रूप देवगुण की कहानियों में प्रेम के ये सब रूप पवित्रता और अपवित्रता के साथ विद्यमान हैं | रूप देवगुण के चार कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं | पहला कहानी-संग्रह “ मैं+तुम=हम ” 1983 में प्रकाशित हुआ, दूसरा कहानी-संग्रह “ छतें बिन मुंडेर की ” 1985 में, तीसरा कहानी-संग्रह “ कब सोता है यह शहर ” 1992 में और चौथा कहानी-संग्रह “ अनजान हाथों की इबारत ” 2004 में प्रकाशित हुआ | इन चार संग्रहों के अतिरिक्त उनकी चुनिन्दा कहानियों के तीन संकलन भी प्रकाशित हुए, लेकिन उनमें इन्हीं संग्रहों की कहानियाँ हैं | अत: मूल रूप से उनके यही चार कहानी संग्रह हैं और इनमें 45 कहानियाँ संकलित हैं | प्रेम का वर्णन न्यूनाधिक मात्रा में उनके चारों संकलनों की कहानियों में मिलता है |
रचनाकार का व्यक्तित्व उसकी रचनाओं में अक्सर झलकता है, यह बात देवगुण जी पर भी लागू होती है | देवगुण जी ने 34 वर्ष तक कॉलेज में अध्यापन कार्य किया | कॉलेज के प्राध्यापक होने के नाते उन पर बच्चों के सामने आदर्श बनने की जिम्मेदारी अवश्य रही होगी और इसी जिम्मेदारी के निर्वहन ने अवश्य उनकी कलम को मर्यादित किया होगा | उनकी कहानियों में चाहे सात्विक प्रेम का वर्णन हो या फिर प्रेम के नाम पर वासना का, उनकी कलम कहीं भी उच्छृंखल नहीं हुई, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उन्होंने प्रेम का निरूपण नहीं किया | वे जो कुछ कहना चाहते हैं, उसमें सफल हुए हैं | प्रेम के विविध रूप उनकी कहानियों में बिखरे हुए हैं |
‘ रूप देवगुण की कहानियों में प्रेम का स्वरूप ’ संकलन में उन कहानियों को चुना गया है, जिनमें प्रेम के विविध रूप प्रमुखता से हैं | कुछ ऐसी कहानियाँ भी हैं, जिनमें प्रेम दिखता नहीं, लेकिन प्रेम वहाँ मौजूद है | समग्र कहानियों में कुछ ऐसी कहानियाँ भी हैं जिनमें प्रेम के दर्शन होते हैं, लेकिन उन्हें इस संकलन में नहीं रखा गया, इसका कारण यही है कि मेरी दृष्टि से यह चुनिन्दा कहानियाँ प्रेम के सभी रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं | चुनी गई कहानियों पर विचार करने से पूर्व सभी कहानी-संग्रहों पर एक नज़र डालनी ज़रूरी है | पहले कहानी-संग्रह “ मैं+तुम=हम ” की भूमिका को उन्होंने ‘ यह भी एक कहानी है ’ शीर्षक से लिखा है | कहानियों में खुद की उपस्थिति को मैं से और पाठक की उपस्थिति को तुम से मानते हुए इस संग्रह की कहानियों को वो हम की कहानियाँ कहते हैं | यह मैं, तुम और हम का रूप उनके शेष कहानी-संग्रहों में भी दिखता है, इसी कारण उन्होंने अपनी कहानियाँ आत्मकथात्मक शैली में कही हैं | पहले संग्रह के बारे में उनका मानना है कि इस संग्रह की कहानियाँ प्रेम पर आधारित हैं | प्रेम तत्त्व की प्रधानता के आधार पर इस संग्रह में से चार कहानियों का चयन किया गया है | ये कहानियाँ हैं – ‘ सबके लिए ’ , ‘ बस ठीक है ’, ‘ जवानी और संस्कार ’ और ‘ समभाव ’ | शेष छह कहनियों में ‘ अंकुश ’ कहानी प्रेम के अभाव का व्यवहार पर जो प्रभाव पड़ता है, उसका चित्रण करती है | ‘ बिस्तर बंध गया ’ प्रेम और शक की कहानी है | संयोग अपनी पत्नी से प्रेम करता है और वियोग अपनी पत्नी पर शक करता है | प्रेम और शक के परिणाम इस कहानी के माध्यम से दिखाए गए हैं | ‘ अतृप्त ’ कहानी परिस्थतियों के शिकार दो लोगों के विवाह के बंधन में बंधने की कहानी है | विपुल माँ-बाप विहीन है और निधि विधवा | गंगा