कविता-संग्रह – नये अहसास के साथ
कवयित्री – डॉ. शील कौशिक
प्रकाशक – राज पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ – 76
कीमत – 150 /-
हरियाणा साहित्य अकादमी के सहयोग
से प्रकाशित कविता-संग्रह ‘ नये अहसास के साथ ’ में कवयित्री शील कौशिक ने 36 कविताओं
को रखा है, जो नारी मन, स्त्री-पुरुष संबंधों, सामाजिक मान्यताओं और प्रकृति को
लेकर रची गई हैं |
पुस्तक का शीर्षक बनी कविता इस संग्रह
की अंतिम कविता है जो दिखाती है कि विवाह के बाद किस प्रकार स्त्री नये अहसास से
भर उठती है | पति-पत्नी के मिलजुलकर काम करने और पति का पत्नी की चिंता करना,
पत्नी की जिंदगी को संवार देता है –
जिंदगी के इन छोटे-छोटे /
मीठे पलों से /
उलझे धागे-सी जिंदगी /
चुटकियों में संवर गई /
और एक सुंदर सलौनी / कविता
में ढल गई ( पृ – 18 )
पति यहाँ सहयोग देता है, वहीँ उसकी
आदतें पत्नी से भिन्न भी होती हैं | बारिश-तूफ़ान के प्रसंग को लेकर वह उसके आलस्य
भरे व्यवहार को चित्रित भी करती है और बदलाव भी चाहती है –
कब बदलेगी यह तस्वीर / जब
बारिश-तूफ़ान आने पर /
मैं संभालूं रसोई घर / तुम
उठा कर लाओ /
बाहर अलगनी पर / लटके कपड़े
और /
बंद करो सब खिड़कियाँ / रोक
दो उन्हें /
चटखने और भडभडाने से ( पृ – 72 )
कवयित्री औरत की दशा का
ब्यान करती है कि किस प्रकार वह पिता, पति और पुत्र के दायरे में बंध जाती है | वृद्ध
जन अपनी सन्तान की इच्छाओं के गुलाम हो जाते हैं और वे अपने मन की नहीं कर पाते |
पिता की मृत्यु के बाद बेटों और बेटियों के व्यवहार को दर्शाया गया है | माँ के
कमरे को इबादत का स्थान माना है | माँ नहीं है, लेकिन रेजगारी-सी छनकती यादें मन
की वीणा को झंकृत कर देती हैं | पड़ोसन की आदतें कैसे उसे बदल देती हैं, इसका वर्णन
है | रिश्तों में अधिकार त्यागने पर बल दिया है | वह रिश्ते बनाने से डरती है,
लेकिन घास की तरह उदारमना होना चाहती है | वह अपनी याद आने की बात करती है तो सफर
के उस हिस्से को सुहाना मानती है यहाँ यादों की महक हो | साथी अपने साथ वृन्दावन
की सारी बातें साथ लेकर आता है |
कवयित्री सामाजिक परम्पराओं, धार्मिक मान्यताओं
को अपने तरीके से निभाती है | पूर्वजों के श्राद्ध न मनाकर उन्हें हर त्यौहार पर
याद करती है | दक्षिण दिशा के अपशकुन को नकारती है | अहोई माँ के व्रत का वर्णन है
| शब्दों को ब्रह्म माते हुए उसकी ताकत दिखाई है –
पिघला सकते हो तुम /
वर्षों से जमी /
बर्फ हो गई / संवेदनाओं को ( पृ – 26 )
शहरीकरण के दुष्प्रभाव दिखाए हैं –
जब से मेरे इस / छोटे से
कस्बे का /
शहरीकरण हुआ है / तब से हो
रहे हैं /
यहाँ हादसे पर हादसे ( पृ – 25 )
वह कामवाली के कठिनाई भरे जीवन को
दर्शाती है | कचरों के ढेर पर बसी बस्तियों का चित्रण करती है –
यहाँ के लोग जीते हैं /
सिर्फ मरने के लिए ( पृ – 29 )
जिंदगी की राह में संघर्ष करते सभी
रंग बेरंग हो जाते हैं लेकिन कवयित्री हौसले का दामन नहीं छोडती | वह कहती है –
अँधेरे काले रंग पर /
अंतत: उजले /
धवल रंग की ही / जीत होती
है ( पृ – 31 )
आंतरिक सौन्दर्य करुणा, प्रेम, ममता
से निखर आता है | कविता का विषय बनने के लिए सिर्फ आदमी होना काफी नहीं अपितु उसका
संवेदना से भरा होना जरूरी है | गोद का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए कवयित्री
लिखती है –
कितनी पवित्र / कितनी गहरी
/
कितनी सुरक्षित और / कितनी
गर्माहट भरी /
होती है गोद ( पृ – 33 )
प्रकृति का चित्रण अनेक रूप में
है | कवयित्री वृक्ष को एक परिवार के रूप में देखती है | पेड़ों को पूर्वजों के रूप
में देखती है | मधुर बसंत के आगमन का वर्णन है –
मधुर बसंत / आन पहुँचा है
/
अपनी समूची / गरिमा के साथ
/
झूमता, मदमाता, लजाता /
फिजाओं में उन्माद फैलाता /
कानों में फाग गुंजाता ( पृ – 73-74 )
पत्तों के गिरने की माध्यम से ही
वह नश्वरता का संदेश देती है |
सरल, सहज भाषा में रची गई इन
कविताओं में बड़ी सरलता से महत्त्वपूर्ण विषयों को उठाया गया है और प्रभावी तरीके
से प्रस्तुत किया गया है, जिसके लिए कवयित्री बधाई की पात्र है |
दिलबागसिंह विर्क
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1 टिप्पणी:
सुंदर समीक्षा..सरल व सहज भावों का चित्रण करती मनभावन कविताएँ..डा. शील कौशिक को इस सुकविता संग्रह के लिए बधाई !
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