BE PROUD TO BE AN INDIAN

रविवार, अप्रैल 21, 2019

कहानीकार मालती मिश्रा की नज़र में कवच

वर्तमान परिवेश के धरातल पर रची गई काल्पनिक सत्य है 'कवच'

मानव का परिपक्व मन समाज की, परिवार की हर छोटी-बड़ी घटना से प्रभावित होता है और एक साहित्यकार तो हर शय में कहानी ढूँढ़ लेता है। आम व्यक्ति जिस बात या घटना को दैनिक प्रक्रिया में होने वाली मात्र एक साधारण घटना मान कर अनदेखा कर देते हैं या बहुत ही सामान्य प्रतिक्रिया देकर अपने मानस-पटल से विस्मृत कर देते हैं, उसी घटना की वेदना या रस को एक साहित्यिक हृदय बेहद संवेदनशीलता से महसूस करता है और फिर उसे जब वह शिल्प सौंदर्य के साथ कलमबद्ध करता है तो वही लोगों के लिए प्रेरक और संदेशप्रद कहानी बन जाती है। एक कहानीकार की कहानी कोरी काल्पनिक होते हुए भी अपने भीतर सच्चाई छिपाए रहती है, वह एक संदेश को लोगों के समक्ष रोचकता के साथ प्रकट करती है और चिंतन को विवश करती है। एक कहानीकार पाठक को मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक दायित्वों के लिए जागरूक भी बनाता है। एक साहित्यकार अपने साहित्य से समाज के उत्थान या पतन दोनों की दिशा सुनिश्चित कर सकता है और साहित्य की विधाओं में कहानी अति प्रभावी होती है। इसमें लोगों को बाँधे रखने के साथ-साथ सकारात्मक या नकारात्मक सोच को जन्म देने की गुणवत्ता होती है।  कहानीकार दिलबाग 'विर्क' जी ने अपने संकलन 'कवच' में ऐसी ही इक्कीस संदेशप्रद कहानियों को संकलित किया है, जो वर्तमान समाज का आईना हैं। वर्तमान समाज की हर सकारात्मक, नकारात्मक पहलू पर उनकी लेखनी चली है। उनकी लेखनी से निकला हर शब्द कहानी की आत्मा प्रतीत होता है।
                 इसका कथानक रिश्तों की कशमकश, बेरोजगारी, रूढ़िवादिता, आधुनिकता की फिसलन, पारिवारिक बंधन की छटपटाहट आदि को अपने भीतर समेटे हुए है। कथोपकथन को पात्रों के अनुकूल रखने का प्रयास किया है। घर-गृहस्थी की चक्की में पिसता आज का युवा घर-परिवार के बंधनों से कुछ देर की मुक्ति हासिल कर मानों स्वयं को खुले आकाश का पंछी समझ लेता है और उसका चंचल मन कल्पनाओं के पंख लगा बंधन मुक्त स्वच्छंद होकर खुले आकाश में उड़ान भरना चाहता है और उसकी इस कल्पना की चिंगारी को हवा देने का काम आजकल सोशल मीडिया के द्वारा बखूबी कर दिया जाता है। कभी-कभी तो व्यक्ति मात्र क्षणिक हँसी-मजाक समझकर की गई बातों की श्रृंखलाओं में ऐसा उलझता जाता है कि उसे ज्ञात ही नहीं होता कि वह कितनी दूर निकल आया और जो वह कर रहा है वह गलत है या सही, किंतु किसी अपने के ऐसी परिस्थिति में होने की आशंका मात्र से सजग हो उठता है, 'खूँटे से बँधे लोग' कहानी के माध्यम से लेखक ने बेहद सजीवता से इसका चित्रण किया है। इसके एक-एक संवाद बेहद सहज आम बोलचाल की भाषा में लिखे गए हैं जो हिन्दी-अंग्रेजी के बंधनों से सर्वथा स्वतंत्र हैं।
          कहानी के संवाद पात्रों और घटनाओं को सजीवता प्रदान करते हैं। दृष्टव्य है- कहानी का मुख्य पात्र अपनी सोशल मीडिया की महिला मित्र के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहता है-
"नहीं-नहीं, हम खूँटे से बँधे लोग क्या सहेली बनाएँगे।"
"खूँटे?"
"घर गृहस्थी खूँटे ही तो हैं।"- "हा हा हा" कहकर रमेश ने अपनी इस गंभीर बात को मजाक का रंग देने की कोशिश की।
"हम्म, कभी-कभी छूट तो मिल ही जाती होगी?" उसने आँख मारती स्माइली के साथ मैसेज भेजा।
"छूट तो कहाँ मिलती है, बस खूँटे पर बँधे थोड़ा उछल-कूद कर लेते हैं।" रमेश ने भी उसी स्माइली के साथ रिप्लाई किया।
               पुस्तक की प्रतिनिधि कहानी 'कवच' के माध्यम से लेखक निश्चित समय पर कार्य न कर पाने की स्थिति में बहानों का कवच तैयार करने के प्रयास करता है जो एक मानव मन की सहज प्रक्रिया होती है और मस्तिष्क पर यही दबाव लेकर सो जाने से स्वप्न में वही सब देखता है कि महाभारत के पात्रों ने भी किस प्रकार स्वयं को  निर्दोष दिखाने के लिए कवच ओढ़ रखा है।  महाभारत के पात्रों के माध्यम से पौराणिकता में पत्रकार रंजन जैसे आधुनिक पात्रों को सम्मिलित करके लेखक ने कहानी को वर्तमान धरातल पर सार्थक कर दिया है। वहीं 'सुहागरात' जैसी कहानी समाज में व्याप्त रिश्तों के विकृत पहलू को नग्न करती है।
