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सोमवार, जुलाई 06, 2020

वीरों को याद करती, आदर्श समाज का सपना देखती कविताओं का संग्रह

कविता-संग्रह - ढाई आखर
कवि - बलबीर सिंह वर्मा 'वागीश'
प्रकाशक - Book Rivers
कीमत - 180
बलबीर वर्मा सोशल मीडिया के साहित्यिक ग्रुपों का जाना-माना नाम है और यह नाम उसने अल्पावधि में कमाया है और इसका कारण है निरन्तर सृजन करना, साहित्यिक ग्रुपों में बढ़ चढ़कर भाग लेना । निरन्तर लेखन से उसकी रचना शैली में निखार आया है। अब उसका झुकाव छंदबद्ध की ओर हुआ है, लेकिन इस संग्रह में छंदमुक्त रचनाएँ ही हैं । इस संग्रह में तुकांत का प्रयोग भले ही खूब हुआ है, लेकिन रचनाएँ छंदमुक्त ही रही हैं । हाँ, जापानी छंद सेदोका में एक कविता जरूर है । यह संग्रह उसकी शुरुआती रचनाओं का है । इस संग्रह में कवि ने समाज के नायकों, त्योहारों को लेकर लिखी कविताओं को स्थान दिया है, तो समाज में फैली विसंगतियों को देखकर मन में उठे सवालों, ख्यालों से बनी कविताओं को भी रखा है । कवि एक आदर्श समाज का सपना देखता है ।
                  कवि ने कविता संग्रह की शुरूआत माँ की महिमा के बखान से की है और यह एक प्रकार का मंगलाचरण ही है, क्योंकि कवि माँ को ईश्वर का अवतार मानता है। वह उसे अनेक रूपों में देखता है। माँ एक नारी भी है और कवि ने नारी की दशा का चित्रण करने के लिए कई कविताएँ लिखी हैं। उसके अनुसार -
नारी त्याग बलिदान की मूरत
नारी ही है पालनहार।
वह नारी को नर की शक्ति मानता है। नारी पर पूरी सृष्टि टिकी हुई है। नारी अर्द्धांगिनी है और इस आधार पर वह पुरुष को सहयोग भी देती है और सहयोग मांगती भी है, लेकिन नारी की दशा बहुत अच्छी नहीं, इसलिए वह "पूछती हैं बेटियाँ" कविता में सवाल उठाता है - क्या नारी होना गुनाह है ? बेटी न जन्म से पूर्व सुरक्षित है, न जन्म के बाद।
            कवि ने प्रेम को भी अपनी कविताओं का विषय बनाया है । पुस्तक का शीर्षक बनी कविता "ढाई आखर" प्रेम इत्र बिखेरने की बात करती है । ढाई आखर पढ़कर ही मीरा, राधा दीवानी हुई, हालांकि कवि जानता है कि आजकल का प्यार थोथा है । कवि प्रेम के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का चित्रण करता है। प्रेमिका ने प्रेमी के नाम के कंगन पहने हैं तो प्रेमी को कजरारे नैनों की याद आती है। प्रकृति का चित्रण करते हुए भी वह प्रियतम को याद करता है।
             कवि ने अनेक महापुरुषों को अपनी कविताओं का विषय बनाया है, अटलबिहारी वाजपेयी को वह अश्रुपूरित श्रद्धांजलि भी अर्पित करता है और उनकी महिमा का बखान भी करता है। वह उन्हें सदी का महामानव कहता है । वह विवेकानंद की महानता को प्रणाम करता है, गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी प्रसंग का वर्णन करता है। श्रीकृष्ण की मतवाली सूरत का चित्रण करता है, उनकी बाल लीलाओं का वर्णन करता है । श्रीकृष्ण, स्वामी महावीर, रानी लक्ष्मीबाई और भगतसिंह की जीवनी बयान करता है। नेताजी के बारे में कवि लिखता है -
युगों युगांतर का महापुरुष
आजादी का मतवाला था
भारत पर मर मिटने वाला
वो सुभाष बड़ा निराला था 
वह फुटपाथ पर सोने वालों, सीमा पर पहरा देने वालों के लिए एक दिया जलाना चाहता है। वह देश के वीर जवानों की बहादुरी का किस्सा बखान करता है, शहीदों की शहादत को सलाम करता है। उसका मानना है कि वीरों की कुर्बानी स्वर्ण अक्षरों  में लिखी जाएगी, लेकिन वह उनकी शहादत से विचलित भी है और आर-पार की लड़ाई की बात करता है। उसका दिल पाक की बैंड बजा देना चाहता है।
