मानवेतर प्राणियों से प्रेम
प्रेम का संबंध सिर्फ व्यक्तियों से नहीं | मानवेतर प्राणियों से भी प्रेम हो जाता है | मानवेतर प्राणी भी प्रेम को समझते हैं और प्रत्युत्तर में प्रेम करते हैं | सामान्यत: उनकी वफादारी आदमी से भी अधिक होती है | कुत्ता इनमें से सबके आगे है | कुत्तों को अक्सर घरों में पाला जाता है और कुत्ते और उसके मालिक के बीच आदमी-पशु जैसे संबंध न रहकर अपनत्व के संबंध पैदा हो जाते हैं | कुता मालिक और उसके परिवार को अपना मानता है | ‘ समभाव ’ इसी प्रेम को दर्शाती कहानी है |
कहानी के अंत में किसी के पूछने पर नायक अपने परिवार के सदस्यों की संख्या चार बताता है, जिनमें एक वह, एक उसकी पत्नी, एक उसका बेटा बिट्टू और चौथा कुत्ता टॉमी | पूछने वाला आश्चर्यचकित होता है, लेकिन नायक उसके आश्चर्य पर आश्चर्य करते हुए भी इस आश्चर्य का कारण जानता है, क्योंकि पहले उसके विचार भी सामान्य लोगों जैसे थे | कहानी की शुरूआत में वह पिता जी के बच्चों से पहले कुत्ते को दूध पिलाए जाने का विरोधी था | वह कहता था-
“ आखिर जानवर जानवर है, मनुष्य मनुष्य ही है | अपना अपना है, पराया पराया है | इन सब को हम एक तुला पर कैसे तोल सकते हैं, सबको बराबर कैसे मान सकते हैं ? ”
पिता जी समझाते हैं, लेकिन नायक पर इसका असर नहीं होता, लेकिन समय के साथ-साथ अपने अनुभव से वह खुद उसी स्थिति में पहुँच जाता है, जिस स्थिति में उसके पिता थे | उसे उस स्थिति में पहुँचाने वाली अनेक घटनाएं हैं | पहली घटना में उसकी पत्नी बताती है कि टॉमी ने बिट्टू की उस समय रक्षा की, जब गली में खेलते समय दूसरा लड़का उसे पीटने की कोशिश कर रहा था | दूसरी घटना में टॉमी नायक को बहुत देर तक सोते रहने पर जगाता है | तीसरी घटना में वह आधी रात को बरसात शुरू होने पर नायक को रस्सी से कपड़े उतारने के लिए प्रेरित करता है | इन घटनाओं से उसके मन में टॉमी के प्रति अपनत्व की भावना उमड़ पड़ती है |
टॉमी सिर्फ कर्त्तव्य नहीं निभाता, अपितु परिवार के सदस्यों की तरह प्रेम भी माँगता है | प्रेम की मांग ही उसे परिवार का सदस्य बनाती है, अन्यथा कर्त्तव्यों का पालन तो नौकर भी कर लेते हैं | लेखक ने टॉमी के इस प्रदर्शन को उकेरा है | नायक जब दूध पीता है, तो वह भी दूध की मांग करता है | जब वह कॉलेज से लौटता है, तो टॉमी भी बिट्टू की तरह प्यार जताना चाहता है | खेल में प्रथम आकर शाबाशी माँगता है | बासी रोटियाँ नहीं खाता |
टॉमी का समर्पण भी कमाल का है | लेखक इसे नायक के पिता जी की मृत्यु के प्रसंग में दर्शाता है | वह पार्थिव शरीर के चारों ओर तेजी से चक्कर लगाता है | शव यात्रा के साथ जाता है | अंत्येष्टि के समय रह-रहकर चिता की ओर बढ़ता है |
“ अगर मैं उसे नहीं पकड़ता तो निश्चय ही वह चिता की लपटों में झुलस जाता | ”
वापसी के समय भी वह मुड़-मुड़ कर देखता है | यही बातें मैं पात्र को पिता जी के सिद्धांत को पूर्णरूपेण अपनाने के लिए विवश कर देती हैं |
