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बुधवार, मार्च 06, 2019

किताब प्रेमी की नज़र में "कवच"

कहानी-संग्रह - कवच
कहानीकार - दिलबागसिंह विर्क
समीक्षक - किताब प्रेमी
प्रकाशक - अंजुमन प्रकाशन, प्रयागराज
पृष्ठ - 152
कीमत - 150/- 
पुस्तक प्राप्ति स्थान - amazon
दिलबागसिंह विर्क द्वारा लिखी कवच नामक क़िताब में आपको 21 कहानियों का संग्रह मिलेगा। इस किताब में हमारी असल जिंदगी पर आधारित कहानियों का संकलन है। किताब पढ़ते वक़्त आपको यह महसूस होगा कि इन कहानियों को तो मैं रोज़ अपने आस-पास घटित होते हुए देखता हूँ।
              अगर बात कहानियों कि करें, तो हर कहानी का अपने आप में एक अपना महत्व है। इस किताब में एक कहानी है, जिसका नाम है "सुहागरात" जिसे पढ़ते वक़्त मुझे महान अफ़साने निगार सआदत हसन मंटो की याद आ गयी। जिस तरह मंटो जी ने अपने अफ़सानों के द्वारा वेश्याओं को देखने का हमारा नज़रिया बदला था, ठीक वैसा ही प्रयास दिलबागसिंह जी ने अपनी कहानी में किया है। लेखक ने हमे बताया है कि वेश्याए सिर्फ़ जिस्म से भरी बोरी नहीं है, जिसे जब चाहे हम नोच लें! उनमें भी जज़्बात, ऐहसास होते हैं, जिन्हें हमें समझना चाहिये।
                 हम "कवच" नामक कहानी को किताब कि जान कह सकते है। दिलबागसिंह जी ने इस कहानी द्वारा महाभारत के पन्नों को फिर उकेरा है, जिसका अंदाज काफी निराला है। इस कहानी में एक पत्रकार द्वारा युधिष्ठिर, धृष्टराष्ट्र, द्रौपदी, दुर्योधन आदि से सवाल पूछे जाते है, कि महाभारत के युद्ध का उत्तरदायी  कौन है ? और सभी पात्र अपने-अपने पक्ष रखते हैं ।
               "खूंटों से बंधे लोग", "हश्र", "इज़हार", "मैं बेवफ़ा ही सही" कहानी पढ़ते वक़्त आप भी भावुक हो जाएंगे, यह सोचकर कि प्रेम का रिश्ता ऐसा भी होता है क्या! "रोजगार" कहानी पढ़ते वक़्त आपको पता चलेगा, कि हमारे समाज में कितना भ्रष्टाचार भरा हुआ है। लोगों ने भ्रष्टाचार को ही अपना रोजगार बना लिया है। 
                 "दो पाटन के बीच में " कहानी पढ़ते वक़्त हर शादीशुदा मर्द को लगेगा, कि यह तो मेरे घर की कहानी है आख़िर लगे भी क्यों न; ये सास बहू का रिश्ता ही कुछ ऐसा होता है, जो आदमी को न घर का रहने देता है न घाट का। "बलिदान", "दलदल", "चर्चाएं", "संबल", "बीच का रास्ता" कहानी पढ़ते वक़्त आपको भी समाज में फैली बुराइयों का पता चलेगा।
             क़िताब कि सबसे अच्छी  बात जो मुझे लगी वह कुछ यूँ थी - 
"प्यार सौदेबाजी तो नही, कि जब तक तराजू के पलड़े बराबर न हो, तब तक न हो। प्यार इबादत हैं और इबादत करने वाले तो पत्थर को भी पूजते हैं, यह जानाते हुए भी, कि पत्थर होता है, भगवान नहीं।"

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