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बुधवार, जून 03, 2020

जीवन दर्शन की बात करता कविता-संग्रह

कविता-संग्रह - नदी की तैरती सी आवाज़
कवि - रूप देवगुण
प्रकाशक - सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल
कीमत - ₹150/-
पृष्ठ - 96
'नदी की तैरती-सी आवाज़' रूप देवगुण का ग्यारहवाँ कविता-संग्रह है, जिसका प्रकाशन 2013 में सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल से हुआ। इस संग्रह में 48 कविताएँ हैं और अधिकांश कविताएँ प्रकृति से जुड़ी हुई हैं। इस संग्रह का नाम भी इसे प्रकृति काव्य सिद्ध करता है। कविताओं में प्रकृति के किसी-न-किसी अवयव का जिक्र है और उसके माध्यम से कवि अपनी बात करता है। कवि के जीवन के प्रति नजरिये को इन कविताओं से समझा जा सकता है।
      प्रकृति कवि को मुक्ति की राह दिखाती है। वह प्रकृति के सानिध्य को छोड़ना नहीं चाहता, लेकिन मजबूर है। हवाएँ उसके दरवाज़े पर दस्तक देकर उसे कहती हैं-
"उठो, देखो / प्रकृति में /
एक करिश्मा / देगा तुम्हें दिखाई" (पृ - 40)
ज़िन्दगी के बहुत से पल व्यर्थ ही बिता दिए जाते हैं, उनका होना न होना एक बराबर है। कवि उन पलों को याद करता है, जिन पलों को जीया गया। वर्तमान पल पर ध्यान देने से ज़िन्दगी भर का स्वाद उसे मिल गया है। वह सबको सन्देश देता है-
"बस पकड़ लो / इन क्षणों को /
ले लो इनसे / रस सारा /
और मुक्त हो जाओ" (पृ. - 67-68)
वह खुद को मोह माया से मुक्त महसूस करता है। उसे इस बात का फर्क नहीं पड़ता कि उसका नाम हो। वह जीवन जीना सीखने की बात करता है। अलग-सा जीवन जीकर खुद भी बहुत कुछ पाया जा सकता है और दूसरों को भी बहुत कुछ दिया जा सकता है। वह खुद के व्यक्तित्व को पहचानने की बात कहता है। उसे लगता है कि हम भीतर का सफर नहीं करते। आदमी की प्रवृति को दिखाते हुए कहा गया है-
"घर में पड़ा है / सब कुछ /
और हम झाँकते रहते हैं / दूसरों के घरों में" (पृ. - 59)
वह चुप्पी का पक्षधर है ताकि नदी की तैरती-सी आवाज़, कबूतर की गुटरगूँ, बच्चे की तोतली-सी आवाज़ सुनी जा सके, जो शोर में दबकर रह जाती है। वह मन की खिड़की खोलने की बात करता है ताकि इसमें नए विचारों की रौशनी आ सके। वह आशावादी है। 'कौन किसका साथ देता है' जैसे निराशावादी विचार को उसने कभी पनपने नहीं दिया। वह कहता है कि रौशनी बाहर की हो या भीतर की वह जरूरी है, इसलिए उसने आलोक स्तम्भ की पूजा की है। वह खुद को धरा का बेटा कहते हुए कहता है-
"मैं न डूबना चाहता हूँ / न उड़ना /
मैं तो सिर्फ / चलना चाहता हूँ" (पृ. - 51)
वह मेहनत का पक्षधर है और मेहनत को ही करिश्मा कहता है। विपरीत परिस्थितियों में जीने वाले को दोस्त कहने पर गर्व महसूस करता है। वह जीवन के बारे में कहता है-
"कमाया कुछ / खाया कुछ /
बचाया कुछ / यही है जीवन को /
तरतीब देना (पृ. - 62) 
कवि के अनुसार संसार संयोग-वियोग का नाम है। ढूँढना है तो भटकना ज़रूरी है। कवि का यह दर्शन ओशोवाद से प्रभावित है कि जो होता है उसे होने दो और शरीर से परे होकर उसे हँसते हुए देखो। 
