BE PROUD TO BE AN INDIAN

रविवार, दिसंबर 11, 2011

परिवार के दुखों की कथा कहता उपन्यास - शुभदा


नशेडी, जुआरी और वेश्यागमन करने वाले व्यक्ति के परिवार के दुखों की कहानी है शरतचंद्र का उपन्यास शुभदा. शुभदा इस उपन्यास की केंद्र बिंदु है. उसका पति हारान बीस रूपये माह पर नौकरी करता है. इतनी आमदनी काफी है, लेकिन वह नशा करता है और कात्यायनी नामक वेश्या पर पैसे लुटाता है. पैसे के लिए गबन करता है, परिणामस्वरूप नौकरी चली जाती है. बाद में वह जुआ खेलता है, भिक्षा मांगता है.

सोमवार, नवंबर 21, 2011

क्या यह चोरी नहीं ?


सुधि पाठकों के सामने दो लघुकथाएँ प्रस्तुत कर रहा हूँ. एक लघुकथा मेरी है, जो अक्षर खबर पत्रिका के लघुकथा अंक में सितम्बर 2005 में प्रकाशित हुई थी, दूसरी लघुकथा श्रीमती इंदु गुप्ता जी की है, जो 21 नवम्बर 2011 को दैनिक जागरण के सांझी अंक में प्रकाशित हुई है। इन दोनों लघुकथाओं को पढकर बताइए क्या यह चोरी का मामला है या नहीं ? यहाँ मैं यह भी बताना चाहूँगा कि अक्षर खबर पत्रिका के जिस अंक में मेरी लघुकथा प्रकाशित हुई थी, उस अंक में इंदु गुप्ता जी की लघुकथाएं भी प्रकाशित हुई थी । 

गुरुवार, नवंबर 10, 2011

हरियाणा में शिक्षा का गिरता स्तर

शिक्षा आज की सबसे बड़ी जरूरत है ।  शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए बहुत प्रयास हो रहा है ।  हर बच्चा शिक्षा प्राप्त करे इसके लिए शिक्षा का अधिकार लागू किया गया है । साक्षरता की दर संभवत: बढ़ी भी है, लेकिन शिक्षा को लेकर जो स्थिति अब भी भारत में है वह बहुत संतोषजनक नहीं ।  

बुधवार, नवंबर 02, 2011

कपट, षड्यंत्र, नाजायज संबंधों का महाकाव्य - पथ का पाप

हिंदी के उपन्यासकार डॉ. रांगेय राघव का उपन्यास '' पथ का पाप '' पाप की कहानी है. यह धोखे, षड्यंत्र, अनैतिक सम्बन्धों से भरा पड़ा है. उपन्यास का नायक किशनलाल धोखेबाज़, ठग, मित्रघाती, वेश्यागमन करने वाला और पराई स्त्री पर बुरी नजर रखने वाला है, लेकिन इन तमाम बुराइयों के बावजूद वह खुद को पाक-साफ साबित करने में सफल रहता है. अपने रास्ते में आए हर कांटे को वह बड़ी चतुराई से निकाल देता है.

बुधवार, अक्तूबर 19, 2011

चुनावों में फिर भारी पड़ा जातिवाद का मुद्दा

लोकतंत्र एक अच्छी शासन प्रणाली अवश्य है, लेकिन लोकतंत्र पढ़े-लिखे और समझदार समाज की भी मांग करता है । दुर्भाग्यवश भारत की जनता अभी तक लोकतंत्र को सही अर्थों में समझने लायक नही हुई. ।चुनाव से पहले देश में अलग तरह का माहौल होता है और चुनाव आते ही देशवासी पूर्वाग्रहों में ग्रस्त होने लगते हैं । जाति, धर्म और क्षेत्र को इतनी मजबूती से पकड़ा जाता है कि लोकतंत्र दम तोड़ जाता है । 

