BE PROUD TO BE AN INDIAN

सोमवार, जुलाई 02, 2018

लघु आकार में बड़ी बातें करती कविताएँ


लघुकविता संग्रह – रास्ता तय करते-करते
कवि – डॉ. रूप देवगुण
प्रकाशन – राज पब्लिशिंग हॉउस
पृष्ठ – 88
कीमत – 125 / - ( सजिल्द )
रास्ता तय करते-करते डॉ. रूप देवगुण जी की 123 लघुकविताओं का संग्रह हैं, जिनको उन्होंने सात भागों में विभाजित किया है | ये सात भाग हैं – चलो चलें पहाड़ पर, नाराज भी हो जाता है समुद्र, यह फाग है कि रंगों का मौसम, आज मैं बहुत उदास हूँ, सारे आकाश को अपने भीतर, अच्छा हूँ न मैं और अपना भी हो जाता है अजनबी | इन शीर्षकों से ही अंदाज लगाया जा सकता है कि कवि का मुख्य स्वर प्रकृति का चित्रण है | इस संग्रह में प्रकृति का वर्णन अधिकांशत: आलम्बन रूप में ही हुआ है, इसके अतिरिक्त कवि आत्म चिन्तन भी करता दिखता है | प्रकृति के माध्यम से वह जीवन दर्शन की बात भी करता है |

