BE PROUD TO BE AN INDIAN

शनिवार, जुलाई 21, 2018

जीवन के विविध विषयों की बात करता कविता-संग्रह

कविता-संग्रह – कविता से पूछो
कवयित्री – डॉ. शील कौशिक
प्रकाशन – अक्षरधाम प्रकाशन
पृष्ठ – 96
कीमत – 150 /- ( सजिल्द )
कविता क्या है और कवि होना क्या है, इस पर आलोचक यहाँ अक्सर अपने मत देते हैं वहीं कवि भी कभी-कभार अपनी रचनाओं में इस विषय को चुनते हैं | डॉ. शील कौशिक जी का कविता संग्रह ‘ कविता से पूछो ’ की कई कविताएँ इस सन्दर्भ में बात करती हैं | पुस्तक का शीर्षक बनी कविता में कवयित्री कहती हैं कि साहित्यकार दूसरों की प्रशंसा से नहीं, साहित्य से जुड़कर बना जाता है | कविता रचने के लिए चित्त से पार जाकर मचलते भावों को पकड़ना होता है, बिम्बों, अलंकारों से संवारना होता है | कविता इसलिए खिल उठती है क्योंकि वह मेहनतकश की मेहनत, त्योहारों की उमंग, महफिल की ठिठोली आदि लिए हुए है | कविता कवयित्री के जीवन में रच-बस गई और उसके साथ-साथ चलती है | एक अनलिखी कविता कवयित्री के साथ सोती, जागती है | वे लिखती हैं –
एक / अनलिखी कविता / हर पल /
होती है / मेरे आस-पास /
मंडराती है / तितली सी ( पृ. – 88 )

