कहानी-संग्रह – ऐसी-वैसी औरत
कहानीकार – अंकिता जैन
प्रकाशक – हिन्द युग्म
कीमत – 115 /-
पृष्ठ – 120
पुरुष और औरत भले ही समाज में बराबरी का हक रखते हैं, मगर
कम ही औरतों को ये बराबरी मिल पाती है | औरतों को अनेक तरीकों से शोषित किया जाता
है | “ ऐसी-वैसी औरत ” लेखिका ‘ अंकिता जैन ’ की 10 कहानियों का ऐसा संग्रह है,
जिसमें दबी-शोषित औरतों के किस्से हैं |
‘
मालिन भौजी ’ एक विधवा मालिन की कहानी है, जो एक वकील से प्रेम करती है | ‘ छोड़ी
गई औरत ’ उस लड़की की कहानी है, जो भाइयों की इकलौती बहन है, लेकिन उसका पति उसे
छोड़ देता है | विवाह पूर्व प्रेम-प्रसंग भी इसके कथानक का हिस्सा है | ‘
प्लेटफ़ॉर्म नंबर दो ’ एक महिला गार्ड द्वारा वेश्यावृति का धंधा करवाने को लेकर है
| ‘ रूम नंबर फिफ्टी ’ लेस्बियन लड़की को लेकर है | ‘ धूल-माटी-सी जिंदगी ’ घर में
काम करने वाली औरत के दुःख की कहानी है | ‘ गुनहगार कौन ’ में नामर्द लड़के की
पत्नी के फिसलने की दास्तान है | ‘ सत्तरवें साल की उड़ान ’ काकू के बुढापे के नए
हौसले को दिखाती है | ‘ एक रात की बात ’ कहानी में मरणासन्न जुबी मरने से पूर्व
दोस्त से शारीरिक संबंध बनाने की चाह रखती है | ‘ उसकी वापसी का दिन ’ कहानी माँ
के किसी गैर मर्द के साथ भाग जाने से उसकी बेटियों पर पड़ने वाले प्रभाव को दिखाती
हैं | अंतिम कहानी ‘ भंवर ’ चचेरी मौसी के बेटे का शिकार बनी शिखा की कहानी है |
लेखिका
ने बहुत महत्त्वपूर्ण विषयों को चुना है, लेकिन कहानी की सफलता का मापदंड विषय न
होकर उनका प्रस्तुतिकरण होता है और इसे लेकर लेखिका कई जगह पर चूक गई है | कई जगह
कहानियाँ संस्मरण जान पड़ती हैं | लेखिका के भीतर कवयित्री मौजूद है और वह पात्रों
से कविता रचवाती है जो स्वाभाविक नहीं जान पड़ती | अनेक जगह पर विरोधाभास हैं, यथा
इरम का चरित्र ऐसा नहीं कि वह यह सोच सके –
“ सबके हिस्से बंटे हैं, किसी ने किसी के हिस्से में
घुसपैठ की तो वही हश्र होगा जो हिन्दुस्तान, पाकिस्तान के साथ करता है | या तो मार
दिए जाओगे या खदेड़कर हमेशा के लिए भगा दिए जाओगे |” ( पृ. – 39 )
रात के अँधेरे में अरीन मिस एल को कनखियों से देखती है, उसे
खुद पर विश्वास नहीं कि उसने क्या देखा मगर जब सोचती है तो इस तरह –
“ पर उस रात, उस रात मैं देर तक अपने बिस्तर पर लेटी यही
सोचती रही थी कि वो मिस एल कितनी सुंदर है, फुर्सत में बनाई हुई तस्वीर की तरह,
जिसमें पेंटर हर चीज को चुन-चुनकर बनाता है | बिना काजल के कजरारी दिखने वाली उसकी
आँखों के कोने उसकी भौंह तक लम्बे हैं और उसकी नाक की फिसलन सीधी उसके होंठों के
बीच में मिलती है, जैसे स्केल से लाइन खींची हो | उसके कान के आगे गालों पर बिछी
महीन बालों की परत उसकी सफेद खाल पर सुनहरे मखमल-सी है |” ( पृ. – 47)
सना को उसकी भाभी पहली बार देखती है और वह कहती है –
