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बुधवार, मई 03, 2017

रूप देवगुण की काव्य साधना को दिखाती पुस्तक

पुस्तक – काव्य का अनवरत यात्री : रूप देवगुण
लेखिका – डॉ. आरती बंसल
प्रकाशक – सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल
पृष्ठ – 144
कीमत – 300 /-
कविता की आलोचना के लिए भावुक मन और तार्किक बुद्धि दोनों की आवश्यकता होती है, क्योंकि भावुक मन कविता से तादात्म्य बैठाने में मदद करता है और तार्किक बुद्धि कविता के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने में मदद करती है | " काव्य का अनवरत यात्री : रूप देवगुण " नामक पुस्तक पढ़ते हुए यह बात यकीनी रूप से कही जा सकती है कि इस पुस्तक की लेखिका " डॉ. आरती बंसल " में ये दोनों गुण विद्यमान हैं |

                        इस कृति में लेखिका ने कवि रूप देवगुण की 16 काव्य कृतियों पर समीक्षात्मक लेख लिखे हैं और अंत में उपसंहार में रूप देवगुण की कविताओं में प्रमुखता से विद्यमान बिन्दुओं को प्रगट किया है | उनके अनुसार प्रकृति से प्रेम, नवीन और आशावादी स्वर, मानवतावादी दृष्टिकोण, भौतिकवादी युग पर व्यंग्य, एकाकीपन, माता-पिता की स्मृति रूप देवगुण की कविताओं के प्रमुख विषय रहे हैं | शैली की दृष्टि से उनकी कविताओं को वे कविता, लघु कविता और ग़ज़ल की त्रिवेणी का नाम देती हैं | उनकी कविताओं की भाषा का विश्लेषण भी उपसंहार में किया गया है | 
                       रूप देवगुण निस्संदेह प्रकृति प्रेमी कवि हैं और इसका प्रमाण उनके अनेक कविता-संग्रहों के नाम ही हैं, यथा - गुलमोहर मेरे आंगन में, पहाड़ के बादल अभिनय करते हैं, दुनिया भर की गिलहरियाँ, नदी की तैरती-सी आवाज़, धूप मुझे है बुला रही, पत्तों से छन कर आई चाँदनी | लेखिका ने कवि के प्रकृति चित्रण पर लिखा है | प्रकृति के साथ कवि किस प्रकार के संबंध स्थापित करता है, उसको रेखांकित किया है | वह लिखती हैं - 
" पतझड़ के मौसम में पत्तों के झड़ जाने के पश्चात वृक्ष के एकाकीपन को कवि ने महसूस किया है तथा वृद्धावस्था में व्यक्ति के अकेलेपन को भी निकट से देखा है | वृक्ष व वृद्ध व्यक्ति की जीवन दशा कवि को एक जैसी लगती है |"
               कवि का प्रकृति चित्रण सिर्फ वर्णन नहीं अपितु वह कवि के संवेदनशील मन की अभिव्यक्ति है | कविता-संग्रह ' एक बात पूछूँ ' की समीक्षा करते हुए लेखिका ने लिखा है - 
" यद्यपि प्रस्तुत काव्य-संग्रह की लगभग आधे से अधिक कविताएँ प्रकृति चित्रण पर आधारित हैं, परन्तु यह चित्रण साधारण नहीं है, बल्कि कवि के भावुक मन की संवेदनशीलता को अपने भीतर संजोए हुए है |"
लेखिका ने कवि के प्रेम के प्रति नजरिये पर अपनी राय देते हुए लिखा है - 
" कवि प्रेम में मांसलता एवं स्थूलता की अपेक्षा आत्मीयता एवं सूक्ष्मता की बात करता है |"
लेखिका कवि की मानवतावादी सोच को उद्घाटित करते हुए लिखती हैं - 
" वह झोंपड़ी में रहने वाले गरीब व सड़कों पर काम करने वाले मजदूर के प्रति विशेष सहानुभूति रखता है |"
                     कविताएँ कवि के व्यक्तित्व को बखान करती हैं | डॉ. आरती ने भी रूप देवगुण की कविताओं में से गुजरते हुए इसे महसूस किया है, तभी तो वह लिखती हैं - 
" कवि रूप देवगुण की एक विशेषता यह भी उल्लेखनीय है कि वो जीवन के संघर्षों में निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा बड़ी ही सरलता से दे जाते हैं |"
                  कवि की भाषा-शैली पर भी लेखिका ने विचार किया है | ' मिलन को दूर से देखो ' की समीक्षा करते हुए वह लिखती हैं -
" भाषा की दृष्टि से इस संग्रह की सभी कविताएँ सरल एवं सहज भाषा में लिखी गई हैं | अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग कवि ने बेझिझक किया है | यथा - डियर, अंकल, ब्लड प्रेशर, वाल्ट, कूल आदि | छोटे-छोटे बिम्ब एवं शब्दों का तारतम्य कविताओं के सौन्दर्य को और भी बधा देता है |
उपसंहार में भाषा-शैली के बारे में वह लिखती हैं - 
" उनकी भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है जोकि साधारण से साधारण पाठक को भी सरलता से समझ आ जाती है | अलंकारों की दृष्टि से अनुप्रास, पुनरुक्ति, उपमा, रूपक व मानवीकरण कवि के प्रिय अलंकार हैं | मानवीकरण अलंकार तो उनका सबसे प्रिय अलंकार है |"
                यह पुस्तक मूलत: समीक्षात्मक पुस्तक और इसे शोध-ग्रन्थ भी कहा जा सकता है, लेकिन लेखिका ने पूरी-पूरी कविताएँ रखकर अपनी बात को पुख्ता किया है | कविताओं का चयन यहाँ लेखिका की कविता के प्रति समझ को दिखाता है, वहीं यह पाठकों को रूप देवगुण की कविताओं को पढ़ने का अवसर भी देता है | इस संग्रह में शामिल कविताएँ उन सभी बिन्दुओं पर खरी उतरती हैं जिनको लेखिका ने निष्कर्ष रूप में दिया है |
                    संक्षेप में, " काव्य का अनवरत यात्री : रूप देवगुण " डॉ. आरती बंसल के अथक परिश्रम का साक्षात रूप है | इस पुस्तक के द्वारा वे रूप देवगुण जी की काव्य साधना को सशक्त ढंग से पाठकों के सामने प्रस्तुत करने में सफल रही हैं | 
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दिलबागसिंह विर्क 

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