          वह अपनी मातृभूमि को बारम्बार प्रणाम करता है। वह माँ के आगे नतमस्तक है, पिता का सहारा बनना चाहता है, वतन पर कुर्बान होना चाहता है और प्रभु के लिए उसका जीवन अर्पण है। मृत्यु अटल सत्य है, लेकिन अच्छे कार्य करने वाले मरकर भी जिंदा रहते हैं। वह वायुसेना के जलवे का चित्रण करता है। आजादी के लिए हुए बलिदानों का वर्णन करता है। शिशिर का वर्णन करते हुए किसानों और जवानों के कार्यों को सलाम करता है। वह प्राचीन प्रसंगों का हवाला देकर मातृभूमि की रक्षा करने की अलख जगाता है। वह मानव धर्म निभाने की बात करता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा है। वह आदर्श समाज की तलाश में है। 
            कवि सपनों में आदर्श भारत को देखता है, लेकिन नींद खुलने पर अखबार को देखकर दुखी होता है। वह सपने में ही स्वर्ग की झलक पा लेता है। वह बचपन की मस्ती को लूट लेने की सलाह देता है क्योंकि मस्ती के दिन चार हैं।
               कवि नित्य उठकर पूजा करने का संदेश देता है। दिवाली, तीज, होली, लोहड़ी, रंगोली, नववर्ष, मकर संक्रांति जैसे त्योहारों का वर्णन करता है। रावण वध पर तीन कविताएँ हैं। पहली कविता में त्रेता युग का प्रसंग है, तो दूसरी और तीसरी  कविता कहती है कि पुतले तो जलते हैं मगर रावण नहीं। वह कहता है -
रावण मारने से पहले
जरा राम तो बनो कोई।
कवि  ज़िन्दगी का हाल बयां करता है, साहस रखने का संदेश देता है। प्रेरणा का महत्त्व समझाता है। प्रकृति से सीख लेकर सत्कर्म करने को कहता है।  राम, भगतसिंह के उदाहरण देकर कहता है -
कर लिया जिसने संकल्प
कुछ भी असंभव नहीं
साथ ही वह इस बात को भी मानता है कि वक्त अपना हो तो सब अपना है अन्यथा - 
दाव आते ही  
उखाड़ फैंकते हैं प्यादे
इस स्वार्थ भरे संसार में कोई भी साथ नहीं निभाता। फेसबुक पर दोस्त बनाने वाले पारिवारिक रिश्तों को महत्त्व नहीं देते। वह अकेले ही चलने की बात करता है । कवि रात भर जागकर इसे सोचता है -
कैसी चली ये पराई रीति
खत्म हुई सब प्रेम-प्रीति
अपनों से ही डरता रहा
रात भर मैं जगता रहा।
हाँ, गरीब के अमीर हो जाने से सबका नजरिया जरूर 'चेंज' हो जाता है, कवि की नजर में यह भी एक हादसा है। रात-दिन बीत रहे हैं और काम अधूरे हैं , इसलिए उसका दिल उदास है। वह उस वक्त के बारे में सोचता है जब हम बूढ़े होंगे। पानी के बुलबुले जैसा आदमी का जीवन है, लेकिन वह समझता है कि सब उसी के सहारे चल रहा है। वह आदमी को समझाता है कि चाबी ऊपर वाले के हाथ है। इस संसार में हर कोई सपने देख रहा है -
पैदल चलता सोचे / कार जीप चलाऊँ
कार वाला ख्वाब देखे / नभ में उड़ पाऊँ 
              वह पेड़ों की महिमा का गान करता है और प्रकृति को नुक्सान न पहुँचाने का संदेश देता है। यह वसुंधरा उसे माँ सी लगती है। वह शिशिर, सावन , बरसात का चित्रण करता है। नई सुबह कुछ नया कर गुजरने की प्रेरणा देती है। वह नए वर्ष का स्वागत करत है। 
                परीक्षा को वह भूत की तरह मानता है और उस दवाब का जिक्र करता है जिससे आज के बच्चे गुजर रहे हैं। वह नेताओं की हकीकत बयान करता है, साथ ही वोटरों को आगाह भी करता है। बुरे हालात क्यों है, उसे लगता है कि इसका कोई कारण तो होगा। हम अधिकारों की बात करते हैं मगर कर्त्तव्य को भूल जाते हैं। वह ऐसी तरतीब सोचने की बात कहता है, जिससे हालात सुधर सकें। 
                  ज्यादातर कविताएँ तो गंभीर ही हैं, लेकिन व्यंग्य का पुट भी कुछ कविताओं में है। कवि ने पुरातन प्रसंगों, प्रकृति आदि से प्रेरणा लेने की बात कही है। उसकी दृष्टि सुधारवादी है और वह उपदेश का सहारा भी लेता है । उसकी भाषा सरल, सहज है। अंग्रेजी और देशज शब्दों का प्रयोग भी हुआ है तो विषयानुरूप तत्सम शब्दावली का भी प्रयोग है । 
                  कवि की यह प्रथम काव्य कृति है। उसकी इस कृति का साहित्य जगत में स्वागत होगा, ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है। 
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ 
दिलबागसिंह विर्क 

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