             पहले भाग ‘ चलो चलें पहाड़ पर ’ में 25 लघुकविताएं हैं | पहली ही कविता में कविता पहाड़ की प्रकृति स्पष्ट कर देता है –
चलो चलें / पहाड़ पर / और पूछें /
हालचाल उनका / जो ज़िंदगी भर / बोझा उठाते रहे /
पर बोझ नहीं / बने किसी पर ( पृ. – 14 )  
कवि पहाड़ पर बैठकर ऊँचाई-गहराई को देखने की बात करता है | पहाड़ पर जाना जीवन की ऊँचाइयों को जीना है | वह चोटी पर बठकर बादलों को निमंत्रण देना चाहता है | कवि रोजमर्रा की खचखच से बचने के लिए भी पहाड़ को चुनता है | वह बिना वजह रिज पर घूमना चाहता है, देखे हुए स्थानों को पुन: देखना चाहता है | अपने कमरे की खिड़की से पहाड़ की दीपमाला देखना चाहता है, छोटी रेल पर बैठकर पर्वतीय नजारों का आनन्द लेना चाहता है | वह बर्फ से खेलना चाहता है | बर्फ से ढके पहाड़ उसे समाधिस्थ लगते हैं | वह उनकी सुन्दरता पर कविता रचना चाहता है | चीड के वृक्षों में खो जाना चाहता है | पहाड़ के नजारों को वह समेत लेना चाहता है, जिससे सपनों को सजाया जा सके | कवि पहाड़ को बादलों की बौछार से नहाते हुए देखना चाहता है | उसका मानना है कि झरनों पर नहाना सिर्फ बाहरी न हो | पहाड़ पर स्थित मन्दिरों के प्रति कवि की आस्था है और वह हाँफते हुए भी उन तक पहुंचना चाहता है | कवि गर्मी-सर्दी के सूरज में अंतर बताते हुए ख़ुद की चाहत बता है –
इधर मैं / गर्मी का नहीं / सर्दी का /
सूरज बन / जीता रहा / दोपहर को भी /
लोग तरसते रहे / मेरी किरणों को ( पृ. – 23 )
        दूसरे भाग ‘ नाराज भी हो जाता है समुद्र ’ में 15 कविताएँ हैं | वह समुद्र की व्यथा का चित्रण करते हुए लिखता है –
कैसा है / समुद्र / अपने पास /
रखता है / पानी ही पानी / पर /
पीने लायक / नहीं ( पृ. – 34 )
कवि को लगता है कि समुद्र दर्द के मारे आधी रात को भी करवटें बदलता रहता है | वे समय को भी समुद्र का रूपक देते हैं | कवि ने गम-ख़ुशी को सहते हुए समुद्र के जीवन को आत्मसात किया है | समुद्र की गहराई देखकर कवि लिखता है –
चलो / कोशिश करें / समुद्र की /
गहराई को / नापने की / और / अपने भीतर /
की / गहराई / को भी ( पृ. – 32 )
समुद्र का कवि के पास आकर वापस लौट जाना उसका नाराज होना लगता है | वे कहते हैं कि समुद्र उस पर छींटें फैंककर छेडछाड करे | धरती पर बादलों का बरसना कवि को समुद्र का हुकुम लगता है और वो उस सुंदर दिन की कल्पना करते हैं, जिस दिन समुद्र ने ये हुकुम दिया होगा | हालांकि बादलों को समुद्र से अलग होने का दुःख है | कवि सीप से पूछता है कि उसमें मोती कब पैदा होगा |
           तीसरे भाग ‘ यह फाग है कि रंगों का मौसम ’ में 13 कविताएँ हैं | फाह का चित्रण करते हुए वे लिखते हैं –
यह फाग है / कि / रंगों का मौसम /
हरेक के / चेहरे पर /
इन्द्रधनुष / बने हुए हैं  ( पृ. – 38 )
कवि को इस दिन ख़ुद की जगह कोई ही नजर आता है | इस दिन नाराजगियां दूर होती हैं | बच्चों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता | इस दिन वे जल्दी उठ जाते हैं | फाग मासूम परिवर्तन का सूचक है | नई पत्तियों का आगमन होता है और प्रकृति अपना रूप बदल लेती है |
              चौथे भाग ‘ आज मैं बहुत उदास हूँ ’ के केंद्र में कवि ख़ुद है | इस भाग में 12 कविताएँ हैं | वह ख़ुद से पूछना चाहता है –
आज / मैं बहुत / उदास हूँ /
पूछूंगा / मैं / अपने आपसे /
मैं / क्यों / उदास हूँ ( पृ. – 46 )
कवि जब उदास होता है तो प्रकृति भी उदास हो जाती है | उदासी में वे ईश्वर से भी सवाल करते हैं | उदासी कविता को जन्म देती है | उदासी कई बार सकारण होती है तो कई बार अकारण | उदासी के पलों में कवि अपने प्रियतम से फोन पर बात करना चाहता है | कवि अपने प्रियतम को उदास नहीं देखना चाहता | उदासी के पलों में बिटिया का मायके आगमन माहौल को बदल देता है –
क्यों नहीं / ख़ुश होंगे / घर के लोग /
बहुत दिनों बाद / बिटिया आई / अपने मायके ( पृ. – 51 )
           पांचवें भाग ‘ सारे आकाश को अपने भीतर ’ में 23 कविताएँ हैं | कवि उड़ने की बात करता है –
देखो / आकाश में / कितनी चिड़ियाँ /
उड़ रही हैं / तुम भी उडो / अपने ख्यालों में /
और पा लो / सारे आकाश को / अपने भीतर ( पृ. – 55 )
वे ख़ुद को उड़ते पक्षियों के झुण्ड में शामिल कर लेते हैं | कवि उस सुंदर दिन की कल्पना करता है, जिस दिन नियंता ने पक्षी बनाकर उड़ाए होंगे | उड़ता पक्षी आकाश-धरती के बीच पुल बनाता है, यही कवि का सपना है | घर में रहने आई चिड़िया घर का सदस्य बन जाती है | शाम को पक्षियों का लौटना कवि के नजरिये में आत्ममंथन का प्रयास है | शाम को वृक्ष ख़ुश होते हैं क्योंकि पक्षी उन पर लौट आते हैं | प्रकृति के माध्यम से कवि जीवन का सच देखता है –