“ तुम शायद सना हो |” ( पृ. – 74 )
सना का यह सुनकर हैरान होना तो जायज है, लेकिन ऐसा एक भी
कारण इस कहानी में नहीं जिससे सना को उसकी भाभी पहचान ले |
कहानी में लेखक का प्रवेश
हो सकता है, लेखकिय टिप्पणियाँ महत्त्वपूर्ण होती हैं, लेकिन इन्हें भाषण की तरह
नहीं होना चाहिए | कुछ जगहों पर यह भाषण की तरह लगती हैं यथा –
“ मन को डराने वाले शब्दों ने लड़कियों की पूरी पीढ़ी को
या यूं कहें कि लड़की ज़ात को अब तक इतना झुकाकर रखा कि उनकी पीठ में डर का कूबड़
निकल आया है | अब वे चाहकर भी आवाज उठाने से या नापसंदगी के खिलाफ सीधी होकर डटकर
खड़ी होने से इतना डरती हैं कि कहीं पीठ चटख न जाए |” ( पृ. – 118 )
लेकिन
इन कुछ कमियों का अर्थ यह नहीं कि इस कहानी में कुछ भी अच्छा नहीं | कहानियों के
विषय बेहद महत्त्वपूर्ण हैं | मालिन भौजी हो, मीरा हो या काकू, ऐसे पात्र आम मिलते
हैं | इरम जैसी लड़कियों को वेश्यावृति में धकेला जाना भी समाज का हिस्सा है |
अपनों का शिकार बनती शिखा जैसी लड़कियां भी आम हैं | रज्जो की गलती उसका प्यार करना
भी है और पति द्वारा छोड़ा जाना भी | प्रेम करने वाली लड़कियों का विवाह अक्सर घर
वाले द्वारा जल्दबाजी में अयोग्य वर के साथ कर दिया जाता है, रज्जो के छोड़े जाने
के बाद की स्थिति समाज के सच को दिखाती है | लेस्बियन लड़कियों का होना आज के युग
में अजूबा नहीं, लेखिका ने अरीन के माध्यम से इस समस्या को उठाया है | लेखिका माँ
के अलग रूप को दिखाती है |
“ माँ पर लिखी कविताएँ, माँ पर लिखे गीत या कहानियां
सुनती-पढ़ती हूँ, तो सोचती हूँ कि माँ के इस रूप का जिक्र कहीं क्यों नहीं होता,
शायद इस रूप की कल्पना कोई करता ही नहीं होगा |” ( पृ. – 100)
बच्चे पैदा करने से ही कोई माँ माँ नहीं हो जाती, लेखिका का
यह दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है | हालांकि पीहू की माँ में ममत्व का गुण ये कहते हुए
दिखाया गया है –
“ स्कूल से आकर बस्ता फैंककर जिनके पेट पर फुर्र-फुर्र
करने के लिए मेरी और पीहू की लड़ाई होती थी | हमारी फरमाइशों पर जो हमें पसंद-पसंद
के खाने पकाकर खिलाती थीं | जिनसे मैंने अपनी क्लास के सबसे हॉट लड़के के बारे में
मन की बातें बाँटी थी |’ ( पृ. – 103 )
नामर्द से शादी हो जाने पर किसी लड़की का फिसल जाना भी
स्वाभाविक है और मस्तिष्क से स्वस्थ जुबी का शारीरिक सुख चाहना भी अस्वाभाविक नहीं
कहा जा सकता |
कहानियों के माध्यम से लेखिका अनेक तथ्यों को उद्घाटित करती है | वह हालातों
का चित्रण करती है और पात्रों को उभारती है | थानेदार की स्थिति के बारे में वह
लिखती है –
“ किसी थानेदार को इस तरह मशरूफ पहली बार देख रहा हूँ |
आज से पहले तो टीवी-अखबारों में ही देखा था, वो भी खुली शर्ट में आधी बनियान
दिखाते हुए, कान खुजाते हुए या परेशान लोगों को बेवजह फटकारते हुए |”( पृ. – 14
)
