कहानी संग्रह - एक सच यह भी
लेखिका - डॉ. शील कौशिक
प्रकाशन - पूनम प्रकाशन, दिल्ली
कीमत - 150 / -
पृष्ठ - 112 ( सजिल्द )
“ एक सच यह भी ” डॉ. शील कौशिक जी दूसरा कहानी संग्रह है, यह संग्रह 2008 में प्रकाशित हुआ | इस संग्रह में सत्रह कहानियाँ हैं, जो वास्तव में जीवन को देखने के सत्रह झरोखे हैं | लेखिका ने इन झरोखों से आस-पडौस के जीवन और समाज को देखा है | रोजमर्रा की घटनाओं और हर नुक्कड़ पर मिलने वाले पात्रों को कहानियों के कथानक बनाने में डॉ. शील कौशिक जी सिद्धहस्त हैं | जीवन में बुरे और अच्छे लोग सबको मिलते हैं | कोई कहानीकार किस पहलू को चुनता है, यह उसका खुद का नजरिया होता है | डॉ. शील कौशिक जी आशावादी दृष्टिकोण अपनाती हैं | हालांकि जीवन के उजले पक्ष का चित्रण करते हुए कुरूप पक्ष की झलकियाँ भी दिखाई गई हैं, लेकिन लेखिका का झुकाव आदर्श की तरफ ही है ।
रिश्ते उनकी कहानियों के केंद्र में रहे हैं । ‘ आज़ादी की बेला ’ आदर्श सास का चित्रण करते हुए सास-बहू के सौहार्दपूर्ण संबंधों को ब्यान करती है | सास भी माँ ही होती है, उक्ति को इस कहानी में दिखाया गया है, तभी तो लेखिका कहानी का अंत इस प्रकार करती हैं –
‘ उसकी आँखें नम हो जाती हैं और अचानक वह खड़ी हो जाती है और उसका दाहिना हाथ उन्हें सैल्यूट करने के लिए उठ जाता है | ’ ( पृ. – 98 )
‘ लौट आया बसंत’ कहानी रिश्तों में शक के दुष्परिणाम को दिखाती है, हालांकि शक का समाधान होने से बसंत लौट आता है | ‘उसका अपराधी’ कहानी वृद्ध दम्पति की कहानी है, जो प्रेम और शिकायत के ताने-बाने को लेकर बुनी गई है | ‘ बिखरे पन्ने ’ भी एक पारिवारिक कहानी है | इस कहानी में बेटा अपनी माँ को अवसाद से बाहर निकालने के लिए सफल प्रयास करता है | बेटे शशांक का यह सोचना –
‘ वह अपनी जिंदगी संवारने के लिए माँ की जिंदगी के पन्ने बिखरने नहीं देगा |’ रिश्तों में त्याग की भावना को दर्शाती है |
‘वह प्रकाश रेखा’ बेटों की बेरुखी को दर्शाती है, लेकिन पति स्वप्न के माध्यम से पत्नी को वृद्धाश्रम में रहने का साहसिक निर्णय लेने के लिए प्रेरित करता है | कहानी की यह पंक्तियाँ स्वाभिमानपूर्वक जीने का राह प्रशस्त करती हैं –
‘ बेटों के ऊपर निर्भर रहने की परम्परागत सोच से बाहर निकल | उनके दुत्कारने पर भी उन्हीं के टुकड़ों पर क्यों पड़ी है ? इस आधुनिकता की तेज हवा ने सब दया धर्म और संस्कार उड़ा दिए हैं | तेरे पास हुनर है, आचार, पापड़, बड़ियाँ, सेवइयाँ बनाना जानती है, स्वैटर बुनना जानती है, सभी औरतें मिल-जुलकर सहकारी समिति बनाकर, हाथ का बना माल बेचकर, अच्छा पैसा कमाने के साथ समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है | ’ ( पृ. – 23 )
‘आईना’ कहानी सास-बहू के माध्यम से बताती है कि इतिहास खुद को दोहराता है | यह कहानी कटु यथार्थ को ब्यान करती है | विद्या का सोचना बहुत कुछ कहता है -
‘ अतीत की परतें एक-एक करके उघड़ने लगी | बिल्कुल ऐसे ही मेरी सास मेरे आगे गिडगिडा रही थी | विद्या मैं तेरे आगे हाथ जोडती हूँ | मुझे अपने भाई से मिलने के लिए जाना है |’
( पृ. – 38 )
( पृ. – 38 )
‘भ्रमजाल’ सास-बहू को लेकर ही रची गई है, लेकिन इसमें बहू के दोहरे चरित्र को दिखाना वास्तविक उद्देश्य है |
‘प्रश्नों के नागफनी’ की पृष्ठभूमि में भी रिश्ते ही हैं, हालांकि यह प्रश्नों और विचारों की कहानी है और कथानक इसमें पूरी तरह नहीं उभर पाता | कथानक कहानी का प्राण होता है, लेकिन कथानकहीन कहानियाँ लिखने की परम्परा भी साथ-साथ चल रही है | अमृता प्रीतम की कहानी ‘ एक गीत का सृजन ’ को इसके उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है |
