साहित्य की हर विधा पर समान रूप से पकड़ रखने वाले दिलबाग जी की यह पुस्तक छंदमुक्त है जहाँ बिना किसी बहर में बँधे उनकी सोच ने उन्मुक्त उड़ान भरी है| समाज की जिस किसी भी विसंगति ने उन्हें आहत किया वहाँ उनकी धारदार कलम चली जो पाठकों को भी सोचने पर निश्चय ही मजबूर करेगी |
पुस्तक अपने नाम के अनुरूप ही महाभारत का कारक वाले आकर्षक कलेवर में है | अंजुमन प्रकाशन ,इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित पुस्तक के पन्नों की क्वालिटी अच्छी है| पुस्तक की कीमत 120 /- रुपए है |
पुस्तक किसे समर्पित किया गया है यह भी आकर्षण की बात होती है | दिलबाग जी ने पुस्तक समर्पित किया हे, ‘ सामर्थ्यवान लोगों की बेशर्म चुप्पी के नाम ’ और यह गहरी सोच वाले बेबाक कवि की ही हो सकती है | माँ शारदे से भी लेखक ने यही माँगा है कि वे सदा सत्य की राह पर निडर होकर चलें |
पुस्तक की 58 कविताएँ दो खंडों मे विभाजित हैं | खंड एक में जो 50 कविताएँ हैं जिनमें लेखक ने भावनाओं के ज्वार को सरल सुबोध भाषा में इस तरह से बाँधा है जैसे कि वह हर मनुष्य के दिल की बात हो |
हौआ एक ऐसा शब्द है जो हम न जाने कितनी बार बात बात में प्रयोग में लाते हैं| यही शब्द कविता में बँध जाए तो स्वभाविक है मन को भाएगा ही| हौआ के लिए बिम्ब भी लाजवाब है-
हौआ कौआ नहीं होता/ जिसे उड़ा दिया जाए/
हुर्र कहकर / हौआ तो वामन है/
जो कद बढ़ा लेता है अपना/ हर कदम के साथ /
हौआ तो अमीबा है / जितना तोड़ा इसे /
गिनती बढ़ी उतनी ही ( पृ- 15 )
वक्त की सीढ़ी ( पृ- 17 ) प्रेरणादायी कविता है | पृ- 18 पर ‘मन और पत्ते’ बहुत अच्छी कविता है | जिस तरह पत्ते डोलते हैं उसी तरह मन भी डोलता है मगर बहुत फर्क है दोनो के डोलने में | इसे कवि की लेखनी से जानते हैं|
पत्तों का डोलना/ हार नहीं होती पेड़ की/
लेकिन मन का डोलना/ हार होती है आदमी की
रिश्तों की फ़सल/ यूँ ही नहीं लहलहाती/
तप करना पड़ता है/ किसान की तरह ( पृ- 19 )
घर घर ही होता है/ और लौट आना होता है वापस/ परिंदों की तरह ( पृ-20 )
जिंदगी पर कवि का नजरिया बहुत सकारात्मक है|
जिंदगी / कोरी सैद्धांतिक / और नीरस नहीं होती /
जिंदगी / एक गीत है /जिसमें सुर ताल की बंदिशें हैं तो / मधुरता भी है/ सरसता भी है/ रोचकता भी है ( पृ-21 )
एक कड़वा सच जो कवि ने इस तरह से उजागर किया है |
मैं वाकिफ़ हूँ / तेरी सच्चाई से /तू वाकिफ़ है /
मेरी सच्चाई से /मगर अफ़सोस /स्वयं के सच से /
न तू वाकिफ़ है / न मैं वाकिफ़ हूँ (पृ-28 )
कवि ने समझदार की समझदारी को बखूबी उतारा है अपनी कविता मे, देखिए किस तरह|
हर अच्छा कार्य / संभव हो सका है / मेरे कारण /
हर बुरे परिणाम के लिए / उत्तरदायी हैं दूसरे लोग/
