BE PROUD TO BE AN INDIAN

गुरुवार, दिसंबर 30, 2010

जश्न नव वर्ष का

हर पल नया होता है, फिर पता नहीं क्यों नव वर्ष का ही जश्न क्यों मनाया जाता है ? नहीं, मैं जश्न विरोधी नहीं हूँ | जीवन को नाचते-गाते ही जिया जाना चाहिए, न कि रो-रोकर | हाँ, सिर्फ नए वर्ष का जश्न मुझे न्यायसंगत नहीं लगता | नए वर्ष में दूसरों से भिन्न कुछ भी नहीं | हर नए दिन की तरह यह भी एक सामान्य तरीके से आया नया दिन है | ऐसे में पार्टीबाजी का बहाना ढूँढने की कोई बात नहीं लगती |
              अगर बात जश्न की है तो हमारा जीवन ऐसा होना चाहिए कि हम हर पल को आनन्द से जी सकें और इसकी शुरुआत के लिए अगर कोई निश्चित दिन चाहिए तो यह एक जनवरी हो सकता है, लेकिन शर्त ये है कि हमारा संकल्प पूरा वर्ष आनन्द से जीने का होगा |आनन्द ! ख़ुशी से बढकर होता है, इसका ध्यान रहे | आनन्द के लिए दूसरों को दुखी नहीं किया जा सकता, अपितु यह दूसरों की भलाई में छिपा रहता है | हमारे तुच्छ स्वार्थों से तो सिर्फ ख़ुशी मिल सकती है, आनन्द नहीं |
       तो चलो आओ वर्ष 2011 के स्वागत में हम आत्ममंथन करते हुए खुद को बदलने के लिए तैयार करें | आनन्द प्राप्ति के लिए प्रयास करें और सही अर्थों में नव वर्ष का जश्न मनाएं |
              
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शुक्रवार, दिसंबर 24, 2010

भारत का दुर्भाग्य

भ्रष्टाचार भारत का पर्याय बनता जा रहा है . वर्तमान में 2 जी घोटाला सुर्ख़ियों में है | राष्ट्र्मंडल खेलों की बात अभी बहुत पुरानी नहीं हुई है | आखिर ऐसा क्यों होता है ? समय-समय पर नए-नए घोटाले उभर कर सामने आते हैं | देश का पूरा मीडिया कुछ दिन तक नए उभरे घोटाले के पीछे उलझा रहता है, फिर कुछ दिन के बाद हालात ऐसे हो जाते हैं, जैसे कुछ हुआ ही नहीं | इस देश में हर्षद मेहता का क्या हुआ ? चारा घोटाले, बोफोर्स घोटाले का क्या हुआ ? कुछ भी नहीं | यही वो कारण है जिसके कारण बार-बार घोटाले होते हैं | देश का प्रत्येक आदमी अपने सामर्थ्य के अनुसार घोटाले करने में जुटा हुआ है | न्याय प्रक्रिया का अत्यंत धीमा होना आग में घी डालता है | नैतिकता का अभाव, देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी  को  न समझना कुछ अन्य कारण हैं |
                         इसका तत्कालीन समाधान तो विशेष अदालतों का गठन ही दिखता है | दोषियों को यथाशीघ्र और सख्त-से-सख्त सज़ा घोटालों की संख्या को कम कर सकती है, लेकिन इस उपाय को अपनाने में पता नहीं कितना समय लगेगा ? जब तक घोटाले रोकने का कोई उपाय नहीं अपनाया जाता तब तक देश की सम्पत्ति यूं ही धूर्तों के हाथ लगती रहेगी और आम जनता दुखी व त्रस्त रहेगी | दुर्भाग्य से यही भारत का भाग्य बनता जा रहा है |      
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