रिश्तों के इतर समाज के अन्य पहलू भी डॉ. शील कौशिक की कलम की नोक पर आए हैं |
“ एक सच यह भी ” कहानी संग्रह में पशुओं के प्रति बच्चों के प्रेमभाव, विशेषकर गाय के प्रति श्रद्धा भाव दिखाती कहानी है ‘ नन्नू की अम्मा ’ | अम्मा नन्नू को कहती है –
‘ हमारी धरती को धरती माँ कहा गया है, वह सारी सृष्टि का भार वहन करती है, गऊ को माता कहा गया है, वह लाखों लोगों के लिए भोजन जुटाने में समर्थ है |’ ( पृ. – 99 )
लेखिका का यह कहना – ‘ पशुओं में आदमियों से कहीं ज्यादा संवेदना होती है |’ ( पृ. – 102 ) यह बताता है कि लेखिका सिर्फ मानव मन की ही समझ नहीं रखती, अपितु वे पशुओं की वफादारी से भी पूर्णत: परिचित हैं |
समाज में व्याप्त ठगी की घटनाओं से प्रेरित होकर लिखी गई कहानी है ‘चक्रव्यूह’ | ठग आदमी की कमजोरी ढूंढते हैं | मीना को भी शिकार बनाने लिए इसी हथियार का प्रयोग किया जाता है | लेखिका लिखती हैं –
‘ मानव मन कमजोरियों का पुतला होता है | एक माँ के लिए उसकी औलाद का दीन-हीन होना सबसे बड़ी कमजोरी होता है | ’ ( पृ. – 77 )
‘ मानव मन कमजोरियों का पुतला होता है | एक माँ के लिए उसकी औलाद का दीन-हीन होना सबसे बड़ी कमजोरी होता है | ’ ( पृ. – 77 )
' एक सच यह भी ' हरिकिशन के ढोंग को दिखाती है, जबकि व्यापारियों के ढोंग और दीवालियापन के सच को उद्घाटित किया गया है ‘ सवालिया कोठी ’ के माध्यम से | स्वाती का यह खुलासा करना –
‘ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि कोठी पर कोई ओपरी छाया है या फिर इसके अंदर भूतों का डेरा है |’ ( पृ. – 87 ) परोक्ष रूप से यह दर्शाता है कि लोग किस प्रकार भूत प्रेत की कहानियों को सच मान लेते हैं, जिससे शातिर लोग सदा लाभ उठाते हैं |
‘ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि कोठी पर कोई ओपरी छाया है या फिर इसके अंदर भूतों का डेरा है |’ ( पृ. – 87 ) परोक्ष रूप से यह दर्शाता है कि लोग किस प्रकार भूत प्रेत की कहानियों को सच मान लेते हैं, जिससे शातिर लोग सदा लाभ उठाते हैं |
‘ अरमानों के पंख ’ कहानी में एक दादी अपनी अधूरी तमन्नाओं को अपनी पोती के माध्यम से पूरा करना चाहती है |
‘ धराशायी ’ कार्यालयों में चली जाने वाली चालों और अहं के परिणाम को दर्शाती है | कार्यालयों की रिश्वत परम्परा की झलक भी इसमें मिलती है –
‘ मि. मेहता क्लर्क के लिए उर्वर बीज की तरह था, जिससे क्लर्क की ऊपरी आय में वृद्धि हो रही थी | क्लर्क ने मामला लटका दिया |’ ( पृ. – 42 )
प्राइवेट कम्पनियों की तुलना में सरकारी दफ्तरों में सुविधाओं के अभाव को भी इस कहानी में दर्शाया गया है –
‘ विनीत अपने फैसले की उस घड़ी को कोसता रहता, जब उसने प्राइवेट नौकरी छोड कर यह सरकारी नौकरी ज्वाइन की थी | वहाँ काम ज्यादा था तो क्या ? बैठने के लिए फर्स्ट क्लास ए.सी. फिटिंग वाला कमरा तो था |’ ( पृ. – 42 )
‘ मन के कैनवस पर ’ कहानी पूर्वाग्रहों पर आधारित है | पूर्वाग्रह अक्सर हमारे मन में आसन जमाकर बैठ जाते हैं | दीपेश भी इसका शिकार है | उसकी हालत तो यह है –
‘ पर जितना वो इन विचारों से दूर भागता, न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार – एक्शन इज इकुअल तू रिएक्शन की तर्ज पर यही विचार तेजी से उसके मन में घुस जाता |’ ( पृ. – 59 )
‘ फिर वहीं ’ कहानी किरायेदार और मालकिन के संबंधों पर आधारित है, लेकिन इसका उद्देश्य यह दर्शाना भी है कि एक तनाव दूसरी समस्याओं को भुला देता है | लेखिका लिखती हैं –
‘ जंग वरदान साबित हुई क्योंकि अब शालू की बीमारियाँ न जाने कहाँ गायब हो गई ?’
