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बुधवार, नवंबर 18, 2020

भक्ति और प्रेम की बात करता कविता-संग्रह

 कविता-संग्रह - तुम्हारे लिए

कवयित्री - स्वाति शशि

प्रकाशक - ब्लैकवर्डस पब्लिकेशन, थाने

पृष्ठ - 152

कीमत - ₹200/-

अमेरिका के मिशिगन में रह रही भारतीय मूल की कवयित्री स्वाति शशि का हिंदी साहित्य के क्षेत्र में पहला कदम कविता-संग्रह के रूप में आया है, जो समर्पण भावना से ओत-प्रोत है। प्यार की भावना को समर्पित इस कविता-संग्रह का नाम "तुम्हारे लिए" भी समर्पण भावना का परिचायक है। थाने ( महाराष्ट्र ) के ब्लैकवर्डस पब्लिकेशन से प्रकाशित इस संग्रह में 115 कविताएँ हैं। इनमें से 113 कविताएँ कवयित्री ने लिखी हैं और 2 कविताएँ स्वाति पर उसकी दो दोस्तों रश्मि किरण और अर्चना कुमारी ने लिखी हैं। इस संग्रह में माँ, रंग, नदी, चाँद, ज़िंदगी, लम्हा, बातें आदि अनेक शीर्षकों को लेकर एकाधिक कविताओं की रचना की गई है। संग्रह में भक्ति और प्रेम की प्रधानता होते हुए भी समाज और प्रकृति का भरपूर चित्रण मिलता है।

               यहाँ तक भक्ति का संबन्ध है, यह कहा जा सकता है कि कवयित्री विशुद्ध भक्त नहीं। उसकी कविताएँ अनुभवजन्य न होकर सामान्य ज्ञान पर आधारित हैं और इसी कारण कहीं-कहीं समर्पण भी उस स्तर का नहीं, जैसा एक भक्त से उम्मीद की जाती है। भक्ति में माँग का खोना अनिवार्य है, जबकि कवयित्री की रचनाओं में यह सर्वत्र मौजूद है, हालांकि उनकी माँग भौतिक नहीं, लेकिन माँग तो माँग है। गीता की बात करते हुए भी सिर्फ कर्म की राह अपनाने और फल न चाहने की बजाए उसकी अनेक चाहतें हैं। भगवान तो सर्वत्र व्याप्त है लेकिन कवयित्री कहती है -

"मैं बैठना चाहती हूँ / मंदिर में /

ताकि मैं तुम्हारा नाम ले सकूँ"(पृ. - 24)

इसमें सिर्फ कवयित्री को दोषी ठहराना गलत होगा, क्योंकि सामान्यतः हम इसी भक्ति से परिचित हैं। हमारी हर पूजा-अर्चना हमारी माँग का ही पर्याय है। कवयित्री अपने संग्रह की शुरूआत इसी माँग से करती है -

"कुछ कर्म करूँ मैं ऐसा / नर से नारायण हो जाऊँ(पृ. - 19)

देखने में यह माँग बड़ी ऊँची और पवित्र दिखती है, लेकिन यही विशुद्ध भक्त होने से हमें दूर ले जाती है। विशुद्ध भक्त होना शायद कवयित्री का लक्ष्य भी नहीं। भक्ति संबन्धी कविताएँ ईश्वर को याद करने के उद्देश्य से रची गई हैं, जिसमें वह सफल है। पहली कविता 'प्रभु-वंदना' रखकर उन्होंने पारम्परिक मंगलाचरण को अपनाया है और प्रभु की शरण में जाने की चाह जताई है। वह परमात्मा को देखना भी चाहती है। वह भगवान से पूछती भी है -

"भगवान तुम मेरी पुकार कब सुनोगे /

अपने वरदहस्त कब मुझपर रखोगे(पृ. - 25)

वह कमल, लड्डू, गरूड़, मोती, गंगा बनना चाहती है ताकि भगवान का सान्निध्य पाया जा सके। वह होली भी राम रंग और श्याम रंग की खेलना चाहती है। उन्होंने राम, कृष्ण, गीता को कविताओं का केंद्र बनाया है। 'जीवन झूठ और मृत्यु सच' के धार्मिक सिद्धांत के विपरीत वह चाहती है कि मौत महज़ बीमारी होती। भक्तिपरक कई कविताओं में आदर्श भक्ति की झलक भी मिलती है। दुनिया की चीजों से ऊबकर वह कहती है -

"ये जिंदगी तुम्हारी है प्रभु/ अब तू ही पार लगा दे"(पृ. - 26)