           कवि के अनुसार संबंधों की दुनिया एक उलझन है, जिसे हम जीवन भर सुलझाते रहते हैं। वह बुरा लगने पर कहकर सारे रास्ते बंद करने का पक्षधर नहीं। उसके अनुसार क्या कहा, यह महत्त्वपूर्ण नहीं, अपितु महत्त्वपूर्ण है कि कहने का क्या असर हुआ। दोस्त के मारपीट करने पर भी वह बातचीत द्वारा मसला हल करता है। जल्दबाज़ी में हम किसी के दुख को देखकर भी दुख नहीं बंटाते। वह कहता है कि जब कोई तुम्हारे पास आए तो तुम्हें सोचना चाहिए -
"वह क्यों आया है / और क्या चाहता है तुमसे" (पृ. - 83)
जब हम कुछ लेना होता है, तो हम उसके पास जाते हैं जिससे कुछ लेना हो, कवि ने इसे समुद्र और नदी के माध्यम से स्पष्ट किया है, साथ ही वह कहता है-
"देना हो किसी को कुछ / तो भी मत बुलाओ उसको /
जाओ उसके पास / और दो इज्जत /
उसे कुछ देकर" (पृ. - 11)
कवि के अनुसार बच्चों का विदेश चला जाना बूढ़ों को अखरता है। ग्यारहवें का चौथे में बदल जाना भी उसे अच्छा नहीं लगता है। कवि पूछता है कि जिसने तुम्हारे लिए जीवन जीया, क्या तुम उसके लिए रोए? वह खुद का उदाहरण भी देता है। टिटहरी के बच्चों की मृत्यु को देखकर कहता है कि जिनको हम खो देते हैं उनका वर्णन करने के लिए कोई कलम, स्याही नहीं हो सकती। 
      कवि मन की तुलना आकाश से करता है, यहाँ बहुत कुछ होता रहता है। आसमान का सफेद बादल कवि को ऋषि, पियक्कड़, माँ, बच्चा आदि बहुत कुछ दिखाई देता है। स्कूल के बच्चे उसे कृष्ण-से और माताएँ यशोदा-सी लगती हैं। वह रोज छत से छत तक की यात्रा करता है, इनमें एक छत आदमी ने बनाई है और एक छत कुदरत की है। उसके अनुसार बहुत कुछ अधूरा रह जाता है। उगते सूरज को सलाम करने वालों के भीतर का सूरज कालिमा का रूप ले लेता है। 
     कवि परिवर्तन के नियम को मानता है, लेकिन परिवर्तन के कारण पुराना सब कुछ लूट जाता है, ऐसा उसने सोचा नहीं था। पुल का निर्माण उसे पुलकित करता है। मौसम विभाग द्वारा बादलों के न आने की खबर उसे निराश करती है। वह बादलों को कहता है, की भले बरसो मत लेकिन सूरज को छिपाए हुए बने रहो। बारिश की बूंदे कवि को आँसुओं-सी लगती हैं तभी तो बादलों का बरसना समुद्र का बोझ हल्का होना है। वर्षा ऋतु के आगमन पर कैसा मौहाल होगा, इसे स्पष्ट किया गया है। बरसात का अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग असर दिखाया है-
"बरसात पर किसी  ने / मनाया जश्न /
कोई चुपचाप सो गया / कोई यादों में कहीं खो गया" (पृ. -22)
     प्रकृति के माध्यम से कवि ने बड़ी सरलता से जीवन दर्शन की बात की है। जैसा जीवन वह जीता है, और वह चाहता है कि जैसा जीवन लोग जीएं इन सबका वर्णन है। शैली वर्णनात्मक भी है और आत्मकथात्मक भी। आत्मकथात्मक शैली का एक नमूना -
"मैं जब भी आया / तुम्हारे पास /
तुमने मुझे दी / धुएँ की घुटन" (पृ. - 82)
कविताओं में सन्देश भी है, उपदेश भी लेकिन यह नीरस नहीं। भाषा सरल-सहज है। प्रकृति के लगभग प्रत्येक अव्यय हवा, आंधी, वर्षा, पहाड़, नदी, समुद्र, वृक्ष, पक्षी आदि की उपस्थिति इसमें दर्ज है। प्रकृति का मनोरम चित्रण है।
      संक्षेप में, प्रकृति के चितेरे कवि रूप देवगुण का साहित्य को यह एक और बेहतरीन तोहफा है
@दिलबागसिंह विर्क

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