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सोमवार, जून 24, 2019

अध्यात्म और नैतिकता की दृष्टि से जीवन को देखता संग्रह

कविता-संग्रह - साथी हैं संवाद मेरे 
कवि - ज्ञान प्रकाश पीयूष
प्रकाशन - बोधि प्रकाशन
पृष्ठ - 136
कीमत - 200/- ( सजिल्द )
ईश्वर, सृष्टि और समाज को केंद्र में रखकर लिखी गई 96 कविताओं का संग्रह हैं, " साथी हैं संवाद मेरे " । इन 96 कविताओं में संवाद, माँ, पिता और बेटी शीर्षक के अंतर्गत क्रमश: 5, 10, 6 और 7 कविताएँ हैं, इस प्रकार यह कुल  120 कविताओं का संग्रह है । सामान्यतः कविताएँ मध्यम आकार की हैं, लेकिन कवि ने लघुकविताओं को भी इस संग्रह में पर्याप्त स्थान दिया है ।
                कवि ने कविता क्या है ? इस विषय पर विचार करते हुए लिखा है - 
वह तो हेै / आत्म-संवेदन का / स्वतः स्फूर्त उद्वेलन /
आत्म-मंथन का सार / अनुभव का दिव्य निखार / ( पृ. - 53 )
कवि की नज़रों में कविता रिक्त भवन नहीं, मनोरम घर है । वे सच्ची कविता के बारे में भी अपनी राय रखते हें - 
सोये को जगाती / पत्थर को पानी बनाती /
आग पानी में लगाती / सच्ची कविता / ( पृ . - 131 )
सच्ची कविता की तरह सच्चा कवि भी वही होता है, जो जीवन और समाज को करीब से देखता है । वहाँ की विद्रूपताओं और अच्छी बातों, सबको उजागर करता है, साथ ही अपने समाधान भी प्रस्तुत करता है । इस दृष्टि से पीयूष जी सफल कवि हैं ।
                 वे वर्दीधारी के अत्याचार को दिखाते हैं, कोल खनन के मजदूरों का चित्र प्रस्तुत करते हैं । वे प्रश्न पूछते हैं कि मजदूर रोटी से वंचित क्यों है । वे आज के स्कूलों के बारे में लिखते हैं - 
ये विद्या के मंदिर हैं / या हैं कोई कत्लखाने /
कैसी शिक्षा देते हैं ये / संस्कारों से अनजाने / ( पृ. - 124 )
उनकी नज़र में कछुआ स्वार्थी आदमी का प्रतीक है । लोगों की दृष्टि नकारात्मक है, जबकि सकारात्मकता सृष्टि के लिए हितकर है । छिद्रान्वेषी का पतन होता है, फिर भी लोग आदत से बाज नहीं आते । नई पीढ़ियों में बेटे बहू के अंकुश में रहते हैं । वे अपने पूर्वजों की गौरवगाथा का गान करते हैं और कहते हैं, कि बुजुर्ग हमारी शान हैं । टूटा पत्ता पुरानी पीढ़ी का प्रतीक है, जो नई पीढ़ी के लिए खुशी-खुशी स्थान रिक्त कर जाता है । वे दिव्यांग शशि की कथा कहते हैं, जो सिद्ध करता है कि दिव्यांग अशक्त नहीं होते । उनका मानना है, कि जीवंत इंसान पर प्रतिकूलता भी असर नहीं दिखाती । वे ननकू मजदूर का हौसला दिखाते है । उनका मत है, कि लोक कल्याण का ध्यान रखकर अगर योजना बने, तो सबका जीवन खुशहाल हो सकता है ।
              पिता के बारे में कहते हैं, कि पिता शोषण का शिकार होते हुए भी स्वाभिमान से जीता है, क्योंकि उसे पुरुषार्थ पर भरोसा है । पिता शीर्षक कविताओं में वे बताते हैं, कि पिता पूरे परिवार का बोझ उठाता है, सूरज की तरह वह घर की धुरी है । उनका मानना है -
नारियल से / कठोर पिता / 
अंदर से तरल हैं /
पुष्टिकर रस से / भरे हैं / ( पृ . - 89 )
माँ के बारे में वे कहते हैं -
माँ त्याग की मूर्ति है / करूणा का सागर है / ( पृ. - 82 )
माँ प्यार भरा दिल है, माँ बने बिन नारी अधूरी है, सृजन उसका प्राकृतिक धर्म है, वह भगवान से भी बड़ी है ।
              बेटी आबदार मोती है, बेटी से सृष्टि है, बेटी से घर घर लगता है । वे लिखते हैं -
बेटी तुम / कविता सी /
कविता की / मधुर अभिव्यक्ति सी ( पृ. - 93 )
भाई दायीं भुजा है, बहन प्यार की डोरी है । वे बड़ी होती लड़की का चित्रण करते हैं ।
             किसान धरती का देवता है । उड़ान हौसले से भरी जाती है । वेदना शाश्वत है, जो मृत्युपर्यंत साथ चलती है । आँसू दिल को पवित्र और मन को हल्का कर देते हैं ।
           उन्होंने अपनी बात कहने के लिए महाभारत के पात्रों का भी सहारा लिया है । एक कविता में वे कृष्ण द्रोपदी का प्रसंग लेकर कर्म फल दिखाते हैं, तो दूसरी कविता में भीष्म की कथा से । उनके अनुसार विधाता के लेख अमिट हैं, फल इश्वर अधीन है । बदलते रूप को देखकर उन्हें नश्वरता का अहसास होता है ।
            कवि को संवाद साथी लगते हैं -
संवाद हैं / मेरे साथी / अंधे की सी लाठी /