                     कवच की सभी कहानियाँ वर्तमान परिवेश के धरातल पर रची गई काल्पनिक सत्य हैं। सभी कहानियों को पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि ये पात्र तो हमारे जाने-पहचाने से हैं, शायद ये कहानी हम अक्सर अपने आसपास देखते हैं। जब किसी कहानी को पढ़ते हुए पाठक स्वयं को उस कहानी का पात्र महसूस करने लगे तो वह कहानी कहानी नहीं जीवन प्रतीत होने लगती है, कुछ ऐसी ही हैं कवच की जीवंत कहानियाँ।
                    संबल जैसी कहानी जहाँ आजकल लड़कियों का संबल बनाए रखने हेतु और बुराई से सामना करने के लिए माता-पिता को बेटियों के साथ मित्रवत् व्यवहार करने की सीख देती है, वहीं कार्यक्षेत्र में महिला सहकर्मियों को लेकर पुरुष वर्ग द्वारा बनाई जाने वाली बातें तथा किंवदंतियों की भी बड़ी खूबसूरती से 'चर्चा' कहानी में चर्चा की गई है।
                         जहाँ एक ओर जाति-पाँति, धर्म-गोत्र में उलझे समाज के स्याह पहलू में विलीन बेटियों की व्यथा को दर्शाते हुए माता-पिता के बलिदान के द्वारा इस रूढ़िवादिता के तिमिर से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाने का प्रयास 'बलिदान' कहानी का मूल विषय है, तो वहीं पुत्र और पति के रिश्तों में पिसते एक ऐसे पुरुष वर्ग की दास्तां सोचने पर विवश कर देती है कि वास्तव में दोष किसका है? साधारण नौकरीपेशा उस पुत्र का जो अपनी माँ को संतुष्ट रखने के प्रयास में पत्नी की दृष्टि में उपेक्षित होता है या उस पति का जो पत्नी के साथ सामंजस्य बिठाने के प्रयास में माँ की उलाहनों का शिकार होता है, और अंततः माँ और पत्नी इन 'दो पाटन के बीच' पिसता हुआ उस अपराध का सजाभोगी बनता है, जो उसने किया ही नहीं।
                     कार्यालयी परिवेश में साथ काम करते हुए विवाहेतर आकर्षण का सजीव चित्रण 'च्युइंगम' के माध्यम से किया है तो बढ़ती महात्वाकांक्षाओं को पूरा करने और दिखावे के अधीन होकर खर्चे पर नियंत्रण न करके कर्ज के बोझ में दबकर आत्महत्या करने की घटना का बेहद सजीव चित्रण कहानी 'सुक्खा' के माध्यम से किया गया है।
                   एकबार यदि किसी के माथे सजायाफ्ता का कलंक लग जाए तो वह कभी पीछा नहीं छोड़ता और व्यक्ति निराशा के दलदल में धँसता जाता, इसका उदाहरण है कहानी 'दलदल'।
                   कॉलेज के दिनों में दोस्ती के महत्व तथा प्यार के इज़हार न कर पाने की कशमकश का चित्र 'इजहार' में जीवंत हो उठा तथा रोज़गार की आड़ में उसूलों और अनुचित कार्यों के मध्य जद्दोज़हद कहानी 'रोज़गार' में परिलक्षित है।
                     देश के प्रति उदासीन रवैया दर्शाती कहानी 'गर्लफ्रैंड जैसी कोई चीज' तथा भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, लाचारी, गरीबी और बेरोजगारी पर प्रहार है 'कीमत' कहानी।
                           कलुषित मानसिकता, चारित्रिक पतन और  समाज की विद्रूपताओं का आईना है 'प्रदूषण' तो दिल और दिमाग के अन्तर्द्वन्द्व में मानवता और नैतिकता का ह्रास दर्शाती कहानी 'गुनहगार' जो पाठक को झकझोर कर रख देने की क्षमता रखती है।
लेखक ने समाज के हर पहलू को पाठक के समक्ष प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
                      अंजुमन प्रकाशन से प्रकाशित 152 पृष्ठ की 'कवच' का मूल्य मात्र 150/ है।
                मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि 'कवच' की कहानियाँ पाठक को बाँधे रखने में पूर्णतः सक्षम हैं तथा इसके प्रत्येक पात्र को आप अपने आसपास महसूस कर पाएँगे। लेखक अपनी कहानियों के माध्यम से जो संदेश पाठक तक पहुँचाना चाहते हैं उसमें पूर्णतः सफल हुए हैं।