( पृ. – 18 )
‘ जंग वरदान साबित हुई क्योंकि अब शालू की बीमारियाँ न जाने कहाँ गायब हो गई ?’
( पृ. – 18 )
‘ उसने जीना सीख लिया ’ कहानी घरों में रखे जाने वाले बाल मजदूर को लेकर है | सोनू की मालकिन सहृदय नहीं, लेकिन वह विकट परिस्थितियों में भी वह जीना सीख लेता है | इस कहानी कि ये पंक्तियाँ मालिकों की मानसिकता को दर्शाता है –
‘ अपनी नाकामियों का ठीकरा उसके सर फोड़ने की भी सुविधा रहती, क्या करें, सुनता ही नहीं, निकम्मा है, कामचोर है आदि |’ ( पृ. – 25 )
डॉ. शील कौशिक की कहानियों के मूल में निस्संदेह आदर्श है लेकिन यथार्थ का चित्रण सर्वत्र है |
कथानक को आगे बढाने के लिए लेखिका ने वर्णन का सहारा लिया है | कहानी शुरू में कही जाती थी और लेखिका ने कहानी कहने की उसी पुरानी परम्परा का निर्वहन किया है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि इन कहानियों में कोरा वर्णन ही है | संवाद कहानी में अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं और डॉ. कौशिक की कहानियों में इनके महत्त्व को भली-भांति समझा गया है | संवाद छोटे और प्रभावशाली हैं |
“ ‘ अम्मा आज कोई ख़ास बात है, कहीं जाना है क्या ?’
‘ कहीं नहीं जाना नन्नू | आज गोपाष्टमी है और आज मेरा व्रत भी है |’
‘ क्या होता है गोपाष्टमी ?’ – नन्नू की बाल सुलभ जिज्ञासा जाग उठी |”
( नन्नू की अम्मा, पृ. – 101 )
( नन्नू की अम्मा, पृ. – 101 )
डॉ. शील कौशिक के बहुत से पात्र खुद से संवाद करते हैं | कहानी ‘ वह प्रकाश रेखा ’ का एक नमूना –
‘ हाय लोग क्या कहेंगे ? मेरे बेटों की बेइज्जती न होगी | लोकलाज भी तो कोई चीज है, ना-बाबा ना, मैं ऐसा न कर सकूंगी |’ ( पृ. – 23 )
‘ मुखौटे ’ कहानी संवाद पर ही टिकी हुई है और संवाद के माध्यम से ही उस कहानी की औरतों का चरित्र उद्घाटित होता है |
डॉ. शील कौशिक की कहानियों के पात्र सामान्य मानव हैं | लेखिका ने पात्रों के चित्रण के लिए खुद ब्यान करना, दूसरों की टिप्पणियाँ, पात्रों के संवाद, पात्रों के कार्य, पात्रों के आत्मकथन आदि सभी प्रचलित विधियों को अपनाया है |
दूसरे पात्रों के माध्यम से भी किसी पात्र विशेष का चरित्र-चित्रण किया गया है | हरिकिशन के बारे में अतुल को दूसरों से ही पता चलता है–
‘ भगवान ऐसा कुपूत बेटा किसी को न दे, न जाने बेचारी किस जुर्म की सज़ा भुगत रही थी | ’ ( एक सच यह भी, पृ. – 68 )
सहकर्मी की उक्ति शर्मा के बारे में बताती है –
‘ भाई हमने तो बहुत दुनिया देखी है पर शर्मा जी जैसा ईमानदार व्यक्ति नहीं देखा |’
( मन के कैनवस पर, पृ. – 58 )
( मन के कैनवस पर, पृ. – 58 )
सतवंती के बेटे का चरित्र उसके अपनी माँ को कहे शब्दों से स्पष्ट होता है –
‘ यहाँ किसलिए आई हो ? कितनी बार कहा है, आठ बजे से पहले चाय नहीं मिलेगी | यूँ नहीं इस उम्र में राम का नाम जपूं, बस खाने-पीने में ही मन रमता है |’ ( वह प्रकाश रेखा, पृ. – 21 )
पात्रों पर यादों के प्रभाव का चित्रण भी उन्होंने बखूबी किया है –
