BE PROUD TO BE AN INDIAN

मंगलवार, फ़रवरी 20, 2018

आस-पास मौजूद कहानियों का संग्रह

कहानी-संग्रह - ज़िन्दगी आइस-पाइस
कहानीकार - निखिल सचान
प्रकाशन - हिन्द युग्म
पृष्ठ - 144
कीमत - 100/ ( पेपरबैक )
आस-पड़ौस में मौजूद पात्रों और घट रही घटनाओं पर आधारित 9 कहानियों का संग्रह है " जिंदगी आइस पाइस " । इन कहानियों को बयां करने में लेखक ने अपनी पढ़ाई, अपने फिल्मी ज्ञान, धारावाहिकों के ज्ञान, क्रिकेट के ज्ञान आदि का भरपूर प्रयोग किया है । यदि कहा जाए कि लेखक ने कहानी कहने के लिए अपने ज्ञान को आधार बनाया है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।
क्रिकेट के ज्ञान को देखिए - 
" सत्तावन के अंक की क्रिकेट से दुश्मनी की बात मुझे तब पता चली जब टाइटन कप में सचिन दो बार सत्तावन पर आउट हो गया । हालाँकि, पापा ने कहा कि ग़लती सचिन की ही थी और उसे राहुल द्रविड़ की तरह ऑफ़ साइड की गेंद से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए थी । उसे सावधान रहना चाहिए था ।" ( पृ. - 44 )
टी.वी. कार्यक्रमों के बारे में देखिए - 
" 301 पर सिमर ससुराल छोड़कर जा रही थी लेकिन उसकी दुष्ट सास उसे उसके तीन साल के बेटे से आख़िरी बार मिलने नहीं दे रही थी । 303 पर राम की तीसरी शादी हो रही थी और पूरा खानदान इस उलझन में तमाम हुआ जा रहा था कि कौन किस गाने पर डांस करेगा । 401 पर ये बहस ज़ारी थी कि साईं भगवान हैं या नहीं । 408 पर उस बच्ची की हैरतअंगेज कहानी आ रही थी जो ज़िंदा साँप खाती थी । 617 पर रॉयल स्टैग का प्रचार आ रहा था जिसमें  अर्जुन कपूर ' स्मॉल ' मिलाता जा रहा था और अपनी ज़िंदगी को ' लार्ज ' बनाता जा रहा था । 503 पर विद्या बालन ये बता रही थी कि जिस घर में शौचालय नहीं उस घर में बिटिया की शादी नहीं ।" ( पृ . - 54 )
गणित का ज्ञान - 
" ' स्ट्रेट लाइन ' की परिभाषा कहती है कि यह वो ज्योमेट्रिकल आकार है जिसमें सिर्फ़ एक डाइमेंशन होता है । एक , यानी कि लम्बाई । इसके अतिरिक्त, इसमें न ही चौड़ाई होती है और न ही गहराई ।" ( पृ. - 90 )
सभी विषयों के सामूहिक ज्ञान का प्रयोग भी मिलता है - 
" आज फिर गणित की क्लास हुई लेकिन उसमें पैराबोला और असिम्प्टोट नहीं था । कॉम्प्लेक्स इक्वेशन थी । रियल के बीच में इमैजिनरी था । दोनों मिलकर कॉम्प्लेक्स हो चुके थे । अंग्रेज़ी की क्लास हुई लेकिन आज उसमें लूसी ग्रे नहीं थी । ' फॉरगेटिंग ' पर सटायर था । ज्यौग्रफी की क्लास में मूसलाधार बारिश नहीं थी । सूनामी पर छोटा-सा डिस्कशन ज़रूर था ।" ( पृ. - 87 )
फिल्मी गानों और ग़ज़लों का ज्ञान भी है । ग़ज़ल ज्ञान देखिए - 