मालती मिश्रा 'मयंती'
समीक्षक, कहानीकार व लेखिका
बी-20, गली नं०- 4, भजनपुरा, दिल्ली-110053
मो. 9891616087

बुधवार, अप्रैल 10, 2019

ज्ञानप्रकाश पीयूष जी की नज़र में कवच

पुस्तक का नाम - कवच (कहानी-संग्रह)
लेखक - दिलबागसिंह विर्क 
विधा - कहानी 
प्रकाशन- अंजुमन प्रकाशन, प्रयागराज
प्रथम संस्करण - 2019 
मूल्य: 150रूपये
पृष्ठ सं.:152 
प्राप्ति स्थान - पेपरबैक संस्करण, kindle 
मसीतां,डबवाली ,सिरसा के बहु चर्चित साहित्यकार दिलबाग सिंह विर्क द्वारा रचित कहानी संग्रह 'कवच' प्राप्त हुआ। इसके लिए इन्हें हार्दिक धन्यवाद एवं शुभकामनाएं।
                    प्रस्तुत संग्रह में इनकी 21 कहानियाँ संगृहीत हैं,जो सामाजिक सरोकारों से अनुस्यूत विविध विषयों पर आधारित यथार्थवादी कहानियाँ हैं। इनमें कतिपय कहानियाँ स्थानीय,राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत हो चुकी हैं।
              'क़ीमत' कहानी पर विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस द्वारा आयोजित करवाए गए अंतर्राष्ट्रीय मुकाबले में इन्हें सौ डॉलर का सांत्वना पुरस्कार मिला। इसी कहानी को स्थानीय दैनिक समाचार पत्र 'सच कहूँ' में प्रथम स्थान प्राप्त होने पर सम्मान मिला।तथा इससे पूर्व इसी दैनिक समाचार पत्र में इनकी कहानी 'गर्ल फ्रेंड जैसी कोई चीज' को तृतीय पुरस्कार प्राप्त हुआ।
               प्रदूषण' कहानी को 'डेमोक्रेटिक-वर्ल्ड' पत्रिका की 'नव सृजन' प्रतियोगिता में गौरवपूर्ण स्थान मिलने पर इन्हें पत्रिका के अंक सहित पारिश्रमिक भी प्राप्त हुआ। इसी प्रकार 'दो पाटन के बीच'और 'रोजगार' कहानी भी 'शब्द बूँद' पत्रिका में प्रकाशित होने का सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं।
            युवा कहानीकार प्रियंका ओम के अतिथि सम्पादन में प्रकाशित होने वाले 'प्रभात खबर' के अंक में 'खूँटों से बंधे लोग'कहानी का प्रकाशन अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
             'सुक्खा' और 'दलदल' व्यंग्य प्रधान कहानियाँ हैं,जिनमें समाज के सामयिक यथार्थ पर तीक्ष्ण कटाक्ष किया है। 'सुक्खा' कहानी में अपनी हैसियत से अधिक खर्च करने के मिथ्या दम्भ को रेखांकित किया किया है, बैंक व महाजन से कर्ज़ लेने, ज़मीन गिरवी रख कर और बेच कर भी ठाठ से जीने की दुष्प्रवृत्ति पर कटाक्ष किया हैं।
              'दलदल' कहानी में अपराध के दलदल में एक बार फँस जाने पर उससे निकलने को बड़ा मुश्किल बताया है,व्यक्ति अपराध की दुनिया से बाहर निकलना चाहे तब भी पुलिस के अविश्वसनीय रवैये के कारण निकलना असम्भव होजाता है। पुलिस की नकारात्मक सोच पर कटाक्ष किया है।
               आलोच्य कृति की 'कवच' कहानी बड़ी मार्मिक , प्रतीकात्मक और महाभारत की घटना पर आधारित है।इसी कहानी को केंद्र बिन्दु में रख कर लेखक ने कृति का शीर्षक 'कवच' रखा है,जो सर्वथा समीचीन है।
                   'इज़हार' कहानी में निःशब्द प्यार के महत्त्व को अंगीकार किया है,तथा 'बलिदान' में प्यार के लिए बलिदान की अपरिहार्यता को प्रतिपादित किया है। संग्रह की रोज़गार, ज़िन्दगी का अन्याय,सम्बल,बीच का रास्ता आदि कहानियाँ बहुत उत्कृष्ट एवं सन्देशप्रद हैं।
                रोचक शैली एवं सरल भाषा में रचित ये कहानियाँ संवाद-योजना ,अभिव्यक्ति कौशल,उद्देश्य, प्रयोजन, शीर्षक और समग्र प्रभाव की दृष्टि से सफ़ल व उज्ज्वल कहानियाँ हैं। लेखक दिलबाग सिंह विर्क की आगामी कृति इससे भी बेहतर और उत्कृष्ट होगी,इन्हीं शुभकामनाओं सहित,हार्दिक
साधुवाद।
समीक्षक,
ज्ञानप्रकाश 'पीयूष' ,आर.ई.एस.
पूर्व प्रिंसिपल,
1/258 मस्जिदवाली गली
तेलियान मोहल्ला, सिरसा (हरि.)
पिन-125055, मो. 94145-37902.
मो.-70155-43276
ईमेल-gppeeyush@gmail.com

