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रविवार, जुलाई 07, 2019

समीक्षाओं और प्रतिनिधि कविताओं का शानदार संकलन


पुस्तक – रूप देवगुण की काव्य-साधना
लेखिका – कृष्णलता यादव
प्रकाशन – सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल
पृष्ठ – 232     
कीमत – 350/-
रूप देवगुण बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति हैं | साहित्य में उन्होंने कहानी, लघुकथा, कविता, ग़ज़ल, समीक्षा आदि क्षेत्रों में अपनी लेखनी चलाई है | कृष्णलता यादव ने उनके कवि पक्ष को अध्ययन के लिए चुना और उनके सोलह कविता-संग्रहों को आधार बनाकर जिस कृति का सृजन किया है, वह है – “ रूप देवगुण की काव्य-साधना ”| यह कृति न सिर्फ रूप देवगुण के कविता-संग्रहों का मूल्यांकन करती है, अपितु हर संग्रह में उनकी प्रतिनिधि रचनाओं को भी प्रस्तुत करती है | प्रतिनिधि रचनाओं पर भी लेखकीय टिप्पणी है | इस प्रकार लेखिका ने लेखक के साथ-साथ संपादक का दायित्व भी निभाया है |

             लेखिका ने अपनी बात और रूप देवगुण जी का परिचय देने के बाद कविता-संग्रहों के प्रकाशन क्रम से उनकी समीक्षा दी है | समीक्षा के बाद उस संग्रह की चयनित कविताओं को रखा गया है और फिर चयनित कविताओं पर टिप्पणी है | इस प्रकार इस संग्रह में 16 समीक्षाएं, 99 कविताएँ और फिर इन पर टिप्पणियाँ हैं | लेखिका की सभी समीक्षाएँ सारगर्भित हैं और उनमें कविता संग्रह के भाव पक्ष और शिल्प पक्ष को बड़ी सूक्ष्मता के साथ जाँचा गया है | लेखिका कवि के दृष्टिकोण के बारे में लिखती है –
रूप देवगुण की रचनाओं में कहीं जीवन दर्शन, कहीं जिजीविषा-पालित आशा, कहीं रागात्मक अनुभूति तो कहीं मानव मूल्यों को प्रतिस्थापित करने का प्रयास है | कवि का दृष्टिकोण व्यापक है, जो प्राणी जगत के इर्द-गिर्द परिक्रमा करता है |( पृ. – 47 )
‘गुलमोहर मेरे आंगन में’ की समीक्षा करते हुए वे लिखती हैं –
सहजता के पटल पर प्रेम, प्रकृति व अनुभूतियों के विविध आयाम रचती ये कविताएँ कवि रूप देवगुण के मानवतावादी दृष्टिकोण का परिचय देती हैं |( पृ. – 32 )
कवि के चिन्तन की व्याख्या की गई है –
इन रचनाओं में कवि का दार्शनिक चिन्तन मुखरित हुआ है, संदेशपरकता है, रागात्मक अनुभूतियाँ हैं, प्रकृति संग एकमेक होने की मनुहार है और प्रकृति के विभिन्न रूपों का सुंदर चित्रण है |( पृ. – 93 )
कवि का अपने समय के साथ कैसा संबंध है, यह जाँच-पड़ताल करना भी समीक्षक का दायित्व बनता है, जिस पर लेखिका खरी उतरी हैं | कविता संग्रह ‘गली का आदमी’ की समीक्षा करते हुए वे लिखती हैं –
इन कविताओं में कवि का अपना काल, युगीन परिस्थितियाँ, प्राकृतिक सौन्दर्य, प्रेमिल अनुभूतियाँ तथा संवेदन-राशि पूर्णता में विद्यमान हैं | यह संग्रह कवि की अंतर्वेदना का जीवंत दस्तावेज है |( पृ. – 67 )
‘मिलन को दूर से देखो’ कविता की समीक्षा करते हुए वे लिखती हैं –
आदर्श और यथार्थ के मध्य झूलते व्यक्ति के संघर्ष व दुनियावी स्वार्थ को कवि ने कुशलता से बिम्बित किया है |( पृ. – 14 )
कविता-संग्रह के शीर्षकों पर भी लेखिका ने विचार किया है | ‘दुनिया भर की गिलहरियाँ’ पुस्तक की समीक्षा करते हुए वे लिखती हैं –
‘गिलहरियाँ’ प्रतीक हैं प्यारी-प्यारी बच्चियों की जो घर-आंगन की शान हैं, जिनके मासूमियत भरे क्रियाकलाप आनंद का संचार करते हैं |( पृ. – 160 )
लेखिका ने कविता-संग्रहों पर जो निष्कर्ष निकाले हैं, वे बड़े महत्त्वपूर्ण हैं और इनसे रूप देवगुण जी के काव्य को समझना बड़ा सरल हो गया है | ‘पत्तों से छनकर आई चांदनी’ कविता-संग्रह के बारे में लेखिका लिखती हैं –
