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बुधवार, फ़रवरी 14, 2018

जीवन में सकारात्मकता का संदेश देता संग्रह

पुस्तक - सकारात्मक अर्थपूर्ण सूक्तियाँ
लेखक - हीरो वाधवानी 
प्रकाशन - अयन प्रकाशन
पृष्ठ- 168 
कीमत - 300 /- ( सजिल्द ) 
ज़िन्दगी जीना एक कला है । रो-रो कर वक्त व्यतीत तो किया जा सकता है, ज़िन्दगी जी नहीं जा सकती । ज़िन्दगी को जीने के लिए सकारात्मक नजरिये का होना बेहद जरूरी है । सकारात्मक नजरिये को विकसित करने के दृष्टिकोण से हीरो वाधवानी की पुस्तक " सकारात्मक अर्थपूर्ण सूक्तियां " एक महत्त्वपूर्ण कृति है । इस कृति में लेखक ने ऐसी सूक्तियाँ रखी हैं जिनको पढ़कर व्यक्ति की जीवन के प्रति सकारात्मक सोच विकसित होती है | 
                     जीवन में कर्म और भाग्य दो महत्त्वपूर्ण पहलू हैं | भाग्यवाद कई बार निराशावाद की ओर ले जाता है जबकि कर्म का सिद्धांत आदमी को आशावादी बनाता है | आम तौर पर यह कहा जाता है कि मेहनत इतनी ज्यादा करो कि भगवान पर विश्वास बना रहे | हीरो वाधवानी जी ने भी इस संग्रह में परिश्रम को अत्यधिक महत्त्व दिया है  | वे कहते हैं -
कठोर परिश्रम सोने की ईंट है |  पृ - 21 )
परिश्रम को सब तालों की कुंजी मानते हुए वे लिखते हैं - 
परिश्रम सभी समस्यायों का हल है | ( पृ - 73 )
उनके अनुसार - 
परिश्रम पारस पत्थर और अलाद्दीन का चिराग़ है | ( पृ - 69 ) 
भाग्य को वो दोयम दर्जे पर रखते हैं -
भाग्य परिश्रम का बेटा है | ( पृ -  33 )
परिश्रम की प्रकृति और लाभ के बारे में वे लिखते हैं - 
कठोर परिश्रम करेले की तरह होता है जो कसैला लगता है लेकिन गुणकारी होता है | ( पृ -  49 )
परिश्रम के साथ-साथ वे उत्साह को भी महत्त्व देते हैं - 
रास्ते को तीन चौथाई पैर पार करते हैं और एक चौथाई उत्साह | ( पृ - 80 )
उनका मानना है - 
हिम्मत और धैर्य शरीर के दो अतिरिक्त अंग है । ( पृ. - 98 )
वे किसी कामधेनु या कल्पवृक्ष की कामना नहीं करते, उनका मानना है - 
इंसान के हाथ-पैर और मस्तिष्क, कल्पवृक्ष और कामधेनु गाय हैं | ( पृ. - 96 )
                       सुख-दुख को लेकर भी उनका नजरिया आशावादी और सकारात्मक है वे लिखते हैं -
दुख में जो दुखी नहीं होता - वही ज्ञानी, साहसी और समझदार है । ( पृ. - 13 )
दुःख के कारण के बारे में बताते हैं - 
दुख का कारण ? इंसान की बुरी आदतें, बुरे विचार और अभद्र कार्य हैं । ( पृ. - 11)
वे जीवन को जिंदादिली से जीने के पक्षधर हैं | उनका मत है कि ईश्वर हँसी के पक्ष में है - 

