उपन्यास - बनारस टॉकीज़
लेखक - सत्य व्यास
प्रकाशक - हिन्द युग्म
पृष्ठ - 192 ( पेपरबैक )
कीमत - 115 / -
बनारस टॉकीज़ BHU के BD होस्टल की कहानी है| यह सनसनी पर आधारित है| लेखक सत्य व्यास ने ज़िग ज़िग्लरकी उक्ति,
"हर घटना के पीछे कोई कारण होता है| संभव है कि यह घटित होते वक्त आपको न दिखे; लेकिन अंततः जब यह सामने आएगा, आप सन्न रह जाएंगे|"
शुरूआत में दी है, और यह उपन्यास इसी उक्ति का मूर्त रूप है |
मूल कथा शुरू करने से पूर्व लेखक ने 'हम हैं कमाल के' अध्याय रखा है| इस अध्याय में लेखक भगवानदास होस्टल के बारे में और इसके कमरों रूम न. 73, रूम न. 79, रूम न. 85, रूम न. 86 और कमरा न. 88 में रहने वालों के बारे में बताता है| वह खुद को सूत्रधार के रूप में प्रस्तुत करता है| मूल कथा की शुरूआत होती है 'आग़ाज़' नामक अध्याय से| बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के भगवानदास होस्टल में लॉ कॉलेज के 60 स्टुडेंट्स हैं| यह उपन्यास इन्हीं की कहानी है | होस्टल और कॉलेज लाइफ़ का जीवंत चित्रण इस उपन्यास की विशेषता है, लेकिन कुछ किस्से ऐसे भी आते हैं जिनको पढ़ते समय कहानी रुक सी जाती है| ये किस्से फालतू लगते हैं, लेकिन उपन्यास का अंत उन्हीं गैर ज़रूरी हिस्सों पर आधारित है| अंत के समय संभवतः पाठक को इन हिस्सों को दोबारा पढ़ना पड़े| I.D. कार्ड गुम होने की कहानी, बनारस के देह बाज़ार का किस्सा और क्रिकेट का मैच, ये सभी जबरदस्ती डाले गए किस्से लगते हैं, लेकिन CID नाटक की तरह अंत में जब कड़ियाँ जोड़ी जाती हैं, तो ये किस्से बेहद महत्त्वपूर्ण सिद्ध होते हैं| इस उपन्यास में थ्री इडियट्स फिल्म की तरह कम्प्यूटर से फ़ाइल चुराई जाती है| कई अन्य जगहों पर भी फ़िल्मी प्रभाव इस उपन्यास पर दिखाई देता है| शुरूआत में यह उपन्यास होस्टल के कुछ साथियों की कहानी लगता है, लेकिन अंत में इसे बम ब्लास्ट से जोड़ दिया जाता है| बम ब्लास्ट से जुड़ा रौशन इसी होस्टल में रहता है| I.D. कार्ड का गुम होना, मोबाइल का चोरी होना, उसी के फैलाए गए जाल हैं, लेकिन सूरज और उसके साथी बच जाते हैं| बम काण्ड से लेखक उपदेश भी दे जाता है -
"प्रेम इस उपन्यास में गौण विषय है, लेकिन उपन्यास का अंत इस प्रश्न के साथ होता है -
"आप यंग-जेनेरेशन की यही प्रॉब्लम है| आप लोगों के लिए मस्ती, मजा और इंजॉयमेंट के अलावा दुनिया में कुछ भी जरूरी नहीं है| आपकी इस लापरवाही, जिसे आप बहुत ही छोटी-सी बात कहेंगे, की वजह से आप कितनी बड़ी मुसीबत में फँस सकते थे ?
"प्रेम इस उपन्यास में गौण विषय है, लेकिन उपन्यास का अंत इस प्रश्न के साथ होता है -
"और फिर, तुम लोग शादी कब कर रहे हो ?"
चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह उपन्यास विशेष महत्त्वपूर्ण है| लेखक ने पात्रों के चित्रण के लिए सभी प्रचलित विधियों को अपनाया है| संवाद के माध्यम से, दूसरों के कथन से, ख़ुद के कार्य से पात्रों का परिचय मिलता है, जैसे नवेंदु जी रौशन चौधरी के बारे में कहते हैं -
" जानते हैं सूरज जी| ई जो चौधरिया है ना? साला gem of a person है| क्या sphere है साले का? किसी भी सब्जेक्ट पर जब बोलने लगता है ना, तो बस खाली सुनने का मन करता है| हमारे मुंगेर वाले मौसा जी जैसा एकदम| "
मुख्य पात्रों के बारे में लेखक खुद शुरू में ही बता देता है| 'हम हैं कमाल के' अध्याय में वह बताता है कि जयवर्धन के लिए सब कुछ घंटा है| अनुराग डे यानी दादा क्रिकेट के शौक़ीन हैं, सूरज की रूचि गर्ल्स होस्टल में है और वह कविताएँ भी लिखता है| रामप्रताप दूबे के पास परीक्षा में पास होने की बूटी है, जबकि राजीव पांडे के पास विस्तृत ज्ञान है| नवेंदु जी फ़िल्मी ज्ञान में माहिर हैं| पूरे उपन्यास में लेखक इन्हीं बातों को विस्तार देकर पात्रों का निर्माण करता है| कॉलेज लाइफ में लगभग इसी प्रकार के छात्र मिलते हैं यानी छात्रों के सभी प्रकारों को इस उपन्यास में दिखाया गया है| हर पात्र अपनी तरह के छात्रों का प्रतिनिधित्व करता है |
पात्रों के व्यहार में आए परिवर्तनों को लेखक ने दिखाया है-
पात्रों के व्यहार में आए परिवर्तनों को लेखक ने दिखाया है-
"राजीव पांडे हालाँकि इस कहानी का मुख्य पात्र नहीं है; लेकिन एक महत्त्वपूर्ण पात्र है| राजीव पांडे की गिनती होस्टल के पढ़ाकुओं में हो रही थी और भगवानदास होस्टल को उनसे कुछ उम्मीदें थीं; मगर इधर कुछ दिनों से राजीव पांडे का व्यवहार संदेहास्पद था| वह अचानक चलते-चलते उँगलियों पर कुछ गिनने लगता| मेस में आधी रोटी तोड़कर छोड देता और उठ जाता|"
पात्रों के चित्रण के साथ-साथ देशकाल और वातावरण की दृष्टि से भी यह एक सफल उपन्यास है| कॉलेज और होस्टल लाइफ़ का सजीव चित्रण इसमें मिलता है| होस्टल में रैगिंग हो या कॉलेज में प्रोक्सी की बात हो, सभी का वर्णन किया है| होस्टल की अफवाहों के बारें में नवेंदु जी कहते हैं -
हालांकि कहीं-कहीं यह वर्णन अतिश्योक्तिपूर्ण भी है, जैसे लॉ विद्यार्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं में Write a short notes on Amicus Curiae ? या 15 केसेज का जो उत्तर दिया गया है, वह सहजता से गले नहीं उतरता |
"भगवानदास में आप अगर किसी बात, भ्रम या झूठ फैलाना चाहते हैं तो बस उसका जिक्र खाने के वक्त मेस में कर दीजिए | बात अपने-आप फ़ैल जाएगी | आपका काम हवाएं और अफवाहें कर देंगी | गोजर अपने आप अजगर बन जाएगा |"
हालांकि कहीं-कहीं यह वर्णन अतिश्योक्तिपूर्ण भी है, जैसे लॉ विद्यार्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं में Write a short notes on Amicus Curiae ? या 15 केसेज का जो उत्तर दिया गया है, वह सहजता से गले नहीं उतरता |
भाषा की दृष्टि से बनारस टॉकीज़ हिंदी का उपन्यास कम हिंगलिश का उपन्यास अधिक लगता है, जिसमें स्थानीय बोली की भरमार है| सजीव भाषा की दृष्टि से इसे उपन्यास का गुण भी कहा जा सकता और हिंदी साहित्य की दृष्टि से अवगुण भी| साहित्यिक रचनाओं की भाषा का विशेष महत्त्व है| आजकल फिल्मों की टपोरी भाषा का बोलबाला है| फिल्मों के टपोरी डॉयलोग आम बोलचाल में प्रचलित होने लगे हैं| साहित्यिक कृतियों में भी अगर इनका प्रयोग होने लगा तो हिंदी का रूप क्या हो जाएगा, यह राम ही जाने| बनारस टॉकीज़ भाषा की दृष्टि से रोचक होते हुए भी साहित्यिक सीमाओं को लांघता हुआ लगता है| भोसड़ी के, भोसड़ो के, शब्द तो तकिया कलाम की तरह प्रचलित हैं | और भी कई असभ्य शब्दों का प्रयोग मिलता है, जैसे - "चूतिया जैसा सवाल मत करो!" बहुत से संवाद भी शालीनता की सारी सीमाएं लाँघ जाते हैं, जैसे -
" लो अपना फोन और डाल लो| और हाँ viberate पर कर लेना जरूर| ज्यादा मजा आएगा| "
