कविता-संग्रह – कब चुप होती है चिड़िया
कवयित्री – डॉ. शील कौशिक
प्रकाशक – सुकीर्ति प्रकाशन
पृष्ठ – 88
कीमत – 200 /- ( सजिल्द )
बेटी चिड़िया सी होती है | सयानी होती लड़कियां गिलहरियों
जैसी | लडकियों को चिड़िया-गिलहरी के रूप में देखता कविता-संग्रह है “ कब चुप होती
है चिड़िया ” | डॉ. शील कौशिक के इस संग्रह में 49 कविताएँ हैं | कवयित्री लड़की से
सपने के टूटने पर संदेश देती है –
एक घोंसला / तोड़ दिए जाने पर /
नन्हीं
बिटिया समुद्र की लहरों जैसी होती है जो क्रोध में उछलती है लेकिन फिर गोद में आ
बैठती है | कवयित्री ने बड़ी होती लड़कियों का बड़ी बारीकी से चित्रण किया है | उनके
क्रिया-कलापों के साथ-साथ उनके मन की उथल-पुथल को देखा है | शादी के बाद बेटियाँ
माँ के दुखों से दुखी होकर भी उसकी मदद नहीं कर पाती या माँ उनके भविष्य के लिए
मदद नहीं स्वीकार करती | कवयित्री ने आईने को पुरुष के रूप में दिखाया है और औरत
रसोई और बिस्तर के गणित से बाहर निकलकर अपने अन्तस वेग को शब्दकोश बनाना चाहती है
| वह कण-कण में फ़ैल जाना चाहती है क्योंकि आकाश की लालिमा, सागर की नीलिमा, वसंती
भोर, गर्मियों की संध्या सबमें उसका हिस्सा है | पुस्तक का शीर्षक बनी कविता में कवयित्री
गृहस्थी के लिए नारी के बलिदान को दिखाती है | घरों के तनाव को देखकर स्त्रियाँ चिड़ियों
सी सहम जाती हैं लेकिन माँ की सीख को याद करते ही वे फिर चहक उठती हैं | कवयित्री
पति-पत्नी के संबधों पर भी रचना करती है | औरत को पति के ‘ यहाँ हूँ ’ कहने से
आश्वस्ति मिलती है | औरत अपने साथी को मौन में झाँकने के लिए कहती है | उसके अनुसार
हालात आदमी को निष्ठुर बना दते हैं | कवयित्री दादी-पोती के माध्यम से वात्सल्य की
ताकत को दिखाती है | जमाने भर की दादियों के पास बच्चों को बहलाने वाली जादू की
पुडिया होती है | कवयित्री माँ न बन पाने वाली औरत की पीड़ा का भी ब्यान करती है और
पिता जी के माध्यम से परोपकार का भी संदेश देती है |
कवयित्री दुखों को भी महत्त्वपूर्ण मानती है | बारिश में हम चिकनी पगडंडी
की बजाए पथरीली पगडंडी पर चलना चाहते हैं | वे जिंदगी में जो मिले उसी को स्वीकार
करने और उसी से बेहतर निकालने का संदेश देती हैं | कवयित्री को जिंदगी कण-कण में
दिखाई देती है | वे शून्य स्थिति को खतरनाक मानती हैं | सूर्य के विभिन्न रूपों का
वर्णन कर जीवन का सार बताती हैं | दौड़ते समय से नयेपन का दम घुट जाता है | मन के विचारों
की तुलना शहर के यातायात से करते हुए यहाँ मन के विचारों के विभिन्न रूप दिखाए गए
हैं, वहीँ यातायात व्यवस्था का सटीक चित्रण किया है | शंकालु लोगों की मन:स्थिति
पर प्रहार किया है –
इनकी चौकीदारी करते / ये स्वयं /
चौकीदार हो गए हैं ( पृ. – 37 )
घरेलू
औरतों, रिकशेवाला, माँ, बुजुर्ग, औरत, लड़की आदि के जीवन को दिखाया है जिनका
रिकार्ड बुक में कोई जिक्र नहीं होता | कवयित्री उस नकली जीवन पर प्रहार करती है,
जिसके अंतर्गत हम फिल्म देखते हुए भावुक हो जाते हैं, लेकिन जीवन को उसी भावुकता