इंसान दिन में सौ बार से ज्यादा हँस और मुस्करा सकता है लेकिन आँसू बीस बार भी नहीं भा सकता क्योंकि ईश्वर हँसने और मुस्काराने के पक्ष में है | ( पृ - 11 )  
उदासी के बारे में उनकी सोच है - 
उदासी अंदर का मैल है । ( पृ. - 70 )
खा जात है एक चुप, सौ सुख, लेकिन लेखक इससे आगे बढ़कर लिखता है - 
मौन श्रेष्ठ है तो मुस्कराहट सर्वश्रेष्ठ है । ( पृ. - 123 )
           अमीरी-गरीबी को लेकर भी उनके विचार सकारात्मक हैं - 
अमीर वह है जिसके बहुत सारे मित्र हैं, ग़रीब वह है जिसके बहुत सारे शत्रु हैं । ( पृ.- 16 )
गरीब वह नहीं है जिसके पास धन नहीं है, गरीब वह है जो अज्ञानी, आलसी और मूर्ख है । ( पृ. - 75 )
मानव की आदतों भी उनकी लेखनी चली है | बुरी आदतों को छुरी-तलवार से भी खतरनाक हैं -
बुरी आदतें बीमारी की तरह होती हैं जो धन, शरीर और समय खराब करती हैं । ( पृ. - 62 )
उनका मानना है - 
बुरे वचन कहकर इंसान प्रदूषण फैलाता है । ( पृ. - 21 )
बुरे शब्दों को वे बेहद खतरनाक मानते हैं - 
बुरे शब्द काँच की तरह होते हैं जो चुभते और घाव करते हैं । ( पृ. - 64 )
वे अच्छे शब्दों और बुरे शब्दों का अंतर भी बताते हैं - 
अच्छे शब्द कहना गुलाबजल छिड़कने के समान है और बुरे शब्द कहना चिंगारी फेंकने के समान है । ( पृ. - 93 )
उन्हें गलती स्वीकार्य है, गलतियाँ नहीं - 
गलती करो, गलतियां नहीं । ( पृ. - 124 )
गलतियाँ कभी छुप नहीं सकती - 
गलतियों को छुपाने वाला पर्दा हमेशा छोटा हो जाता है । ( पृ. - 76 )
झूठ गलती से बड़ा गुनाह है - 
एक झूठ दस गलतियों के बराबर है । ( पृ. - 18 )
झूठे पुरुष को वे बेहद बुरा मानते हैं -
झूठे को एक बात लानत, बईमानी को दो बार लानत और विश्वासघाती को सौ बार लानत । ( पृ. - 29 )
मनोविकारों पर भी उन्होंने अपनी राय दी है | वे लिखते हैं - 
ईर्ष्या और द्वेष जहरीले पदार्थ हैं । ( पृ. - 40 )
उनके अनुसार ईर्ष्या और अहंकार का इलाज धनवंतरि वैद्य के पास भी नहीं -
ईर्ष्या, आलस्य और अहंकार, दीमक हैं । ( पृ. - 54 )
क्रोध के बारे में वे लिखते हैं - 
क्रोध, धैर्य का शत्रु है । ( पृ. - 102 )
                     ज्ञान-अज्ञान के बारे में भी वे लिखते हैं |ज्ञान का  जीवन पर सार्थक प्रभाव पड़ता है -
जानकारी, धन और समय बचाती है । ( पृ. - 46 )
इसके विपरीत - 
अज्ञान, अंधविश्वास और मूर्खता का पिता है । ( पृ.- 23 )
वे समय का महत्त्व समझते हैं | वर्तमान को महत्त्व देते हुए लिखते हैं -
बीता हुआ समय लोहे और चांदी के समान हो सकता है, लेकिन शेष रहा समय सोने के समान है । ( पृ. - 105 ) 
वे वर्तमान के पक्षधर भले हों लेकिन अपने अतीत और अपने वुजूद को भुलाने के पक्षधर नहीं - 
जड़ों से जुदा होने वाला पेड़, पेड़ नहीं रहता काठ हो जाता है । ( पृ. - 47 )
उनकी दृष्टि में वही इंसान अच्छे हैं जो सद्कर्म करते हैं - 
साधारण इंसान सामान्य रत्न है, ईमानदार इंसान अमूल्य रत्न है । ( पृ. - 42 )
बुरे मनुष्य के बारे में उनकी सोच है - 
दुष्ट भेड़िये से भी बुरा है । ( पृ. - 126 )
और घरों के बारे में भी उनकी राय यही है - 
जिस घर में सदाचारी और सेवाभावी रहते हैं वह घर, घर नहीं मन्दिर होता है । ( पृ. - 26 )
पड़ोस को वे अनिवार्य मानते हैं - 
बिना पड़ौसी के हमारे मकान का मूल्य आधा है । ( पृ. - 127 )
उनकी नजर में प्यार ही सब चीजों का आधार है - 
प्यार : मन्दिर, मस्जिद, गिरजा, मठों और गुरुद्वारों की नींव है । ( पृ. - 29 )
वे बचत के पक्षधर हैं और अपव्यय के विरोधी हैं - 
अपव्ययी घर जलाकर रौशनी करता है । ( पृ. - 145 )
चीजों के दुरूपयोग के विरोधी है और संसाधनों के उचित प्रयोग के हिमायती हैं - 
वह भी देशभक्त है जो भोजन और पानी का उपयोग प्रसाद की तरह करता है । ( पृ. - 139 )
उनके अनुसार मनुष्य को कल्याणकारी कार्य करने चाहिए - 
कुबेर को बहुत अधिक धन होने के कारण नहीं कल्याणकारी होने के कारण देवता का दर्जा प्राप्त हुआ है । ( पृ.- 15 )
कोई भी कार्य तभी बोझ बनता है, जब उसे समुचित तरीके न किया जाए - 
बालों को अच्छी तरह से बनाया न जाए और वचनों को पूरी तरह से निभाया न जाए तो वह बोझ है । ( पृ. - 15 )
आदमी अपनी इच्छानुसार ही कार्य का प्रभाव ग्रहण करता है | कई बार हम सुनकर नहीं सुनते, देखकर नहीं देखते | इस बारे में लेखक कहता है - 
सभी कान एक जैसा नहीं सुनते हैं । ( पृ. - 57 )
वे सादगी पसंद हैं - 
नारी के आभूषण नवलखा हार नहीं, सोने और चाँदी के जेवरात नहीं सादगी और मधुर मुस्कान हैं । ( पृ. - 88 )