शनिवार, अक्तूबर 15, 2011

प्रेम की तलाश में भटकाव की कथा है - चरित्रहीन

बांगला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का प्रसिद्ध उपन्यास चरित्रहीन प्रेम की तलाश में भटकाव की कहानी है. यह भटकाव है हारान की पत्नी किरणमयी का. वह अपने पति से संतुष्ट नहीं क्योंकि उसका कहना है कि पति से उसके सम्बन्ध महज गुरु-शिष्य के हैं, इसीलिए वह हारान का इलाज करने आने वाले डॉक्टर अनंगमोहन से सम्बन्ध बना लेती है, लेकिन बाद में उसे ठुकराकर उपेन्द्र की तरफ झुकती है. उपेन्द्र अपने एकनिष्ठ पत्नी प्रेम के कारण उसके प्रेम निवेदन को ठुकरा देता है, लेकिन वह अपने प्रिय दिवाकर को पढाई के लिए उसके पास इस उम्मीद से छोड़ जाता है कि वह उसका ध्यान रखेगी, लेकिन वह उसी पर डोरे डाल लेती है और उसे भगाकर आराकान ले जाती है, लेकिन उनके सम्बन्ध स्थायी नहीं रह पाते.

मंगलवार, सितंबर 27, 2011

लोकतंत्र को समझने में नाकाम भारतीय जनमानस

इस बात में संदेह नहीं है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है, लेकिन इस बात में संदेह होगा कि भारत एक सफल लोकतान्त्रिक देश है. भारतीय जनमानस अभी भी लोकतंत्र को समझने में नाकाम है. लोकतंत्र लोगों का राज है लेकिन भारतीय जनमानस अभी भी राजसी व्यवहार को अहमियत देता है, यही कारण है कि यहाँ के नेता सेवक न होकर शासक होते हैं और जनता राजा के रहमो-कर्म पर जीने वाली प्रजा होती है.

मंगलवार, सितंबर 13, 2011

आओ , हिंदी को आगे बढाने का प्रण लें

हिंदी दिवस आ गया है । हिंदी के लिए बड़ी-बड़ी बातें करने का दिन है ये । कहीं पर हिंदी सप्ताह मनाया जाएगा तो कहीं पर हिंदी पखवाडा, लेकिन सितम्बर बीतते-बीतते हिंदी का जोश कम पड जाएगा । ऐसा 62 वर्षों से हो रहा है और आगे भी ऐसा होता ही रहेगा । हिंदी अपने बदहाल पर आंसू बहाती आई है , आंसू बहाती रहेगी । 

सोमवार, सितंबर 05, 2011

दोषी सिर्फ गुरु नहीं

आज अध्यापक दिवस है ।अध्यापक के सम्मान का दिवस है । कुछ पुरस्कार भी वितरित होंगे लेकिन अध्यापक का आज सम्मान होता होगा , इसमें सन्देह है । निस्सन्देह अध्यापक वर्ग काफी हद तक खुद दोषी है और अध्यापक का पतन आज ही शुरु हुआ हो ऐसा नहीं है ।अध्यापक ने तो उसी दिन अपनी गुरुता खो दी थी जिस दिन उसने एक शिष्य की भलाई की खातिर उस दूसरे शिष्य का अंगूठा मांग लिया था , जिसको उसने शिक्षा दी ही नहीं थी । और हैरानी इस बात की है कि वही गुरु हमारा आदर्श है और उसके नाम का अवार्ड श्रेष्ट गुरु को दिया जाता है । गुरु ने तो गुरुता महाभारत काल में खो दी थी लेकिन शिष्य की शिष्यता उस दौर में बरकरार थी । 