            स्त्री, माँ और बेटी इस संग्रह के अन्य महत्त्वपूर्ण विषय हैं | स्त्री के बारे में वे लिखती हैं –
नहीं परिभाषित / होना चाहती वह /
पुरुष द्वारा / बटोर लेना चाहती है /
कायनात में बिखरी / अपने हिस्से की सारी खुशियाँ ( पृ. – 67 )
चार दशक की हो चुकी स्त्री जयघोष करती निकल जाती है | औरत अब भ्रम में नहीं जीती अपितु वह अब निरंतर आगे बढ़ रही है, हाँ वह इस आस में अवश्य जीती है कि प्रियतम कोई स्नेह का बटन टांक दे | औरत के प्रति पुरुष के नजरिये को भी कवयित्री ने बखूबी ब्यान किया है –
अपनी सोच के मुताबिक़ / बनाए चौखटे में /
मुझे फिट पाकर ही / ली थी तुमने /
चैन की सांस ( पृ. – 32 )
            औरत का सबसे महत्त्वपूर्ण किरदार उसका माँ होना है | माँ का चित्रण करते हुए वे लिखती हैं –
तब यह कहना / मुश्किल हो जाता है /
कि वो नन्हीं जान में / समाई है /
या नन्हीं जान उसमें ( पृ. – 72)
कवयित्री ने मातृत्व के अहसास का भी ब्यान किया है –
पेट पर हाथ फिराते हुए / बतियाने लगी है खुद से
सहेजने लगी है / अपने अंदर / मातृत्व को ( पृ. – 49 )
कवयित्री के अनुसार माँ का कद नापना बहुत मुश्किल है | माँ ताजगी और नयेपन से भर देती है | बहू-बेटे को साथ रखने के लिए एक माँ खुद को बदलती है | कवयित्री माँ की होली का वर्णन भी करती हैं तो उस पीड़ा का भी, जिसके अंतर्गत वह धर्म ग्रन्थों, साहित्य में मौजूद होने के बावजूद खुद को घर में नहीं पाती | माँ-बेटी का रिश्ता सबसे प्यारा रिश्ता है | माँ बेटी के मायके आने का इन्तजार करती है | कवयित्री ने बेटियों पर भी अनेक कविताएँ लिखी हैं | बेटियाँ बदल रही हैं वे नेतृत्त्व करती हैं, दिशा-निर्देश देती हैं, सरहदें नापती हैं, सलामी लेती हैं, सूर्य से आँख मिलाती हुई इतिहास रच रही हैं | कवयित्री सवाल करती है कि बेटियाँ हरियाली सी छाई रहती हैं, फिर भी वे उपेक्षित क्यों हैं ? कवयित्री को बेटियों का न होना भाषा का गुम होना, जिंदगी से बसंत निकलना, रब का रूठ जाना और जीवन मूल्यों का रीत जाना लगता है | नई पत्तियां उसे बेटियों सी लगती हैं | वे प्रकृति के माध्यम से सवाल करती हैं –
क्या हम इनसे / अपनी बेटियों का /
सदका करना / नहीं सीख सकते ( पृ. – 94 )
कवयित्री ने बेटी की उस पीड़ा को भी बयाँ किया है पिता का घर भाई का घर बन जाता है |
            रिश्ते भी इस संग्रह का महत्त्वपूर्ण विषय है | वे लिखती हैं –
सचमुच रिश्ते तो / उगाने, पालने
और पलोसने पड़ते हैं ( पृ. – 82 )
कवयित्री को लगता है कि रिश्तों की मौत सचमुच की मौत जैसी होती है | जिन रिश्तों का नाम नहीं होता वे भी महत्वपूर्ण होते हैं | ऊन के धागे रिश्तों में गर्माहट भरने का काम करते हैं |
            कवयित्री अन्य अनेक विषयों को अपनी कविता के माध्यम से प्रस्तुत करती है | उनका मानना है कि परिवर्तन का महानायक बनना बड़ा मुश्किल है | विगत हमारे द्वारा ही बनता है –
जिसे तुम विगत कहते हो / वह तुम्हारा ही बनाया है /
तुमने उसे जो दिया / वो ही जज्ब हो गया /
उसके भीतर / ब्लोटिंग पेपर पर /
बिखरी / स्याही की मानिंद ( पृ. – 65 )
कवयित्री बदलती राजनीति पर प्रहार करती है | चुनावों के दिनों इलाका बारूद का ढेर बन जाता है | समाज में ऐसा परिवर्तन आया है कि अखबार रक्त-रंजित मिलते हैं | उम्र बीतने पर समय मसखरा बन जाता है | कवयित्री यथार्थ का चित्रण करने के बावजूद निराशवादी नहीं | उनका मानना है कि भले ही बुरा दौर है लेकिन संस्कार अभी भी मरे नहीं हैं, वे अभी भी जीवित हैं | कवयित्री को दीप निर्माता सृष्टि विनायक-सा लगता है, जो नित नया सूरज गढ़ता है | उनके अनुसार जैसे फूलों की खुशबू, बादल, हवा का कोई देश नहीं होता, वैसे ही बच्चों की मुस्कराहट का कोई मजहब नहीं होता | प्रकृति को लेकर भी उन्होंने कविताएँ लिखी हैं | वे बादलों की विवशता को समझती हैं | उनके अनुसार जिसका घर पेड़-पौधों से सजा है, वही अमीर है | वे गरीब, कवि, माँ, किसान, कोयल, नवयौवना, बच्चे के लिए बसंत के अलग-अलग रूपों को दिखाती हैं |
            भाव पक्ष में कवयित्री यहाँ जीवन से जुड़े विविध विषयों को उठाती हैं, वहीं शिल्प पक्ष से शील जी की कविताएँ सहज और सरल हैं | इनमें भाषिक आडम्बर की बजाए भावों की गहनता है | अलंकारों, बिम्बों का प्रयोग सहज रूप से हुआ है | मानवीकरण और उपमा का सुंदर उदाहरण देखिए –
प्रकृति / गरीब की बेटी सी /
विधवा हो गई है / छीना है हमने /
उसका / रूप शृंगार ( पृ. – 78 )
            संक्षेप में, भाव पक्ष और शिल्प पक्ष से ‘ कविता से पूछो ’ एक सफल कविता-संग्रह ही, जिसके लिए कवयित्री बधाई की पात्र है |

दिलबागसिंह विर्क
*****

3 टिप्‍पणियां:

Dharmesh ने कहा…

good blog
what is google adsense in hindi

rahul ने कहा…

get the latest happy independence day wishes, msgs, sms, pic, status happy birthday msgs, happy fathers day, happy mothers day sms, happy new year fb status etc

GET THE LATEST GOVT JOB NOTIFICATIONS ELIGIBILITY DETAILS, AGE LIMIT, QUALIFICATION NEEDED FOR GOVT JOB .

get the latest COMPUTER LAUNCH INFORMATION AND KEYBOARD,MOUSE,PRINTERS,HEADPHONES,MONITORS,GAMING ACCESSORIES INFORMATION.

ss ने कहा…


well presented explained.
fournisseur de mobilier in cote d'ivoire

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...