बदलाव के पक्षधर हैं -
निरन्तर चलना, दौड़ना है । ( पृ. - 139 )
मिल-बांटकर खाने के हिमायती हैं - 
भोजन की थाली पूजा की थाली है । इसमें दूसरे को भी हिस्सेदार बनाएँ । ( पृ. - 86 )
                     बुजुर्गों को वे वृक्ष-सा मानते हैं | माँ का उनके लिए विशेष महत्त्व है | उनका मानना है - 
ईश्वर का आधा काम माँ पूरा करती है । ( पृ. - 19 )
पाप-पुण्य माँ की सेवा पर निर्भर है - 
मेरी माँ मेरे कारण जितनी बार खुश हुई है उतने लाख मैंने कमाए और जितने आँसू उसने बहाए हैं उतने करोड़ मैंने गंवाए हैं । ( पृ. - 20 )
                     वे जीव-जन्तुओं और प्रकृति के तत्वों के माध्यम से बहुत सारे संदेश देते हैं | वे दान के बारे लिखते हैं -
सूर्य, चन्द्रमा, प्रकृति और पेड़, इसलिए महान हैं क्योंकि वे प्राप्त निधि को अपने तक सीमित न रखकर सबमें बाँटते हैं | ( पृ - 11 )
तुलना की प्रवृति से बचने के लिए वे हाथी-चींटी का उदाहरण देते हैं -
हाथी अपने को बहुत बड़ा और चींटी अपने को बहुत छोटा नहीं समझती है, इसलिए दोनों खुश रहते हैं । ( पृ. - 93 )
वे सद्कर्मों के पक्षधर हैं और कर्म पर विश्वास करने वाले हैं लेकिन भगवान पर उनकी आस्था है | वे उससे वरदान नहीं मांगते, अपितु उनकी मांग भी सद्कर्मों की है - 
प्रभु हमारे अपने प्रयत्न समुद्र के समान, इच्छाएँ तालाब के सामान और दूसरों से उम्मीदें चन्द बूँदों के समान हो । ( पृ. - 43 )
                            संग्रह की सभी सूक्तियाँ महत्त्वपूर्ण हैं और सार्थक संदेश देती हैं | इनको जीवन में अपनाकर नकारात्मकता को भगाया जा सकता है, सकारात्मकता को अपनाया जा सकता है | ऐसा करना जीवन-शैली में बड़ा परिवर्तन होगा | लेखक ने लोगों के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए सार्थक प्रयास किया है | अब यह पाठकों पर निर्भर है कि वो इससे कितना ग्रहण कर पाते हैं | लेखक निस्संदेह इस पुस्तक के लिए बधाई का पात्र है |
दिलबागसिंह विर्क 

  1. ******

1 टिप्पणी:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर समीक्षा।

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