लघुकविता-संग्रह – खिड़की खोल कर तो देखो
कवि - डॉ. रूप देवगुण
प्रकाशन – अक्षरधाम प्रकाशन
पृष्ठ – 80
कीमत – 150 /- ( सजिल्द )
‘ खिड़की खोल कर तो देखो ’ 118 लघुकविताओं का गुलदस्ता है जो गाँव की टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी, बादलों के आने की बात करते हैं, नदी का करिश्मा देखना हो, ओढ़ कर एक लम्बी खामोशी, गली नदी बन गई है, खिड़की खोल कर तो देखो, रोटियाँ खा गईं हमारे बचपन को, पुल पर जगमगाती रौशनी, रात इतनी बुरी तो नहीं, सपनें सपनों को भोगते हैं और झंकृत हो गए मन के तार नामक ग्यारह भागों में विभक्त है |
पहले भाग ‘ गाँव की टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी ’ में तुलनात्मक अध्ययन करती दस कविताएँ हैं और यह तुलना है बचपन, जवानी और बुढापे की | कवि लिखता है –
बचपन है ठंडी प्यारी / सडक पहाड़ की /
जवानी है राजमार्ग / और बुढ़ापा है /
गाँव की / टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी ( पृ. – 12 )
कवि बचपन को अलग-अलग उपमानों में बांधता है | उसके अनुसार बचपन कलियों भरी क्यारी है, समुद्र की लहर है, घर के सभी कमरे हैं, तारे हैं, हल्की फुहार है, खेल है | जवानी गुलाब के फूलों की महक है, उत्ताल तरंगे है, घर का एक कमरा है, सूरज है, मूसलाधार बारिश है, इश्क़ है जबकि बुढ़ापा कनेर है, समुद्र की गहराई है, घर का बरामदा है, चन्द्रमा है, बचे-खुचे बादल हैं, बीमारी है | कवि बचपन को ढूँढ़ता है, जवानी जाने से दुखी है और बुढापा क्यों आया, इससे परेशां है | उम्र का अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग असर होता है, इसका भी चित्रण है –
कई बचपन में ही / जवान हो जाते हैं /
कई जावानी में / बूढ़े / और किसी-किसी को /
बुढापे में भी / दिखाई देती है जवानी ( पृ. – 15 )
दूसरे भाग ‘ बादलों के आने की बात करते हैं ’ में 10 कविताएँ हैं | कवि का कहना है -
ये पेड़ों का झूमना / ठंडी हवा /
और सूरज का छुपना / आकाश पे /
बादलों के / आने की बात करते हैं ( पृ. – 19 )
बादल घुल-मिलकर बरसात करते हैं, लेकिन निगोड़ी हवा बादलों को उड़ा ले जाती है | बादलों का जाना कवि को उनकी नाराजगी लगता है | घुटन-पसीने के दिनों में कवि बादलों को याद करता है | कवि सोचता है कि बादल पहाड़ से आए हैं या समुद्र से |
तीसरे भाग ‘ नदी का करिश्मा देखना है ’ की दस कविताओं में कवि नदी की बात करता है | नदी कवि को पहाड़ की बेटी लगती है | वह पहाड़ से विदा होती है तो उसके आँखों में आँसू होते हैं | वह अगले जन्म में बादल के रूप में पहाड़ से मिलने का वायदा करती है | कवि नदी के सफ़र की आदमी के सफ़र से तुलना करते हुए नदी के सफ़र को लम्बा मानता है | समुद्र से मिलने के लिए वह रात को भी नहीं सोती | कवि को यह उसकी विवशता भी लगती है और प्रेम भी | नदी का समुद्र में मिलना समुद्र हो जाना है और यही प्रेम है | नदियों का मिलना अहम रहित होता है -
एक नदी में / दूसरी / दूसरी में /
तीसरी / आकर मिल जाती है / किसका /
नाम रहता है / किसका नहीं / वे सोचती नहीं ( पृ. – 26 )
चौथे भाग ‘ ओढ़ कर एक लम्बी ख़ामोशी ’ की बारह कविताएँ एडवोकेट श्री जयमल सिंह की स्मृति में लिखी गई हैं | उनकी वकालत में अध्यापन के गुण थे | वे उनका चित्रण करते हैं –
तुम्हारे चेहरे पर थी / अलौकिक आभा /
और स्वस्थ था / तुम्हारा तन-बदन ( पृ. – 31 )
कवि ने प्यारा दोस्त खोया है | वो उसे मिलने नहि आ पाएगा, इसका दुःख है | कवि पूछता है कि तुम्हारी क्या मजबूरी थी जो बीच रस्ते में छोड़ गए | उसके जाने से सब तरफ उदासी है | कवि कहता है कि तुम नहीं तड़पे, तुमने आँसू नहीं बहाए लेकिन तुम्हारे लिए सब तड़पे और सब ने आँसू बहाए | मित्र की मृत्यु के बाद कवि को ज़िंदगी डराती है | उसे भय है कि मौत न जाने कब आकर दबोच ले |