" मुँह में लेगा| दो मिनट चुप नहीं रह सकता है|"
"और इसका नली नीचे रहेगा तो समान उड़ जाएगा| गर्दन उड़ जाए तो चला लेंगे गुरु, बाकी समान उड़ गया तो मुश्किल हो जाएगा|"
यह शब्दावली शालीनता लांघती लगती है| निस्संदेह ऐसी भाषा का प्रयोग कॉलेज लाइफ में होता है, लेकिन यथार्थ के नाम पर क्या प्रस्तुत किया जाना चाहिए, इसका ध्यान रखना जरूरी है| साहित्य में सेंसर बोर्ड नहीं होता, क्योंकि साहित्यकार एक जिम्मेदार व्यक्ति होता है और हर साहित्यकार को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए| सत्य व्यास इस दृष्टि से थोड़े चूकते लगते हैं, हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि ऐसी भाषा का प्रयोग करने वाले वे पहले लेखक हैं| अंग्रेजी भाषा, वो भी रोमन लिपि में, का प्रयोग भी बहुतायत में हुआ है | पूरे के पूरे वाक्य अंग्रेजी में हैं -
" What do you mean ? Don't have manner to talk ? "
"See...in Hindu Law, there is a probabilityof questions being repeated, and for short notes even greater chances of being repeated . "
ऐसे अनेक उदाहरण हैं, इनसे बचा जाना चाहिए था और बचा जा सकता था, लेकिन लेखक ने प्रयास नहीं किया, जिससे भाषा अखरती है| स्थानीय बोली का प्रयोग भी कई जगहों पर बिना जरूरत के हुआ है| व्याकरणिक त्रुटियाँ भी दिखती हैं -
"रिंग जा रहा है | रिंग जा रहा है |"
ऐसे कई और उदाहरण भी हैं, लेकिन भाषा में सब कुछ बुरा ही नहीं, बहुत कुछ अच्छा भी है | बहुत सी चीजों को बड़े रोचक तरीके से कहा गया है, यथा -
" सेमेस्टर सिस्टम में पढ़ने वालों के लिए Assignment ठीक उस दुल्हन की तरह है, जिससे नैहर में रहा नहीं जाता और ससुराल सहा नहीं जाता| "
लोकोक्तियों का सुंदर प्रयोग भी मिलता है -
" आन्हर गुरु बहिर चेला, माँगे गुड़ दे दे ढेला "
लेखक ने खुद को सूरज के रूप में प्रस्तुत किया है| ऐसे में आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग मिलना स्वाभाविक ही है, लेकिन अन्य शैलियों का प्रयोग भी मिलता है| वर्णनात्मक शैली का नमूना देखिए -
बनारस के अस्सी घाट के वर्णन में काव्यात्मकता झलकती है -
पूरे उपन्यास में संवादात्मक शैली की प्रधानता है | संवादों के माध्यम से कथानक भी आगे बढ़ता है और पात्रों का चरित्र चित्रण भी किया गया है| संवाद छोटे, चुटीले और प्रभावपूर्ण हैं |
"कच्ची मिट्टी के रास्ते बारिश के कारण फिसलन से भरे थे | गली के मोड़ पर एक तरफ ऑडियो कैसेट की एक दुकान थी | माहौल यहीं से बिल्कुल बदल जाता था | आगे गली का हर घर, एक अंधेरे दड़बे की तरह लग रहा था | हर घर के आगे चार-पाँच लडकियाँ सीधी कतार में खडी थीं और एक-दूसरे से बातें कर रही थीं |"
बनारस के अस्सी घाट के वर्णन में काव्यात्मकता झलकती है -
"अस्सी घाट| दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हुए पहला घाट| वरुणा और अस्सी नदियों के संगम का घाट| संतों का घाट| चंटों का घाट| कवियों का घाट| छवियों का घाट| गंजेड़ियों का घाट| भँगेड़ियों का घाट| मेरा घाट| दादा का घाट| हमारा घाट|"
पूरे उपन्यास में संवादात्मक शैली की प्रधानता है | संवादों के माध्यम से कथानक भी आगे बढ़ता है और पात्रों का चरित्र चित्रण भी किया गया है| संवाद छोटे, चुटीले और प्रभावपूर्ण हैं |
संक्षेप में, बनारस टॉकीज़ एक रोचक उपन्यास है| वर्तमान की खिचड़ी भाषा का इसमें प्रयोग हुआ है| साहित्यिक उपन्यासों की परम्परा से हटकर है| इसकी रचना फ़िल्मी शैली की है, जो युवा पीढ़ी को आकर्षित करती है |
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दिलबागसिंह विर्क
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4 टिप्पणियां:
पढ़ी हुई किताब है, इसलिए समीक्षा बेजोड़ लगी
आकर्षक एवं प्रभावी समीक्षा ..
समीक्षा ने पढ़ने की आस जगा दी।
छोटी सी प्यारी सी समीक्षा। पढना पडेगी किताब।
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