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सोमवार, नवंबर 28, 2016

आशा और हौसले से ओत-प्रोत कविताओं का संग्रह

कविता-संग्रह - हौसलों की उड़ान 
कवयित्री - नीतू सिंह राय 
प्रकाशक - हिंदी साहित्य सदन 
कीमत - 250 / -
पृष्ठ - 128 ( पेपरबैक )
सुख-दुःख जीवन-रूपी सिक्के के दो पहलू हैं और हर व्यक्ति अपने जीवन में इनसे रू-ब-रू होता है | कब सुख आते हैं, कब दुःख या कहें की ये आपस में गड़मड़ रहते हैं | सुख-दुःख के प्रति हर व्यक्ति का अपना नजरिया है | यही नजरिया जीवन के प्रति दृष्टिकोण का निर्धारण करता है | कुछ लोग आशा से भरे रहते हैं, तो कुछ लोग निराशा में डूबे रहते हैं | कुछ हौसलों की उड़ान भरते हैं, तो कुछ पस्त होकर दिन काटते हैं | ' नीतू सिंह राय ' का कविता-संग्रह ' हौसलों की उड़ान ' आशा और हौसले से ओत-प्रोत कविताओं का संग्रह है | कवयित्री अनेक माध्यमों से अपने बुलंद हौसलों का इज़हार करती है | 51 कविताओं से सजे इस संग्रह का शीर्षक भी इसी का द्योतक है | 