से नहीं देखते, लेकिन कवयित्री खुद ऐसी नहीं है | बाल मजदूरों को देखने के बाद उसे
फूल, तितली के सपने नहीं आते | वह उस माँ-बाप के दुःख को भी महसूस करती है, जिनके
बच्चे विदेश जा बसे हैं | बेमौसमी बरसात और ओलों की मार से डरते किसान का दुःख
दिखाया है –
खलिहान से दाने / घर लाने तक /
कई बार / मरता है किसान ( पृ. – 62 )
चाय के कप
महज कप नहीं होते बल्कि वह उस घटनाक्रम के भी गवाह होते हैं जो चाय के दौरान घटता
है | कवयित्री राजनीति की शिकार होती व्यवस्था को दिखाती है तो शहर के महानगर हो
जाने को खूबसूरती से ब्यान करती है –
और जब कभी / शहर सोए ही न /
तो समझ लीजिए / वह व्यस्क हो गया है
वह महानगर हो गया है ( पृ. – 83 )
बास्केटबाल के खेल के माध्यम से आपसी विश्वास के महत्त्व को
बताया गया है और प्रश्न पूछा गया है की क्या हम आपसी विश्वास, सहमती नहीं पा सकते
| कवयित्री आंतकवादियों की निष्ठुरता की और संकेत करती है, मजबूरी से घिरे आदमी का
चित्रण करती है –
कब और कहां / जीता है आदमी
इस युग में ( पृ. – 56 )
बादल और चिड़िया जीवन जीने के प्रतीक हैं जबकि शहद की मक्खी
काम में डूबी रहती है | प्रकृति के उपहारों का आनन्द जीव-जन्तु ही उठाते हैं |
सबसे समझदार माना जाने वाला व्यक्ति इनसे वंचित है क्योंकि वह सपनों में खोया है,
दुश्चिंताओं में घिरा है |
प्रेम के दो चित्रों में पहले कवयित्री उन दिनों का चित्रण करती है जब
प्रेमी युगुल प्रीती के निबन्ध लिख रहा होता है तो दूसरी स्थिति कुछ साल बाद की है
जब गृहस्थी से प्रेम गड-मड हो जाता है ऐसे में दम्पति जादुई क्षणों को पकड़ने का
असफल प्रयास करता है | कवयित्री ने पहले प्यार का सटीक चित्रण किया है –
खिड़की में बैठे / कबूतरों की तरह /
गुटरगूं करता है / पहला प्यार ( पृ. – 34 )
प्रकृति
का चित्रण कविताओं में मिलता है | बूढा पेड़ दादा-सा लगता है, जो परिंदों को आश्रय
देता है | पहाड़ी लोगों के जीवन को उकेरा गया है –
पहाड़ के कटाव की तरह / कटा है वहां का आदमी ( पृ. – 11 )
पहाड़ पर पल-पल बदलते नजारों का चित्रण है –
आकाश, बादल और हवा / रचते हैं मिलकर /
न जाने कितने ही रिश्ते / और एक अनूठी दुनिया /
पहाड़ पर ( पृ. – 29 )
कोयल बसंत के आगमन की सूचना देती है और बसंत का आना कवि के
मन को नई कविताओं के जन्म होने की आशा बंधाता है |
कविता सहज, सरल भाषा में लिखी गई हैं | मुक्त छंद होने के बावजूद कविताओं
में प्रवाह है | मानवीकरण, पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास, उपमा के अनेक उदाहरण हैं | प्रतीकों
का प्रयोग है | वर्णनात्मक शैली को अपनाया है | आह्वान का प्रयोग भी हुआ है –
पुन: कहती हूँ / पहाड़ पर आओ तुम /
तो झूठ का आवरण / छोड़कर आना ( पृ. – 12 )
संक्षेप में, ‘ कब चुप होती है चिड़िया ’ भाव पक्ष और शिल्प पक्ष से एक
सुंदर कविता-संग्रह है |
दिलबागसिंह विर्क
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1 टिप्पणी:
सुन्दर
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