और जो सफल हो जाते हैं/वही कहलाते हैं /
समझदार लोग
इस तरह कई कविताएँ मिलेंगी जो हर व्यक्ति को अपनी सोच लगेगी| यही विशेषता होती है सफल कवि की जो जनमानस के आंतरिक सोच को व्यक्त कर सके जिसमें दिलबाग जी पूरी तरह सफल रहे हैं| अपाहिज, जिंदादिली, आवरण, दोषी हम भी हैं आदि कई कविताएँ समाज पर कुठारघात है और कवि की बेबाक लेखनी का परिचय भी देती है |
पतंग के माद्यम से कवि ने जो बात कही है वह गहन ,सूक्ष्म और बारीक अध्ययन है | दूसरों की पतंग काट कर बड़े, बच्चों को सिखा देते हैं दूसरों की वस्तुएँ छीनकर खुश होना | इस कविता के लिए मैं दिलबाग जी को बधाई देती हूँ |
समाज में बढ़ रही ‘लिवींग टू-गेदर’ की परम्परा परिवारों में विखंडन का प्रतिफल है जहाँ कवि ने परमाणु विस्फोट की कल्पना की है जहाँ सब कुछ खत्म हो जाएगा | ऐसी ही कितनी कविताएँ हैं जो पाठक पढ़ना चाहेंगे और अनुभव करेंगे कि समाज की तत्कालीन स्थितियों को कवि ने कितनी बारीकी से उकेरा है |
पुस्तक के खंड २ में महाभारत के पात्रों के माध्यम से कई सवाल प्रस्तुत किए हैं कवि ने जो अंदर तक उद्वेलित करते हैं | इस खंड की प्रथम कविता ‘आत्ममंथन’ भीष्म पितामह का आत्ममंथन है | उन्होंने जो प्रतिज्ञा अपने पिता की इच्छापूर्ति के लिए लिया आज उसका प्रतिफल उन्हें शर शय्या पर यह सोचने को मजबूर कर रहा है कि गल्ती कहाँ हुई जो सभी अपने आमने सामने खड़े हैं युद्ध के लिए | कवि ने कई विचारणीय तथ्य पाठकों के सामने रखा है जो पुस्तक में पढेँ जाएँ तो अधिक सही रूप में उभर कर सामने आएगा |
गुरु दक्षिणा के रूप में अपना अँगूठा देने वाला एकलव्य पाठकों के समक्ष कई सवालों के साथ प्रस्तुत है | गाँधारी का अपने आँखों पर पट्टी बाँध लेना पति का समर्थन था या कर्तव्य से पलायन, यह पढ़कर ही सुनिश्चित करें पाठक तो अधिक न्याय हो पाएगा |
माननीय सभासदों से भरे दरबार में द्रौपदी का चीरहरण स्वार्थपरता की निशानी ही रही होगी तभी तो अपने पदों को बचाने के लिए सभी खामोश रहे| इसे आज के समाज से भी जोड़कर देखा जा सकता है |
इस तरह महाभारत के पात्र आज भी जीवित हैं और पुस्तक के नाम ‘’महाभारत जारी है’’ को सार्थकता मिल रही है |
मैं दिलबाग विर्क जी को बधाई देती हूँ कि समाज में फैली कुरीतियों को कविता के माध्यम से व्यक्त करके उन्होंने कलम की ताकत का उत्कृष्ट परिचय दिया है | दिलबाग जी से भविष्य में भी इस तरह की सार्थक रचनाओं की आशा के साथ शुभकामनाएँ|
ऋता शेखर ‘मधु’
2 टिप्पणियां:
dilbag ji ko is pustak or itni umda rachnao ke liye tahedil se badhayi evam shubhkamnaye ... (y)
अरे वाह यह तो आपकी किताब है इसे तो पढना बनता है।
एक टिप्पणी भेजें