रूठों को ये मनाते / बिछुड़ों से हैं मिलाते /
हरते जीवन का खालीपन / खुशियों से / भर देते दामन / ( पृ. - 25 )
संवाद शीर्षक की 5 कविताओं में वे कहते हैं, कि संवाद भ्रांतियों को दूर करते हैं, संवाद से मित्रता मजबूत होती है, जब तक संवाद नहीं होता मन अंदर ही अंदर घुटता है, संवाद का न होना मतभेदों को हवा देता है । उनकी नज़र में मौन भी संवाद का एक रूप है ।      
                  कवि चलने को ही जीवन का लक्ष्य मानते हैं । जब कोई जुनून के साथ चल पड़ता है, तो वह विजय पताका फहरा कर रहता है । वे नैतिकता पर बल देते हैं । उनकी नजर में आत्मजागृत आदमी सेवा में रत रहता है । वे कुछ कहने से पहले अंदर उतरना चाहते हैं  । वे नफ़रत त्यागकर प्रेम में रत रहने का संदेश देते हैं । वे दार्शनिक मित्र के दर्शन का वर्णन करते हैं, कि सब कुछ सपना है पर कवि मित्र कहता है, कि संसार सपना नहीं, सत्य है, सुंदर है । वे मेंहदी में माया का प्रतीक देखते हैं । वे सद्भावों में जीना सीखने पर बल देते हुए उपदेश देते हैं -
तुम भी मेरे जैसे ही हो / मैं भी तुम जैसा ही मानव /
कमियों से सब ऊपर उठकर / नर नारायण बनना सीखो / ( पृ. - 130 )
एक सच्चे भारतीय की तरह उन्हें भी अपने देश से प्रेम है । वे लिखते हैं -
मंदिर, मस्जिद, चर्च, शिवालय / सबका है सत्कार यहाँ /
इस मिट्टी के कण-कण में / बसते हैं भगवान यहाँ / ( पृ- 134 )
               कवि ने प्रकृति को बड़े करीब से देखा है । इसके माध्यम से जीवन दर्शन भी ब्यां किया है और इसके महत्त्व को भी दर्शाया है । वे प्रकृति और मानव में अद्भुत साम्य देखते हैं । उनके अनुसार जीवन हरे भरे पेड़ सा है । चाँदनी की छुवन मन की पीर मिटाती है । वृक्ष और सरिता परोपकार को जीवन का मर्म बताते हैं । उषा स्वास्थ्य के मोती लुटाती है । निर्मल आकाश पर रात को मोती चमकते हैं । फूल जीवन का आनंद ले रहे हैं । पहाड़ पृथ्वी का गौरव है । उनके अनुसार पेड़ कुदरत के सच्चे उपहार हैं । वे  सृष्टि में बहार लाते हैं । वे पानी के महत्त्व को जानते हैं । श्रमिक भी पेड़ का महत्त्व जानता है, तभी वह उसे अपना मित्र मानता है ।  वे पेड़ के फूटने को उसकी प्रबल जिजीविषा मानते हैं । वे वर्षा के अलग-अलग लोगों पर पड़ते अलग-अलग प्रभाव को दिखाते हैं । वर्षा के संग कई बार ओले भी पड़ते हैं । वे बादल की विभिन्न आकृतियों का वर्णन करते हैं । उनके अनुसार बादल जल का दान करते हैं, वे त्याग के प्रेरक हैं । बादल पपीहे, कोयल, मोर, चातक आदि के बुलावे पर बरसते हैं । चौपाल संस्कृति को मानव भूल गया है, लेकिन पक्षियों ने इसे बरकरार रखा है । उनके अनुसार पक्षियों मेें अंतर्वोध की घड़ी होती है, तभी वे रास्ता नहीं भूलते । उन्होंने पानी से अलग-अलग लोगों के अलग-अलग अनुभव को दिखाया है । आग अलग-अलग भूमिका निभाती है । दिन हमारे कर्मों की किताब पढ़ते हैं और रात तरोताजा करने के लिए सुला देती है । 
               कवि का झुकाव अध्यात्म की तरफ भी है । उनके अनुसार जीवन में भौतिकता और आध्यात्मिकता का भेद है । उनकी कविता में जीवन में भगवत्ता के अवतरण का प्रभाव दिखाया गया है । वाणी से और भीतर से परमात्मा का ही जाप होता है । वे परमात्मा के संदर्भ में लिखते हैं, कि तुम्हारे सान्निध्य से अंधेरे पर ताले पड़ गए हैं और उजाले फैल गए हैं । धर्म का मूल तत्त्व एक है, भेद सिर्फ़ भाषागत है । धर्म किस प्रकार आदमी की रक्षा करता है, इसको वे अर्जुन-उर्वशी प्रसंग द्वारा दिखाते हैं ।
                  भाव पक्ष से विविधता लिए हुए यह संग्रह शिल्प पक्ष से भी उत्कृष्ट है । भाषा कहीं-कहीं संस्कृतनिष्ठ है, लेकिन ग्राह्य है । कवि प्रतिकों, अलंकारों से कविता को सजाता है । मुक्तछंद होते हुए भी लय विद्यमान है । तुकांत का भी प्रयोग हुआ है । संक्षेप में, " साथी हैं संवाद मेरे " कविता संग्रह साहित्याकाश पर चमक बिखेरने की क्षमता रखता है ।
दिलबागसिंह विर्क
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1 टिप्पणी:

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति

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