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बुधवार, अप्रैल 22, 2020

जीवन अनुभवों से निकले मोतियों का संग्रह

सूक्ति-संग्रह - मनोहर सूक्तियाँ
सूक्तिकार - हीरो वाधवानी
प्रकाशन - के.बी.एस. प्रकाशन, दिल्ली
कीमत - ₹450/-
पृष्ठ - 240 ( सजिल्द )
हीरो वाधवानी एक प्रसिद्ध सूक्तिकार हैं। "मनोहर सूक्तियाँ" उनका तीसरा सूक्ति संग्रह है, जो के.बी.एस. प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित है। इस संग्रह के दो भाग हैं। प्रथम भाग में सूक्तियाँ हैं और दूसरे भाग में हीरी वाधवानी के पूर्व प्रकाशित सूक्ति-संग्रहों पर की गई विभिन्न विद्वानों की समीक्षा को रखा गया। पुस्तक के अन्त में प्रकाशक का महत्त्वपूर्ण वक्तव्य है। प्रकाशक सूक्तियों को सिद्ध-सूत्र कहते हुए लिखते हैं -
"सूक्तियाँ अर्थात ऐसे सिद्ध सूत्र जो जीवन को जीने और सफल बनाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। यह कल्पना के आधार पर रची/कही कविता या कहानी से बिलकुल भिन्न जीवन के अनुभवों से प्राप्त ज्ञान का पिटारा होते हैं, जो बहुत ही मुश्किल से प्राप्त होते हैं।" (पृ. - 239 )

        निस्संदेह ये सूत्र हीरो वाधवानी को सपनों में नहीं मिले होंगे। जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों ने उन्हें सिखाया और इस सीखे हुए ज्ञान को उन्होंने सूक्ति रूप में आम पाठक के सामने प्रस्तुत किया ताकि हर कोई उनसे सीखकर अपने जीवन को सुखमय बना सके। विभिन्न सूक्तियों को लिखने से पूर्व वे 'सबसे अधिक बुद्धिमान वह है' शीर्षक से पाँच सूक्तियाँ लिखते हैं। इन सूक्तियों के द्वारा वे बुद्धिमान की परिभाषा निश्चित करते हैं। उनके अनुसार बुद्धिमान व्यक्ति अपनी प्रशंसा और परनिंदा में समय नहीं गंवाता। दुख-सुख का कारण वह स्वयं है। अच्छा स्वास्थ्य अच्छी आदतों से बनता है। दिखावा करने का मतलब धोखा देना है। इसके बाद लगभग 700 सूक्तियाँ हैं। लेखक ने आचरण, भाषा, रहन-सहन, मनोविकार, परिश्रम, साहस, अमीरी-गरीबी, पर्यावरण, बचत, नशा, सुख-दुख, साथ, पड़ोस आदि विषयों को लेकर सूक्तियाँ कही हैं और इन्हें कहने के लिए सोना, चांदी, घड़ी, जूता, हाथी, चींटी, मधुमक्खी, पुस्तक आदि को माध्यम बनाया है।
         लेखक आलसी के बारे में बताते हुए परिश्रम को महत्त्व देता है और इसे पारस के समतुल्य कहता है। हमारे हाथ जगन्नाथ और भोलेनाथ हैं। अकेली आशा कोई अर्थ नहीं रखती, काम तो करना ही होता है, उसके शब्दों में -
"कहने से कढ़ी नहीं बनती है।" (पृ. - 19)
अधूरे काम को अर्थहीन कहता है। सपने साकार करने के लिए दिन बीस घण्टे का बनाना होगा। चींटी का उदाहरण दिया गया है जो सोती नहीं। आदमी आराम करके भी थक जाता है। वह निरन्तरता का पक्षधर है -
"निरन्तर चलना दौड़ना है।" (पृ. - 154 )
