प्रकाशक - मोनिका प्रकाशन, दिल्ली
क़ीमत - ₹400/-
पृष्ठ - 136
"पहला प्रयास" कविता-संग्रह के साथ साहित्य के क्षेत्र में कदम रख चुके राकेशकुमार जैनबन्धु का सही अर्थों में पहला प्रयास कहे जाने वाले कविता-संग्रह की पांडुलिपि मेरे हाथ में है। इसे द्वितीय प्रयास इसलिए बनना पड़ा क्योंकि इसको अकादमी की अनुदान योजना के अंतर्गत भेजा गया था और परिणाम आने से पूर्व कवि के पास एक संग्रह की सामग्री तैयार हो गई, जिसे उसने प्रकाशित करवा लिया। अनुदान योजना भले ही लेखकों को पुस्तक प्रकाशित करवाने हेतु आर्थिक मदद देने के लिए है, लेकिन इसके साथ-साथ यह योजना यह भी इंगित करती है कि रचनाकार का स्तर साहित्यिक कहा जाने योग्य है। इस दृष्टि से यहाँ अकादमी का कार्य सराहनीय है, वहीं राकेश बधाई के पात्र हैं कि वे अब अकादमी द्वारा स्वीकृति प्राप्त कवियों की श्रेणी में आ गए हैं।
यहाँ तक इस पांडुलिपि का सवाल है, इसमें 90 कविताएँ हैं। संग्रह का शीर्षक बताता है कि कवि की नजर सच के डूबने की तरफ गई है। आज के हालात चिंतनीय कहे जा सकते हैं क्योंकि सच हार रहा है, सभ्यता और संस्कृति पतन की ओर बढ़ रही है। शिक्षा दुकान बन गई है। कवि की पैनी नजर इन पर पड़ती है। भूल गया नैतिकता, मर गया जमीर, डूबी सच की पतवार, सपना या सच, नई गीता, संस्कार सब मिट गए, रिश्ते हुए तार-तार, प्रण, नशा कुछ काम न आया, ज़िंदगी करती इशारे, भटका देश का युवा आदि कविताओं में कवि इसी दशा का चित्रण करता है। ये कविताएँ आज के इंसान का सटीक चित्रण करती हैं। कवि ने खुद को भी इसमें शामिल किया है -
"रिश्ते-नाते तोड़कर / मैं बन गया अमीर /
भूल गया हूँ सब कुछ / मेरा मर गया जमीर"
कवि का खुद को शामिल करना इशारा है कि बड़ी-बड़ी बातें करने वाले हम सभी पतन के लिए कहीं-न-कहीं जिम्मेदार हैं। भले ही हम दूसरे पर अंगुली उठाकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लें, लेकिन वास्तव में निर्दोष हम भी नहीं। हमारे कारण ही झूठ, फरेब, अन्याय, अत्याचार बढ़ रहा है। कवि लिखता है -
"झूठ है मजबूत बड़ा / डूबी सच की पतवार"
कवि किसान, गरीब, विधवा, वृद्ध, कन्या सभी के दुखों को भी देखता है। करदे तू कल्याण, मैं हूँ विश्वशक्ति, फुटपाथ, माँ के अश्रु, देखी अनाथ की पीर, वृद्धाश्रम, विधवा का दुख, फिर भी जन्म लूंगी, दुखी अम्मा, किसान की दास्तां, मैं गरीब, दबा कुचला, आम आदमी, अभागी माँ आदि कविताएँ इन्हीं विषयों से संबंधित हैं। भटके युवा का चित्रण भी उसकी कविताओं में मिलता है। कवि ने यहाँ दीन-दुखियों की दशा का चित्रण किया है, वहीं आशावादी सोच को भी दिखाया है। वह बच्चों को मॉं-बाप की सेवा करने का संदेश देते हुए कहता है-
"मत भूल वो अवतार हैं / तेरे वो जीर्णोद्धार हैं /
छू लो माँ-बाप के चरण / वे तेरे स्वर्गद्वार हैं"
वह ज़िंदगी को इम्तिहान बताता है। उसका मानना है कि मंजिल पाना आसान नहीं, लेकिन इसे पाया जा सकता है। वह हौसला देते हुए लिखता है -
"नाकामियों को देखकर दिल मत उदास कर /
कुछ कामयाबी के दिन तो याद कर /
क्या वो तेरी सफलता नहीं"
पैसा-पैसा करने वाले से सवाल करता है -
"क्या यही तेरा वजूद है?"
