BE PROUD TO BE AN INDIAN

शनिवार, अक्तूबर 15, 2011

प्रेम की तलाश में भटकाव की कथा है - चरित्रहीन

बांगला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का प्रसिद्ध उपन्यास चरित्रहीन प्रेम की तलाश में भटकाव की कहानी है. यह भटकाव है हारान की पत्नी किरणमयी का. वह अपने पति से संतुष्ट नहीं क्योंकि उसका कहना है कि पति से उसके सम्बन्ध महज गुरु-शिष्य के हैं, इसीलिए वह हारान का इलाज करने आने वाले डॉक्टर अनंगमोहन से सम्बन्ध बना लेती है, लेकिन बाद में उसे ठुकराकर उपेन्द्र की तरफ झुकती है. उपेन्द्र अपने एकनिष्ठ पत्नी प्रेम के कारण उसके प्रेम निवेदन को ठुकरा देता है, लेकिन वह अपने प्रिय दिवाकर को पढाई के लिए उसके पास इस उम्मीद से छोड़ जाता है कि वह उसका ध्यान रखेगी, लेकिन वह उसी पर डोरे डाल लेती है और उसे भगाकर आराकान ले जाती है, लेकिन उनके सम्बन्ध स्थायी नहीं रह पाते.
                 इस उपन्यास का शीर्षक किरणमयी पर ही आधारित है, लेकिन यही इसकी एकमात्र कथा नहीं. दरअसल इसमें दो कथाएँ समांतर चलती हैं --- सतीश-सावित्री की कथा और किरणमयी की कथा. उपेन्द्र दोनों कथाओं को जोड़ने वाली कड़ी है. उपेन्द्र सतीश और हारान बाबू का दोस्त है. सतीश पढाई के लिए कलकता आता है तो उपेन्द्र बीमार हारान बाबू की देखभाल के लिए. उपेन्द्र के इर्द-गिर्द दोनों कथाएँ चलती हैं. उसी की मृत्यु के साथ इस उपन्यास का अंत होता है. उपेन्द्र एक चरित्रवान पुरुष है. पत्नी सुरबाला की मृत्यु के बाद अस्वस्थ हो जाता है. वह दिवाकर और सतीश को पतन की खाई से बाहर निकाल कर मृत्यु को प्राप्त होता है. 
                        सतीश-सावित्री की कथा उपन्यास के शरू से ही चलती है. सावित्री एक विधवा है. वह वहां पर नौकरी करती है यहाँ सतीश रहता है. सतीश उसे प्रेम करता है. वह भी सतीश से प्रेम करती है, लेकिन इस उद्देश्य से सतीश को दूर हटाती है कि विधवा का विवाह समाज में मान्य नहीं.  सतीश उसे समझ नहीं पाता और वह उसे ऐसी चरित्रहीन औरत समझ लेता है जो किसी दूसरे के पास चली गई हो. सावित्री के कारण ही उपेन्द्र और सतीश में मनमुटाव होता है. उपेन्द्र सावित्री को उस दिन सतीश के घर पर देख लेता है जिस दिन वह सतीश से पैसे उधार लेने आती है. सतीश आहत होकर एकांतवास में चला जाता है. यहाँ उसका पता उपेन्द्र के दोस्त ज्योतिष की बहन सरोजनी को चल जाता है. उपेन्द्र के माध्यम से ही वह सतीश को जानती है और उस पर मोहित भी है. सरोजिनी को शशांकमोहन नामक युवक भी चाहता है लेकिन सरोजिनी की माता सतीश को ही दामाद बनाना चाहती है. शशांकमोहन सतीश-सावित्री की कथा ज्योतिष को सुनाता है जिससे सरोजिनी के विवाह की बात अटक जाती है. सतीश पिता की मृत्यु के बाद अपने पैतृक गाँव चला जाता है और एक तांत्रिक के पीछे लगकर नशा करने लगता है और बीमार पड जाता है. सतीश का नौकर सावित्री को ढूंढ लाता है. सावित्री तांत्रिक को भगाकर सतीश को सम्भालती है. वह उपेन्द्र के नाम भी खत लिखती है. उपेन्द्र भी सावित्री के बारे में जान चुका होता है. वह सरोजनी को लेकर गाँव पहुंचता है. उपेन्द्र सावित्री को अपनी बहन बना लेता है और सतीश-सरोजनी की शादी निश्चित कर दी जाती है. सतीश आराकान जाकर दिवाकर और किरणमयी को लेकर आता है. किरणमयी उपेन्द्र के सामने नहीं आना चाहती इसलिए वह सतीश के घर नहीं आती, लेकिन बाद में पागलावस्था में सतीश के घर पहुंच जाती है. उपेन्द्र दिवाकर का भार सावित्री को सौंप सतीश, सावित्री, दिवाकर और सरोजनी की उपस्थिति में प्राण त्याग देता है. जिस समय उपेन्द्र की मृत्यु होती है उस समय किरणमयी पास के कमरे में गहरी नींद सौ रही होती है.