में डूबती निधि को बचाने के बाद विपुल की निधि से शादी होती है | उनका दाम्पत्य जीवन प्रेम से भरपूर है | शेष तीन कहानियाँ जीवन के अन्य विषयों को लेकर कही गई हैं | दूसरे कहानी-संग्रह “ छतें बिन मुंडेर की ” में से पांच कहानियों को इस संकलन में रखा गया है, ये कहानियाँ हैं – ‘ गोद ’, ‘ अवलम्ब ’, ‘ वह वसुधा ही होगी ’, ‘ फरमाइशें ’ और ‘ कुल्फी वाला ’ | इस संग्रह में कुल ग्यारह कहानियाँ हैं | अन्य कहानियों में ‘ एक दिन और ’ कहानी का मैं पात्र विभोर पहाड़ी क्षेत्र में घूमने जाता है | यह कहानी पहाड़ी जीवन और सौन्दर्य पर आधारित है, लेकिन नायक विभोर अल्पा नामक लड़की को याद करता है, जो उसके साथ पढ़ती थी और जिसके बारे में वह समझ पाया था कि वह उसे कुछ-कुछ प्यार करती है और उसने एक दिन कहा था –
“ विभोर ! हम तुम दोनों पहाड़ पर हों | बरसात हो रही हो | हम इकट्ठे चाय पी रहे हों | फिर तुम गिटार पर कोई धुन सुनाओ और फिर मैं तुम्हें एक गीत सुनाऊँ | ”
जब लड़की ऐसा कह रही हो तो विभोर का सोचना उचित ही है, यह प्रेम ही था, लेकिन पूर्णता तक नहीं पहुँचा | ‘ अपने वश में ’ कहानी मकान मालिक और उसके किरायदारों की कहानी है | विनीत भी एक किरायेदार है और वह सभी परिवारों पर विचार-विमर्श करते हुए उनमें प्रेम की स्थिति को भी देखता है | ‘ छतें बिन मुंडेर की ’ कहानी में छत पर बैठकर आस-पड़ोस को देखा गया है, इसमें भी छत पर बैठकर हो रहे प्रेम की एक झलक है | शेष तीन कहानियाँ अन्य सामाजिक विषयों को लेकर हैं | तीसरे कहानी-संग्रह “ कब सोता है यह शहर ” में 10 कहानियाँ हैं | प्रेम तत्त्व के आधार पर इस संकलन हेतु पांच कहानियाँ चुनी गई हैं, ये हैं – ‘ अनचाहे ’, ‘ आकाश ’, ‘ पोखर देखे सागर को ’, ‘ वेदना का चक्रव्यूह ’, और ‘ कितने प्रश्न ’ | अन्य पांच कहानियों में ‘ सेफ्टी पिन ’ कहानी में रीति-रिवाजों पर प्रहार किया है | यह कहानी दर्शाती है कि उपहार रिश्तों से बढ़कर हो गया है, अन्यथा बहन बेरुखी न दिखाती | ‘ तीसरा घर ’ विरोधी संस्कृतियों को मिलाकर एक मिश्रित संस्कृति बनाने के ख़्वाब सजाती है | लेखक तीसरे घर का निर्माण करना चाहता है और इस निर्माण के पीछे दूसरी संस्कृति की लड़की के प्रति सहज आकर्षण भी है | प्रो. रूप देवगुण जी का चौथा कहानी-संग्रह “ अनजान हाथों की इबारत ” तीसरे कहानी-संग्रह से बारह वर्ष बाद प्रकाशित हुआ | इस दौरान उनका झुकाव यथार्थवाद की ओर हुआ | “ अनजान हाथों की इबारत ” कहानी-संग्रह में उन्होंने कॉलेज के अध्यापन काल के अनुभवों को आधार बनाया है और ज्यादातर कहानियाँ कॉलेज के षड्यंत्रों, प्राध्यापकों के विभिन्न रूपों, हड़ताल के सच, छात्र नेताओं के व्यवहार आदि को प्रस्तुत करती हैं | लेकिन यह संग्रह प्रेम से अछूता हो, ऐसा नहीं | इस प्रेम कहानियों के संकलन हेतु इसमें से तीन कहानियों को लिया गया है | ये कहानियाँ हैं – ‘ पहचान रिश्ते की ’, ‘ उपासना ’ और ‘ बात समूचे देश की ’ | अन्य कहानियों में ‘ सामंजस्य ’ कहानी में परिवार के चार सदस्यों की अलग-अलग सोच है, लेकिन वे प्रेम की डोरी से बंधे हुए हैं | ‘ अँधेरा ’ वासना को दिखाती कहानी है | रूप देवगुण की कुल 45 कहानियों में से 17 कहानियों को इस संग्रह में रखा गया है | ( क्रमश: )
दिलबागसिंह विर्क
1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर और ज्ञानवर्धक आलेख
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