" अज़ीज़ मियाँ मुँह में पाव भर पान का कत्था भरे हुए कहा रहे थे, " फ़सले गुल है शराब पी लीजे, शर्म कैसी जनाब पी लीजे ।" चिराग़ ने शर्म नहीं की । " आगे चल कर हिसाब होना है, इसलिए बे-हिसाब शराब पी लीजे ।" चिराग़ ने बे-हिसाब शराब पी ली । अज़ीज़ मियाँ के कव्वालों ने झूम-झूम कर ताली बजाई ।" ( पृ. - 66 )
फिल्मों का प्रभाव सबसे ज्यादा है । लगभग हर कहानी में इसे देखा जा सकता है - 
" विक्की मल्होत्रा हार कर जीतने वाला इंसान था । विक्की मल्होत्रा बाज़ीगर था ।" ( पृ. - 30 )
" कुमार ने विक्रम को वैसे ही चूमा था जैसे एक लड़का एक लड़की को चूमता है । जिसे यदि फ़िल्मों के पर्दे पर, स्लो-बैकग्राउंड म्यूज़िक के साथ दिखा दिया जाए तो जनता सीटियाँ मारने लगती है । कुमार ने विक्रम को वैसे ही चूमा था जैसे ' कासाब्लांका ' में रिक ने इलसा को चूमा था, जैसे ' टाइटैनिक ' में जैक ने रोज़ को चूमा था । या फिर, वैसे ही जैसे ' द नोटबुक ' में नोआह ने एली को चूमा था ।" ( पृ. - 92 )
लेखक ने अपनी बात के समर्थन के लिए महत्त्वपूर्ण तथ्यों का भी वर्णन किया है - 
" ईरान के राष्ट्रपति ने सीरिया की सरकार से ' सिविल वार ' के सिलसिले में बात-चीत करने की इच्छा जताई ।
एप्पल ने जापान में आई फ़ोन 5S और 5C लांच किया ।
अरमानी ने मिलान में स्प्रिंग- समर कलेक्शन पेश किया ।
और एलेक्स रोड्रिगेज ने न्यूयार्क यैंकीस के लिए 24 ग्रैंडस्लैम होमरन्स का रिकार्ड बनाया ।" ( पृ. - 36 )
इस प्रकार के ज्ञान का वर्णन होने के कारण लेखक की शैली वर्णनात्मक बनी है, ज्ञान के अतिरिक्त भी वर्णनात्मक शैली का प्रयोग मिलता है -
" मसलन, उसमें काँच की शीशी थी । शीशी में तालाब का पानी था और पानी में तैरते मेंढक के टैडपोल थे । माचिस की डिब्बी थी । डिब्बी में दीवाली पर बचे तीन सीको पटाखे थे और पटाखे का गट्ठर बाँधने के लिए पीली गेटिस थी । शीशे का टूटा काँच था, काँच की चूड़ी थी और चूड़ी से झड़ी हुई रंग-बिरंगी किरकिरी भी थी । अनारदाना था । चूरन था । काजू नहीं था ।" ( पृ. - 123 )
कई जगहों पर वर्णन पद्यात्मक बन पड़ा है - 
" बाहर चाँद था । अंदर उसकी बुढ़िया थी । चाँद इस वक़्त आसमान में इस तरह टँगा हुआ था जैसे किसी बड़ी-सी आर्ट गैलरी में नुमाइश के लिए कोई ख़ूबसूरत-सा अब्स्ट्रेक्ट आर्टपीस टाँग दिया गया हो, जो हर किसी के लिए अलग-अलग मतलब और मौसीक़ी रखता हो । लेकिन आर्टपीस इस बात से पूरी तरह बेख़बर हो कि नुमाइश में आने वालों के लिए वो क्या मायने रखता है ।" ( पृ. - 136 )
वर्णनात्मक शैली के साथ-साथ संवादात्मक शैली का भी भरपूर प्रयोग हुआ है । संवाद छोटे, चुटीले और कथानक को आगे बढाने वाले हैं -
" ' चिराग़, क्या बकवास कर रहे हो ! तुम दारू पीते हो ? मैं कल ही तुम्हारे घर आ रहा हूँ ।' पापा ने ग़ुस्से में कहा ।
' मत आइए ।' 
' मत आइए का मतलब ?'
' मैं जा रहा हूँ ।'
' कहाँ ?'