बुधवार, अप्रैल 03, 2019

डॉ. शील कौशिक की नज़र में कवच

जीवन की विसंगतियों का सफल चित्रण

समीक्ष्य कृति: कवच (कहानी-संग्रह)
कहानीकार: दिलबागसिंह विर्क 
प्रकाशन: अंजुमन प्रकाशन, प्रयागराज
मूल्य: 150रूपये
पृष्ठ सं.:152 
प्राप्ति स्थान - पेपरबैक संस्करण, kindle 
दिलबागसिंह विर्क का ‘कवच’ सद्यप्रकाशित व पहला कहानी संग्रह हैI इसमें 152 पृष्ठों में समाई 21 बेजोड़ कहानियाँ हैं, जो बरबस ही पाठक का ध्यान आकर्षित करती हैं यूँ तो वे बहुत समय से पंजाबी व हिन्दी में कहानियाँ लिख रहे हैं, उनकी स्वीकारोक्ति है कि उनकी बहुत-सी कहानियाँ समय–समय पर आयोजित प्रतिष्ठित प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत व प्रशंसित हुई हैं, जिन्होंने उन्हें इन कहानियों को संग्रह के रूप में देने के लिए प्रोत्साहित किया हैI लेखक ने अपने आस-पास के परिवेश को बखूबी समझा है और इन कहानियों में पारम्परिक निर्वाह के साथ-साथ आधुनिक को भी वहन किया हैI 
            एकदम नये नज़रिये का प्रतिफलन कही जा सकती है कहानी ‘कवच,’ जिसमें महाभारत के पौराणिक पात्रों को माध्यम बना कर मनुष्य की अकर्मण्यता की प्रवृति पर कटाक्ष किया गया हैI स्वप्न में अमित पत्रकार द्वारा महाभारत के विविध पात्रों से पूछे गये प्रश्नों के उत्तरों में बास द्वारा दिए गये प्रोजेक्ट के असफल होने के कारणों को समझने-जानने की बजाय हल के रूप में कुछ हथियार और कवच खोज लेता हैI संवादात्मक शैली में लिखी यह कहानी अपना समुचित प्रभाव छोड़ती हैI 
                 वर्तमान में फेसबुक व वाह्ट्सएप ने विपरीत लिंगियों की मित्रता के नये आयाम दिए हैंI ‘खूँटो से बंधे लोग’ ऐसे की कथानक का निर्वाह करती हैI वैवाहिक बंधन में बंधा नायक रमेश इस नये चलन का लाभ लेकर मधु से चेटिंग करने लगता हैI परन्तु पत्नी के मोबाइल पर लगातार आती मैसेज की रिंगटोन उसे आशंका व प्रश्नाकूल स्थिति में ले आती है...कहीं उसकी पत्नी? यह सोचते ही वह वाई-फाई आफ कर देता हैI दरअसल एक संस्कारित व्यक्ति समय के परिवर्तन और मूल्यों के संक्रमण से अधिक समय तक प्रभावित नहीं रह सकताI वैवाहिक संस्कारों में बंधा रमेश का मन थोड़ी-बहुत उछल-कूद बेशक कर ले, पर आखिर अपने खूँटे पर ही लौट आता हैI कहानीकार ने वैवाहिक बंधन को खूँटे से बंधा होने की नई व्यंजना दी हैI 