यह कहानी कुत्ते के और उसके प्रति मालिक के प्रेम को दिखाती कहानी है, और ऐसे दृश्य जीवन में आम दिखते हैं | वास्तव में प्रेम मानवेतर प्राणियों में भी पाया जाता है, वे प्रेम को महसूस करते हैं और इसका प्रदर्शन करते हैं |
इस कहानी की विशेषता है कि यह कुत्ते के क्रिया-कलापों को भी उसी बारीकी से दिखाती है, जैसे किसी मानवीय पात्र के क्रिया-कलाप हों | नायक की बदली विचारधारा के पीछे जो कारण हैं, वो भी बड़े स्वाभाविक हैं | जब तक कोई व्यक्ति किसी मानवेतर प्राणी से निकटता नहीं रखता, तब तक वह उसका महत्त्व नहीं समझ पाता | कुत्ता अपनी वफादारी के कारण उन सबसे अधिक लोकप्रिय प्राणी है, जिन्हें घरों में रखा जाता है | इस कहानी में वह वफादार तो है ही, साथ ही वह जिस तरीके से प्यार की मांग करता है, वह इस कहानी का महत्त्वपूर्ण पहलू है |
देश प्रेम
देश प्रेम भी प्रेम का एक रूप है | राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी कहते हैं –
जिसको नहीं गौरव तथा निज देश का अभिमान है
वह नर नहीं, नर पशु निरा और मृतक समान है |
देश से प्रेम हर नागरिक को करना चाहिए, लेकिन देश प्रेम के मार्ग में अनेक बाधाएं हैं | कुछ लोग अज्ञानतावश तो कुछ लोग स्वार्थवश क्षेत्रवाद, जातिवाद, धर्मवाद, भाषावाद को हवा देते हैं | देश प्रेम के लिए इन संकीर्णताओं से ऊपर उठना जरूरी होता है | लेखक-कवि नागरिकों में देश प्रेम की भावना को पैदा करने के लिए, संकीर्णताओं से ऊपर उठाने के लिए अपने-अपने ढंग से प्रयास करते ही हैं | ‘ बात समूचे देश की ’ कहानी देश प्रेम के जज्बे से तो ओत-प्रोत है ही, साथ ही यह संदेश भी देती कि कैसे पूरे देश को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है |
लोगों को जोड़ने का सर्वोतम साधन है भाषा | भारत बहुभाषी राष्ट्र है, ऐसे में अनेक समस्याएँ पैदा होती हैं या यूँ कह सकते हैं कि स्वार्थी लोग भाषा के नाम पर आसानी से मतभेद पैदा कर देते हैं | वैसे यह भारत का खूबसूरत गुण है, अगर इसे सार्थक और सापेक्ष तरीके से सोचा जाए | भारत में त्रिभाषी फार्मूला इसी लिए अपनाया गया ताकि हम अंतर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेज़ी और अपनी मातृभाषा के साथ तीसरी भाषा सीखकर दूसरे लोगों से परिचित हो सकें | तीसरी भाषा का अर्थ था वो भाषा जिससे हम अपरिचित हों, जैसे दक्षिण के लोग हिंदी सीखें और हिंदी भाषा दक्षिण की भाषा सीखें | लेकिन स्वार्थवश इस ढाँचे को ही बदल दिया गया | दक्षिण और पूर्वोतर के राज्य हिंदी विरोध करने लगे और उत्तर में पड़ोसी राज्य की भाषा को तीसरी भाषा के रूप में अपनाया गया | भाषा का महत्त्व क्या है, इसे लेखक ने बड़ी खूबसूरती से ब्यान किया है –
