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बुधवार, सितंबर 20, 2017

भक्ति और नैतिक मूल्यों की बात करता कविता-संग्रह

कविता-संग्रह – अर्चना के उजाले
कवि – ज्ञानप्रकाश ‘ पीयूष ’
प्रकाशक – सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल
पृष्ठ – 160
कीमत – 400 /- ( सजिल्द )
जीवन कैसा है, कैसा होना चाहिए और आदर्श जीवन के लिए कैसी जीवन शैली अपनाई जाए, इसका चिन्तन बुद्धिजीवी वर्ग करता ही है | इसी प्रकार का चिन्तन झलकता है ‘ ज्ञानप्रकाश पीयूष ’ जी के प्रथम कविता-संग्रह “ अर्चना के उजाले ” में | उन्होंने इस संग्रह में जीवन के विभिन्न पक्षों को छूने के साथ-साथ वीर जवानों को श्रद्धांजलि भी अर्पित की है, भारत रत्न अब्दुल कलाम, शहीद हनुमंथप्पा और कर्त्तव्यनिष्ठ दानामांझी के चरित्र को दिखाती कविताएँ भी लिखी हैं | वे राष्ट्रीय युवा दिवस को याद करते हुए विवेकानन्द को याद करते हैं तो कलम के सिपाही प्रेमचन्द को भी शब्द-गुच्छ भेंट करते हैं, लेकिन उनकी कविताओं का मुख्य स्वर भक्ति भावना और नैतिक मूल्यों का समर्थन ही है |

