/-
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे अहसान उतारता है कोई। 
गुलजार का यह शे'र बहुत से लोगों के जीवन के प्रति नज़रिये को बयां करता है। ज्यादातर लोग ज़िन्दगी जीने की बजाए दिन काटने में विश्वास रखते हैं, जबकि ज़िन्दगी का असली मज़ा जीने में है। जीने की कला सिखाने के लिए अनेक विद्वानों, महापुरुषों ने प्रयास किये हैं। आधार प्रकाशन, पंचकूला से प्रकाशित डॉ. पुष्पकुमार शर्मा की पुस्तक "सफल एवं स्वस्थ जीवन के सात गुरुमंत्र" इसी दिशा में एक प्रयास है। इस पुस्तक में 10 अध्याय हैं, जिनमें से पहले सात अध्याय एक-एक मंत्र के रूप में हैं। इन अध्य्यायों से पूर्व लेखक ने अपनी बात भी कही है।

रविवार, मई 10, 2020

कवि की जीवन दृष्टि को परिलक्षित करती कविताएँ


कविता-संग्रह - मेरे घर आई नदी
कवि - पूरन मुद्गल
प्रकाशक - बोधि प्रकाशन, जयपुर
कीमत - ₹100/-
पृष्ठ - 87
2018 में बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित कविता-संग्रह "मेरे घर आई नदी" स्वर्गीय पूरन मुद्गल जी की अंतिम पुस्तक है। इस संग्रह में 48 कविताएँ हैं, जिनमें कवि कभी खुद से तो कभी दूसरों से संवाद रचाता है। हालांकि वह किसी वाद, दर्शन में बंधना नहीं चाहता, लेकिन वह कर्मवाद का समर्थक है। वह कहता है-
"भाग्य के दस्तक देने पर भी / दरवाज़ा खोलने के लिए /
उठना तो पड़ता है" (पृ. - 35)

बुधवार, मई 06, 2020

समाज के उजले और कुरूप पक्ष को दिखाती लघुकथाएँ

लघुकथा-संग्रह - तो दिशु ऐसे कहता
लघुकथाकार - रूप देवगुण
प्रकाशक - सुकीर्ति प्रकाशन
पृष्ठ - 95
कीमत - ₹150/-
2012 में सुकीर्ति प्रकाशन से प्रकाशित लघुकथा-संग्रह "तो दिशु ऐसे कहता" रूप देवगुण जी का चौथा लघुकथा-संग्रह है। इस संग्रह की लघुकथाओं के माध्यम से लेखक ने समाज के उजले पक्ष को भी दिखाया है और कुरूप पक्ष को भी। कुरूप पक्ष को लेकर लेखक ने कहीं-कहीं सिर्फ स्थिति का चित्रण मात्र किया है, और कहीं-कहीं कटाक्ष किया है। कुछ लघुकथाओं में लेखक रास्ता भी दिखाता है।

रविवार, मई 03, 2020

मसाले और सालन में लिपटी कहानियाँ

कहानी-संग्रह - नमक स्वादानुसार
लेखक - निखिल सचान
प्रकाशक - हिन्द-युग्म
पृष्ठ - 165
कीमत - ₹120/-
कहानी-संग्रह 'नमक स्वादानुसार' का पहला संस्करण 2013 में हिन्द-युग्म, दिल्ली से प्रकाशित हुआ और यह निखिल सचान का पहला कहानी-संग्रह है। इसके कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं, जो इसकी लोकप्रियता का सूचक है। हिन्द-युग्म नई हिंदी आंदोलन का ध्वजवाहक है और इसके अंतर्गत इसके अनेक लेखक हिंदी साहित्य में नामी लेखक का खिताब लिए हुए हैं, लेकिन जिस नई हिंदी की वकालत की जा रही है, उसे स्वीकार किया जाना चाहिए या नहीं, यह पाठक को तय करना है। नई हिंदी का एक प्रयोग तो रोमन लिपि का प्रयोग है, जो देवनागरी लिपि के लिए खतरा कहा जा सकता है और दूसरा प्रयोग है गालियों की भरमार। इस संग्रह में रोमन लिपि का प्रयोग भी हुआ है, और अशिष्ट भाषा का भरपूर प्रयोग भी, हालांकि रोमन लिपि का प्रयोग एक विशेष पात्र को प्रस्तुत करने के दृष्टिकोण से स्वीकार किया जा सकता है, फिर भी वह हिंदी के सामान्य पाठक के काम का नहीं।

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