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बुधवार, जनवरी 03, 2018

जीवन दर्शन को ब्यान करने का सफल प्रयास

सूक्ति-संग्रह - सूक्तियाँ मेरा अनुभव संसार 
लेखक - निजात 
प्रकाशक - एस. एन. पब्लिकेशन, नई दिल्ली 
पृष्ठ - 168 
कीमत - 450 ( सजिल्द )
एक साहित्यकार अपने अनुभव के बल पर अपने साहित्य में अनेक ऐसी पंक्तियाँ लिखता है, जो अपने आप में पूरी रचना होती हैं और जीवन-दर्शन का निचोड़ होने के कारण वे मार्गदर्शक की भूमिका निभाती हैं, लेकिन ऐसी उक्तियों को साहित्य में ढूँढने के लिए पाठक के पास भी उच्चकोटि की समझ होनी चाहिए | ' निजात ' जी ने " सूक्तियाँ मेरा अनुभव संसार " में सीधे-सीधे सूक्तियाँ लिखकर पाठक का काम आसान कर दिया है | इस संग्रह में 2200 सूक्तियाँ हैं जो 27 विषयों में विभक्त हैं | निस्संदेह, यह लेखक के विशाल अनुभव का परिणाम है | उसने जीवन को जैसा देखा, जैसा समझा उसे सार रूप में कहा है ताकि आम पाठक उसे समझ सके, अपना सके |
                    लेखक ने शुरूआत ' जन्म ' से की है | उसके अनुसार जन्म जीवन का आरंभ है, सृष्टि के सृजन का प्रथम हस्ताक्षर है | वह इसे प्रेम का सर्वश्रेष्ठ उपहार मानता है | जन्म सिर्फ बच्चे का ही नहीं होता, अपितु मातृत्व का भी होता है | माँ के बारे में लेखक कहता है -
ईश्वर माँ के रूप में हम सबके साथ होता है | ( पृ. - 26 )
लेखक माँ को सभी संज्ञाओं से बड़ा मानता है, क्योंकि वह भूमि पर ईश्वर का दूत है | माँ केवल देने का भाव है | उसके हँसने से जग हंसता है, क्योंकि वह सृष्टि का केंद्र बिंदु है | बचपन को लेखक ने पहला अध्याय कहा है | उसके अनुसार - 
जिन्हें अपना बचपन याद रहता है, वे असाधारण होते हैं | ( पृ. - 32 )
मुस्कान बचपन की सहोदर है | बच्चे फूल हैं और बचपन में सीखी बातें ही संस्कार बनती हैं | वे बच्चों को खेलने देने के पक्ष में हैं | उनके अनुसार बचपन कभी छल नहीं करता | छाँव के बारे में लेखक लिखता है - 
जिन्होंने धूप का स्वाद चखा है, वे छाँव का मूल्य जानते हैं, समझते हैं | ( पृ. - 43 )
छाँव का संसार धूप से छोटा भले हो, मगर वह दिव्य है | वे पेड़ लगाने का संदेश देते हैं | छाँव है तो धूप भी है | धूप जीवन का उपहार है | लेखक को धूप ईश्वर-सी लगती है, वे इसे ईश्वर के चश्मे से देखने की सलाह देते हैं | घर को वे एक बेजोड़ स्थान बताते हैं और संसार को घर के समान | घर बच्चों-बड़ों सभी से मिलकर बनता है | वे घर को बचाने के लिए त्याग करने से नहीं हिचकने की बात कहते हैं | विश्वास को वे घर का आधार बताते हैं | घर : एक मन्दिर की धारणा के बारे में वे लिखते हैं - 
कोई घर मन्दिर तभी बन पाता है, जब हम स्वयं उस घर के सच्चे पुजारी हो जाते हैं | ( पृ. - 58 )
                        वे चिराग पर भरोसा करने की बात करते हैं, क्योंकि यही अँधेरे के खिलाफ खड़ा होता है | छोटा हो या बड़ा, चिराग़ प्रकाश का मूल मन्त्र है | चिराह जाति-धर्म से ऊपर है, वह सूर्य की भाषा बोलता है | प्रकाश सत्य है | उसके आने से अँधेरा मिट जाता है | जो प्रकाश की ताकत को जान लेते हैं वे अँधेरे से लड़ने का हुनर जान लेते हैं | लेखक दिन-रात पर भी लेखनी चलाता है | उसके अनुसार दोनों भिन्न-भिन्न हैं, स्वतंत्र हैं | वे रत को कोसना उचित नहीं मानते | वे दिन ढलने से पूर्व घर आ जाने की बात कहते हैं | वे रात-दिन के चक्कर में पड़ने की बजाए स्वयं को प्रकाश से जोड़ने की बात करते हैं | वे मन में उठे भावों को भावना कहते हैं जो मूल रूप से निर्मल, निष्पाप, कोमल होती है लेकिन वे भावना को अंधा न होने का सुझाव देते हैं | वे भावना में बहकर जीवन नष्ट करने से रोकते हैं | जल को वे पांच तत्वों में से एक मानते हैं | वर्ष का जल अमृत है | वे जल का व्यापार करने से मना करते हैं | उनका मानना है - 
जल का पूजन करें, ईश्वर का पूजन हो जाएगा | ( पृ. - 84 )