                  प्रेम भी भक्ति का ही एक रूप है। इस संग्रह में प्रीत के अनेक चित्र हैं। प्यार बदनाम करता है और कवयित्री को यह बदनामी स्वीकार्य है। समर्पण प्यार का अनिवार्य तत्त्व है और कवयित्री तू ही तू की बात करती है, प्रियतम को हर पल साथ पाती है। प्रीत में हार भी जीत होती है, इसलिए वह जानबूझकर हार जाती है। वह सैंकड़ों बार प्रेम करती है, मगर प्रेमी एक ही है। प्रियतम का दो दिन बरसना उसे उम्र भर के लिए भिगो गया है। प्रियतम को सामने पाकर वह महक उठती है। उसे पीछे खड़े पाकर लाल हो उठती है। वह चाहती है कि प्रियतम अचानक आए और वह बेल सी लिपट जाए। वह एक तरफ उससे हर तरह की बातें करना चाहती है और दूसरी तरफ मिलन के क्षणों में मौन रहना चाहती है। हाथों में हाथ डाले दूर निकल जाना चाहती है। वह चाहती है कि प्रियतम उसे वैसे ही मिले जैसे वह पहली बार मिला था। वह उन स्थितियों की कल्पना करती है, जब वह मर जाएगी। वह उसको ढूँढ़ती है, जो इस दुनिया में नहीं। वह उसके घर के सामने से गुजरती है, भले ही वह उसमें नहीं रहता। वह किसी 'वह' को समुंदर कहती है, जो प्रियतम भी हो सकता है और ईश्वर भी। उसी से वह अपनी गिरहें खुलवाना चाहती है। बिछुड़ने के पलों और उसके बाद कि स्थिति को भी दिखाया गया है। वह मिलकर बिछुड़ने वाले पलों को याद करती है। बिछुड़ने के बाद वह एक बार मिलना चाहती है। वह हर पल प्रियतम को पुकारती है। मिलन-बिछुड़न के सब दिनों को उंगलियों पर गिनती है। रूठकर भी पीछे नहीं हटती, अपितु इंतजार करती हैं। प्रेम है तो यादें हैं और कवयित्री हर पल प्रियतम को याद करती है। उसे माथे का चुम्बन याद है क्योंकि यह सीधा आत्मा तक पहुँचता है। वह लिखना चाहती है, तो सिर्फ उसका नाम लिख पाती है।

           कवयित्री ने खुद के बारे में बयान करते हुए विरोधाभासों को दिखाया है। वह क्या बने इस बारे में सोचते हुए अंत में सिर्फ स्त्री होना स्वीकार किया है। वह कहती है कि मुझे सिर्फ महसूस करो। अपने माध्यम से नारी के कठिनाई भरे जीवन का चित्रण है। अपनी थकान के बारे में सोचती है। वह अपने अंदर झाँककर दोस्ती, किसी के प्रति अहसास, किसी के दिए जख्मों को पाती है और जिन्हें चाहकर भी वह साफ नहीं कर सकती। वह काश का जिक्र करती है लेकिन ज़िंदगी में ये काश नहीं चलते, इससे वह परिचित है। वह तल्ख ज़िंदगी को देखते हुए ख्वाबों की दुनिया में रहना चाहती है। वह अपने आँसुओं के कारणों का जिक्र करती है। मरने के बाद उसका प्रियतम क्या करेगा, उसे यह जानने की उत्सुकता है। हर किसी को किसी-न-किसी का सहारा है, कवयित्री कहती है-

"मुझे है सहारा तेरी उन बदमाशियों का /

जो देता है दिलासा अकेलेपन में /

मुझे है सहारा तेरे प्यार का /

जो बढ़ाता है ढाढ़स मेरा हर बार"(पृ. - 66)

                 माँ पर उन्होंने कई कविताओं की रचना की है। वह अपनी स्वर्गवासी माँ को याद करते हुए उसे लौट आने को कहती है। उसके पार्थिव शरीर को मृत मानने से इंकार करते हुए, उसे निद्रावस्था मानते हुए एक नारी की अथक जीवनशैली को दिखाती हैं। माँ कभी मरती नहीं, यह संदेश भी उनकी कविताओं से झलकता है। वह खुद भी माँ है और माँ के रूप में बेटे, बेटी के क्रियाकलापों का वर्णन करती है। बच्चों के महत्त्व को दिखाया गया है।