सही रास्ते का चयन भी बेहद ज़रूरी कहा गया है। कल की बजाए आज पर भरोसा करता है। आज के काम को आज ही करने पर बल दिया है। गलतियों से सीखने की सलाह दी गई है। वह जीवन को खेल के समान मानता है। हर चीज से सीखने पर बल है।
"सफलता दो चीजें, असफलता चार चीजें सिखाती है।" (पृ. - 30 )
कठिनाइयों का डटकर सामना करने की सलाह देता है -
"कठिनाइयों को रस्सी नहीं धागा समझो" (पृ. - 12 )
वह रास्ते की रुकावट को हटाने के पक्ष में है, चाहे वो कितनी भी आकर्षक क्यों न हो। हुनर प्राप्ति पर बल है - 
"हुनर, सोने का सिक्का है।" (पृ. - 71 )
उसके अनुसार आदमी को अच्छे कार्य करने चाहिए। अच्छे कार्य सबको दिखते हैं, वह लिखता है - 
"अच्छे कार्यों में खुशबू और प्रकाश होता है।" (पृ. - 39 )
"अच्छे कार्यों में प्राण होते हैं, वे बोलते हैं।" (पृ. - 47 )
        परिश्रम के साथ वह बचत को भी जरूरी मानता है। बचत मुसीबतें कम करती है और बुरी आदतें भिखारी बनाती हैं। ऋण लेना अच्छा नहीं। इंसान के भाग्य में गरीबी हो सकती है, लेकिन भिखारी बनना नहीं। अमीरी गरीबी का संबन्ध दिमाग से है। ये चीजें स्थायी नहीं। उसके अनुसार -
"गरीब वह है जिसमें उत्साह, उमंग और साहस नहीं है।" (पृ. - 167 )
हालाँकि उसका मानना है कि गरीबी रोज तंग करती है। उसके अनुसार -
"गरीब के लिए सारा जग सौतेला है।" (पृ. - 20)
इसलिए वह पीड़ित की मदद को ही असली पूजा मानता है। सेवा, सहानुभूति को भक्ति से बढ़कर कहता है। 
        धीरज को माणिक-मोती माना गया है। सन्तोष को खजाना कहा गया है, सन्तोषी बादशाह है। असन्तोष को बुरा माना गया है। 
"असंयमी इंसान को शैतान शीघ्र वश में कर लेता है।" (पृ. - 11 )
असंतोष धन का भाई और चिंता बहिन है, जो धन के साथ रहते हैं। लेकिन लेखक धन की ज़रूरत को भी समझता है। 
       वह आशा-निराशा पर विचार करते हुए आशा का समर्थन करता है, उसके अनुसार निराशा आदमी को बूढ़ा कर देती है।
"निराशा कीचड़, आशा कमल है।" ( पृ. - 111)
उसे साहस, उत्साह, उमंग पर भरोसा है। 
"साहस सोने से भरा थैला है।" ( पृ. - 34)
हिम्मती की प्रशंसा की है -
"हिम्मत वाला इंसान हाथी से भी अधिक शक्तिशाली होता है।" ( पृ. - 126 )
       जीवन जीने के ढंग पर विचार प्रस्तुत किये गए हैं। लेखक सदाचारी और ईमानदारी भरा जीवन जीने के पक्ष में है। वह ईमानदारी पर बल देता है। नेक होना, सादापन सुंदरता के पैमाने हैं। सज्जनता श्रेष्ठ है। सद्गुण सुंदरता से बेहतर हैं।
"सद्गुणों वाला इंसान खुशबूदार फूल है।" ( पृ. - 83 )
उसका मानना है -
"सद्गुणों के बिना इंसान पानी रहित कुएँ के समान है।" (पृ. - 170 )
सदाचार पूरी किताब है -
"सदाचारी, संयमी और परोपकारी इंसान ईश्वर के अधिक निकट है।" (पृ. - 35 )
सोने और चांदी के माध्यम से भीतर की सुंदरता को महत्त्वपूर्ण बताया गया है।