गुरुवार, अगस्त 18, 2011

गृहदाह : एक मार्मिक उपन्यास

गत दिनों सुप्रसिद्ध बांगला उपन्यासकार शरतचंद्र का उपन्यास गृहदाह पढ़ा , सोचा इसे ब्लॉग पर साँझा कर लूं 
                    गृहदाह उलझे हुए सम्बन्धों की कहानी है .ब्रह्म समाज और हिन्दू समाज का भी मुद्दा है . ब्रह्म समाज के लोगों को हिन्दू अच्छा नहीं मानते - उपन्यास की नायिका बार-बार ऐसा कहती-पूछती है ,लेकिन हिन्दू पात्रों ने कहीं भी असहिष्णुता नहीं दिखाई . हिन्दू युवा ब्राह्म लडकी से प्रेम करते हैं , अन्य पात्र उन्हें अपने से अलग तो मानते हैं ,लेकिन घृणा कोई नहीं करता . उपन्यास के अंत में जब रामबाबू अचला को वेश्या समझकर उसे असहाय अवस्था में छोड़ जाते हैं तब महिम हिन्दू धर्म पर भी प्रश्नचिह्न लगाते हुए कहता है -'' पर इस आचार-परायण ब्राह्मण का यह धर्म कौन-सा है, जो एक मामूली-सी लडकी के धोखे से तुरंत धूल में मिल गया ? जो धर्म अत्याचारी की ठोकर से आप अपने को और पराए को नहीं बचा सकता ,बल्कि मृत्यु को उसी को बचाने के लिए प्रतिपल अपनी शक्ति को तैयार रखना पड़ता है - वह धर्म आखिर कैसा धर्म है , और मनुष्य जीवन में उसकी उपयोगिता क्या है - जिस धर्म ने स्नेह की मर्यादा नहीं रखने दी , एक असहाय नारी को मौत के मुंह में छोड़कर चले जाने में जरा भी हिचक नहीं होने दी ,चोट खाकर जिस धर्म ने इतने बड़े स्नेहशील बूढ़े को भी प्रतिहिंसा से ऐसा निर्दयी बना दिया - वह कैसा धर्म है ? और जिसने उस धर्म को कबूल किया , वह कौन से सत्य को लेकर चल रहा है ?''

सोमवार, अगस्त 15, 2011

आओ स्वाधीनता दिवस पर प्रण लें

आज राष्ट्र ६५ वां स्वाधीनता दिवस मना रहा है । गाँव-गाँव, शहर-शहर आयोजन हो रहे हैं, ध्वजारोहण हो रहा है, बड़े-बड़े भाषण दिए जा रहे हैं, शहीदों को नमन किया जा रहा है । यह एक अच्छी बात है, लेकिन यह जज्बा दोपहर ढलते-ढलते दूध में आए उफान की तरह बैठ जाता है । फिर किसी को न देश की याद आती है न शहीदों की । यही कारण है कि भारत आज भी उस मुकाम को नहीं छु पाया जिसकी कल्पना आज़ादी के दीवानों ने की थी । आज़ादी अपने वास्तविक अर्थों से कोसों दूर है । 
          आज अधिकारों की बात बहुत की जाती है । लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों, इस हेतु बहुत प्रचार हुआ है । RTI इस दिशा में उठाया गया बेहतरीन कदम है, लेकिन सिर्फ भाषणों को छोड़कर कर्तव्यों की बात कहीं नहीं हो रही । क्या कर्तव्यों के बिना अधिकार पाए जा सकते हैं ? एक का कर्तव्य दूसरे का अधिकार है । कर्तव्य और अधिकार एक सिक्के के दो पहलू हैं और किसी एक को ठुकराकर दूसरे को हासिल नहीं किया जा सकता ।  
            आज राष्ट्र को कर्तव्यनिष्ठ नागरिकों की जरूरत है । '' देश ने हमें क्या दिया ?'' यह प्रश्न पूछने की बजाए '' हमने देश को क्या दिया ? '' -यह पूछने की जरूरत है । निस्संदेह स्वाधीनता दिवस एक बड़ा पर्व है और इस बड़े पर्व पर यह प्रण लेने की जरूरत है कि दूसरों को कुछ कहने से पहले, दूसरों से कुछ अपेक्षा करने से पहले हम खुद को सुधारेंगे । अगर हम खुद को सुधार पाए तो राष्ट्र के हालत भी अवश्य सुधरेंगे क्योंकि राष्ट्र वैसा ही है जैसे हम हैं । 
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                      दिलबागसिंह विर्क 
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रविवार, जुलाई 17, 2011

खिलाडी भारत रत्न के हकदार क्यों नहीं ?


