कवयित्री – डॉ. शील कौशिक
प्रकाशन – अक्षरधाम
प्रकाशन
पृष्ठ – 96
कीमत – 150 /- ( सजिल्द )
कविता क्या है और कवि होना क्या
है, इस पर आलोचक यहाँ अक्सर अपने मत देते हैं वहीं कवि भी कभी-कभार अपनी रचनाओं
में इस विषय को चुनते हैं | डॉ. शील कौशिक जी का कविता संग्रह ‘ कविता से पूछो ’
की कई कविताएँ इस सन्दर्भ में बात करती हैं | पुस्तक का शीर्षक बनी कविता में
कवयित्री कहती हैं कि साहित्यकार दूसरों की प्रशंसा से नहीं, साहित्य से जुड़कर बना
जाता है | कविता रचने के लिए चित्त से पार जाकर मचलते भावों को पकड़ना होता है,
बिम्बों, अलंकारों से संवारना होता है | कविता इसलिए खिल उठती है क्योंकि वह
मेहनतकश की मेहनत, त्योहारों की उमंग, महफिल की ठिठोली आदि लिए हुए है | कविता
कवयित्री के जीवन में रच-बस गई और उसके साथ-साथ चलती है | एक अनलिखी कविता
कवयित्री के साथ सोती, जागती है | वे लिखती हैं –
एक / अनलिखी कविता / हर पल
/
होती है / मेरे आस-पास /
मंडराती है / तितली सी ( पृ. – 88 )