                   कवयित्री पुस्तक के शीर्षक वाली कविता में नारी के उड़ान भरने का उद्घोष करती है | उसका मानना है कि यह सृष्टि उसके साहस को देखकर उसे वह सब देने को तैयार है, जो शक्ति उसमें छुपी है | वह आह्वान करती है - 
तू चली चल / यूं ही /
जीतने / ये जमीं / ये आसमां
वह स्वयं का उदाहरण भी प्रस्तुत करती है -
मंजिल भी खुद बनाई / रास्तों को अपने माफिक सजाया / 
छोड़ा हर एक उस शख्स को पीछे / जिसने कदम-कदम पर थे / रोड़े बिछाए |
वह खुद के अदम्य साहस का नमूना भी प्रस्तुत करती है - 
सच्चाई से समझौता / पर ना कर पाई कभी /
अपनी ही शर्तों पर मैंने / अपना जीवन बिताया | 
वह जिंदगी की राहों पर चलने वालों को संबोधित करते हुए कहती है, जहाँ तू लड़खड़ाया वो तेरी मंजिल की पहली राह थी, जब चिल्लाया वो कामयाबी का आगाज़ था | वह दुनिया को सागर और लहरों को हम सब का प्रतीक मानते हुए धैर्य को अपनाने का संदेश देती है - 
जिसमें धैर्य हो लहरों जैसा / वो ही आगे जाता है /
दुनिया में रहकर कुछ कर दिखलाता है | 
                   आशा के साथ निराशा का चोली-दामन का साथ है, हालांकि कवयित्री आशावादी है, लेकिन कभी-कभार निराश होना स्वाभाविक है | दरअसल जो कभी निराश नहीं होता, उसका आशावाद बाहर से आरोपित-सा लगता है | कवयित्री में निराशा की हल्की झलक बताती है कि उसका आशावाद निराशा को हराकर पैदा हुआ है | कवयित्री की निराशा मंजिल-दर-मंजिल आगे बढ़ते जाने से डर के रूप में पैदा होती है -
नई मंजिल का पता भी / वही पुराना लगता है /
हर बार एक नई उलझन / मंजिल को छूने की तड़पन /
हर बार मंजिल के पास पहुंच / एक डर अनजाना लगता है | 
                  कवयित्री के आगे निराशा ज्यादा देर ठहरती नहीं क्योंकि वह निराशा के कारणों को जानती है - 
आया ही नहीं जीना / जिसको जिंदगी में कभी /
जीवन में वो शख्स ही / निराश होता है | 
                           कवयित्री अपनी पहली कविता में ही गीता के उपदेश का ब्यान करते हुए कहती है - 
कर्म करो निरंतर / बस कर्म ही तुम्हारे हाथ है |
वह बेपरवाह जीने का समर्थन करती है, उसकी नजर में खुद का मूल्यांकन लोगों के मूल्यांकन से अधिक महत्त्वपूर्ण है - 
आखिर तुझको / खुद से भी तो आँख मिलानी है /
लोगों का क्या / उनकी बातें तो बस / आनी और जानी है | 
पेड़ और पर्वत के माध्यम से वह मानवता का संदेश देती है - 
पर तुम नहीं समझोगे इस अहसास को /
क्योंकि तुम पर्वत हो पेड़ नहीं / पेड़ के पास दिल होता है /
कंकड़-पत्थर का ढेर नहीं | 
                गंगा को परोपकारी मानते हुए वह सोचती है काश ! हर आदमी दूसरों के लिए जीता | वह खुद इसे अपनाते हुए कहती है - 
दिखाया हर एक इंसान को / सही रास्ता /
जो कभी कहीं भूले से / मेरे रास्ते में आया |
                       वह ईर्ष्या, अपमान, नफरत, चाहत जैसे मनोभावों पर अपनी लेखनी चलाती है | वह जहां दंभी इंसानों से दूरी रखने की बात करती है, वहीं  खुद पर संयम को सबसे बड़ी ताकत बताती है | उसकी नजरों में सम्मानित व्यक्ति की परिभाषा ये है - 
कभी कोई सम्मानित व्यक्ति / तिरस्कार  नहीं करता /
जिसका कोई मान नहीं / वाही अपमान है करता |
ईर्ष्यालु सोच पर उसका लिखना है - 
कभी की नहीं कोशिश / अपनी गति बढाने की / 
बस दूसरों का वेग / घटाने में लगा रहा | 
ईर्ष्यालु लोगों के जीवन के बारे में वह कहती है - 
जीवन के चार दिन / कुछ ख़ुशी में गए, कुछ गम में /
लेकिन क्या कहें उनको / जिन्होंने बिताया / 
सारा जीवन ही जलन में |
वह नफरत से दूरी को जरूरी मानती है क्योंकि नफरत आग लगाती है | वह नफरत पर उसी प्रकार रहम न करने की सलाह देती है जैसे रोग बढ़ने के डर से अंगों को काटना जरूरी होता है | हालांकि उसके पास नफरत नहीं प्यार है - 