यहाँ लेखिका अखबार की बजाए फिल्म शब्द का प्रयोग करती तो
ज्यादा स्वाभाविक होता |
वह औरत की तकलीफ का ब्यान करती है –
“ औरतों की जिंदगी में उन्हें तकलीफ तो बहुत चीजों से
होती है, लेकिन पति और बच्चों का मोह हमसे न जाने कितनी तकलीफों का कडवा घूँट भी
हंसकर पिलवा देता है |” ( पृ. – 83-84 )
भाग्य को कोसती है -
“ जिसकी किस्मत में मोहब्बत और इज्जत से जिन्दगी जीना न
लिखा हो, उसे ऐसे ही गुजारा करना पड़ता है |” ( पृ. – 68 )
प्यार का कडवा सच ब्यान करती है
“ उस रात से पहले तक मुझे लगता था कि एहसासात के मामले
में लड़के ही मजीद सख्त मिजाज होते हैं, लेकिन उस दिन मुझे एहसास हुआ कि प्यार में
जो दूसरी तरफ होता है, वो सख्त ही होता है, फिर चाहे वो लड़का-लड़की के बीच का प्यार
हो या दो लड़कियों के |”( पृ. – 50 )
वातावरण का चित्रण करती है -
“ दिन डूबने लगा है, आधा आसमान लाल-पीले रंग की गहराई से
भरा है, बाकी आधा काला होकर अपनी जड़ें फैलाने की तैयारी में है | नीचे सड़क पर दिन
भर की तेज गर्मी के बाद शाम की ठंडक में बाजार करने आते लोगों की भीड़ उमड़ रही है |
ऊपर आसमान अपने घर लौटते पक्षियों से भरा है |”( पृ. – 90 )
पात्रों का चित्रण करती है -
“ उम्र 45-50 के बीच, हुलिया गोरी, रोबदार, लंबी-सी
दिखने वाली...” ( पृ. – 15 )
“ तब उसकी उम्र होगी कुछ ग्यारह-बारह बरस, लेकिन कद-काठी
आठ-नौ बरस जितनी ही थी | महीनों से न धोए उसके सुनहरे बाल चिपककर लटों में तब्दील
हो गए थे |” ( पृ. – 34 )
“ सिर्फ साढ़े तीन फुट की थी | पांच मीटर की साड़ी उस पर
पहनी हुई-सी नहीं, बल्कि लपेटी हुई-सी दिखती थी मुझे | उसके कुम्हलाए-से शरीर पर
साड़ी का बोझ कम था, जो उसने पैबंद की तरह गमछे के सहारे पीठ पर अपनी चार महीने की
बेटी को भी बाँध रखा था |” ( पृ. – 54 )
कहानियों
की भाषा सहज है | उर्दू शब्दावली का प्रयोग है | रोमन लिपि का भी प्रयोग है | लोक
प्रचलित बातों से भाषा सजीव हो उठी है, यथा -
“ मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है |” ( पृ. – 85
)
लेकिन कहीं-कहीं कुछ अधूरापन भी दिखता है –
“ मुझे गुस्सा तो आया था, लेकिन अटकी भी मेरी ही थी |”(
पृ. – 81 )
संभवत: यह प्रूफ की गलती हो, लेकिन भाषा का अलग-सा प्रयोग
अन्यत्र भी है, यथा - बाजार करना |
“ नीचे सड़क पर दिन भर की तेज गर्मी के बाद शाम की ठंडक
में बाजार करने आते लोगों की भीड़ उमड़ रही है | ऊपर आसमान अपने घर लौटते पक्षियों
से भरा है |”( पृ. – 90 )
भाषा पात्रानुकूल है –
“ अब इस उम्र में कहाँ मैं ये टुनटुना चलाना सीखूँगी !”
( पृ. – 83 )
लेखिका
ने वर्णनात्मक शैली को ही अधिक अपनाया है | संवाद कम हैं | कहानियाँ कुछ कमियों के
बावजूद पठनीय हैं |
दिलबागसिंह विर्क
2 टिप्पणियां:
sundar samiksha sarthak post
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