कुछ दिनों पूर्व मुझे स्पीडपोस्ट से “महाभारत जारी है” नाम की एक कृति प्राप्त हुई। मन ही मन मैं यह अनुमान लगाने लगा कि यह ऐतिहासिक काव्यकृति होगी। “महाभारत जारी है” के नाम और आवरण ने मुझे प्रभावित किया और मैं इसको पढ़ने के लिए स्वयं को रोक न सका। जब मैंने “महाभारत जारी है” को सांगोपांग पढ़ा तो मेरी धारणा बदल गयी। जबकि इससे पूर्व में प्राप्त हुई कई मित्रों की कृतियाँ मेरे पास समीक्षा के लिए कतार में हैं।
अतीत के झरोखों से अतीत वर्तमान को देखने का प्रयास एक सम्वेदनशील कवि ही कर सकता है। दिलबाग सिंह विर्क उस व्यक्तित्व का नाम है जो पेशे से अध्यापक और मन से कवि हैं। आपने तुकान्त साहित्य के साथ-साथ अतुकान्त रचनाओं का भी सृजन किया है।
दिलबाग सिंह विर्क ने अपने काव्य संग्रह “महाभारत जारी है” में यह सिद्ध कर दिया है कि वह न केवल एक कवि है बल्कि शब्दों की कुशल चितेरे भी हैं। कवि ने पुस्तक की शीर्षक रचना को सबसे अन्त में स्थान दिया है। जिसके शब्दों ने मुझे खासा प्रभावित किया है-
“ छीनकर
अपनी ही सन्तान के हक
अपने सुखों में लीन हैं
आज भी कई पिता
शान्तनु की तरह "
कवि दिलबाग सिंह विर्क ने अपने काव्य संग्रह की मंजुलमाला में अट्ठावन रचनाओं के मोतियों को दो खण्डों में पिरोया है। खण्ड-1 में हौआ, जिन्दगी, आँसू, वायदा, प्यार, वक्त, अपाहिज, आवरण, जिन्दादिली, नववर्ष, जमीन, बिटिया, सपने, कीमत, बचपन, उलझन, व्यवस्था, सिलवटें, कैक्टस, कन्यादान, मेरे गाँव का पीपल आदि पचास रचनाओं के साथ मानवीय संवेदनाओं पर तो अपनी लेखनी चलाई ही है साथ ही दूसरी ओर जीवन के उपादानों को भी अपनी रचना का विषय बनाया है।
“महाभारत जारी है” के खण्ड-2 में कवि ने आत्ममन्थन, गुरूदक्षिणा, पलायन, गान्धारी सा दर्शन, चीरहरण, दोषी, अर्जुनों की मौत, और “महाभारत जारी है” शीर्षकों से महाभारत के परिपेक्ष्य में वर्तमान का सार्थक चित्रण किया है।
पावन प्यार को परिभाषित करते हुए कवि ने दुनिया को बताने का प्रयास किया है-
“तुझे पा लूँ
बाहों में भरकर चूम लूँ
है यह तो वासना
प्यार कब चाहे
कुछ पाना
कुछ चाहना
जब तक तड़प है
प्यार जिन्दा है
जब पा लिया
प्यार मुरझा गया
वासना में डूबकर
पाने की फिक्र क्यों है
तड़प का मजा लो
यही तड़प तो नाम है
प्यार का”
“महाभारत जारी है” काव्यसंग्रह की प्रथम रचना “हौआ” में कवि ने कुछ इस प्रकार अपने शब्द दिये हैं-
“हौआ कौआ नहीं होता
जिसे उड़ा दिया जाये
हुर्र कहकर
हौआ तो वामन है
जो कद बढ़ा लेता है अपना
हर कदम के साथ”
जहाँ तक मुझे ज्ञात है कवि ने बहुत सारी छन्दबद्ध रचनाएँ की हैं परन्तु “महाभारत जारी है” काव्यसंकलन में दिलबाग सिंह विर्क ने छंदो को अपनी रचनाओं में अधिक महत्व न देकर भावों को ही प्रमुखता दी है और सोद्देश्य लेखन के भाव को अपनी रचनाओं में हमेशा जिन्दा रखा है। देखिए “पतंग के माध्यम से” शीर्षक की कविता का कुछ अंश-
“बहुत विस्तृत है आसमान
उड़ सकती हैं सबकी पतंगें साथ-साथ
पतंग सिर्फ उड़ानी नहीं होती
पतंग काटनी भी होती है
मजा नहीं आता
केवल पतंग उड़ाने में
असली मजा तो है
दूसरों की पतंग काटने में”
कवि ने अपनी रचना “सपने” में सपनों का एक अलग ही दर्शन से प्रस्तुत करते हुए लिखा है-
“सपने
सोई आँख के भी होते हैं
जगी आँख के भी
अगर चाहत है
सपने हताश न करें
तो ठुकराना
सोई आँख के सपनों को
...