          भारत रत्न का मिलना हर भारतीय के लिए सम्मान की बात होगा और ऐसा कौन है जो इसे लेना न चाहेगा लेकिन यह पाने के लिए विशेष योग्यता का होना जरूरी है . भारत में सचिन तेंदुलकर को यह सम्मान मिलना चाहिए ऐसा दावा बहुत से लोग कर रहे हैं लेकिन सचिन का खेल जगत से जुडा होना उनके भारत रत्न पाने में रुकावट पैदा कर रहा है .भारत रत्न जिन विषयों के लिए दिया जा सकता है उन में खेल शामिल नहीं है . सचिन को भारत रत्न मिलेगा या नही यह उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना कि इस समस्या का हल होना है कि किसी खिलाडी को यह सम्मान मिल सकता है या नहीं . इसलिए अब विचारणीय विषय यही है कि क्या खेल को भारत रत्न की परिधि से बाहर रखा जाना चाहिए . खेल मंत्रालय इसे भारत रत्न की परिधि में लेने का निवेदन कर चुका है . वैसे देखा जाए तो खेल को बाहर रखने की बात समझ नहीं आती . भारत रत्न देने का आधार या तो देश होना चाहिए या फिर कोई भी व्यक्तिगत उपलब्धि . यदि इसका क्षेत्र देश रखा जाए तो सिर्फ उन्हीं लोगों को भारत रत्न दिया जाना चाहिए जिन्होंने देश हेतु विशेष योगदान दिया हो .ऐसे में भारत रत्न बहुत कम लोगों को मिलेगा . इस आधार पर सिर्फ वैज्ञानिक या देश पर शहीद होने वाले लोग ही इसके हकदार होंगे . कोई भी साहित्यकार , संगीतकार ,फिल्मकार या खिलाडी इसका दावेदार नहीं होगा और यदि इसका आधार व्यक्तिगत उपलब्धि हो तो यह सभी क्षेत्रों की व्यक्तिगत उपलब्धियों पर मिलना चाहिए .अगर संगीत से जुडी कोई हस्ती संगीत में किए प्रदर्शन के आधार पर भारत रत्न पा सकती है तो सचिन क्रिकेट में किए प्रदर्शन के आधार पर भारत रत्न क्यों नहीं पा सकते.
  अब समय है कि भारत रत्न देने के नियमों में परिवर्तन हो . इसमें न सिर्फ खेल को जोड़ा जाए अपितु यह बात जोड़ी जानी चाहिए कि देश हित में सर्वश्रेष्ट कार्य करने वाले व्यक्ति और सभी क्षेत्रों में अपने कार्यों के द्वारा विश्व पटल पर भारत का नाम चमकाने वाले व्यक्ति भारत रत्न पाने के हकदार होंगे . इससे सभी क्षेत्र भारत रत्न की परिधि में आ जाएंगे . भारत का नाम विश्व पटल पर चमकाने वाले व्यक्तियों को सम्मानित करना देश का कर्तव्य है .


                                * * * * *

रविवार, जून 05, 2011

ये कैसा लोकतंत्र है ?

लोकतंत्र का अर्थ क्या है ? यही न कि आपको कहने की , रहने की ,जीने की आज़ादी है .आप शांतिपूर्ण ढंग से अपनी असहमति जता सकते हैं . आप न्याय की अपील कर सकते हैं , आप दोषी की तरफ ऊँगली उठा सकते हैं .आपको कोई बेजा तंग नहीं कर सकता .प्रशासन आपका रक्षक है .
            लेकिन क्या महान देश भारत में ऐसा हो रहा है ? चार जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में योगगुरु रामदेव के धरने पर रात के एक बजे पुलिस बल का प्रयोग क्या लोकतान्त्रिक देश को शोभा देता है ? क्या यह इस बात की और इंगित नहीं करता कि कांग्रेस सरकार एक असहनशील सरकार है ? क्या यह इंदिरा गाँधी के आपातकाल की पुनरावृति नहीं ?
            हालांकि सरकार का तर्क है कि रामदेव ने सहमती पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे . ऐसे में प्रदर्शन समाप्त होना चाहिए था . अगर इस बात को सच मान भी लिया जाए तो भी सरकार की बर्बरता पूर्ण कार्यवाही को उचित नहीं ठहराया जा सकता . सरकार को पत्र मीडिया के जरिये जनता के सामने लाना चाहिए था . दूध का दूध और पानी का पानी हो जाने का इंतजार करना चाहिए था .
            सरकार की इस कार्यवाई को तब तो सही ठहराया जा सकता था ,जब प्रदर्शनकारी कोई हिंसक गतिविधि कर रहे होते .यह आन्दोलन तो शांतिपूर्ण तरीके चल रहा था और फिर जिस समय पुलिस बल का प्रयोग किया गया उस समय आंदोलनकारी सो रहे थे . सोये हुए लोगों पर तो युद्ध में भी बार नहीं किया जाता . निहत्थों पर बार कायरता की निशानी है और कांग्रेस सरकार ने ऐसा करके लोकतंत्र को शर्मसार किया है . अगर केंद्र सरकार को ताकत दिखाने का इतना ही शौक है तो उसे आंतकवादी संगठनों के खिलाफ ताकत दिखाकर लोकतंत्र की रक्षा करनी चाहिए . देश की संसद पर हमला करने वाले आंतकवादी तो सरकारी मेहमान बने बैठे हैं और सरकार उनको कुचल रही है जो देश से भ्रष्टाचार मिटाने की बात करते हैं , जो काले धन को देश में लाने की बात करते हैं 
           केंद्र सरकार के इस निंदनीय कृत्य की भर्त्सना करना देश के नागरिकों का कर्तव्य बनता है . यदि इस समय ऐसा नहीं किया गया तो देश में लोकतंत्र की हत्या संभव है .