    उसके अनुसार संयम-असंयम, सदाचार-दुराचार ही स्वर्ग-नरक बनाते हैं। चन्द्रमा सादगी का प्रतीक है। ईमानदारी-सदाचारी की खुशबू हजारों मील तक जाती है। किसी को भी अपशब्द न बोलने की बात करता है। उसके अनुसार -
"वाणी पहचान-पत्र है।" ( पृ. - 91 )
बुरे शब्दों की तुलना तोप के बारूद से की गई है। लेखक के अनुसार - 
"कटु वचन बोलने वाले की मिठाई देर से बिकती है।" (पृ. - 35 )
मीठे वचनों को वर्षा की फुहार कहा गया है और कटु वचनों को ओले। वह कहता है -
"मधुर वचन मोतियों जैसे और कटु वचन काँच जैसे होते हैं।" (पृ. - 15 )
      बीमारी में परहेज और खुशी को महत्त्वपूर्ण बताया है। खुशी आनन्द देती है। वह घर की सदस्य है, मेहमान नहीं। लेखक खुशी की तुलना कॉफी और आइसक्रीम से करता है। खुशी और शांति अलादीन के चिराग की तरह है। उसके अनुसार -
"असली खजाना धन नहीं, हँसी और खुशी है।" ( पृ. - 51 )
भगवान को भी हँसते हुए होंठ अच्छे लगते हैं। 
"मोर के नृत्य से अधिक श्रेष्ठ इंसान की हँसी, खुशी और मुस्कराहट है।" (पृ. - 19 )
लेखक इसे सर्वश्रेष्ठ बताता है - 
"मौन श्रेष्ठ, मुस्कराहट सर्वश्रेष्ठ है।" ( पृ. - 102 )
      ज्यादा क्रोध न करने को कहा है। क्रोध को ज्वालामुखी का अंश कहा गया है। ईर्ष्या, द्वेष को आतंकवादी कहा गया है। ईर्ष्यालु अंधा होता है। 
"बिना ईर्ष्या और अहंकार के इंसान सोने का सिक्का है।" (पृ. - 33)
झूठ-सच पर विचार किया गया है। झूठ स्थायी नहीं -
"झूठ बोलना, स्वयं के साथ विश्वासघात करना है।" (पृ. - 59 )
झूठ छुपता नहीं। झूठे पर कोई विश्वास नहीं करता।
"दो बार झूठ बोलने वाला, सौ बार सच बोलेगा तब भी वह झूठा कहलाएगा।" (पृ. - 23 )
वह सच के पक्ष में कहता है -
"सत्य बहानों से बचाता है।" (पृ. - 31 )
अहंकारी को बुरा माना है।
"अहंकारी का हठ ऊँट के हठ से बड़ा होता है।" (पृ. - 124 )
वह शराब का विरोध करता है। 
"मदिरा मुफ्त में भी महँगी है।" (पृ. - 151 )
मादक पदार्थों का सेवन 100 गलतियों के बराबर है। बुरी आदत किसी भी कीमत पर छोड़ दी जाए, अच्छा ही है क्योंकि यह बीस बीमारियों के बराबर है। युद्ध, जुआ, झगड़ा, दंगा आदि को बुरा कहा गया है। वह नारी के पहरावे पर भी विचार करता है। फैशन, दिखावे का विरोधी है।
"मेकअप सोने के ऊपर पीतल की पॉलिश है।" (पृ. - 164 )
कुछ चीजें अपना महत्त्व कभी नहीं खोती, वह सोने का उदाहरण देता है-
"सोने की घड़ी नहीं चलेगी तब भी बिकेगी।" ( पृ. - 13 )
लेकिन वह इसके दूसरे पहलू से भी अवगत करवाता है -
"चाँदी से बने गटर से भी बदबू आएगी।" (पृ. - 14 )
       ईश्वर की इच्छा को श्रेष्ठ बताया गया है। शरीर के अंगों से भगवान की इच्छा समझने का प्रयास है। ईश्वर पंजे न देने की बजाए हाथ क्यों दिए, इसे स्पष्ट किया है। हाथ और जुबान के माध्यम से कम बोलने और अधिक काम करने की बात कही है। आँखों का सही उपयोग बताता है। कम बोलने, कम खाने पर बल है। वह आत्मविश्वास में बहुत बड़ी शक्ति देखता है। हृदय की शांति अमृत समान है। बुद्धि अमृत भी है और जहर भी, लेकिन -
