पुस्तक – हरियाणवी सिनेमा : संदर्भ कोष
लेखक – रोशन वर्मा
प्रकाशक – लक्ष्य बुक्स, पिंजौर
पृष्ठ – 176 ( पेपर बैक )
कीमत – 500 /-
संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों का नाम है जो लोगों के सोचने, बोलने, कार्य करने, खाने-पीने में झलकता है । नृत्य, गायन, साहित्य, कला, वास्तु आदि संस्कृति को सुरक्षित रखने में सहायक होते हैं । फिल्मों का योगदान भी इस दृष्टिकोण से अमूल्य है । हरियाणवी सिनेमा हरियाणवी संस्कृति को संजोने का काम कर रहा है, लेकिन हरियाणवी फिल्मों की दशा और दिशा कैसी है, इससे बहुत से लोग परिचित नहीं । इस क्षेत्र में रोशन वर्मा की पुस्तक “ हरियाणवी सिनेमा संदर्भ कोष ” महत्त्वपूर्ण पुस्तक है ।
लेखक ने हरियाणवी सिनेमा के विविध आयाम अध्याय में हरियाणवी सिनेमा की दिशा और दशा पर चिंतन किया है । वे लिखते हैं –
“ अब तक बनी हरियाणवी फिल्मों से इनकी ऐसी छवि नहीं बनती जिसके आधार पर कहा जा सके कि हरियाणवी फिल्मों में पूर्ण परिपक्वता है । भविष्य में जो लोग हरियाणवी फ़िल्में बनाने का विचार मन में रखते हैं, उन्हें अब तक हरियाणवी फिल्मों की सफलता, असफलता की समग्र समीक्षा कर इस क्षेत्र में उतरना चाहिए । विश्लेषकों के अनुसार हरियाणवी फिल्मों का बाज़ार तो आज भी है, बस इसकी मांग के हिसाब से फिल्म बनाने की जरूरत है । ”
वे हरियाणा सरकार के रवैये को निराशाजनक मानते हुए गुजरात और महाराष्ट्र सरकार के उदाहरण देते हैं । साथ ही उन व्यक्तियों और संस्थाओं का भी जिक्र करते हैं जिन्होंने हरियाणवी सिनेमा को समृद्ध करने में भरपूर योगदान दिया है । वे हरियाणा सिनेमा से जुडी हस्तियों देवीशंकर प्रभाकर, जे.पी. कौशिक, दिलराज कौर, रघुविंदर मलिक, भाल सिंह बल्हारा, अनूप लाठर, सविता साथी, हरविंद्र मलिक, राजू मान, जोगेंद्र कुंडु और मनफूल सिंह डांगी पर विस्तारपूर्वक चर्चा करते हैं । इन हस्तियों के साथ उनकी महत्त्वपूर्ण तस्वीरें खुद अनोखी दास्तान बयान करती हैं । वे हरियाणवी सिनेमा के संस्थागत इतिहास का जिक्र करते हुए 1973 से अब तक बनी हरियाणवी फिल्मों और उनके निर्माताओं की सूची भी देते हैं । अगली सूचियाँ फिल्म निर्देशकों, गीतकारों, संगीतकारों, गायकों, महिला गायिकाओं की हैं ।
पुस्तक में फिल्मों के विभिन्न पहलुओं को बिन्दुबार स्पष्ट किया गया है । इसमें फिल्म के निर्माता-निर्देशक का नाम तो है ही, जिस बैनर के नीचे वे बनी उनका जिक्र भी है । गीतकार, संगीतकार, गायक और अभिनेता-अभिनेत्रियों का नाम भी है । फिल्म में गाए गए गीतों की सूची है, तो फिल्म के हरियाणवी सिनेमा में स्थान और इसकी कहानी पर संक्षिप्त टिप्पणी भी है । 15 अप्रैल 1983 को प्रदर्शित फिल्म ‘ बहुराणी ’ के कलाकारों और फिल्म के बारे में लेखक लिखता है –
“ सभी कलाकार हरियाणा की जमीन से जुड़े संस्कृति के प्रहरी कहलाने के सच्चे हकदार । यह एक यादगार प्रयास था ।”
फिल्म चन्द्रावल की कहानी के संदर्भ में वे लिखते हैं –
“ गाड़िया लुहार की बेटी एवं एक गाँव के मुखिया के बेटे के बीच पनपे प्रेम और उसके दुखांत की कथा पर केंद्रित ।”
पुस्तक के अंत में लेखक ने हरियाणवी सिनेमा के उत्थान में प्रस्तावित राज सहयोग एवं मूल अपेक्षाओं का वर्णन किया है । हरियामवी फिल्म की सफलता के अनेक मूल मंत्र वे प्रस्तुत करते हैं –
“ कहानी हरियाणा की मूल संस्कृति को दर्शाती हो, संगीत का ग्रामीण जीवन से जुड़ा होना भी आवश्यक है ।”
संक्षेप में, यह पुस्तक सिर्फ आंकड़े ही उपलब्ध नहीं करवाती, अपितु हरियाणवी सिनेमा को समझने और इसे प्रगति की राह दिखाने का कार्य भी करती है । इस पुस्तक के लेखन के लिए रोशन वर्मा बधाई के पात्र हैं और अगर ऐसे प्रयास निरन्तर होते रहें तो न सिर्फ़ हरियाणवी फिल्मों के प्रति लोगों की जानकारी बढ़ेगी अपितु हरियाणवी फिल्मों के लिए नए आयाम भी खुलेंगे ।
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दिलबाग सिंह विर्क
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