                  इस उपन्यास में बीच-बीच में विद्वता भरा बोझिल वाद-विवाद भी है. सत्य क्या है, ईश्वर है या नहीं, वेद-पुराण सच हैं या झूठ, अर्जुन तीर से भीष्म को पानी पिलाता है या नहीं और प्रेम के विषय को लेकर लम्बे वाद-विवाद होते हैं और ये वाद-विवाद करती है किरणमयी. इस प्रकार किरणमयी एक तरफ विदुषी है तो दूसरी तरफ लम्पट औरत जो अनंगमोहन, उपेन्द्र और दिवाकर को वासना की दृष्टि से देखती है और अनंगमोहन और दिवाकर से सम्बन्ध भी स्थापित करती है. 
               शीर्षक के आधार पर किरणमयी ही इस उपन्यास की प्रमुख महिला पात्र होनी चाहिए, लेकिन सावित्री भी मौजूद है. सावित्री श्रेष्ठ चरित्र की स्वामिनी है. वह झूठे आरोप सहती है, दुःख उठाती है तो सिर्फ इसलिए कि उसने जिससे प्रेम किया है वह पथ भ्रष्ट न हो जाए, समाज में कलंकित न हो जाए. वह अपने प्रेम के बूते सतीश को सही राह पर ले आती है. इस दृष्टिकोण से चरित्रहीन एकपक्षीय शीर्षक दिखाई पड़ता है. यह इस दृष्टिकोण से भी एकपक्षीय है कि पुरुष पात्र चरित्रहीन नहीं. यहाँ तक कि जिस दिवाकर को किरणमयी भगाकर ले जाती है वह भी निर्दोष दिखाई देता है. वह किरणमयी से प्रेम के विषय को लेकर इसलिए चर्चा करता है क्योंकि उसने जो कहानी लिखी थी उसमें वर्णित प्रेम को किरणमयी आदर्श नहीं मानती. किरणमयी जब उसे भगाकर ले जाती है तब भी वह बेचैन है किरणमयी से दूर रहना चाहता है लेकिन किरणमयी उसे जबरदस्ती पतित कर देती है. उपेन्द्र तो एक आदर्श पात्र है ही. सतीश भी एक प्रेमी है चरित्रहीन नहीं.
                         किरणमयी की कथा इस 45 अंक के उपन्यास के 11 वें अंक से शुरू होती है. अत: स्पष्ट है कि यह कथा प्रमुख कथा नहीं है, लेकिन शीर्षक के आधार पर यही कथा इस उपन्यास की प्रमुख कथा लगती है. इस उपन्यास का अंत उपेन्द्र की मृत्यु और किरणमयी के पागल हो जाने के साथ हो जाता है. सतीश-सरोजनी का विवाह निश्चित हो जाता है और दिवाकर को सावित्री के हाथ सौंप दिया जाता है , उपेन्द्र दिवाकर का विवाह अपनी पत्नी की बहन से करने की बात भी सावित्री को कह कर जाता है. सावित्री त्याग की मूर्ति की रूप में स्थापित होती है.
                   इस उपन्यास में बांगला समाज और तत्कालीन परिस्थितियों का भी सुंदर चित्रण है. बांगला समाज पाश्चात्य दृष्टिकोण को लेकर दो भागों में बंटा हुआ है. ज्योतिष के माता-पिता में इसी बात को लेकर अलगाव हो जाता है की ज्योतिष का पिता बैरिस्टर बनने के लिए विदेश चला जाता है. ज्योतिष, शशांकमोहन और सरोजनी पाश्चात्य ख्यालों के हैं लेकिन ज्योतिष की माता पुराने ख्यालों की होने के कारण ही शशांक की बजाए सतीश को दामाद के रूप में चुनती है. बीमारियों का इलाज़ नहीं. सुरबाला और उपेन्द्र का निधन इसी कारण होता है. गाँव में बीमारियाँ महामारी के रूप में फैलती हैं इसलिए जब सतीश गाँव जाने का फैसला लेता है तो उसका नौकर डर जाता है. सतीश के बीमार हो जाने पर यह डर सच साबित होता प्रतीत होता है.
                 संक्षेप में कहें तो यह उपन्यास शरतचंद्र की ख्याति के अनुरूप ही है, इसकी रोचक कथा पाठकों को शुरू से अंत तक बांधे रखती है.

                         * * * * *

1 टिप्पणी:

रचना दीक्षित ने कहा…

चरित्रहीन की कथावस्तु का सुंदर विवरण. यह उपन्यास पढ़ा नहीं है लेकिन उत्सुकता जाग रही है.

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...