संग्रह की कविताएँ उन दरीचों को खोलती प्रतीत होती हैं, जो कहीं कवि के अपने मनोभावों से पाठकों का साक्षात्कार कराती हैं, कहीं सदाशयता की गंध से उनकी मुलाकात कराती हैं और कहीं नसीहत रूप में उनकी चेतना के तार झंकृत कर जाती है |( पृ. – 208 )
‘आप सब हैं मेरे आस पास’ कविता संग्रह की समीक्षा के दौरान लेखिका लिखती हैं –
साधारणीकरण का विशेष गुण रखती इन कविताओं में यथार्थ की भित्ति पर भावों, कल्पनाओं के चित्र उकेरे गए हैं |( पृ. – 108 )
             कविता-संग्रहों के शिल्प पक्ष पर भी लेखिका का ध्यान गया है | वह कवि की भाषा, प्रतीक-बिम्ब चयन आदि की बात करती है | वह लिखती है –
कुछ कविताएँ श्रृंगार के दोनों पक्षों का मनोहारी बिम्ब प्रस्तुत करती है | ‘दूर रहकर पास रहने की, मन में ठनी है’ पंक्ति की अर्थदीप्ति देखते बनती है | ( पृ. – 12 )
‘प्रश्न उठता है मेरे भीतर’ संग्रह की भाषा के बारे में वे लिखती हैं –
संग्रह की भाषा अति सरल व ग्राह्य है | कहीं साइड इफैक्ट, रूटीन वर्क, हिल स्टेशन, कॉफी हॉउस के रूप में अंग्रेज़ियत बरस रही है तो कहीं कंधा, खटिया आदि में देशीपन की मिठास घुली है | कहीं-कहीं प्रतीक व प्रतिमानों की छवि इतराई-इठलाई है, यथा- यादों के पर्वत, घुटन की गुफाएँ, आँसुओं के निर्झर, आहों की हिम और कल्पना की घटाएँ |( पृ. – 49 )
             ‘तुम झूठ मत बोला करो’ पुस्तक की समीक्षा करते हुए लेखिका कवि का वक्तव्य भी प्रस्तुत करती है, जो कवि कर्म को समझने में बेहद सहायक है –
मैं वही लिखता हूँ, जो मेरा भावुक मन कहता है | सरलता, सहजता, सम्प्रेषणीयता, रोचकता, भावुकता मेरी रचनाओं की विशेषताएँ बनी रहें, ऐसा मैंने सोचा है | अगर मुझे प्रकृति से प्रेम है तो आम आदमी से हमदर्दी भी है | मैंने कई कविताओं में जीवन दर्शन की बात भी की है, परन्तु उन्हें बोझिलता से बचाने की कोशिश में लगा हूँ |( पृ. – 137 )
             समीक्षा के अतिरिक्त इस संग्रह में रूप देवगुण जी के सभी संग्रहों की प्रतिनिधि कविताएँ दी हैं, जो प्रकृति, समाज का चित्रण करती हैं | लेखिका ने उन पर टिप्पणियाँ भी की हैं, यथा –
‘शायद तुम मुझे नहीं जानती’ कविता का मूल स्वर है कि बाह्य तौर पर कवि जैसा दिखता है, दिख रहा है, वह मात्र वैसा नहीं है |( पृ. – 30 )
कवि की कविता का नमूना भी दर्शनीय है –
जब तुम मुस्कराओगे / दर्पण देखना / मुस्कराहट में /
मैं ही तो हूँगा / जब तुम रोओगे / तो आँसू बन मैं ही बहूँगा /
तुम कैसे कहते हो / मैं तुमसे अलग हूँगा ( पृ. – 226 )
             पुस्तक का अंत उपसंहार से किया गया है | इसमें लेखिका ने रूप देवगुण के काव्य को जैनेन्द्र के इस मत पर सही उतरता पाया है –
सच्चा साहित्य वही है जो विद्वानों के लिए चाहे जितना गूढ़ हो, परन्तु जन साधारण उसे भली-भांति समझ सके | ( पृ. – 229 )
वह ख़ुद भी इस निष्कर्ष पर पहुंचती है –
कवि के विस्तृत अनुभव को लक्षित करती रूप देवगुण की कविताओं में भाषा संबंधी व्यर्थ की तोड़-फोड़ नहीं है, न ही दिखावटी मुहावरे और शिल्प की गुहार है | अतिरिक्त बौद्धिकता व शब्दाडम्बर से बचा गया है | मानवमात्र के प्रति आत्मीयता, प्रेम की सात्विकता इनकी कविताओं की ताकत है, जो बनाव-श्रृंगार की अति किए बिना काव्य-कामिनी को सुंदर बनाते हैं |( पृ. – 231 )
        संक्षेप में, समीक्षा की यह पुस्तक रूप देवगुण की पुस्तक की समीक्षाओं के साथ-साथ उनकी प्रतिनिधि कविताएँ भी पढ़ने को प्रदान करती है | शोध छात्रों के लिए तो यह विशेष उपयोगी रहेगी |
दिलबागसिंह विर्क
गाँव - मसीतां, डबवाली, सिरसा
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Mo. – 9541521947

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