                        ‘दो पाटन के बीच’ एक ग्रामीण आंचल की साधारण से पंजाबी परिवार की साधारण विषय की कहानी हैंI जैसा कि कबीर के दोहे से लिए कहानी के शीर्षक से ही इंगित है कि कथानायक भूपिंदर सास-बहू की प्रतिदिन होने वाली झिकझिक से परेशान हैI वह कभी माँ को समझाता है तो कभी पत्नी कोI आखिकार उसकी पत्नी मनजोत आत्महत्या कर लेती हैI कहानी में भूपिंदर की विवशता का सटीक चित्रण प्रभावित करता हैI
                 आत्मकथात्मक शैली में लिखी कहानी है ‘गर्लफ्रेंड जैसी कोई चीज़ नहीं’ स्वानुभव से मिले इस कथानक में लेखक का अपने दोस्तों की विश्रृंखलता के प्रति गुस्सा हैI बिना टिकट यात्रा करना लेखक को सोचने पर मजबूर कर देता हैI क्या हम अपना ज़मीर बेच कर राष्ट्र के साथ धोखा नहीं कर रहे और टिकट निरीक्षक को कुछ रिश्वत देकर उसका घर नहीं भर रहे? दोस्तों द्वारा टिकट के रूपये बचाकर गर्लफ्रेंड को गिफ्ट देना व फिल्म देखना उसे आहत करता है और वह कह उठता है, “देश क्या कोई गर्लफ्रेंड जैसी कोई चीज़ होता है?” लेखक की आत्मसजगता उसे ऐसा करने स रोकती हैI 
                    समग्रत: ‘कवच’ कहानी-संग्रह की प्रत्येक कहानी में अपने समय और समाज की आहट हैI कहानीकार इन स्थितियों से अवसादग्रस्त न होकर चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आश्वस्ति का दामन थामता प्रतीत होता हैI वह पात्रों के मनोजगत में प्रवेश करने का भी हुनर रखता हैI उपरोक्त के अतिरिक्त संग्रह की कीमत, प्रदूषण व गुनहगार अन्य उल्लेखनीय कहानियाँ हैंI कहानियों में सरल, सहज, सम्प्रेष्य भाषा, कथ्यों की परिपक्वता व शिल्प की सुगढ़ता के दर्शन होते हैंI अलग धरातल पर बुने व बहुरंगी सोच वाले इस संग्रह के लिए दिलबागसिंह को अशेष बधाईI वे अभी उर्जावान, बुद्धिमान व संवेदनशील युवा हैं और भविष्य में उनसे और भी बेहतरीन कहानियों की उम्मीद की जा सकती हैI फ़िलहाल मैं पूरी तरह आशान्वित हूँ कि पहलौठी सन्तान की तरह इस कृति को पाठकों का असीम प्यार व दुलार मिलेगाI
शुभाकांक्षी 
मो.9416847107 डॉ. शील कौशिक
( हरियाणा की श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान प्राप्त साहित्यकार)

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