' पता नहीं ।' चिराग़ ने फ़ोन काट दिया और उसका सिम निकाल कर कमोड में बहा दिया । " ( पृ. - 67 )
कई जगहों पर आत्मकथात्मक शैली को भी अपनाया गया है ।
                  लेखक खुद कहानी कहने में विश्वास रखता है, ऐसे में लेखक की उपस्थिति स्पष्ट रूप से विद्यमान रहती है -
" विक्की की इस सोच को समझ पाने के लिए हमें विक्की मल्होत्रा के डी.एन.ए. को पकड़कर हौले-हौले, सिरे से पूँछ तक, समझना होगा और कुछ साल पहले के विक्की मल्होत्रा की ज़िंदगी में टहल कर आने की मशक्कत करनी होगी |" ( पृ. - 32 )
अपनी उपस्थिति के द्वारा लेखक ने कहानी लिखने की कारण पर भी प्रकाश डाला है - 
" मुझे नहीं पता कि मैं ये कहानी क्यों लिख रहा हूँ | ये कहानी ले-देकर चिराग़ की ज़िंदगी के दो-एक दिन के रैंडम स्नैपशॉट्स से अधिक कुछ भी तो नहीं है | और फिर उसमें भी मैं वही हिस्से चुन पाया हूँ, जिसमें उदासी के अक्स के अलावा कुछ नहीं है | खैर | जो भी, जितना भी, देख सुन पाया हूँ वो ज़ेहन पर खराशें छोड़ गया है | खोल कर नहीं रखूंगा तो छरछराता रहेगा | जलता रहेगा |" ( पृ. - 53 )
                        लेखक ने कई कहानियों में निबन्ध की तरह बातों को बिन्दुबार भी लिखा है | कहने का भाव यही है कि लेखक ने कहानियों को कहने में अनेक शैलियों को अपनाया है | भाषा के दृष्टिकोण से लेखक ने इसे खिचड़ी बनाने का प्रयास किया | अंग्रेजी का भरपूर प्रयोग है - 
" ' चिराग़, यू मस्ट डू व्हाट यू लाइक |'
' चिराग़, यू मस्ट थिंक बिग |'
' चिराग़, यू डोंट हैव टाइम फॉर मी |' " ( पृ. - 59 )
क्षेत्रीय शब्दाबली का प्रयोग भी भरपूर है | लेखक ने पुस्तक का शीर्षक भी इसी रूप में रखा है | कई जगहों पर क्षेत्रीय बोली पात्रानुकूल है, जैसे काजू का मास्टर को माठ साहब कहना, लेकिन ' अटरिया पे लोटन कबूतर रे ' के बच्चों के मुँह से यह स्वाभाविक नहीं लगता | इसका कारण शायद लेखक को भाषा को फ़िल्मी रंगत देना हो सकता है | 
                  कथानक के दृष्टिकोण से कहानियों में पर्याप्त विविधता है । ' फिर एक परवा ' बच्चों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करती कहानी है । नए योग्य बच्चे का आगमन जब पुराने नेता बच्चों का सिंहासन छीन लेता है तो वे बच्चे क्या करते हैं और करने के बाद कैसी प्रतिक्रिया देते हैं, लेखक ने इसे कहानी में बाँधा है । ' विक्की मल्होत्रा का प्यार ' में प्रेम विरोध के आधुनिक प्रकरण को विषय बनाया गया है, साथ ही प्रेमी जोड़े के सात्विक प्रेम का चित्रण है । ' उन्नीस तिया सत्तावन ' हालांकि एक बच्चे की कहानी है लेकिन बच्चे के माध्यम से पिता की चारित्रिक विशेषताओं और माँ की बीमारी के बच्चों पर प्रभाव को दिखाया गया है । ' बस्ती-बस्ती ढेर उदासी ' कहानी में दिखाया गया है कि दफ्तरों का उबाऊ वातावरण कैसे किसी भावुक नौजवान की ज़िंदगी को बर्बाद कर देता है । ' अटरिया पे लोटन कबूतर ' स्कूली लड़के के लड़की के प्रति आकर्षण और प्रणय निवेदन करने की कहानी और लड़का पहली ही असफलता पर समझ जाता है -
" दिल, जो कि इतना बेढंगा-बेहूदा-घटिया दिखलाई देता है । दिल, जो कि बस एक मजदूर की तरह ख़ून खींचता और फेंकता रहता है । एक पिचकारी की तरह ।" ( पृ. - 88 )
' बलमवा तुम क्या जानो प्रीत ' गे लड़कों की प्रेम कहानी है, साथ ही यह गे होने की पीड़ा को भी उभारती है - 
" जवान होने और अहसास होने के अगले ही दिन से विक्रम ने भगवान को मानना बन्द कर दिया था ।
क्योंकि शायद भगवान को मानने का अर्थ ये होता कि उसकी क़िस्मत में ये तल्खी भगवान ने ख़ुद लिखी थी ।" ( पृ. - 93 )