जागी आँख के सपने
माँगते हैं मेहनत
जबकि
सोई आँख के सपने
उपजते हैं आराम से”
“एक मासूम सा सवाल” में कवि ने पुत्र-पुत्री के भेद पर जमाने को फटकार लगाते हुए लिखा है-
“बेटे के जन्म पर
मनाते हो खुशियाँ
बेटी को देते हो
गर्भ में मार
इस भेद-भाव का आधार क्या है?
क्या औलाद नहीं होती बेटियाँ?”
अपनी काव्यकृति “महाभारत जारी है” के दूसरे खण्ड का प्रारम्भ कवि ने “आत्ममन्थन” से किया है-
“मृत्यु
जब दिखने लगती है पास
ध्यान बरबस
चला जाता है
अतीत की तरफ
खुल आता है
किये गये कृत्यों का
कच्चा चिट्ठा
आँखों के सामने”
प्रस्तुत कृति में कवि के द्वारा अपनी रचनाओं में काव्य-सौष्ठव का अनावश्यक प्रदर्शन कहीं भी मुझे कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं हुआ है। बल्कि सरल शब्दों का प्रयोग ही इस कृति की आत्मा के रूप में अवतरित हुआ है। रचनाधर्मी ने अपनी प्रत्येक रचना को तर्क के साथ प्रस्तुत किया है। देखिए इस संकलन की “गान्धारी सा दर्शन” रचना में-
“...कानून की देवी भी
चूक जाती है न्याय से
धोखा खा जाती है
दलीलों से
दरअसल
गान्धारी सा दर्शन है उसका...”
“महाभारत जारी है” काव्यसंकलन को पढ़कर मैंने अनुभव किया है कि कवि दिलबाग सिंह विर्क ने भाषिक सौन्दर्य के साथ अतुकान्त कविता (अकविता) की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है वह अत्यन्त सराहनीय है।
मुझे पूरा विश्वास है कि पाठक “महाभारत जारी है” काव्यसंकलन को अतीत के प्रतीकों को वर्तमान परिपेक्ष्य में पढ़कर अवश्य लाभान्वित होंगे और यह कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगी।
“महाभारत जारी है” को ऑनलाइन प्राप्त किया जा सकता है -
1. amozon
2. redgreb
दिलबाग सिंह विर्क
गाँव व डाकखाना-मसीता, तहसील-डबवाली,
सिरसा (हरियाणा) पिन-125 104, मोबाइल-09541521947
112 पृष्ठों की पुस्तक का मूल्य मात्र रु. 120/- है।
दिनांकः 20-01-2016
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308
E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com
Website. http://uchcharan.blogspot.com/
2 टिप्पणियां:
बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें.
“महाभारत जारी है” की सार्थक समीक्षक प्रस्तुति...डॉ.शास्त्री जी की पुस्तक समीक्षा हमेशा ही लाजवाब होती है, इसका मुझे अपनी पुस्तक की समीक्षा का सुखद अनुभव है ..
विर्क जी को उनके काव्य संग्रह “महाभारत जारी है' के प्रकाशन की हार्दिक बधाई!
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