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बुधवार, जनवरी 17, 2018

गृहस्थी के दायित्वों के साथ कवि-कर्म का नमूना

कविता-संग्रह - मेरे शब्द शिशु 
कवयित्री - ममता शर्मा ' मनस्वी '
प्रकाशक - तस्वीर प्रकाशन, मंडी कालांवाली 
पृष्ठ - 112 
कीमत - 150 /- ( सजिल्द )
भले ही पुरुष और स्त्री जीवन के दो पहिए हैं, लेकिन गृहस्थी का दायित्व स्त्री को ही अधिक निभाना होता है | उसे अपना जीवन भी जीना होता है और पति, बच्चों, सास-ससुर की जिम्मेदारियां भी उठानी होती हैं | इन जिम्मदारियों को निभाते हुए कोई स्त्री कैसे कवि कर्म को करती है और कैसे उसका दायित्व उसकी कविताओं में झलकता है, इसका नमूना है ममता शर्मा ' मनस्वी ' का कविता-संग्रह " मेरे शब्द शिशु " |

                          पुस्तक का शीर्षक बनी कविता में कवयित्री लिखती है जब वह शब्द शिशुओं को कविता के झूलन में झूलाने हेतु भागती है तो घर की जिम्मेदारियां उसे पकड़ लेती हैं लेकिन वह इन सबके होते भी कविता लिखती है |  उसका माँ होना उसकी मदद करता है | वह बेटी में अपना प्रतिबिम्ब देखती है | बेटी को देखकर ही वह सवाल करती है कि कोई कैसे अपनी बेटी को गर्भ में मार देता है, हालांकि वह वहशी दरिंदों का होना, दहेज के लोभियों का होना इसका एक कारण मानती है | वह यह प्रश्न भी उठाती है कि बेटी का घर कौन-सा है, लेकिन इतना होने पर भी बेटी को बोझ मानने को तैयार नहीं | उसका मानना है - 
माँ का / तन है बेटी /
बाप का / मन है बेटी ( पृ. - 45 )
माँ बनकर ही वह माँ की बातें समझ पाती है | माँ के साथ-साथ वह बेटी भी है और बेटी के रूप में वह माँ की मुस्कान से ऊर्जा ग्रहण करती है | उसके अनुसार माँ उपवन है, स्वर्ग है, ख़ुदा है | वह माँ को सलाम करती है | माँ के साथ वह पिता को भी कविताओं का विषय बनाती है | वह लिखती है - 
जब भी देखती हूँ / पापा को / 
गंभीर मुद्रा में /अखबार पढ़ते / 
सहसा / मुझे / समन्दर याद आता है ( पृ. -  66 )
                            सामान्य नारी भी उसकी कविताओं का मुख्य विषय बना है | बूढ़ी औरत उसे शिवाला-सी लगती है | औरत के साथ अन्याय होते देखकर उसके हृदय में हूक उठती है और वह कह उठती है - 
मैं बदला नहीं / बदलाव चाहती हूँ ( पृ. -  28 )
बदला न चाहना स्त्री के स्वभाव को दिखाता है | वह लिखती भी है - 
मैं हूँ सहनशील / मैं हूँ ममता की झील /
मैं हूँ प्रेम की प्रतिमा ( पृ. -  41 )
लेकिन इसके साथ ही वह यह भी लिखती है - 
दुर्गा और काली / कल भी थीं / आज भी हैं /
और / हमेशा रहेंगी ( पृ. -  42 )
वह नारी को त्याग की देवी मानती है, लेकिन साथ ही उसका मानना है कि वह खाली हाथ है | वह सवाल करती है कि एक तरफ नारी के सभी रूप पूज्य हैं, आदरणीय हैं तो दूसरी तरफ भ्रूण हत्या, बलात्कार क्यों ?  उसका मानना है कि जब तक हम खामोश हैं तब तक अत्याचार होते रहेंगे | वह स्त्री से कहती है - 
अरी / तुम तो गंगा-सी पावन हो / 
शक्ति हो / ज्वाला हो / विजया हो ( पृ. -  111 )
वह नारी चरित्र के सिर्फ उजले पक्ष को ही नहीं देखती अपितु जब नारी को कैकेयी, मंथरा बनते देखती है तो दुखी होती है |
                   प्रेम भी कविताओं का विषय बना है | कवयित्री के अनुसार प्रेम अर्चना है, साधना है, भावना है, आराधना है | प्रेम रक्षा सूत्र है - 
तुम्हारी हर अनिष्ट से / रक्षा करने वाला /
वो रक्षा सूत्र / मेरा ही प्रेम होगा ( पृ. -  30 )
वह सावन का वर्णन करती है | उसके अनुसार सावन में प्रिय मिलन की प्यास बढ़ जाती है | उसके अनुसार यादें तूफां लाती हैं, लेकिन पूर्णमासी की रात बिछुड़े प्रेमियों को जोड़े रखती है | वह उस स्थिति को भी उजागर करती है जो एक पत्नी के प्रेम कविता लिखने से उत्पन्न होती है | वह शबरी की तरह राम का इन्तजार करती है और उसका मानना है कि कुछ लोगों का इन्तजार कभी खत्म नहीं होता |
                      जीवन के विविध पहलू भी कविताओं में शामिल हैं | उसके अनुसार जंगलों की जगह गगनचुम्बी कालोनियों ने ले ली है | आधुनिक इंसान अपना ईमान खोता जा रहा है | भीड़ में भी मानव का न मिलना उसे हैरान करता है | उसका मानना है कि पक्षियों को पंखहीन कर देने की सोच आजकल पराकाष्ठा के पार हो चुकी है | बच्चों और तितली के बच्चों को देखकर उसे बाल मजदूरी की याद आती है और वह उनको मुक्त कराने का सोचती है | उसे लोगों का फूल तोडना अच्छा नहीं लगता | साक्षात्कार में चलती सिफारिशें गरीबों को अपराध की दुनिया में धकेल देती है | वह हिन्द को हिंदी से सजाना चाहती है | होली उल्लास एवं उमंग का उत्सव है | नव वर्ष पर वह लिखती है - 
कुछ इस तरह आना कि / 
ख़ुशी से हर पीढ़ी करे तुम्हारा वन्दन ( पृ. -  64 )
                        कवयित्री आशावादी है | उसका मानना है कि बुलंद हौसले वाले आसमां छू लेते हैं | वह हिम्मत से काम लेती है और उसने बेरंग ज़िंदगी में रंग भरना सीख लिया है | वह ख़ुद को कटी पतंग कहती है मगर उसका मानना है - 
कोई नहीं लूट सकता मुझे / क्योंकि /
आसमां भी मेरा / और उड़ान भी मेरी ( पृ. -  62 )
वह अपना पात्र स्वयं गढ़ने की शपथ लेती है | वह नकाब नहीं पहनती क्योंकि उसे अपने चेहरे से प्यार है | वह पलों को शब्दों का रूप देकर रोक लेती है | उसका पता उसकी कविताओं में छिपा है |
                       कविताओं में वर्णात्मक शैली, आत्मकथात्मक शैली और संबोधन शैली का प्रयोग हुआ है | प्रकृति का चित्रण मिलता है | अनुप्रास, उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार के अनेक उदाहरण हैं | छंद मुक्त है, लेकिन कवयित्री तुकांत का प्रयोग भी करती है |  भाषा सरल, सहज और भावानुकूल होने के लिए पाठकों को जोड़े रखने में सक्षम है | संक्षेप में, कवयित्री का यह प्रयास सराहनीय है और भविष्य में उससे ढेरों उम्मीदें हैं |
दिलबागसिंह विर्क 
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