वह संस्कार बचाए रखने की बात करता है। खून-पसीने की रोटी कमाने का संदेश देता है। ऐसे पात्र का चित्रण करता है, बुरा करने के बाद जिसकी आत्मा जागती है। वह सद्कर्मों को मोक्ष का द्वार कहता है। धार्मिक पाखंडों की बजाए दीन दुखी की मदद करने की बात करता है। वह चेतावनी भी देता है-
"होगी प्रलय / पड़ेगा सूखा / मरेगा हर प्राणी /
जैसे-जैसे धरती पर / पाप बढ़ेगा"
कवि मैं के रूप में अपनी कविताओं में शामिल है और वह अपनी कामना जाहिर करता हुआ हर दृष्टि से श्रेष्ठ होना चाहता है। वह ईश्वर को भी याद करता है। वह उसकी वंदना भी करता है और उससे आशीर्वाद भी माँगता है। वह उसे याद करते रहने की बात कहता है।
पौराणिक प्रसंगों को लेकर भी अनेक कविताएँ हैं, यथा - लंका में अंगद, शिव-पार्वती बन्धन, सीता हरण, चीर हरण आदि। 'छीन लो हक' कविता में प्राचीन प्रसंगों से लेकर आधुनिक दौर तक नारी की दशा बताते हुए मातृशक्ति को प्रेरित करता हुआ लिखता है -
"माँगने से न मिलें / एकजुट हो /
छीन लो हक"
वह फौजी की तमन्ना का बयान करता है, हिंदी की दशा का हाल बताता है, माँ भारती को रणचंडी, काली बताता है।
प्रकृति के वर्णन में कवि का मन खूब रमा है। छाई खुशियाँ चहुँ ओर, पॉलीहाउस में कैद, आँखे तरस जाएँगी, घटा घनघोर छा रे, घनघोर घटा, निखरा रूप और यौवन, संवाद, समुद्र का जल, सुधा, शातिर चोर, कुदरत, भोर हो आई, चाँद-चाँदनी का पहरा, धन्य है माली, धरा और मेघ, हवा, पानी की बूँद, पक्षी मेरे धन, कैसे होगी गुजारी, अपूर्व सौंदर्य आदि कविताओं में प्रकृति चित्रण को आधार बनाया है। इन कविताओं में कहीं पर प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन है, कहीं खुद को प्रकृति का अंग मानकर प्रकृति के दुख को बयां किया है और कहीं प्रकृति के सहारे से अन्य प्रसंगों को उठाया है। पक्षियों के संवाद के माध्यम से बदल रही स्थितियों को दिखाया गया है। प्रदूषण का वर्णन है। धरती की बेबसी का बयान है, लेकिन वह कहती है-
"फिर भी मैं खड़ी स्थिर / धरा जो हूँ /
सब मुझ पर निर्भर"
आधुनिकता के प्रभाव को भी इन कविताओं के माध्यम से स्पष्ट किया गया है और मानव जात को स्वार्थी बताया गया है, लेकिन कवि की दृष्टि में किसान महान है, तभी चाँद कहता है-
"पिलाऊँ सुधा पालनहार को / युगों-युगों रहे जो अमर"
शिल्प पक्ष से इन कविताओं में कवि ने शाब्दिक चमत्कार पर ध्यान दिया है। यथा -
"घर मेरे घृत घट पड़े / बरसन का बहाना बना"
अनुप्रास का भरपूर प्रयोग है। तत्सम शब्दों का भी खूब प्रयोग हुआ है। प्रकृति चित्रण करते हुए मानवीकरण के उदाहरण मिलते हैं। कविताएँ मुक्त छंद में हैं, लेकिन तुकांत का प्रयोग भी है। वर्णनात्मक के साथ-साथ आत्मकथात्मक शैली का खूब प्रयोग हुआ है।
संक्षेप में, हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकुला से अनुदान प्राप्त इस पांडुलिपि के प्रकाश्नोपरांत साहित्य जगत में भरपूर स्वागत होगा, ऐसी मुझे आशा है। कवि निरन्तर सृजन करता हुआ श्रेष्ठ से श्रेष्ठ कृतियाँ साहित्य जगत को दे, यही मेरी कामना है।
दिलबागसिंह विर्क
95415-21947
5 टिप्पणियां:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५-०३-२०२१) को 'निसर्ग महा दानी'(चर्चा अंक- ३९९७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
राकेश जी को कविता संग्रह प्रकाशन पर हार्दिक बधाई!
कविता संग्रह की सार्थक समीक्षा प्रस्तुतिकरण हेतु आपका धन्यवाद!
पुस्तक के लिए राकेश जी को बधाई .
बढ़िया समीक्षा
बहुत सुंदर और विस्तृत पुस्तक समीक्षा, पुस्तक के सभी पहलुओं पर विहंगम समालोचक दृष्टि।
पुस्तक के प्रति रूचि बढ़ाती समीक्षा।
आदरणीय दिलबाग जी को शानदार समीक्षा के लिए और राकेश जी को सुंदर सृजन एवं संकलन की हार्दिक बधाई।
सादर।
बेहतरीन समीक्षा... पुस्तक के प्रति जिज्ञासा जगाने वाली...
साधुवाद 🙏
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