' क्यूट मेहर सिंह ' एक चरित्र प्रधान कहानी है जो दबंग मेहर सिंह के क्यूट बनने के सफ़र को दर्शाती है । ' बिन पूँछ के टैडपोल ' बाल मजदूरी पर आधारित है । इस कहानी में उन परिस्थितियों का वर्णन है जिनके कारण माँ का लाड़ला ढ़ाबे पर नौकरी करता है । वह ख़ुश है, लेकिन उसे यह कहकर मुक्त करवाया जाता है - 
" तुम्हें मालूम है ! हमारे प्रधानमंत्री जी भी पहले चायवाले थे । लेकिन अगर वो सिर्फ़ चाय की दुकान पर ही काम करते रहते तो आज देश के प्रधानमंत्री नहीं होते । क्या तुम भी उनके जैसा नहीं बनना चाहोगे ?" ( पृ. - 133 )
लेकिन प्रधानमंत्री जैसे बनाने का कोई प्रयास एन. जी. ओ. वाले नहीं करते । यथार्थ में भी यही हो रहा है । संग्रह की अंतिम कहानी ' कैनवस के जूते और रातरानी के फूल ' एक वृद्ध दम्पत्ति की है, जिन्हें स्कूल की नौकरी से हटा दिया गया है । वे कैसे जीवन जिएँगे ये प्रमुख समस्या है लेकिन समस्या आर्थिक नहीं, अपितु भावनात्मक है । बूढ़ा-बूढ़ी चिंतित है कि बच्चों के बिना वे कैसे रहेंगे । वे बच्चों के साथ बिताए पलों को याद करते हैं ।
                     लेखक ने कहानियों के पात्रों को बनाने-सँवारने में खूब मेहनत की है । पात्र चरित्र-चित्रण की लगभग सभी विधियों को अपनाया है, लेकिन मुख्य रूप से वह खुद वर्णन में अधिक विश्वास करता है । लेखक के वर्णन के आधार पर चित्रण -
" मिज़ाज की बात करें, तो मोहर सिंह गब्बर सिंह की कद-काठी और तापमान के पट्ठे थे । उनकी चितवन ऐसी करारी थी कि जिसे घूर कर देख लें वो पैजामा सम्हाले खेतों की ओर दौड़ जाए ।" ( पृ. - 103 )
पात्र द्वारा दूसरे पात्र का चित्रण -
" पापा इसी तरह हमारी हर समस्या का समाधान कर दिया करते थे । हमारी समस्या माँ की बीमारी जितनी बड़ी हो सकती थी और स्कूल खुलने पर ढेर सारी कॉपी-क़िताबों पर कवर चढ़ाने जितनी छोटी भी । या फिर वो अलमारी के ऊपर सामान चढ़ाने जितनी ऊँची भी हो सकती थी । पापा खड़े-खड़े ही अलमारी के ऊपर सामान रख सकते थे ।" ( पृ. - 45 )
पात्रों के आपसी वार्तालाप द्वारा -
" ' साले लग गया होता तो ?' नानू डर के मारे हाँफा ।
' सच में बे !' सुबू सुकून के मारे हाँफा ।
' पूरा सर फट जाता उसका ।'
' सही में यार ! अच्छा हुआ बच गया ।' " ( पृ. - 26 )
                   लेखक ने वातावरण का चित्रण भी बखूबी किया है । समाज का एक कुरूप चित्र देखिए - 
" वैसा बर्ताव, जैसा उसका मामा, प्रिय की मामी के साथ करता था क्योंकि उसकी मामी अक्सर घर से बाहर जाने पर दुपट्टा लेना भूल जाती थी । उसके हिसाब से ये ग़लीज़ औरतों की पहली निशानी हुआ करती थी ।" ( पृ. - 38 )
भारतीय बैंक की वास्तविक तस्वीर -
" बी. एन. सिंह बन्दूक देखकर तो वैसे ही चिहुँक पड़ा और ख़ुद ही सरेंडर की मुद्रा में हाल के बीचों-बीच घुटनों पर बैठ गया । सिपाही इतना बूढ़ा था कि फ़ायर करना उसके बस की बात नहीं थी । अगर वो बुढ़ापे पर विजय पाकर फ़ायर करने की सोचता भी, तो भी बन्दूक ठांय नहीं हो पाती क्योंकि बंदूक उससे भी अधिक बूढ़ी थी ।" ( पृ. - 119 ) 
          संक्षेप में, लेखक ने आम जीवन में मौजूद घटनाओं और पात्रों को अपनी लेखनी के द्वारा सुंदर कहानियाँ में बदला है । लेखक पर फिल्मी प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है लेकिन इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा । सभी कहानियाँ शुरू करने के बाद वह पाठक को अंत तक बाँधे रखने में समर्थ हैं और यही कहानी लेखन की माँग होती है ।
दिलबागसिंह विर्क 
******

कोई टिप्पणी नहीं:

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...