“ बंगलौर से मैसूर की ओर जाती हुई गाड़ी में वहाँ के कुछ लोगों ने मुझे बताया – ‘ कर्नाटक के लोग हिंदी से प्यार करते हैं, हिंदी जानते हैं, बोलते हैं और सीखना चाहते हैं |’ तब मुझे बाहर के वे हरे-भरे खेत बहुत प्यारे लगने लगे और ऐसा आभास हुआ कि मैं अपने देश के किसी अत्यंत सुंदर अनुपम भाग का अवलोकन कर रहा हूँ | ”
इस कहानी में प्रमोद अपने चाचा-चाची से मिलने मैसूर जा रहा है | उसकी चाची दक्षिण की है | प्रमोद को अपनी चाची अच्छी लगती है –
“ ‘ क्यों इतनी अच्छी लगी थी चाची मुझे ’- मैंने एक बार उनके जाने के बाद सोचा था और तब मुझे लगा था कि वह केवल चाची है, मेरी अच्छी चाची, मेरी अपनी चाची और इससे परे और कुछ नहीं – न दक्षिण भारत की बेटी, न किसी अन्य जाति की कन्या | ”
लेखक इस कहानी में देश प्रेम को बढ़ाने का फार्मूला बताता है, और यह है – उत्तर दक्षिण के आपसी संबंध जुड़ने से देश एक होगा | देश भ्रमण भी देश प्रेम को बढाता है |
प्रमोद मैसूर भ्रमण के साथ-साथ चाची की छोटी बहन शोभा से भी मिलता है | वह हिंदी में पी.एच.डी. कर रही है, हिंदी से उसे लगाव है, यह बात दोनों को करीब लाती है | दोनों के बीच प्रेम भाव को देखकर चाची शोभा की शादी प्रमोद से करवाने की जिम्मेदारी लेती हैं | चाचा भले ही क्षेत्रवाद और जातिवाद से ऊपर रहे होंगे तभी तो उन्होंने दूसरी जाति की दक्षिण भारतीय लड़की से शादी की थी, लेकिन क्षेत्रवाद का छोटा-सा अंश उनके भीतर रहा होगा तभी वे कहते हैं कि मैं तो तुम्हारी चाची के प्रदेश का होकर रह गया, लेकिन तुम शोभा से उसका प्रदेश भी छुड़वा सकते हो | इस पर शोभा का उत्तर देश प्रेम का उत्कृष्ट नमूना है –
“ देखो जीजा जी, आप प्रदेशों की बातें मत करो | अगर बात करनी है, तो समूचे देश की करो | ”
जब यह सोच जन-जन की होगी, देश मजबूत होगा | लेखक अपनी कलम से जो प्रयास इस हेतु कर सकता है, रूप देवगुण जी ने अपनी इस कहानी में वो प्रयास बड़ी खूबसूरती से किया है | लेखक ने इस कहानी में देश प्रेम को मुख्य विषय न बनाकर परोक्ष रूप से प्रस्तुत किया है | लेखक कहानी के अंत के द्वारा संकीर्णता से ऊपर उठने का महत्त्वपूर्ण संदेश प्रेषित करने में सफल रहता है | देश भक्ति को वातावरण के माध्यम से भी उभारा गया है |
संक्षेप में, इन 17 कहानियों में प्रेम का श्वेत पक्ष भी है और श्याम पक्ष भी | प्रेम कहीं उभर कर सामने आता है, तो कहीं यह छुपा हुआ है | प्रेम के विविध रूप हैं और अधिकाँश रूपों का प्रतिनिधित्व इस संग्रह की कहानियाँ करती हैं | पहले तीन संग्रह बीसवीं शताब्दी के अंतिम दो दशकों में प्रकाशित हुए हैं और चौथा संग्रह भी आज से बारह वर्ष पहले प्रकाशित हुआ है, ऐसे में आज की कहानियों से शैलीगत भिन्नता स्वाभाविक है, लेकिन प्रेम शाश्वत है | हालांकि आज की कहानियों में प्रेम का वर्णन अमर्यादित भी होता है, लेकिन रूप देवगुण की कहानियों में यह पूरी तरह से मर्यादित है | आशा है कहानी के पाठक प्रेम के इन विविध रूपों को पढ़ते हुए आनन्दित होंगे |
दिलबागसिंह विर्क
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