पांचवें भाग ‘ गली नदी बन जाती है ’ में दस कविताएँ हैं | इन कविताओं का विषय बरसात है | कवि ने अलग-अलग लोगों पर बरसात के अलग-अलग प्रभाव को चित्रित किया है –
बरसात जब आती है / तो चेहरे पर / किसी के /
ला देती है / रौनक / तो आँखों में /
किसी के / छोड़ जाती है / अपनी छाप ( पृ. – 37 )
बरसात में कोठियों वाले मजे करते हैं, जबकि झोंपड़ी वाले दुखी होते हैं | अत्यधिक बारिश से गली नदी का रूप धारण कर लेती है | ओले किसान को दुखी करते हैं | बादलों की गर्जन और बिजली का गिरना डराता है | वर्षा के बुलबुले नश्वरता का संकेत करते हैं, लेकिन बरसात नव जीवन की प्रतीक है, पौधे जवां होने लगते हैं | मेंढ़क और ही लोक में चले जाते हैं |
छठे भाग ‘ खिड़की खोल कर तो देखो ’ में बारह कविताएँ हैं | इन कविताओं का विषय हवा है | हवा दरवाजे पर थपकियाँ देती है | खिड़की खोलते ही हवा का सम्पर्क होता है | हवा कभी माँ की तरह आशीर्वाद देती है तो कभी कवि को छोटी बच्ची की शरारत की तरह लगती है | कवि ठंडी हवा और लू दोनों का जिक्र करता है | लू के कारण बाहर सन्नाट होता है जबकि ठंडी हवा चलने पर अपना शहर ही शिमला बन जाता है | हवा जब मस्त होती है तो पेड़ पौधे झूमने लगते हैं और जब वह तूफान बन जाती है तो मीलों का सफ़र मिनटों में तय कर लेती है | जब हवा विपरीत हो तो चलना मुश्किल हो जाता है | कवि हवा की हिम्मत की बात करते हुए लिखता है –
ले जा / रही है / बादल को /
अपने साथ हवा / हिम्मत है /
तो रोक कर / दिखाओ उसे ( पृ. – 47 )
कवि ने सोहबत के असर को भी हवा के माध्यम से बड़ी खूबसूरती से ब्यान किया है –
जब रेत से / मिल जाती है / हवा /
तो बन जाती / है / आँखों की / किरकिरी /
सोहबत का / असर तो / होता ही है ( पृ. – 44 )
सातवें भाग ‘ रोटियाँ खा गईं हमारे बचपन को ’ की दस कविताएँ कवि के निजी जीवन से संबंधित हैं | कवि की चार साल की उम्र में माता का देहवसान हो गया और पिता जी ने दूसरा विवाह नहीं करवाया | ऐसे में बचपन रोटियों की भेंट चढ़ा और रोटी-दाल का हाल ये रहा –
अच्छी लगती थीं / मुझे अधपकी रोटियाँ /
अधगली दाल के साथ ( पृ. – 51 )
जब हमउम्र बच्चों को उनकी माताएँ बुलाती हैं तब कवि का बालमन तरसता है –
नियमित समय पर / शाम को / बुलाती थीं मेरे दोस्तों को /
उनकी माताएँ / गर्म-गर्म रोटियों के लिए / और मैं सोचता रहता था /
खड़ा अकेला / कब जलेगा चूल्हा / और कब बनेंगी रोटियाँ ( पृ. – 54 )
विवाहित बहन भाइयों की दशा देखकर रोती थी | इन दुखों के अतिरिक्त कवि अपने उस बचपन का जिक्र भी करता है जिसमें वह रामलीला में अधिकतर राम ही बनता था | वह अपने से छोटे बच्चों का नेता बनता था | वह अपने पतंग उड़ाने के शौक का जिक्र करता है |
आठवें भाग ‘ पुल पर जगमगाती रौशनी ’ की दस कविताओं में कवि ने शहर में ओवरब्रिज बनने की बाद की दशा को चित्रित किया है | कवि को लगता है कि अब शहर महानगर लगने लगा है | पुल से उतरते समय घरों की खिड़कियाँ झांकती दिखती हैं और ऊँचाई पर टंकियाँ, छतें दिखती हैं | पैदल चलने वालों के लिए चढ़ान थकावट भरी हो गई जबकि पुल से उतरते समय साइकिल के पैडल मारने की जरूरत नहीं | कवि पुल का महत्त्व भी दर्शाता है –
जब नहीं था / पुल शहर में / तो रास्ते में थीं /
अडचनें ही अडचनें / ज्यों पुल बना / कितना /
आसां हो गया है / आना-जाना ( पृ. – 56 )
पुल महत्त्वपूर्ण भी है, लेकिन इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हैं कवि उनको भी देखता है | वह पुल के नीचे आई पुरानी दुकानों के नुक्सान से चिंतित है | कवि सिर्फ शहर के पुल तक नहीं रुकता, बल्कि कहता है –