"बुद्धिमता हीरों का हार है।" (पृ. - 36 )
हमारा चुनाव ही हमारे बारे में बताता है -
"बड़ा मूर्ख वह है जो बगीचे में जाकर भी नाली और नाले के पास बैठता है।" (पृ. - 13)
मूर्ख को समझाना आसान नहीं -
"जितना चींटी को गहने पहनाना कठिन है, उतना ही कठिन मूर्ख को समझाना है।" (पृ. - 18 )
हमें किसी का अपमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि -
"अपमान न सूखने वाला घाव है।" (पृ. - 51 )
      वह ठहराव को तालाब और बदलाव को नदी मानता है। कौए के उदाहरण से स्पष्ट करता है कि कुछ लोग अपनी आदत नहीं बदलते। कानून की लेटलतीफी पर तंज है। रिश्वत का विरोध करता है। पेड़ के महत्त्व को समझाता है। सफाई का महत्त्व बताया गया है।
"सफाई उत्तम कोटि का श्रृंगार है।" ( पृ. - 107 )
वह ज्ञान, भोजन को प्रसाद मानता है। माँ के महत्त्व को बताता है। माता-पिता हीरे-मोती हैं। बड़ों की डांट का महत्त्व समझाता है। भूत-प्रेत पर उसे विश्वास नहीं। सिद्धांत और नियम महत्त्वपूर्ण हैं। कलंक मिटते नहीं। घर के रहस्य किसी को नहीं बताने चाहिए। दूसरों पर निर्भरता बैसाखी पर चलने जैसा है। बहादुर और कायर के स्वभाव के अंतर को दिखाया है। अच्छे अवसर को 29 फरवरी और शताब्दी की तरह कभी-कभार होने वाली घटना बताया गया है। मृत्यु को अनिश्चित बताया गया है। वह किसी भी चीज की ज्यादा प्रशंसा का पक्षधर नहीं। किसी भी चीज का महत्त्व उसकी उपयोगिता पर आधारित होता है, इसे वे देग और देगची के माध्यम से स्पष्ट करते हैं। आज के हालातों को वह बड़े सुंदर शब्दों में कहता है -
"एक मधुमक्खी के डंक का जवाब छत्ते की सभी मधुमक्खियों को मारना नहीं है।" (पृ. - 19 )
वर्तमान घोटालों के संदर्भ में इसे देख सकते हैं -
"इंजन की चोरी में इंजन बरामद होना चाहिए, नट, बोल्ट और पुर्जे नहीं।" ( पृ. -57 )
इसे भी राजनीति के संदर्भ में देखे तो इसकी सत्यता स्वयंसिद्ध होती है -
"आश्वासन बड़ा किंतु खाली थैला है।" (पृ. - 38)
         अन्य वस्तुओं की बजाए पुस्तक का होना महत्त्वपूर्ण है। पुस्तक किसी भी मूल्य पर महँगी नहीं। घर में पड़ी पुस्तक आपके बारे में बताती है। पढ़ाई पर भी बल दिया गया है। 
      पुस्तक के आवरण पर गोपाल दास नीरज की सूक्ति है -
"आपकी पुस्तकें पारस पत्थर की तरह हैं।"
यह उक्ति पुस्तक के महत्त्व को दिखाती है और जब पुस्तक जीवन के निष्कर्षों को देने वाली हो तब यह वक्तव्य और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। निस्संदेह "मनोहर सूक्तियाँ" पारस पत्थर की तरह है। इस पुस्तक की बातों को अपनाकर जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है।
© दिलबागसिंह विर्क

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