                           * * * * *

रविवार, फ़रवरी 27, 2011

ब्लॉग जगत के अनुभव

वर्तमान युग इंटरनेट का युग है . इंटरनेट पर हिंदी के ब्लॉग लेखक दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं . ब्लॉग लेखकों के बारे में लोगों की अलग-अलग राय है .कुछ इन्हें कुंठित मानसिकता का मानते हैं तो कुछ इन्हें लेखक मानने को ही तैयार नहीं . ब्लॉग लेखकों के खुद के नजरिए को देखें तो वो समाज में फैली बुराइयों , कुरीतियों को सुधारने में लगे हुए हैं . ब्लॉग लेखक क्या हैं , इनका स्थान क्या है , ये तो समय ही बताएगा .
ब्लॉग लेखन मेरी नजर में :----
      यहाँ तक मेरी निजी मान्यता है , हिंदी का ब्लॉग लेखन विकासशील अवस्था में है और इसमें पर्याप्त सुधार की आवश्यकता है . हाँ . अच्छे और सार्थक ब्लोग्स की कमी नहीं . एकल और सांझे ब्लॉग हैं , साहित्यिक और सामाजिक ब्लॉग हैं , विचार-विमर्श के ब्लॉग हैं .संक्षेप्त: प्रत्येक रंग है , लेकिन कमी है तो यही कि टांग खींच प्रतियोगिता इसमें भी है . असहमतियां हर जगह होती हैं . भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में असहमति की कद्र की जानी चाहिए , लेकिन जब असहमतियां विवाद का रूप धारण कर लें तब समझना चाहिए कि कुछ-न-कुछ गलत है . जब मुद्दों की बजाए निजी टीका-टिप्पणी होने लगे तब समझना चाहिए कि अभी सभ्य होना बाकि है , अभी शालीनता सीखना शेष है .
मेरा निजी अनुभव :---
         मैं अपनी बात करूं तो मुझे इस संसार में आए जुम्मा-जुम्मा चार दिन हुए हैं . इन दिनों में मुझे भरपूर सहयोग मिला है .उत्साहवर्धक टिप्पणियाँ मिल रही हैं , काबिल लोग अनुसरण कर रहे हैं , सुधार हेतु सुझाव मिल रहे हैं और चाहिए क्या ? इस जगत के कटु अनुभव मेरे निजी नहीं हैं , यही मेरा सौभाग्य है लेकिन जब समाज में कडवाहट व्याप्त हो तो डरना भी जरूरी है और सुधार के प्रयास करना भी क्योंकि आग कब घर तक आ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता .
मैं और ब्लॉग :---
     जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि मैं थोड़े दिन पहले ही ब्लॉग जगत से जुड़ा हूँ . इंटरनेट संबंधी मेरा ज्ञान मामूली है . ब्लॉग बनाना इतेफाकन था , लेकिन एक के बाद एक चार एकल ब्लॉग बना डाले , दो सांझे ब्लॉग की सदस्यता ले ली . इसके पीछे कारण यही था कि मैं पंजाबी-हिंदी दोनों में लिखता हूँ  . पंजाबी के लिए sandli pairahn ( dilbag-virk.blogspot.com ) ब्लॉग बना लिया . हिंदी साहित्य में रूचि है . साहित्यकार तो खुद नहीं कहूँगा लेकिन साहित्य सृजन की कोशिश करता हूँ . दो पुस्तकें प्रकाशित हैं --
   1. चंद आंसू , चाँद अल्फाज़ ( अगज़ल संग्रह )

