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बुधवार, अक्तूबर 16, 2019

मनजीत शर्मा मीरा की नजर में कवच

कहानी संग्रह - कवच
लेखक - दिलबागसिंह विर्क
प्रकाशक - अंजुमन प्रकाशन, प्रयागराज
पृष्ठ - 152
कीमत - 150/-
पुस्तक प्राप्ति का स्थान - amazon
श्री दिलबाग सिंह विर्क का प्रथम कहानी-संग्रह कवच समीक्षा हेतु मेरे सम्मुख है। पुस्तक का शीर्षक एवं आवरण पृष्ठ बहुत सुंदर होने के साथ-साथ यह अहसास कराता है जैसे कि यह शीर्षक उनकी सभी कहानियों का कवच हो। वर्ष 2005 से लेकर अद्यतन लेखक निरंतर लेखन से जुड़े रहे हैं । वे एक कवि, समीक्षक और संपादक होने के साथ-साथ एक कहानीकार भी हैं और उनके खाते में कई कविता-संग्रह, समीक्षा पुस्तक, संपादन एवं अनुवाद शामिल हैं। हिंदी के अलावा पंजाबी भाषा में भी उनकी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। जैसा कि विर्क जी ने अपनी पुस्तक की समीक्षा में लिखा है कि उनकी मातृभाषा पंजाबी है लेकिन हिंदी की उनकी कहानियां पढ़ते हुए यह एहसास होता है कि हिंदी भाषा पर भी उनकी पकड़ गहरी और मजबूत है। उनकी कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे बड़ी सीधी और सरल भाषा में लिखी गई हैं। शब्दों की दुरूहता कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होती। पात्रों का चरित्र-चित्रण भी कहानी के परिवेश अनुसार ही बहुत सही ढंग से किया गया है। संग्रह में शामिल सभी कहानियां अलग-अलग विषयों पर आधारित हैं जो कि उनकी विभिन्न मुद्दों पर साहित्यिक समझ को रेखांकित करती हैं । संग्रह की प्रथम कहानी "खूंटे से बंधे लोग" जब मैंने पढ़ी तो लेखक के लेखन शिल्प का प्रभाव छोड़ गई और बता गई कि आगे की सब कहानियां भी बहुत बेहतर लिखी गई होंगी। कहानी लेखन दरअसल जीवन में घटी हुई घटनाओं या फिर केवल कल्पना के आधार पर सोची गई घटनाओं का दर्पण है। कई बार यह दर्पण अंदर से बाहर की यात्रा करता है तो कभी बाहर से भीतर की। जिस प्रकार हर घटना में कुछ व्यक्ति और परिस्थितियां होती हैं उसी प्रकार कहानी में भी कुछ व्यक्ति, स्थान और परिस्थितियां होती हैं। कहानी लेखन में इन घटनाओं का चित्रण परिवेश और पात्रों के माध्यम से कुछ इस प्रकार किया जाता है कि वह पाठक की जिज्ञासा को अंत तक बनाए रखे। एक पाठक की मानसिकता को अपनी कलम के कौशल से अंत तक पकड़े रहना कहानीकार की सबसे बड़ी खूबी है और इस खूबी का विर्क जी ने बाखूबी निर्वाह किया है। यही कारण है कि उनकी कहानियां पुरस्कृत हुई हैं और पाठकों का उन्हें भरपूर प्यार मिला है। कहानियां चाहे स्त्री प्रधान हों या पुरुष प्रधान, किसी खास समस्या, विषय या मुद्दे को लेकर लिखी गई हों या सबसे ज्यादा दोहराए जाने वाले लेकिन जटिल विषय प्रेम पर लिखी गई हों या इन सबसे हटकर किसी सामाजिक या राजनैतिक विषय पर आधारित हों.......  इन सब का ताना-बाना  कुछ इस तरह से  बुना जाना चाहिए कि  वे कहानी को सार्थक  करते हुए उन समस्याओं का निदान भी जरूर बताएं। इसके साथ ही दृश्यात्मकथा कहानी की सबसे बड़ी खूबी है। पाठक को लगे कि सब कुछ उसकी आंखों के सामने ही घटित हो रहा है। और लेखक ने अपने इस प्रथम कहानी-संग्रह में यथासंभव इन खूबियों का निर्वहन भी किया है।
