कवयित्री - डॉ. शील कौशिक
प्रकाशक - सुकीर्ति प्रकाशन
पृष्ठ - 112
कीमत - 250 / - सजिल्द
समाज, संसार और सृष्टि वैसी ही है, जैसा कोई उसे देखता है । बड़ी-से-बड़ी बुराई यहाँ मौजूद, खूब अच्छाइयाँ विद्यमान हैं । एक तरफ कुरूपता के मंज़र हैं तो दूसरी तरफ अथाह सौंदर्य है । अपनी-अपनी खिड़कियों से सब झाँकते हैं और सारे दृश्यों में से वही देख पाते हैं, जो वो देखना चाहते हैं । निस्संदेह एक कवि को समाज के कुरूप पक्ष को उद्घाटित करना चाहिए लेकिन इस सृष्टि की सुंदरता को भी नकारा नहीं जा सकता । कवि और लेखक चिंतनशील जीव होते हैं और समाज का कुरूप चेहरा जब उन्हें अवसाद की तरफ धकेलने लगता है, तब प्रकृति का सान्निध्य उनमें नई ऊर्जा का संचार करता है । प्रकृति संग गुजारे पल जब कविता का रूप धारण करते हैं तब ये शब्द पाठक को भी जीवन के तनाव से मुक्ति देते हैं । सुप्रसिद्ध कवयित्री डॉ. शील कौशिक का कविता-संग्रह " खिड़की से झाँकते ही " इसी तरह का संग्रह है जो अपनी खिड़की से सुंदर प्रकृति को देखता है । इस संग्रह में 153 कविताएँ हैं जो 10 भागों में विभक्त हैं । ये भाग है - पहाड़ से मुलाकात, भीगीं मुस्कानें लिए बादल, आमंत्रण पेड़ का, प्रकृति करे पुकार, जादूगर चाँद, चिड़िया का गीत, फूलों की बारात, नजारा बारिश का, रोता है समुद्र और हवा से गुफ्तगू व अन्य । इन भागों के शीर्षक ही इस काव्य-संग्रह की विषय-वस्तु बयान कर रहे हैं । कवयित्री ने प्रकृति को बड़े करीब से देखा है, वह उनसे संवाद करती है और उनके माध्यम से जीवन के सच को उद्घाटित भी करती है ।