जाना शब्द / पतझड़ का / और आना /
बसंत का / कहीं प्रतीक तो नहीं होता ( पृ. – 56 )
कवि को लगता है कि वृक्ष पत्तों को रूप में नए वस्त्र बदल लेता है | पेड़ अपने डॉक्टर ख़ुद हैं, वे पतझड़ के पीलिए रोग से मुक्त होकर स्वस्थ हो जाते हैं | बारिश में नहाकर प्रकृति नवविवाहिता जैसी हो जाती है | बादल घिरते हैं, कभी बरसते हैं, कभी नहीं बरसते | बादलों का बरसना बच्चों, किसानों को ख़ुश कर देता है | सर्दी में सूरज धुंध से लड़ता है | सर्दी के दिन का चित्रण वे इस प्रकार करते हैं –
सर्दी में / सुबह / हुई है /
और फिर / सारा दिन / शाम-शाम /
सर्दी में / कभी दोपहर / नहीं होती ( पृ. – 63 )
सर्दियों में वस्त्र और रजाई सुहाती है | सर्दी के वस्त्रों से दुबलों-पटलों की भी पर्सनैलिटी बन जाती है | कवि बादलों का सजीव चित्रण करता है –
आकाश पर / बादल आया /
रूई के / फावों जैसे / उजले सफेद /
वस्त्र / पहने हुए ( पृ. – 67 )
धूप-छाँव कवि को ज़िंदगी के बारे में समझाती है –
धूप के दर्शन हुए / और साथ ही / छाया के भी /
ज़िंदगी कड़ी थी / सामने / और उसने /
अपने रहस्य के पन्ने / मेरे सामने /
बिखेर दिए थे ( पृ. – 66 )
           छठे भाग ‘ अच्छा हूँ न मैं ’ में 25 कविताएँ हैं | इस भाग में कवि अपने बारे में मंथन करता है | कवि सारे रेगिस्तान को नखलिस्तान में बदलने निकला है | वह ख़ुद को कभी अकेला नहीं पाता क्योंकि वह ख़ुद अपने साथ है | वह अपने कामकाज छोड़कर पत्नी के साथ बैठकर मटर छीलना चाहता है | वह दोस्त के पुरस्कृत होने पर ख़ुश होता है | कवि को अपने आँसुओं का कारण लगता है कि कोई उसके बोलों से दुखी हुआ है | कवि को कभी रात डराती-धमकाती है | रात के समय वह माँ को याद कर आँसू बहा लेता है | कवि रोता है तो माँ आकाश से आकर सिर पर हाथ रख लेती है | कवि को लगता है कि वह दुनिया के तौर-तरीके नहीं सीख पाया, और अगर सीख पाता तो कविताएँ न लिख पाता | उसकी कविता को छोटी मुनिया की छुअन सजीव कर देती है | उनके अनुसार असली पुरस्कार पाठक की सराहना है | कवि अपने साहित्यकार मित्रों, बहन, पिता को याद करता है | पिता को याद करते हुए लिखता है –
कई बार / याद करता हूँ / अपने पिता को /
जिन्होंने मुझे / कर्मठता, ईमानदारी /
का पाठ सिखाया / हमें बहुत लिखाया-पढाया ( पृ. – 77 )
कवि कहता है कि रेलगाड़ियाँ मिलाती भी हैं और अलग भी करती हैं | रास्ते अलग-अलग होने पर भी बीच में चौराहा आ ही जाता है |
              अंतिम भाग ‘ अपना भी हो जाता है अजनबी ’ में 10 कविताएँ हैं | अपने जब अजनबी हो जाते हैं तो वे मोबाइल भी बंद कर लेते हैं | कार में बैठकर साइकिल वाले दोस्त की उपेक्षा कर देते हैं | कवि प्रेम को तरजीह देता है, इसलिए वह फूलों की सुगंध से सराबोर रहा है जबकि ईर्ष्या करने वालों के पास बस राख है | कवि बेटे-बेटी में बताता है कि बेटी क्यों बेहतर हैं | वह कागज की कश्तियों को चलाकर बचपन को याद करना चाहता है | कवि के बारे में कवि का नजरिया है –
कविता / वह लिखता है / जिसके जीवन /
के पोर-पोर से / भावों का / रस टपकता है  ( पृ. – 87 )
वह कवि और कविता को देखता है तो कह उठता है –
तुम अपनी / कविता के दर्पण में / अच्छे लगते हो /
पर मैंने / कभी नहीं देखी / तुम्हारे जीवन के /
दर्पण में कविता ( पृ. – 85 )
            इस संग्रह में कवि को लगता है कि सबका दुःख बड़ा है, जिसको भी दुःख सुनाओ, वह अपना दुःख सुनाने लगता है | कोई लड़की तभी किसी पुरुष से अकेले मिलती है, जब विश्वास गहरा होता है | गुसलखाने के माध्यम से वह कहता है –
फिसलना / हर उम्र में /
खतरनाक होता है ( पृ. – 44 )
कविता-संग्रह की भाषा सहज और सरस है | मानवीकरण के अनेक उदाहरण इस संग्रह में मिलते हैं –
देखो / समुद्र / नहलाता रहता /
है दुनिया को / बादलों से / आज स्वयं /
नहा रहा है / वर्षा / की बूंदों से ( पृ. – 32 )
विरोधाभास अलंकार का भी एक उदाहरण देखिए –
सर्दी की / ठंडी रात को / कुल्फी खाएँ /
ज़िंदगी की / गर्माहट के लिए ( पृ. – 22 )
संक्षेप में, लघुकविताएं अपने लघु आकार में बड़ी बातें करती हैं | कवि इस सृजन के लिए बधाई का पात्र है |
दिलबागसिंह विर्क
******

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...