               संग्रह की प्रथम कहानी "खूंटे से बंधे लोग" सोशल मीडिया से जुड़ी कहानी है और आज के सच को बड़ी खूबसूरती के साथ सहज और सरल तरीके से दर्शाती है। कहानी में कुछ भी मनगढ़ंत प्रतीत नहीं होता। ऐसा लगता है कि यह कहानी वास्तव में ही जी गई हो और यही इस कहानी की खूबी है। कहानी की भाषा-शैली कथा के मर्म और उसके पात्रों के अनुसार है। कहानी का अंत सटीक एवं यथार्थवादी है। "दो पाटन के बीच" कहानी घर गृहस्थी में होने वाले झगड़ों से उठे तूफान को लेकर है जिसमें एक नई नवेली बहू अपनी ससुराल में इसलिए फिट नहीं बैठती कि वह अपने मायके में बहुत लाड-प्यार से पली है और घर-गृहस्थी के कार्य में निपुण नहीं है। अपने हक के प्रति सजग होने के कारण वह स्वभाव से भी सख्त है जिस वजह से न तो सास और ननद उससे सामंजस्य स्थापित कर पाती हैं और न ही वह स्वयं उनसे । कहानी जिस ढंग से आगे बढ़ती है उससे पाठक को बिल्कुल भी अंदेशा नहीं होता कि बहू आत्महत्या कर लेगी। वैसे भी अपने हकों के लिए सजग रहने वाली गर्भवती बहू एक जरा सी बात के लिए इतना बड़ा कदम नहीं उठा सकती। कहानी में भी कहीं ऐसा एहसास नहीं होता कि ससुराल में उस पर बहुत अत्याचार किया जा रहा हो। ऐसी कहानियां दृश्य की मांग करती हैं जिनका इसमें नितांत अभाव है । यदि कथा का अंत आत्महत्या की बजाय अन्य तरीके से किया जाता तो कहानी बेहतर बन सकती थी। 
               "च्युइंगम" कहानी बेहद दिलचस्प और यथार्थवादी है जो आज के माहौल पर आधारित है। पात्रों का चरित्र-चित्रण, सोच और व्यवहार कथा में पूर्ण रूपेण ढल गया है जिन्हें च्युइंगम को केंद्र बिंदु मानकर रचा गया है । कहानी का नायक राकेश जिसे च्युइंगम चबाने की लत है अपने कुलीग्स का इंतजार कर रहा है और उन्हें सामने देखते ही डस्टबिन में च्युइंगम उगल देता है। लेखक को चाहिए था कि उस समय चबाई जा रही च्युइंगम को वह कथा के अंतिम पैराग्राफ में डस्टबिन में डलवाता और उसी अनुसार रसहीन और लिजलिजी हो आई  च्युइंगम का वर्णन पात्र के माध्यम से करवाता तो बेहतर होता नाकि एक नई च्युइंगम का रैपर उतरवाता। मेरे विचार में कथा का अंतिम पैराग्राफ कुछ यूं लिखा जाना चाहिए था------- "उसे कोई निश्चित उत्तर नहीं मिला लेकिन उसे यूं लगा जैसे बात का सिरा उसके हाथ में आ गया हो। वह समझ गया कि उसका और मेहर का रिश्ता भी इस च्युइंगम की तरह ही है। मुंह में डालते ही मीठा और सुगंधित लेकिन धीरे-धीरे रसहीन, सारहीन, स्वादहीन और लिज़लिज़ा सा होता हुआ। सोचकर ही उसके मुंह का स्वाद कसैला सा होने लगा और एक झटके में उसने च्युइंगम को वहीं थूक दिया।"
                "हश्र" कहानी में लेखक ने दो सहेलियों के माध्यम से प्यार का विश्लेषण बहुत सुंदर तरीके से किया है लेकिन एक सीधे-सीधे रास्ते पर चलती कहानी के सामने अचानक एक दरवाजा आ जाता है और कहानी वहीं थम जाती है। जिस प्रकार कहानी को अंतिम रूप दिया गया है उससे यह कहानी न लगकर एक आख्यान प्रतीत होती है। 
"सुक्खा" कहानी ऐसी किसानों की दुर्दशा का सजीव चित्रण करती है जो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ब्याज पर पैसा उधार लेते हैं। कहानी का नायक कर्ज लेने की वजह से ही सुखदेव सिंह से सुखदेव बना और फिर सुक्खा बनकर रह गया। उसकी मौत पर गांव के लोगों का वार्तालाप बहुत ही संवेदनशील बन पड़ा है। बहुत ही छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर लेखक ने एक सुंदर रचना गढ़ी है। कुल मिलाकर कहानी यह संदेश देती है कि चादर के अनुसार ही व्यक्ति को अपने पांव पसारने चाहिएं। कहानी की जो मांग होती है उसके अनुसार कहानी में कोई पंच नहीं है। कहानी की भाषा-शैली और संवाद पठनीय हैं लेकिन बहुत सहजता से चलती कहानी पाठक के मन-मस्तिष्क में कहानी के मनोविज्ञान के अनुसार कोई विस्फोट नहीं करती। मेरे विचार में कहानी का अंत कुछ इस तरह से किया जाता तो बेहतर होता------" बैठ सोहन सिंह....  अब तू कहां चल पड़ा...?" कृपाल सिंह ने सोहन सिंह को उठते देखा तो पूछ बैठा। 
