शोध-पुस्तक - सामाजिक चेतना के कवि उदयभानु हंस
लेखिका – सुनीता ‘आनन्द’
प्रकाशक – अर्पित प्रकाशक
पृष्ठ – 104
कीमत – 200 /-
सामन्यत: शोध कार्य किसी उपाधि की प्राप्ति के लिए ही किया जाता है, लेकिन सुनीता ‘आंनद’ का यह पसंदीदा विषय है, इसलिए वे बिना किसी उपाधि हेतु इस कार्य में रत हैं | ‘तेजिन्द्र के काव्य में सामाजिक चेतना’ उनका पहला शोध-ग्रन्थ था, जिसका प्रकाशन हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से हुआ और इसी से प्रेरित होकर आनन्द कला मंच एवं शोध संस्थान भिवानी ने आपसी सहयोग आधारित पुस्तक प्रकाशन योजना के अंतर्गत सुनीता ‘आनन्द’ के हरियाणा के प्रथम राज्य कवि उदयभानु हंस जी से संबंधित शोध कार्य को प्रकाशित करने का निर्णय किया | लेखिका ने इस शोध का विषय हंस जी के काव्य में सामजिक चेतना को चुना |
आलोच्य कृति चार अध्यायों में विभक्त है | पहला अध्याय ‘उदयभानु हंस : व्यक्तित्व एवं कृतित्व’, दूसरा अध्याय ‘सामाजिक चेतना : अर्थ, परिभाषा एवं स्वरूप’, तीसरा अध्याय ‘सामाजिक चेतना के विविध आयाम और उदयभानु हंस के काव्य में सामाजिक चेतना’ और चौथा अध्याय ‘उपसंहार’ है | इसके बाद परिशिष्ट को रखा गया है |
प्रथम अध्याय में वे उदयभानु हंस जी के जीवन और उनकी साहित्य साधना का अनुशीलन करती हैं | इस अध्याय को पाँच भागों में विभक्त किया गया है | प्रथम भाग व्यक्तित्व है | लेखिका ने व्यक्तित्व संबंधी सिर्फ आंकड़े देने की बजाए महत्त्वपूर्ण टिप्पणियाँ भी की हैं | व्यक्तित्व के बारे में वे लिखती हैं –
“व्यक्तित्व किसी भी व्यक्ति की सम्पूर्ण विशेषताओं की वह छवि अथवा प्रभाव है, जिसके कारण हम उसे ‘व्यक्ति’ की श्रेणी में रखते हैं |” ( पृ. – 17 )
इस परिभाषा की कसौटी पर हंस जी के व्यक्तित्व को कसा जाता है | ‘व्यक्तित्व’ के अंतर्गत उनके जन्म और वंश परम्परा, शिक्ष-दीक्षा, विवाह एवं परिवार, रुचियाँ-अभिरुचियाँ और कार्यक्षेत्र को रखा गया | दूसरे भाग ‘कृतित्व’ के अंतर्गत गद्य और पद्य रचनाओं का वर्णन है; क्योंकि इस शोध का क्षेत्र पद्य है अत: काव्य रचनाओं पर चर्चा की गई और प्रत्येक कृति के पद्यांश नमूने के रूप में दिए गए हैं, जबकि गद्य रचनाओं का नामोल्लेख है | तीसरे भाग में उल्लेखनीय मत-अभिमत हैं, जिसके अंतर्गत हंस जी की पुस्तकों पर महान कवियों और विद्वानों, जिनमें हजारीप्रसाद द्विवेदी, राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी, हरिवंशराय बच्चन, पद्मश्री नीरज, आचार्य क्षेमचन्द्र सुमन, राष्ट्र कवि दिनकर, डॉ. इन्द्रनाथ मैदान, पद्मश्री चिरंजीत, डॉ. प्रभाकर माचवे और रमानाथ अवस्थी हैं, की टिप्पणियों को लिया गया है | ये टिप्पणियाँ हंस जी के व्यक्तित्व के महत्त्व को दर्शाती हैं |इस भाग में आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट द्वारा लिए गए साक्षात्कार की बातें भी उद्धृत की गई हैं | चौथे भाग में उनकी उपलब्धियों और प्राप्त मान-सम्मान का विवरण हैं | उदयभानु हंस हरियाणा बनने पर 1966-67 में हरियाणा के प्रथम राज्य कवि घोषित किये गए और 2005-06 में उन्हें हरियाणा का सर्वोच्च सम्मान ‘सूर पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया | रुबाई विधा का जनक होने के नाते वे रुबाई सम्राट के रूप में लोकप्रिय हुए | पांचवे भाग में लेखिका ने निष्कर्ष प्रस्तुत किया है | वे लिखती हैं –
“देश विभाजन से पूर्व की परिस्थितियों और देश विभाजन के बाद की त्रासदी के बीच एक कड़ी के रूप में अन्तर्द्वन्द्व को झेलते हुए इन्होंने मानवीय सरोकारों के हित में लेखनी उठाकर राष्ट्रिय एकता व अखंडता के लिए समाज को जगाया है |” ( पृ. – 41 )