2 . 
निर्णय के क्षण ( हरियाणा साहित्य अकादमी की अनुदान योजना के अंतर्गत चयनित )
अत: शुद्ध साहित्यिक ब्लॉग " साहित्य सुरभि(sahityasurbhi.blogspot.com ) बनाया . क्रिकेट लेख पत्र - पत्रिकाओं के लिए लिखता रहा हूँ अत: square cut ( dilbagvirk.blogspot.com ) ब्लॉग बनाया . अन्य विचारों को , चर्चाओं को शब्दों में ढालने के लिए virk's view ( dsvirk.blogspot.com ) ब्लॉग बनाया . अलग-अलग ब्लॉग बनाने के पीछे यह सोच भी रही कि सबकी पसंद अलग-अलग होती है , फिर क्यों सबको सब कुछ पढने के लिए विवश किया जाए . सांझे ब्लॉग में AIBA  और HBFI का सदस्य बनकर बेहद्द खुश हूँ क्योंकि इससे मैं खुद को ब्लॉग परिवार से जुड़ा मानता हूँ .
मेरे लक्ष्य 
 हालाँकि कुछ विशेष लक्ष्य लेकर नहीं चला हूँ , फिर भी अच्छा लिखने, सद्भाव-स्नेह बढाने की आकांक्षा है । ख़ुशी फ़ैलाने में योगदान दे सकूं और जहाँ तक हो सके दूसरों के गम बाँट सकूं, ऐसी मन में धारणा है । इन लक्ष्यों को पाने में कितना सफल रहूँगा ये भविष्य के गर्भ में है । आखिर में बस इतना 
            अंजाम की बात तो  खुदा जाने 
            कोशिश तो कर इंसां होने की । 

                        * * * * *

गुरुवार, फ़रवरी 10, 2011

कितना सार्थक है वैलेंटाइन डे

14 फरवरी किसी के लिए प्यार का दिवस है तो किसी के लिए विरोध का .युवा दिलों को इसका बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है , लेकिन भारतीय संस्कृति के पक्षधर इसके कट्टर विरोधी हैं . यह दिन मनाया जाना चाहिए या नहीं , इस पर मतभेद होंगे ही क्योंकि पीढ़ियों का अन्तराल सोच में अंतर पैदा करता है . युवा पीढ़ी पाश्चात्य रंग में रंगती जा रही है . पाश्चात्य संस्कृति उसे बेहतर नजर आती है . यही कारण है कि वैलेंटाइन डे का विरोध होता है . वैसे भारतीय समाज सहनशील समाज है . अनेक संस्कृतियों को यह अपने में समेटे हुए है , इसको को भी स्वीकार किया जा रहा है , विरोध है तो सिर्फ कुरूप पक्ष का .
         अगर वैलेंटाइन डे प्यार का दिवस है तो किसी को इसका विरोध नहीं करना चाहिए ,लेकिन समस्या तो यह है कि आज का प्यार , प्यार कम वासना अधिक है .कालेज के बच्चों को छोडो स्कूलों के नासमझ , नाबालिग बच्चों को भी यह बीमारी लगी हुई है . बीमारी शब्द इसलिए कि इस स्तर पर प्यार की कोई समझ नहीं होती और महज़ शारीरिक आकर्षण ही प्यार का आधार होता है . प्यार वासना न था , न है ,न होगा . भारतीय संस्कृति में प्यार इबादत है , लेकिन पाश्चात्य रंग में रंगी फिल्मों में यह कमीना हो गया है और युवा पीढ़ी जो फिल्मों से प्रभावित है इसे इसी रूप में स्वीकार कर रही है . वैलेंटाइन डे आवारागर्दी करने का सर्टिफिकेट मात्र है इसीलिए इसका विरोध है .
           प्यार तो जीवन का आधार है .माना कि कुछ लोग प्यार को प्यार भी मानते हैं फिर भी इसके लिए एक दिन निर्धारित करना कोई प्रासंगिक बात नहीं दिखती . प्यार करना शुरू आप किसी खास दिन से तो नहीं करते . वास्तव में प्यार किया ही कब जाता है , प्यार तो होता है और होने का दिन निर्धारित नहीं होता . यह वैलेंटाइन डे कि परम्परा तो किशोरों को भटका रही है . करियर बनाने कि उम्र में ध्यान भटकाने के लिए ऐसे दिवस सहायक सिद्ध होते हैं इसलिए इनसे परहेज़ ही बेहतर है .
          भारतीय समाज में रहते हुए हमें भारत की परिवारवादी परम्परा पर विश्वास करना चाहिए . शादी परिवार का आधार है . शादी औपचारिक भी हो सकती है और यह प्रेम विवाह भी , लेकिन प्रेम को पवित्र रखना ही होगा . प्रेम फैले यह तो जरूरी है , लेकिन यदि प्रेम के नाम पर विद्रूपता फैले तो इसका विरोध होना ही चाहिए .