प्यार भरा है हर कोने में / नफरत को रखू कहाँ ? 
लेकिन उसे ये भी पता है कि नफरत को अगर कहीं रख दिया तो यह दरारों से घुस जाएगी | नफरत के विपरीत वह चाहत की उड़ान ऊँची भरने को कहती है और उसका मानना है कि अगर लगन सच्ची हो तो चाहत पूरी जरूर होती है | 
                     वह कल्पना की उड़ान भरते हुए परी बनना चाहती है लेकिन इसके पीछे उसका उद्देश्य भी समाज हित है | वह दूसरों के लिए ही मुस्कराना चाहती है, वह कहती है - 
आज दूसरों की ख़ुशी के लिए /
अपने लबों को / मुस्कराने दो | 
                         नीतू सिंह राय की कलम सामाजिक, राजनैतिक विषयों पर भी बखूबी चली है | वर्तमान हालातों का वर्णन करते हुए वह लिखती है -
हवाएं बड़ी तेज हैं / वक्त की मार की /
कीमत नहीं है अब / आपसी प्यार की /
लोग भूल गए हैं अब / भाई-चारा / 
कोई नहीं है अब / किसी को प्यारा |
वह हो रही तिजारत पर दुखी है | लोग एक-दूसरे का ईमान खरीद कर खुश हैं | इंसान सिर्फ सामान बनकर रह गया है | वह लिंग, जाति, धर्म, अर्थ को लेकर बच्चों से होते भेदभाव को ब्यान करती है - 
बेटी हो / तुम मत खेलो तीर और तलवार से /
हो तुम बेटा / खेल सकते हो बंदूक और कृपान से /
तो तुम गरीब / मत देखो सपने इतने बड़े-बड़े /
हो तुम अमीर / देख सकते हो कोई भी ख़्वाब खड़े-खड़े |
वह नारी से सवाल करती है कि वह अपनी पहचान की मोहताज क्यों है ? और उसे संदेश भी देती है -
तू अपनी जिंदगी को एक सही चाह दे /
अपने वजूद को एक नई राह दे |
वह राजनीति की चक्की में पिस रहे सामान्य जन की पीड़ा को महसूस करती है - 
पर बाँटनेवाला चाहे कोई भी हो /
हर बार चुनावी मुद्दों ने / इंसान ही बांटा | 
चुनावों के दौरान कट्टर विरोधी इस देश में चुनावों के बाद मिलकर सरकार बना लेते हैं तो कवयित्री कह उठती है - 
गर सरकार नहीं बन पाई किसी की / तो दोनों मिलकर सरकार चलाएंगे / 
ढाई साल आप सत्ता का स्वाद चखिएगा / ढाई साल हम चखकर जाएंगे | 
राजनीति में वंशवाद पर वह प्रश्न उठाती है और इस लोकतंत्र को राजतन्त्र का ही रूप मानती है | हालांकि कवयित्री कुछ सुखद भ्रमों में भी जी रही है | उसका भ्रम देखिए - 
जागरूक है जनता / मतदान का महत्त्व समझती है | 
आगे देखिए - 
आज का मतदाता जानता है / कि वह अब / 
और नहीं बंट पाएगा / अबकी बार जो बंटा तो /
उसका वजूद ही खो जाएगा |
काश ! आज का मतदाता इतना जागरूक हो पाता | काश कवयित्री का भ्रम सच बन जाए | लेकिन ऐसा नहीं कि यह असंभव है या कवयित्री कपोल-कल्पना में मग्न है | वह हकीकत को जानती है | नारी होकर भी देवियों पर व्यंग्य करने से भी वह नहीं चूकती - 
देवी होके अपनाया तुच्छ इंसानों का काम /
धरती पर जो गई थीं तो कुछ अच्छा सीख के आतीं /
कम से कम ' जिसकी लाठी उसकी भैंस ' / की युक्ति तो नहीं अपनाती |
                  वह जानती है कि सिर्फ शोर कोई हल नहीं | भ्रष्टाचार से लड़ना होगा | वह आह्वान करती है - 
खाओ कसम / कुछ करने की / आगे बढ़ो / 
ले फावड़ा, टोकरी और कुदाल / 
शुरू करो भ्रष्टाचार का सफाई अभियान |
कवयित्री को बचपन छोड़कर बड़े होने का दुःख है | कवि होने की पीड़ा उसे सालती है और वह कह उठती है - 
या खुदा ! / रहने दे मुझे 
ऐसे ही आम बनकर 
लेकिन ' कलम बोलने लगी ' उसकी बेहद महत्त्वपूर्ण कविता है जिसमें वह उन सामाजिक वर्जनाओं का जिक्र करती है जिसके अनुसार बेटियां कम बोला करती हैं, लेकिन ये वर्जनाएं टूटती हैं और भीतर कवि जन्म लेता है -
सच न बोल पाने के गम से / जब मेरी आत्मा मरने लगी /
तब एक दिन चुपचाप मेरी कलम बोलने लगी |