 "बस चाचा, आता हूं थोड़ी देर में। लड़के का फोन आया है कि बैंक से कोई अधिकारी घर आया हुआ है। लड़का विदेश जाना चाहता है तो.....देखता हूं पैसे का कुछ जुगाड़ हो जाए.....।"
चौपाल पर बैठे सभी लोगों की हैरानी से भरी निगाहें जाते हुए सोहन सिंह की पीठ से चिपक गईं। उन्हें लगा जैसे सुक्खा अभी मरा नहीं है। 
             "दलदल" राधेश्याम नामक एक ऐसे युवक की कहानी है जो कॉलेज का बदमाश था और अपने दबदबे से लड़कियों को प्रेम जाल में फंसा कर उनका यौन शोषण करता था। इन्हीं के चलते बलात्कार में उसे 7 वर्ष की सजा हुई। कहानी के अनुसार यह एक कड़वा सत्य है कि एक बार माथे पर कलंक लग जाए तो उसे मिटाना मुश्किल है। कहानी की रवानगी और भाषा-शैली उत्तम है। पात्रों के आपसी संवाद खूब बढ़िया हैं। 
अब आती है संग्रह की शीर्षक कहानी "कवच" जो कि एक कटाक्ष है महाभारत के पात्रों के माध्यम से। स्वप्न में कलयुग के पत्रकार द्वारा पूछे गए सवालों पर आधारित है यह कहानी जिसे बेहद मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किया गया है पाठकों के अंतर्मन में भी ढेर सारे सवाल-जवाब पैदा कर देती है। यूं तो यह कहानी है लेकिन व्यंग्य और एकांकी दोनों का आनंद पाठक इसमें महसूस कर सकते हैं। 
             "चर्चाएं" कहानी एक बहुत ही उम्दा कहानी है जिसमें समाज के मर्दों की मानसिकता को दर्शाया गया है कि जब भी उन्हें खाली समय मिलता है वे औरतों के चरित्र-चित्रण पर टिप्पणी करने से नहीं चूकते। "इजहार" कहानी प्यार के इज़हार को लेकर है कि प्यार को लफ़्ज़ों की दरकार है या इसे खामोश रहकर अपने व्यवहार से भी दर्शाया जा सकता है। "रोजगार" कहानी में लेखक ने कहानी के पात्रों के माध्यम से वकालत के पेशे में फैली बेईमानी और भ्रष्टाचार पर प्रहार किया है। "गर्लफ्रेंड जैसी कोई चीज" कहानी बहुत ही सार्थक है जिसे बेहद सधे हुए ढंग से सहजता से लिखा गया है।
            इसी प्रकार "कीमत", "बलिदान", "जिंदगी का अन्याय", "संबल", "बीच का रास्ता", "प्रदूषण", "फिसलन", "गुनहगार", "सुहागरात" आदि सभी कहानियां भी बहुत सुंदर बन पड़ी हैं। संग्रह की अंतिम कहानी है "मैं बेवफा ही सही" जो कि खतों के माध्यम से असफल प्रेमियों के दुख-दर्द की दास्तान को व्यक्त करती है। 
                श्री दिलबाग सिंह विर्क जी के कहानी संग्रह "कवच" में उपरोक्त 21 कहानियां हैं। सभी कहानियां सामाजिक सरोकारों पर आधारित हैं। विभिन्न विषयों पर लिखी गईं ये कहानियां बेहद सुंदर और पठनीय हैं। "बीच का रास्ता" कहानी में लेखक ने एक बहुत सुंदर बात कही है कि कोर्ट में सच नहीं जीतता दलीलें जीतती हैं। लफ़्ज़ों का सृजन भी एक ऐसी अदालत है जिसमें कभी सच जीत जाता है तो कभी दलीलें। और यह लेखक पर निर्भर करता है कि वह पात्र और परिवेश के अनुसार किसे जिताना चाहता है। 
             श्री दिलबाग सिंह विर्क जी की कलम से निकले ये तमाम शब्द बताते हैं कि उनकी लेखनी में कितनी जान है। एक बेहद खूबसूरत और पठनीय प्रथम कहानी-संग्रह पर मैं उन्हें अनेक शुभकामनाएं देती हूं और आशा करती हूं कि शीघ्र ही उनका दूसरा कहानी-संग्रह भी पाठकों के रू-ब-रू होगा। कहानी-संग्रह "कवच" का सर्वत्र स्वागत होगा इन्हीं मंगल कामनाओं के साथ। 

मनजीत शर्मा 'मीरा'

3 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

शुभकामनाएं।

'एकलव्य' ने कहा…

आदरणीय विर्क जी आपको आपके पुस्तक प्रकाशन हेतु अशेष शुभकानाएं ! सादर 'एकलव्य' 

Shonee Kapoor ने कहा…

Excellent article. Very interesting to read. I really love to read such a nice article. Thanks! keep rocking.
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