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मंगलवार, जनवरी 25, 2011

62 वाँ गणतन्त्र दिवस

देशवासियों को 62 वें गणतन्त्र की हार्दिक बधाई | 61 गणतन्त्र मनाए जा चुके हैं | 62 वाँ मनाए जाने की तैयारी है और कुछ समय बाद यह मनाया जा चुका होगा, लेकिन विचारणीय विषय यही है कि क्या इतना काफी है ? क्या गणतन्त्र से अभिप्राय दिल्ली में परेड मात्र है ? हर कोई इसका जवाब नहीं देगा, लेकिन हालात कुछ और बयाँ करते हैं | सरकारों पर सरकारें बदलती हैं, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात | विपक्ष में आते ही सबको बुराइयाँ नजर आती हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद सब बुराइयाँ दिखनी बंद हो जाती हैं | इस बार कुछ परिवर्तन होगा, ऐसा नहीं है, परन्तु उम्मीद पर दुनिया कायम है | काश ! अच्छा हो - ये सभी सोच रहे हैं | देशवासी देश के कर्णधारों की तरफ बड़ी उम्मीद से ताक रहे हैं | वे कब उम्मीदों पर खरे उतरेंगे यह भविष्य के गर्भ में है |
       आम आदमी को जीने के अधिकार मिलें, उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा हो, सुरक्षा और सुविधाएँ समान स्तर पर मिलें, नौकरी में अवसर की समानता प्रदान की जाए, सबको आगे बढने का मौका मिले, ये कुछ ऐसी मांगें हैं जो हर कोई मांग रहा है और ये कोई खैरात भी नहीं है अपितु देश के नागरिक होने के नाते हमारा हक भी है | हमारे पूर्वजों ने इन्हीं हकों को पाने के लिए बलिदान दिए थे | देश के कर्णधारों को ये हक देशवासियों को मुहैया करवाने ही चाहिए |
            ये तो रही सरकार की जिम्मेदारी | आम जनता की भी कुछ जिम्मेदारियां हैं | उन्हें भी अपनी जिम्मेदारियां निभानी चाहिए | अकेले हक मांगने से देश नहीं चलता | कर्त्तव्य भी जरूरी हैं | छोटी-सी बात होते ही जब हम देश की सम्पत्ति को नष्ट करने पर उतारू हो जाते है, तब देश कैसे बचेगा | देश हमारा घर है ये बात समझनी होगी |
         आओ इस 62 वें गणतन्त्र पर हम सब देश हित का प्रण लें | देशवासी देश के बारे में सोचें और देश के कर्णधार देशवासियों के बारे में | देश हमसे है और हम देश से हैं - यही सोचकर जब हम फैसले लेंगे तो निस्संदेह देश का भला होगा |
*************  

मंगलवार, जनवरी 18, 2011

आओ प्रयास करें

मुझे गर्व है इस बात के लिए कि मैं भारतीय हूँ मुझे यह भी स्वीकार करते हुए शर्म नहीं आती कि भारत , जो प्राचीन काल में समृद्ध संस्कृति का स्वामी था , वर्तमान में अनेक बुराइयों से ग्रस्त हो चुका है . ये बुराइयाँ सामाजिक , राजनैतिक और धार्मिक सभी स्तरों पर हैं . एक सच्चा नागरिक होने के नाते बुराइयों का वर्णन करना , इनके निराकरण के बारे में सोचना और इन्हें दूर करने का प्रयास करना अपना कर्त्तव्य समझता हूँ क्योंकि सुंदर और समृद्ध भारत को देखना हर भारतीय की तरह मेरा भी सपना है . यूं तो कहा जाता है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता , लेकिन ये भी सच है कि एक-एक से काफिला बनता है. इसी दृष्टिकोण से मैं प्रयासरत हूँ . निश्चित रूप से आप भी होंगे . आओ मिलकर प्रयास करें . सिर्फ आलोचना के लिए आलोचना न करके सुधार के लिए आलोचना करें . विरोध योग्य हर बात का विरोध करें .शोषितों , दीन-दुखियों के लिए आवाज़ बुलंद करें और सुंदर-समृद्ध भारत की नींव रखें .