              कवयित्री का जीवन दर्शन भी उसकी कविताओं में से झलकता है | वह वर्तमान को जीने की पक्षधर है | भविष्य के बारे में वह लिखती है -
कल की फिकर में तू 
क्यों अपना आज स्वाहा करता है | 
आज को जीने पर बल देते हुए वह लिखती है - 
आज में जियो / यह आज तुम्हारा है /
कल के लिए क्यों कुढ़ते हो / कल ने भला आज तक /
किसको दिया सहारा है ?
दरअसल अतीत पछतावे के सिवा और भविष्य चिंता के सिवा और कुछ नहीं | महत्त्वपूर्ण वर्तमान ही होता है और इसी के समर्थन में वह कहती है - 
बस आज है, आज पर एतबार कर /
वह हर क्षण को जीने में विश्वास रखती है - 
जिंदगी का हर पल / कुछ खास होता है 
हर लम्हा एक नया / अहसास होता है |
लेकिन वर्तमान में जीने का अर्थ उच्छ्रिंखलता नहीं, अपितु वह वर्तमान में कैसा जीवन जीना चाहिए, इस बारे में अपना मत भी प्रस्तुत करती है - 
कर कर्म जरा, रख धीर सदा / 
स्वभाव की चंचलता को / जरा-सी लगाम लगा |
                 कवयित्री का यह पहला कविता संग्रह है | कविताएँ मुक्त छंद में हैं, लेकिन तुकांत का प्रयोग सर्वत्र है | कहीं-कहीं पर यह अवगुण की तरह है | भविष्य में, तुकांत या मुक्त छंद में किसी एक का चुनाव उनकी कविता को और निखारेगा | कुछ कविताएँ कथा जैसा विस्तार लिए हुए हैं | संवादात्मक और वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है | आग्रह का भी समावेश है - 
एक बार, सिर्फ एक बार तुम / प्यार की खुशबू फैलाकर के देखो /
एक बार, सिर्फ एक बार तुम / गंगा दशहरा मनाकर के देखो |
मुहावरों का प्रयोग है | प्रश्न अलंकार की प्रचुरता है | मानवीकरण है, पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार के अनेक उदाहरण हैं | अनन्वयोपमा अलंकार का उदाहरण देखिए - 
हर बच्चा बस एक बच्चा होता है 
प्रकृति का  चित्रण है, प्रतीक हैं, बिम्ब हैं -
हर-हर गंगे, बम-बम भले / शंख के स्वर पर शिव नगरी डोले /
चारों तरफ सब / जब मिलकर बोले / 
अल्ला हू अकबर की  धुन प्यारी / मिल जाती है हर एक बाणी /
यह - / मन्दिर मस्जिद शिवालों का शहर है | 
व्याकरणिक शब्दावली का खूबसूरत प्रयोग देखिए - 
इंसानियत किसको हैं कहते ? / 
यह क्या कोई संज्ञा है / सर्वनाम है / या क्रिया है /  
                           भाव पक्ष और शिल्प पक्ष से उम्मीदें जगाता यह संग्रह प्रकाशक की लापरवाही से निराश करता है | जो प्रति मेरे हाथ लगी उसमें पृष्ठ 17 से 32 तक गायब हैं और इस जगह की आठ कविताएँ लुप्त हैं और इनकी जगह सात कविताओं की पुनरावृति है | इसमें कवयित्री का कोई दोष नहीं लेकिन बाइंडिंग के समय हुई चूक के लिए कवयित्री को भुगतना पड़ेगा | प्रकाशक को अपने दायित्व का निर्वहन ढंग से करना ही चाहिए | यह गलती सभी प्रतियों में नहीं हुई, दुर्भाग्यवश जो मेरे हाथ लगी उसमें यह है तो निस्संदेह कुछ और प्रतियों में भी होगी | अगर इस दोष को, जिस पर रचनाकार का कोई नियन्त्रण नहीं, को छोड़ दें तो कविता संग्रह काफी उम्मीद जगाता है | सुधार की गुंजाइश तो सदा रहती ही है लेकिन आशा है नीतू सिंह राय अपने हौसलों की उड़ान से साहित्याकाश को छू पाएगी |
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दिलबागसिंह विर्क 
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3 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर विवेचना ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा आज शनिवार (03-12-2016) के चर्चा मंच

"करने मलाल निकले" (चर्चा अंक-2545)

पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar ने कहा…

सुन्दर समीक्षा

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