                कवयित्री मन को पापी भी कहती है और सर्वव्यापी भी जबकि दिल मचल ही जाता है, जो शर्मसार करता है। वह जीवन में अनायास उत्पन्न रिक्तता को भरना चाहती है, लेकिन इसे कैसे भरे, यह उसे स्पष्ट नहीं। ख्वाबों का वर्णन है जो एक से दूसरा, दूसरे से तीसरा बनता चला जाता है। 'रंग' शीर्षक पर दो कविताएँ हैं। रंग ही कवयित्री को उड़ान देते हैं। उसे रंगों का मिलना राम-रहीम का एक होना दिखता है। फिल्मी ज्ञान भी कविताओं में झलका है। श्री देवी पर कविता है, जिसमें उसकी फिल्मों के नामों को कविता की पंक्तियों में पिरोया गया है। लाइब्रेरी से लाई पुस्तक की कहानी को कविता में पिरोया है। ‘समय' कविता तो प्रियंका ओम के कहानी संग्रह से प्रभावित लगता है, क्योंकि अंत में उनके संग्रह के शीर्षक की पंक्ति है और हैश टैग भी। 2017 और 2019 के आगमन पर लिखा है। 2015 में शादी की पन्द्रहवीं वर्षगांठ पर भी लिखा है और आने वाली पच्चीसवीं वर्षगांठ पर भी।

                    कवयित्री ने प्रकृति को केंद्र में रखकर भी कई कविताएँ लिखी हैं। पेड़ के साथ वह खुद की तुलना करती है। पेड़ के माध्यम से वह उपदेश देती है कि हमारा चरित्र मजबूत, स्वभाव कोमल, हृदय विशाल होना चाहिए। हममें विनम्रता होनी चाहिए। चाँद का वर्णन है। चाँद छूने की तमन्ना है। अपने चाँद और आसमान के चाँद की तुलना की है। सावन, बसन्त का वर्णन है। फूल के साथ खुद की तुलना करते हुए अपनी विवशताओं का बयान किया है-

"दो रोटी के लिए / अपने मन को भी मार दिया"(पृ.- 56)

प्रकृति को देखते हुए वह कहती है-

"जन्म और मृत्यु के बीच /

ये जीवन जीया नहीं जाता"(पृ. - 73)

वह खुद की तुलना नदी से करती है, बहती नदी से भी और सूखी नदी से भी। मछलियों के क्रियाकलाप पर अपनी कल्पना दौड़ाई है।

              कवयित्री ने गाँव का भी चित्रण किया है और शहर का भी। गाँव में से गाँव गायब है, जबकि त्योहारी अवसर पर शहर सजा हुआ है। वह उन गलियों को याद करती है, जहाँ उन्होंने चाट खाई थी। अपने शहर में हुई बर्फबारी का सजीव चित्रण किया है। फकीर का वर्णन है। नैतिकता की बातें सपाट तरीके से कही गई हैं। दार्शनिकता की झलक भी मिलती है। जिंदगी के बारे में वह कहती है-

"ज़िंदगी यह कैसी है / जिस विधि जियो वैसी है /

हताशा का है अंधकार / पर आशाओं का मोती है"(पृ. - 79)

कवयित्री पूछती है-

"ज़िंदगी हक़ीक़त है या सपना /

क्या है तू(पृ. - 82)

वह अपने उत्तर भी प्रस्तुत करती है। वह कुछ नया करने को कहती है। कवयित्री होने के लाभ बताती है।

                  अधिकतर कविताएँ वर्णात्मक शैली में कही गई हैं, हालांकि कुछ कविताओं की रचना के लिए उसने संवाद का भी सहारा लिया है। नदी और रेत के वार्तालाप से कर्म और परिवर्तन पर चर्चा की है। यम और दूत के संवाद के माध्यम से बताया है कि जितनी साँसे हैं उतना ही जीवन है। तुलना का भी सहारा लिया गया है। कविताओं में सरल भाषा का प्रयोग किया गया। मुक्त छंद है। कहीं-कहीं सपाट बयानी है, जो आज की कविता का अंग बनती जा रही है। कविता-संग्रह के बेहद आकर्षक आवरण में शोएव शाहिद की मेहनत साफ़ झलकती है और सुंदर साज-सज्जा वाले पृष्ठों पर त्रुटिहीन प्रकाशन ने इसे चार चाँद लगा दिए हैं। इस संग्रह का अंग्रेज़ी संस्करण भी इसके साथ ही प्रकाशित हुआ है।अंग्रेज़ी में अनुवाद युगांक धीर ने किया है।

            संक्षेप में, कवयित्री का यह पहला प्रयास सराहनीय है|

दिलबागसिंह 

5 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर

मन की वीणा ने कहा…

कवियत्री और उनकेे लेखन के बारे में विस्तृत जानकारी
सुंदर समालोचना।

Amrita Tanmay ने कहा…

बेहद पारखी दृष्टि से अवलोकन अति सुन्दर बन पड़ा है । आभार ।

satta king ने कहा…

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