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मंगलवार, जनवरी 11, 2011

गठन नए राज्यों का

कहने को हम भारतीय हैं, लेकिन वास्तव में भारतीय होने की अपेक्षा हम हरियाणवी, पंजाबी, गुजराती, मराठी ज्यादा हैं | क्षेत्रवाद से हमारा प्रेम इतना ज्यादा है कि देश पीछे छूट जाता है | महाराष्ट्र का मराठावाद सर्वविदित ही है | नए-नए राज्यों का गठन और इनके क्षेत्र को लेकर विवाद इसी का प्रतीक है | अक्सर राजनेताओं पर आरोप लगाया जाता है कि वे वोट बैंक के लिए ऐसे मुद्दे उठाते हैं, लेकिन असली दोषी जनता है जो इन मुद्दों को उठने का मौका देती है |
                 यहाँ तक नए राज्यों के गठन की बात है, देश में तेलंगाना, विदर्भ, हरित प्रदेश, बुन्देलखण्ड, गोंडवाना, मिथिलांचल, गोरखालैंड जैसे राज्यों की मांग समय-समय पर उठती रही है | छोटे राज्य लाभदायक हैं ऐसा तर्क दिया जाता है | हरियाणा , हिमाचल ,उतरांचल का उदाहरण भी दिया जाता है, लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जाता क्योंकि प्रत्येक पार्टी के अपने हित हैं | गठित किये गए आयोग भी कमोबेश सत्तारूढ़ दल की उम्मीदों का ध्यान रखतें हैं | परिणामस्वरूप एक तरफ आन्दोलन होते रहते हैं, दूसरी तरफ टरकाउ नीति जारी रहती है |
           नए राज्यों का गठन कुछ हद तक जायज है, लेकिन इसकी देखा-देखी जब देश के हर कोने से नए राज्य की मांग उठने लगती है, तब यह अनुचित हो जाता है | देशवासियों को सोचना चाहिए कि नए राज्यों का गठन एक खर्चीला काम है | जब हम घरेलू स्तर पर फालतू खर्च स्वीकार नहीं करते तब देश के स्तर पर इसे जायज कैसे माना जा सकता है ? अत: जब जरूरी हो तभी नए राज्यों का गठन होना चाहिए |
              नए राज्यों के गठन में क्षेत्र का निर्धारण सबसे बड़ी समस्या है | तेलंगाना-आंध्रप्रदेश में हैदराबाद किस तरफ हो यह प्रमुख मुद्दा है | कुछ ऐसी ही समस्या हरियाणा बनने के 44 वर्ष बाद भी कायम है | ' चंडीगढ़ हमारा है ' - ये रट दोनों राज्य लगाए हुए हैं | हैदराबाद हमारा है - ऐसी ही रट कल को तेलंगाना और आंध्रप्रदेश लगाएंगे | इसका एकमात्र समाधान ऐसे क्षेत्रों को केन्द्रशासित प्रदेश बनाना ही है, लेकिन केन्द्रशासित बनाते ही इसे दोनों राज्यों से छीनना जरूरी है | चंडीगढ़ के मामले में ऐसा नहीं हुआ | यह हरियाणा और पंजाब दोनों की राजधानी है और अब कोई भी इसे छोड़ने को तैयार नहीं है | चंडीगढ़ किसे मिले यह विवाद का विषय  है और इसका समाधान यही है कि चंडीगढ़ दोनों से छीन लिया जाए, यही तरीका हैदराबाद के बारे में अपनाया जाना चाहिए | ऐसा करने में किसी को एतराज नहीं होना चाहिए क्योंकि ये दोनों खूबसूरत शहर रहेंगे तो भारत का हिस्सा ही |  


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