            कवि की दृष्टि में नाम का महत्व है और जीव परमात्मा का ही रूप है और उसका ध्येय परोपकारी जीवन है | अहम ब्रह्मास्मि के सिद्धांत अनुसार वे लिखते हैं –
है यही मेरी सच्चाई / मैं स्वयं प्रकाश( पृ. – 41 )
वे व्यक्त में अव्यक्त को देखते हैं, उनकी नजर में भीतर अखंड और अविभाजक अव्यय पुरुष है | यह जीवन परमात्मा से मिला एक तोहफा है, एक स्वर्णिम मौका है | वे सर्वत्र परमात्मा की सत्ता देखते हैं –
बिना उसके / हिलता नहीं पत्ता( पृ. – 72 )
लेकिन आत्मा का अहम तेरे-मेरे के द्वैत को प्रश्रय देता है, वे लिखते हैं –
अहंकार के शिखर पर / जो भी चढ़ेगा /
आँखें विवेक की / खो देगा |( पृ. – 77 )
नाम सिमरन का महत्त्व बखान करते हुए वह लिखते हैं –
नाम के / उजाले ने / कर दिया / मुझे निहाल /
स्वार्थ के / तिमिर से / दिया बाहर निकाल( पृ. – 32 )
वे नई पीढ़ी के लिए अर्चना के उजाले फैलाना चाहते हैं –
फैलाएं अर्चना के उजाले / सर्वत्र, नई पीढ़ी के नाम /
रचें, नया संगीत / जो भर सके बुझे प्राणों में / 
स्पंदन /घोल सके मधुर मुस्कान / 
आने वाले समय में |” ( पृ. – 37-38 )
वे बोध को शाश्वत और सत्य को सनातन मानते हैं जबकि समय परिवर्तनशील है |
       भक्ति उनकी कविताओं का प्रमुख विषय है तो वे इसके उजले पक्ष को ही लेकर चलते हैं | वे आडम्बरों के विरोधी हैं –
आओ ! त्यागें हम / कुंभपर्व के व्यामोह को /
गृह त्यागी दंभी साधुओं के / कुटिल जाल को काटें /
रचे अन्तस् का / महाकुंभ पर्व( पृ. – 110 )
            भक्ति भावना के अतिरिक्त वे आज के मानव को बड़े नजदीक से देख पाने में सफल हुए हैं | वे व्यक्ति की सोच में खोट को देखते हुए लिखते हैं –
भोग है / वियोग है / लूट है / खसोट है |
स्वार्थ हेतु व्यक्ति का / होता दुरूपयोग है |( पृ. – 53 )
स्वार्थ की इसी आँधी ने देश के विकास का मार्ग अवरुद्ध कर रखा है –
खुला द्वार / पतन का |
विकास कैसे हो / वतन का ?( पृ. – 61 )
वे रिश्तों के सच से भी परिचित हैं –
फिर रिश्ते आज के / रहे कहाँ रिश्ते से ( पृ. – 64 )
 बदलते समय के साथ मूल्यों के पतन पर वे लिखते हैं –
बदल रहा है समय / हर पल, हर क्षण /
मानवीय मूल्यों का / हो रहा है क्षरण( पृ. – 68 )
आधुनिक मनुष्य की समझ पर वे लिखते हैं –
मंगल-शनि को पहचान गया है /
अपना मंगल भूल गया पर( पृ. – 71 )
वे पेड़ पर पत्थर फेंकने के प्रसंग के माध्यम से आदमी की स्वार्थपरकता को दिखाते हैं| वे अविश्वास के महावृक्ष को उगने से रोकना चाहते हैं क्योंकि वह विषाक्त फल देगा | लेकिन वे आशावादी हैं –
कहाँ है हिम्मत इतनी / अँधेरे में /
करे सामना / प्रज्वलित दीप का ( पृ. – 39 )
वे इंसान को इंसान मानते हैं, न वह देवता है और न ही दानव | वे सबको जीवन की ऊष्मा से मिलने देने का अवसर देना मानव का धर्म मानते हैं | वे इस अटल विश्वास करते हैं कि शहादत कभी व्यर्थ नहीं जाती | भारत देश के बारे में वे लिखते हैं –
शान्ति प्रिय है देश हमारा / 
शान्ति हमें अति प्यारी है( पृ. – 127 )
            वे नैतिक मूल्यों के प्रबल समर्थक हैं | उनकी नजर में वही इतिहास के पन्नों में अमर रहते हैं जो जन मंगल हित के लिए प्राण भी विसर्जित कर गए हैं | जो सच्चा जीवन जीता है, जिसके हृदय में परोपकार का फूल खिला रहता है, उसे पाप की कलुषित छाया छू नहीं सकती | वे दलित और शोषित के पक्ष में खड़े होने का समर्थन करते हैं | उनका मानना है कि धर्म निष्ठा का संबल भ्रमित बुद्धि को भी पथ पर ला सकता है | वे घर को परिभाषित करते हैं और बच्चों को उन्मुक्त खेलने देना चाहते हैं |
            उनकी कविताओं में प्रकृति का चित्रण अनेक रूपों में है | प्रकृति के माध्यम से वे उनको जो मिला उससे संतोष व्यक्त करते हुए लिखते हैं –
स्तुत्य है मुट्ठी भर धूप / 
जो आई है मेरे हिस्से में ( पृ. – 97 )
प्रकृति उन्हें प्ररेणा देती है | वे लिखते हैं –
देख कर तुम्हें अमलतास / 
जगता है आत्मविश्वास( पृ. – 95 )
उनकी नजर में प्राकृतिक सौन्दर्य सार्वजनीन है | फूलों पर उड़ती मोहक तितली अभिसारिका सी दिखती है | प्रकृति के सुंदर रूप का चित्रण देखते ही बनता है –
माघ की धूप सलौनी / बिछी है मक्खन सी / 
आंगन में ( पृ. – 99 )
प्रकृति का मानवीकरण भी मिलता है –
मार दिया / फूलों का तीर / 
शरारती बसंत ने ” ( पृ. – 43 )
            मुक्त छंद की इन कविताओं में तत्सम शब्दावली की प्रधानता है, जिससे भाषा कहीं-कहीं कठिन अवश्य हुई है, लेकिन सरस और भावानुकूल है | कवि ने कही-कहीं तुकांत का प्रयोग भी किया है | अनुप्रास, उपमा, रूपक, मानवीकरण अलंकार का भरपूर प्रयोग मिलता है | उल्लेख अलंकार का एक उदाहरण देखिए –
समुद्र सी गहराई / हिमालय सी ऊँचाई / 
वसंत सी तरुणाई( पृ. – 41 )
वर्णनात्मक और विश्लेषणात्मक शैली कि प्रधानता है, अनेक जगहों पर संबोधन शैली को भी अपनाया गया | भाव पक्ष की तरह शिल्प पक्ष, दोनों दृष्टिकोण से सफल कविता-संग्रह है और साहित्य जगत में पीयूष जी की उपस्थिति दर्ज करवाने में सफल हुआ है |

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दिलबागसिंह विर्क

1 टिप्पणी:

Krishan Sharma ने कहा…

पुस्तक अर्चना के उजाले की समीक्षा उच्च कोटि की हैं साधुवाद!

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