जल तृप्तिदायक है, सूर्य पुत्र है, हवन-यज्ञ में आवश्यक है | वे कहते हैं कि जल प्रचंड होकर तुम्हें बर्बाद भी कर सकता है | धरती हमें धारण करती है, इसीलिए वह धरती है | वह इस जीवन की संजीवनी है | जो धरती को पालता-पोस्ता है, धरती उसे कई गुना लौटाती है | जो इसे संवारता है, वह उसे संवारती है | धरती का विनाश स्वयं का विनाश है |
                        लेखक वर्तमान को महत्त्व देता है | उसका मानना है कि जो ख़ुद को परमात्मा से जोड़ लेता है, वह समय के चक्र से मुक्त हो जाता है | समय को पढ़ लेना भय मुक्ति का उपाय है | वे समय को कालजयी कहते हैं | यह समय किसी के प्रति वचनबद्ध नहीं | इसका कोई साथी नहीं | जो समय को बर्बाद करता है, समय उसे बर्बाद कर देता है | वे प्रत्येक व्यक्ति को कर्त्तव्य से जुड़ा मानते हैं | कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति जीवन का निर्माण करने में आगे रहते हैं | ऐसे लोग समाज के लिए आदर्श हैं | वे लिखते हैं - 
कर्त्तव्य पालना जीवन की प्रथम पूजा है | ( पृ. - 102 )
वे आँसू और मुस्कान को जीवन का सार बताते हैं | उनके अनुसार आँसू अभिव्यक्ति में सक्षम हैं लेकिन वे गम में आँसू बहाने के पक्षधर नहीं | सदा रोते रहने वालों का साथ कोई नहीं देता | उनके अनुसार बच्चों की आँख में आँसू होना हमारी असफलता है | उनके अनुसार कल्पना सृजन की ओर ले जाती है, यह अन्वेषण की पहली क्रिया है | कल्पनाएँ प्रेरक होती हैं, लेकिन सभी कल्पनाएँ साकार नहीं होती | कल्पनाएँ ख़ुद जीवन की पूँजी नहीं | केवल कल्पनाएँ करना कमजोरी की निशानी है | उनका मानना है - 
महान व्यक्ति की कल्पनाएँ भी महान होती हैं | ( पृ. - 116 )
कलंक के बारे में वे लिखते हैं कि यह जीवन का एक बड़ा अवरोधक है | इसे धोया नहीं जा सकता | यह जीवन को कंपा देता है और व्यक्ति की सामाजिक हत्या कर देता है | वे भूख को प्रेरक मानते हैं | उनका कहना है कि भूख पर विजय पा लेना जरूरी है क्योंकि जो भूख से घबरा जाते हैं वे आगे नहीं बढ़ पाते | आत्मशक्ति भूख को पराजित कर देती है | संभावना को वे प्रगतिशील मानते हैं और यह उम्मीद और प्रेरणा की सूत्रधार है | 
                        निजात जी ख़ुद कवि हैं और कविता क्या है ? इस पर विचार करते हुए इसे भावों और विचारों का सम्यक सृजन मानते हैं | इसमें आत्मीयता का सुंदर प्रदर्शन होता है | यह भावों की यात्रा है, विचारों का दृश्य है | कविता राजनीति में झांकर उसे निर्वस्त्र कर देती है | यह जीवन का निर्माण करती है | उनका कहना है - 
कविता ईश्वर का अनुगीत है | ( पृ. - 137 )
वे सेवा को महत्त्व देते हैं लेकिन यह माँ की तरह निस्वार्थ भाव से होना चाहिए | प्राणी सेवा को वे मानव से श्रेष्ठ मानते हैं | परिंदों से प्रेरणा लेते हुए इन्हें हौसलों की सबसे बड़ी परिभाषा बताते हैं | परिंदों से इंसानियत, प्रेम सीखना चाहिए | भीड़ आक्रोश में अंधी हो जाती है | जनता के साथ नेताओं की चालाकी ज्यादा दिन नहीं चलती | सम्मान प्रत्येक योग्य व्यक्ति का अधिकार है, लेकिन सभी को सम्मान मिले यह जरूरी नहीं | वे सम्मान के प्रति आग्रह न रखने की बात करते हैं | सम्मान महान व्यक्तियों तक ख़ुद चलकर आता है | बच्चों को वे दिल से साफ़ मानते हैं | वे हमारे समाज का पवित्र हिस्सा हैं | उनका मानना है - 
बच्चे हँसते हैं तो आस-पास का वातावरण भी खिलखिलाने लगता है | ( पृ. - 156 )
वे समाचार की पूर्णता पाठकों की संतुष्टि को मानते हैं | वे उस भारतीय संस्कृति की बात करते हैं जिसमें अतिथि को भगवान माना जाता है | वे अतिथि को भी विनम्रता की सलाह देते हैं | उनका कहना है - 
अशिष्ट व्यक्ति अतिथि होने की पात्रता खो देता है | ( पृ. - 166 )
                     संक्षेप में, इन सूक्तियों की भाषा सरल और सहज है | लेखक ने इनके माध्यम से जीवन दर्शन को ब्यान करने का सफल प्रयास किया है, जिसके लिए वे बधाई का पात्र हैं |
दिलबागसिंह विर्क 
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