शरतचंद्र का उपन्यास बिराज बहू विराज के दुखों की गाथा है । पति के कोई काम न करने का दुःख उठाती है विराज । ननद को दिए गए दहेज़ और अकाल के कारण आई गरीबी का दुःख उठाती है विराज । सतीत्व में सावित्री से प्रतिस्पर्द्धा करने को उत्सुक विराज सतीत्व से लड़खड़ा जरूर जाती है लेकिन पतित होने से पूर्व ही वह खुद को संभाल लेती है और अंत में पति के पास रहते हुए वैसी ही मृत्यु को प्राप्त होती है जैसी कि विराज के अनुसार एक सती को मिलनी चाहिए ।
BE PROUD TO BE AN INDIAN
मंगलवार, जून 12, 2012
बुधवार, मई 30, 2012
शनिवार, अप्रैल 07, 2012
डॉ. रूप देवगुण का समीक्षात्मक ग्रंथ- हरियाणी के इक्कीस काव्य-संग्रह
कविता , ग़ज़ल , कहानी , लघुकथा , समीक्षा और संपादन संबंधी 30 पुस्तकों के रचयिता हरियाणा के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रूप देवगुण जी , सेवानिवृत स्नातकोतर विभागाध्यक्ष ( हिंदी ) , राजकीय नैशनल महाविद्यालय सिरसा , ने हरियाणा के कवियों द्वारा रचित 21 काव्यों की समीक्षा अपने समीक्षा ग्रन्थ " हरियाणा के इक्कीस काव्य संग्रह " में की है । इस ग्रन्थ में शामिल पुस्तकें हैं -----
1. मेरे पास आकाश नहीं है - किरन मल्होत्रा
2. रेत पर बने पदचिन्ह - मीनाक्षी आहूजा
3. निर्णय के क्षण - दिलबाग विर्क
1. मेरे पास आकाश नहीं है - किरन मल्होत्रा
2. रेत पर बने पदचिन्ह - मीनाक्षी आहूजा
3. निर्णय के क्षण - दिलबाग विर्क
शुक्रवार, मार्च 09, 2012
शिक्षा का हाल बताते दो किस्से
RTE के अंतर्गत पहली से लेकर आठवीं तक के किसी भी विद्यार्थी को फेल नहीं करना , उसका नाम नहीं काटना । पत्र-पत्रिकाओं में यह सूचना इतने जोर-शोर से बताई गई कि बच्चा- बच्चा इससे परिचित है । इसके अतिरिक्त अध्यापक को बच्चों को डांटने तक का अधिकार नहीं है , यह बात भी आज के बच्चे जानते हैं । इन सब बातों के परिणाम भविष्य में हम सबके सामने होंगे, लेकिन फिलहाल जो माहौल बन रहा है उसकी बानगी इन दो बातों से हो सकती है। ये दोनों बातें मेरे दोस्तों के साथ घटी और शत-प्रतिशत सही हैं ।
शुक्रवार, मार्च 02, 2012
चुप बैठी सरकार
मानें ना कानून को , स्वयंभू हुए आप ।
लेकर सत्ता हाथ में , करे फैसले खाप ||
करे फैसले खाप , रहे तोड़-फोड़ जारी |
हो कोई भी बात , ट्रैक रोंकें नर-नारी ||
लोग हैं परेशान, न दु:ख किसी का जानें |
पशुतुल्य हुए भीड़, कब किसी की ये मानें ||
********
अदालत लगाती रही , बार-बार फटकार |
बनकर भोली-बावली , चुप बैठी सरकार ||
चुप बैठी सरकार , करे पक्षपात भारी |
चहेते बने गेस्ट , मार पात्रों को मारी ||
करें हैं हेर-फेर , बनाई कैसी आदत |
ना करना अन्याय , देख रही है अदालत ||
********
दिलबागसिंह विर्क
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लेकर सत्ता हाथ में , करे फैसले खाप ||
करे फैसले खाप , रहे तोड़-फोड़ जारी |
हो कोई भी बात , ट्रैक रोंकें नर-नारी ||
लोग हैं परेशान, न दु:ख किसी का जानें |
पशुतुल्य हुए भीड़, कब किसी की ये मानें ||
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अदालत लगाती रही , बार-बार फटकार |
बनकर भोली-बावली , चुप बैठी सरकार ||
चुप बैठी सरकार , करे पक्षपात भारी |
चहेते बने गेस्ट , मार पात्रों को मारी ||
करें हैं हेर-फेर , बनाई कैसी आदत |
ना करना अन्याय , देख रही है अदालत ||
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दिलबागसिंह विर्क
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बुधवार, फ़रवरी 22, 2012
अतिथि कब जाओगे ?
जी नहीं, मैं फिल्म की बात नहीं कर रहा अपितु बात कर रहा हूँ उस ड्रामे की जो हरियाणा में चल रहा है । फिल्म में अतिथि आखिर में वापिस चला जाता है लेकिन हरियाणा के अतिथि कोर्ट के बार-बार कहने पर भी नहीं जा रहे । अब ताजा फैसला आया है माननीय सुप्रीम कोर्ट का । सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सरकार अतिथि अध्यापकों के दवाब में काम कर रही है । यह बात ही बताती है कि सरकार की कार्यशैली कैसी है ।
शुक्रवार, जनवरी 13, 2012
भाईचारे को बढ़ाने वाला त्योहार है लोहडी़
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