तुम शहर / के पुल / की बात /
करते हो / मैं / तुम्हारे और /
अपने बीच / बने पुल / के बारे में /
सोचता हूँ ( पृ. – 57 )
कवि को पुल के ऊँचाई-निचाई ज़िंदगी की गाथा सुनाती लगती है |
नौवें भाग ‘ रात इतनी बुरी तो नहीं ’ में बारह कविताएँ हैं | कवि रात को अलग-अलग रूपों में देखता है | कभी वह उसे जादूगरनी लगती है, जो लोगों को बेहोश कर देती है | रात ने सपनों का संसार बनाया है, जिसमें लोग भटकते रहते हैं तो कभी वह माँ के रूप में दिखती है –
रात माँ है / गोद में अपनी / करोड़ों लोगों को /
सुला सकती है / एक साथ ( पृ. – 64 )
फूलों पर गिरी शबनम कवि को रात के आँसू लगते हैं | कवि को लगता है कि सूरज रात से नाराज है | आदमी की बनाई रौशनी टिमटिमाते तारे जैसी है, जो रात को रोशन करने के लिए पर्याप्त नहीं | कवि रात–चन्द्रमा के संबंध में सोचते हुए लिखता है कि चन्द्रमा रात को इतना चाहता है कि उसे रात के चेहरे पर माता के दाग नहीं दिखते | कवि को रात इसलिए बुरी लगती है कि वह चोर-उचक्कों को पनाह देती है हालांकि यह इतनी बुरी नहीं है |
दसवें भाग ‘ सपने सपनों को भोगते हैं ’ में कवि ने दस कविताओं को रखा है | कवि को सपनों का संसार निराला लगता है –
सपनों का / संसार / होता है बहुत निराला /
जो हम जीवन भर / नहीं पाते /
पा लेते हैं वहां पर ( पृ. – 69 )
वह सपनों में आदमी की दशा का वर्णन करता है | जो हमें छोड़कर चले गए हैं वह सपनों में मिलते हैं | सपने डराते है, हंसाते हैं, लिखवाते हैं | कवि निजी सपनों की बात करता है कि कॉलेज के दिन सपनों में आते हैं | उससे गाड़ी छूट जाती है | सपनों के माध्यम से कवि जीवन-दर्शन का बखान करता है –
हम / सपना हैं / दुनिया /
सपना है / कमाल है कि / सपनें /
सपनों को / भोगते रहते हैं ( पृ. – 73 )
अंतिम भाग ‘ झंकृत हो गए हैं मन के तार ’ में बारह कविताएँ हैं | कवि कहता है कि उसके वश में कुछ नहीं | मन के झंकृत तार अपनी बात कहकर रहेंगे –
झंकृत / हो गए हैं / मन के तार /
पता नहीं / क्या कह जाएंगे /
कुछ ही क्षणों में ( पृ. – 75 )
कवि मन का चित्रण भी करता है –
अजीब सी / चीज है / मन भी /
अभी यहाँ / बैठा था / एक क्षण में /
यात्रा कर / हजारों मील की /
अब बैठा है / तुम्हारे पास ( पृ. – 76 )
अच्छे मौसम में मन अच्छा खाने-पीने को करता है | मन ख़ुद भी भटकता है और हमें भी भटकाता है | मन की उथुल-पुथुल से हम उलझे रहते हैं | मन का पथिक बनने से काँटों भरी झाड़ियाँ भी मिलती हैं और खुशबू भरी बगिया भी | मन की राह चलने वाले ख़ुद की नजर में कामयाब होते हैं, लेकिन दुनिया उन्हें ऐसा नहीं मानती | कवि चाहता है कि उसका प्रियतम अपने मन की बात उससे कहे | वह मन को भी कहता है –
मन / बैठ जाया करो / मेरे पास /
कभी / पर / पता है मुझे /
तुम / बैठोगे नहीं / कभी ( पृ. – 80 )
लघु आकार की ये कविताएँ बड़ी सरल और सहज भाषा में कही गई हैं | प्रकृति चित्रण केंद्र में होने के कारण मानवीकरण अलंकार के अनेक उदाहारण हैं | पहाड़ के बारे में वे लिखते हैं –
आधी रात को / देखा है मैंने / पहाड़ को /
वो भी ऊँघता हुआ ही / नजर आया है मुझे ( पृ. – 66 )
रात का वर्णन –
चुपचाप रोती है / रात अक्सर / सुबह फूलों की /
पंखुड़ियों पर / होती है शबनम ( पृ. – 65 )
उपमा, रूपक, अनुप्रास, यमक के भी उदाहरण मिलते हैं | यमक अलंकार का एक रूप –
मन तो / मन ही है /
मन भर / का बोझ / डाल देता है /
कई बार / मुझ पर ( पृ. – 80 )
कवि ने जीवन के हर क्षण में कविता को देखा है | इस दृष्टि से यह एक सफल कविता-संग्रह है |
दिलबागसिंह विर्क
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