‘ वह बीते पल की गठरी खोलकर जो बैठी तो भावुक-सी हो उठी, उसका आंचल आंसुओं से भीग गया |’ ( वह प्रकाश रेखा, पृ. – 21 )
लेखिका ने अपनी कहानियों में पात्रों के चरित्र के ऐसे पहलू भी प्रस्तुत किए हैं, जो आमतौर पर पाए जाते हैं, जैसे हर घरेलू औरत थोडा-बहुत डाक्टरी ज्ञान रखती है –
‘ पढ़ी-लिखी डाक्टर न होने के बावजूद वो अपने ज्ञान, अनुभव और देसी नुस्खों से बड़ी से बड़ी बीमारियों का इलाज कर देती | ’ ( आज़ादी की बेला, पृ. – 97 )
इसी प्रकार का वर्णन “ उसका अपराधी ” कहानी में भी मिलता है –
‘ वह पढ़ी-लिखी डाक्टर नहीं थी, पर प्रत्येक छोटे-मोटे रोगों का इलाज वह घर में उपलब्ध चीजों से ही चुटकियों में कर देती थी |’ ( पृ. – 71 )
लेखिका ने चरित्र-चित्रण के माध्यम से कथानक को गति दी है |
परिस्थितियाँ और मन किस प्रकार एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, इसका वर्णन भी उनकी कहानियों में मिलता है | अगर हमारा ध्यान कहीं और है तो प्रकृति हमें आकर्षित नहीं कर पाती, इसे इस प्रकार दिखाया गया है -
‘ उसे आज खिले फूल, हरी घास, सुबह की शुद्ध वायु, कुछ भी आकर्षित नहीं कर रहा था | उसका ध्यान तो बस आज किए जाने वाले कार्यों की सूची पर था | ’ ( भ्रमजाल, पृ. – 47 )
इसके विपरीत भी होता है –
‘ उसे बाहर के वातावरण में हल्की गर्माहट, खिलते रंग-बिरंगे फूल अब बहुत अच्छे लग रहे थे | वह अपने को एकदम हल्का-फुल्का महसूस करने लगी और धीरे-धीरे रिश्ते में पहले जैसी गर्माहट से उसके चेहरे की आभा लौट आई |’ ( लौट आया बसंत, पृ. – 35 )
दृश्यों के चित्रण में लेखिका का मन खूब रमा है | गरीबी का वर्णन हो या फिर प्रकृति का, लेखिका ने बड़ी पैनी दृष्टि से चीजों को देखा है और शब्द चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया है | ऐसे ही एक दृश्य का चित्रण “ एक सच यह भी ” कहानी में भी है –
‘ घर में भीतर एक कमरे में एक झंगली-सी खटिया पड़ी थी | उसके पास में ही एक घड़ा जिसमें पानी बदबू मार रहा था | चारपाई के नीचे एक टूटी प्लास्टिक की प्लेट व एक स्टील का गिलास पड़ा हुआ था | घर रंग-रोगन न होने के कारण बदरंग हो चला था | चारों तरफ काले-काले धागे के रूप में जाले लटके हुए थे |’ (पृ. – 67 )
प्रकृति के दृश्यों को कथानक की गंभीरता दिखाने के लिए संकेत के रूप में भी प्रयुक्त किया गया है –
‘ अमावस्य का निविड़ अन्धकार फैलता जा रहा था, रात घिरती जा रही थी | ’
( एक सच यह भी, पृ. – 69 )
( एक सच यह भी, पृ. – 69 )
प्रकृति के मोहक चित्र भी डॉ. शील कौशिक जी की कहानियों में मिलते हैं –
‘ बसंत की खुशनुमाई वातावरण को आनन्दित कर रही थी | वन-उपवन, रंग-बिरंगे फूलों से महक उठे, मस्ती में इठलाता बसंत, मौसम के बदलने की आहट दे रहा था | ’
( वह प्रकाश रेखा, पृ. – 22 )
( वह प्रकाश रेखा, पृ. – 22 )
डॉ. शील कौशिक की भाषा मंझी हुई है | उन्होंने पात्रों और परिस्थितियों के अनुकूल शब्दों का चयन किया है |
छोटू यानी सोनू का अपनी मात भाषा में बोलना स्वाभाविक ही है –
