एक तरफ भारत विकसित देशों की कतार में खड़ा होने को आतुर है, तो दूसरी तरफ भारत के लोग खुद को पिछड़ा साबित करने की होड़ में लगे हुए हैं | राजस्थान के गुर्जरों और गुजरात के पटेलों के बाद अब हरियाणा के जाटों ने इस श्रृंखला में अपना नाम लिखवा दिया है | भारत में किसी भी मांग के लिए जब प्रदर्शन होता है तो सरकारी सम्पत्ति को जलाना, तोड़-फोड़ करना आम बात है, ऐसे में हर प्रदर्शन के दौरान देश को करोड़ों की चपत लग जाती है | इस बार हरियाणा में वहशियत का जो नंगा नाच हुआ, वह तो शर्मनाक है | भीड़ पर किसी का नियन्त्रण नहीं होता, आंदोलनकर्ताओं की मंशा भले ही ऐसी न हो, लेकिन भीड़ में शामिल शरारती तत्व अक्सर मौके का फायदा उठा जाते हैं, लेकिन ऐसा तभी संभव है जब आन्दोलन होता है | सोचने की बात तो यह है कि आजाद देश में आखिर ऐसी नौबत क्यों आती है कि लोगों को सडकों पर उतरना पड़ता है ? यहाँ तक आरक्षण की बात है, यह विचारणीय है कि क्यों लोग खुद को पिछड़ा कहलवाने के लिए हिंसक हो रहे हैं ? आरक्षण की बैसाखियाँ आखिर कब तक जरूरी हैं ?
BE PROUD TO BE AN INDIAN
बुधवार, मार्च 30, 2016
सोमवार, मार्च 21, 2016
मंगलवार, मार्च 08, 2016
यथार्थवादी, आदर्शवादी और मनोवैज्ञानिक कहानियों का संग्रह
कहानी संग्रह - लेखक की आत्मा
लेखिका - अर्चना ठाकुर
प्रकाशन - अंजुमन प्रकाशन
पृष्ठ - 112
कीमत - 120 / -
( साहित्य सुलभ श्रृंखला के अंतर्गत 20 / )
यथार्थवादी, आदर्शवादी और मनोवैज्ञानिक प्रवृतियों को समेटे हुए है ' अर्चना ठाकुर ' का पहला कहानी-संग्रह " लेखक की आत्मा ", हालांकि कहीं-कहीं यथार्थवाद और आदर्शवाद अति की सीमाओं को भी छूता प्रतीत होता है । इस संग्रह की बारह कहानियों में एक तरफ सात्विक प्रेम है, तो दूसरी तरफ बदले की कहानी है । लेखक के दुःख का ब्यान भी हुआ है और मनोवैज्ञानिक समस्याओं को भी बड़ी बखूबी उठाया गया है ।
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