दूसरा अध्याय सिद्धांत पक्ष से संबंधित है | इस अध्याय को लेखिका ने चार भागों में विभक्त किया है | पहला भाग ‘सामजिक चेतना का अर्थ’ है | इस भाग में समाज और चेतना का अर्थ स्पष्ट किया गया है | लेखिका ने दोनों शब्दों के शाब्दिक अर्थ भी बताएं हैं और विद्वानों द्वारा निर्धारित अर्थ भी दिए हैं | लेखिका निष्कर्ष निकालते हुए लिखती है –
“उपरोक्त विवेचन के तहत ‘समाज’ और ‘चेतना’ की संकल्पनाओं को स्पष्ट करने के बाद हम निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि ‘सामाजिक चेतना’ से अभिप्राय: समाज की उस चेतना से है, जिसमें समाज की इकाई के रूप में मनुष्य समाज में रहते हुए समाज के विभिन्न पहलुओं से सम्पृक्त होकर सामाजिक का रूप धारण करता है |” ( पृ. – 51 )
दूसरे भाग में सामाजिक चेतना की परिभाषा पर विचार किया गया है और तीसरे भाग में सामाजिक चेतना का स्वरूप स्पष्ट किया गया है | चौथा भाग निष्कर्ष है | लेखिका लिखती है –
“वस्तुत: कहा जा सकता है कि इस तरह से एक साहित्यकार स्वयं सचेत होकर अपने साहित्य के माध्यम से सोए हुए समाज को जगाने का प्रयास करता है | सामाजिक चेतना में व्यक्ति अपने वर्ग भेद को भुलाकर सिर्फ और सिर्फ समाज की इकाई के रूप में व्यक्ति के हित को ध्यान को ध्यान में रखता है |....
अत: हम कह सकते हैं कि व्यक्ति और समाज के संबंधों के प्रति व्यक्ति की जागरूकता ही सामाजिक चेतना है |” ( पृ. – 56 )
तीसरे अध्याय में दो भाग हैं, पहले भाग में सामाजिक चेतना के विविध आयामों को स्पष्ट किया गया है, जबकि दूसरे भागों में इन्हीं आयामों के आधार पर हंस के काव्य-संसार को परखा गया है | सामाजिक चेतना के आयामों में राष्ट्रिय चेतना, राजनैतिक चेतना, आर्थिक चेतना, व्यक्तिनिष्ठ चेतना, सामयिक चेतना, सांस्कृतिक चेतना, दलित चेतना, नारी चेतना, गांधीवाद चेतना, नैतिक चेतना, धार्मिक चेतना, दार्शनिक चेतना और मानवीय चेतना को रखा गया है | इन आयामों पर हंस के काव्य को परखते हुए उनकी पंक्तियों को उद्धृत किया है | सामयिक चेतना के अंतर्गत निरक्षरता, मद्यपान, दहेज़, कन्या भ्रूण हत्या, पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में उनकी पंक्तियाँ दी गई हैं | इस अध्याय का निष्कर्ष निकालते हुए लेखिका लिखती है –
“एक तरह से उनके काव्य में उनका नहीं, बल्कि युग का स्वर मुखरित हुआ है |” ( पृ. – 93 )
इस कृति का अंतिम अध्याय ‘उपसंहार’ है, जिसमें समाज और सामाजिक प्राणी पर चर्चा करते हुए हंस के काव्य पर विचार किया गया है | लेखिका लिखती है –
“इनके काव्य में अभिव्यक्त सामाजिक चेतना को ध्यान में रखते हुए हम निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि साहित्य फलक के भानु और काव्य सरोवर के हंस कहलवाने वाले उदयभानु हंस मानवीय त्रासदी, पीड़ा और करुणा को गाने वाले एक सुरीले गायक भी हैं | इनके गीतों का पाठक अथवा श्रोता की चेतना पर ऐसा असर पड़ता है कि वह मंत्रमुग्ध हो इन्हें सुनता रह जाता है |” ( पृ. – 100 )
आखिर में परिशिष्ट है, जिसमें आधार ग्रन्थ सूची, सहायक ग्रन्थ सूची, संदर्भित पत्रिका और संदर्भित कोष का विवरण है | अध्यायों के आखिर में भी सन्दर्भ संकेत दिए गए हैं, जो इस पुस्तक को शुद्ध शोध ग्रन्थ की श्रेणी में रखता है | लेखिका का दृष्टिकोण वस्तुनिष्ठवादी है | भाषा विषयानुरूप है |
संक्षेप में, यह कृति शोध के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखती है और भावी शोधार्थियों को शोध किस तरह किया जाए, उसकी राह दिखाती है | इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए लेखिका बधाई की पात्र है |
दिलबागसिंह विर्क
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2 टिप्पणियां:
सुनीता ‘आनन्द’ द्वारा लिखित "सामाजिक चेतना के कवि उदयभानु हंस" की बहुत अच्छी समीक्षा प्रस्तुति
सुंदर समीक्षा
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