‘ तुहार पास में इहका तीन छोटे बहिन-भाई और रहिन, तू इहका वास्ते कहाँ से कमाई और का खाई |’ ( उसने जीना सीख लिया, पृ. – 26 )
“ उसका अपराधी ” में गाँव की औरतें हरियाणवी बोलती हैं –
‘ ऐ बहू तू किसकी से, जरा तेरो मुंह तो दिखाइयो |’ ( पृ. – 72 )
कहावतों का प्रयोग खूब हुआ है –
‘ कहावत ‘जहाँ चाह, वहाँ राह’ के अनुसार अतुल के कदम स्वयं ही उसका घर ढूँढने चल पड़े | ’ ( एक सच यह भी, पृ. – 66 )
लेखिका ने अनेक सूक्तियों और विचारों से कहानियों को सजाया है–
‘ अतीत न हो तो जीया नहीं जाता | ’ ( वह प्रकाश रेखा, पृ. – 22 )
‘ हर रात के बाद सवेरा होता है |’ ( बिखरे पन्ने, पृ. – 110 )
जीवन दर्शन का ब्यान उन्होंने अनेक कहानियों में किया है | “ प्रश्नों के नागफनी ” कहानी के नमूने –
‘ संवाद का धागा न रहे तो रिश्ते खत्म हो जाते हैं | ’ ( पृ. – 56 )
‘ जीवन रुपी नदी का पानी यदि रोक दिया जाए तो वह सड़ने लगता है |’ ( पृ. – 57 )
कहानियों में वर्णात्मक शैली की प्रधानता है | कई कहानियों जैसे फिर वहीं, वह प्रकाश रेखा, भ्रमजाल आदि में फ्लैशबैक तकनीक का प्रयोग हुआ है |
“ वह प्रकाश रेखा ” कहानी की शुरुआत चरित्र चित्रण करते हुए अतीत में लौटने से होती है –
‘ सतवंती सचमुच निहत्थी थी | उसके पास किसी किस्म का हथियार न था | ना रुपयों का, ना जागीर का, ना वाक् पटुता का, ना रोब का, ना चापलूसी का और न ही अब पति का रह गया था | यादों के झोंकों से सतवंती का अतीत उघड गया |’ ( पृ. – 19 )
संक्षेप में, डॉ. शील कौशिक जी की कहानियाँ कहानी के मापदंडों पर खरी उतरती हैं | कथानक का चयन करते समय वे किसी पूर्वाग्रह या वाद से ग्रस्त नहीं | यथार्थ के नाम पर आजकल अधिकांशत: कटुता फैलाई जाती है, लेकिन जीवन में स्थितियां अभी भी इतनी बुरी नहीं | घरों में सिर्फ षड्यंत्र नहीं रचे जाते, अपितु प्रेम भाव भी है | सास- बहू में सदा ईंट-कुत्ते का बैर नहीं होता, उनके संबध सौहार्दपूर्ण भी होते हैं, ये सब कुछ दिखाती हैं डॉ. शील कौशिक जी की कहानियाँ | अच्छे और बुरे जीवन में साथ-साथ मौजूद हैं, इन कहानियों में भी ये उसी प्रकार साथ-साथ हैं | लेखिका विषय के साथ-साथ शिल्प के लिए भी कोई पूर्वाग्रह लेकर नहीं चलती | सिर्फ संवाद के लिए संवाद की भर्ती उन्होंने नहीं की | दादी-नानी की कहानियों की तरह उन्होंने कहानियाँ कहीं हैं | कथानक की मांग के अनुसार शिल्प को चुनने के कारण उनकी कहानियाँ बनावटी नहीं लगती, जिससे वे पाठक को कहीं गहरे जाकर छूती हैं |
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दिलबागसिंह विर्क
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2 टिप्पणियां:
सारगर्भित सुन्दर समीक्षा....
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (08.01.2016) को " क्या हो जीने का लक्ष्य" (चर्चा -2215) पर लिंक की गयी है कृपया पधारे। वहाँ आपका स्वागत है, सादर।
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