कवि – रूप देवगुण
प्रकाशक - सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल
पृष्ठ - 86
मूल्य - 200 / - ( सजिल्द )
साहित्य समाज सापेक्ष होता है | आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में लम्बी विधाओं को पढ़ने का समय लोगों के पास कम ही है | लघुकथा इसी कारण आज एक लोकप्रिय विधा बन चुकी है | यूं तो लघु कविताएँ भी समय-समय पर लिखी जाती रही हैं, लेकिन अभी तक इन्हें अलग विधा के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता, लेकिन रूप देवगुण जी इसे अलग विधा के रूप में स्थापित करने के लिए निरंतर प्रयासरत है और इसी कड़ी में उन्होंने लघु कविताओं का तीसरा संकलन “ पत्तों से छनकर आई चाँदनी ” साहित्य जगत को दिया है | इस संग्रह में उन्होंने 119 लघु कविताओं को 10 शीर्षकों के अंतर्गत रखा है |
पुस्तक के शीर्षक से संबंधित खण्ड में प्रकृति चित्रण से संबंधित कविताएँ हैं | पत्तों से छनकर आई चाँदनी कवि को बिस्तर पर चित्रकारी करती प्रतीत होती है | कवि अकेला होकर भी खुद को कभी अकेला नहीं पाता क्योंकि बातें करने के लिए चाँद मौजूद है | करवा चौथ के दिन चाँद के महत्त्व को कवि प्रतिपादित करता है, साथ ही उसका मानना है कि चाँद इस दिन उदय होकर सभी सुहागिनों के चेहरे पर चांदनी बिखेर देता है | बुरे हालातों का जिक्र करते हुए कवि चाँद को ठंडी चांदनी बिखेरते रहने का आह्वान करता है ताकि इससे वातावरण में कुछ ठंडक बरकरार रहे |
कवि अपने सन्दर्भ में भी कविताएँ कहता है | कवि का मानना है कि वह सब कुछ सहने और हर हालतों में गाने में समर्थ है | कवि का जीवन दर्शन इस लघु कविता में स्पष्ट झलकता है –
कड़वाहट को न दी / मैंने तरजीह
मिठास से बनाया है / मधुर माहौल
नाराजगी शब्द कवि के शब्दकोश में नहीं और वे सबका हालचाल पूछता है, सबको साथ लेकर चलता है | आत्मीयता कवि का प्रमुख गुण है और वह जीव-जन्तुओं से भी आत्मीय संबंध जोड़ लेता है | टफी नामक कुत्ते की हर गतिविधि को उन्होंने अपनी कविता का विषय बनाया है | टफी का मानव की तरह प्यार की मांग करना कवि कि उदात्त सोच को दर्शाता है | कवि सहज आकर्षण को लेकर भी कविताओं का सृजन करता है और सफर के दौरान महसूस किए पलों को भी कविता का विषय बनाता है | रेल में बैठा वह बाहर के नजारों को देखता है, रेल में घर के खाने का अलग स्वाद पाता है, लेकिन वह उस डर को भी बयाँ करता है, जो वह भीड़ भरी सड़कों पर कार में बैठकर महसूस करता है, लेकिन सफर में गीत सुनना और प्रकृति को देखना उसे आनन्दित करता है | कवि पैसे को महत्त्व नहीं देना चाहता | वह साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लेना चाहता है, भजन मंडली के साथ जाना चाहता है | देर तक सोना, पहाड़ों पर घूमना चाहता है, लेकिन उसकी सोच सिर्फ ख़ुद तक सीमित नहीं, अपितु –
चलो आज जाएँ / किसी झोंपड़ी वाले / के पास
सुने उसका दुःख दर्द / और उसे महसूस करें /
भीतर तक
भीतर तक
एक भाग उन्होंने माँ को भी समर्पित किया है | कवि का मानना है की माँ का ऋण चुकाया नहीं जा सकता | बेटे भले दिमाग से सोचें मगर माँ की तरफ से रिश्ता भावनात्मक ही होता है | कवि कहता है जिनकी माँ देवलोक चली जाती है, वो क्या जाने माँ क्या होती है | बीमारी पर, घर आने में देरी होने पर माँ की विह्वलता को कवि ने बड़ी सुन्दरता से उकेरा है | नन्हें बच्चे कवि को फूल से लगते हैं, साथ ही वह नश्वरता का संदेश भी फूलों के माध्यम से देता है –
अगले दिन देखा / तो /
गई थीं उसकी पंखुरियां बिखर
कवि उन लोगों का जिक्र भी करता है, जो फूलों को मसलने से नहीं चूकते | कांटे कवि की नजर में गुलाब के रक्षक हैं, हालांकि उसका मानना है कि कांटे भी आदमी को गुलाब तक पहुंचने से कब रोक पाते हैं | कवि काँटों की तरह आँखों में चुभते लोगों की बात भी करता है और समाज हित के लिए रास्ते से कांटे बुहारने का संदेश भी देता है | कविता के सृजन और इसमें मौजूद नौ रसों का वर्णन भी इस संग्रह में हुआ है | याद आने पर, किसी का शोषण होते देखकर कविता लिखी जाती है, तो कविता का सृजन तब भी होता है, जब कोई बच्चा प्यार से गोद में आ चढ़ता है | होली का दृश्य हो, श्मशान का दृश्य हो या फिर अँधेरी रात, सब कविता को जन्म देने में सहायक हैं और जो अन्याय का विरोध करता है, वही कविता का नायक होता है | कवि पतंग बनकर आकाश को छूने की कोशिश करता है | किसान और मजदूर के संघर्ष को देखता है | बादलों से वह दूसरों पर मर मिटना सीखता है | घास से वह न मिटने की प्रेरणा लेता है, पेड़ में पिता को देखता है | इन्तजार सजा भी है और इसका अपना ही मजा भी है, कवि दोनों पक्षों को देखता है | वह पक्षी से जीवन की ऊँचाई पाना सीखता है |
रूप देवगुण की इन कविताओं को देखकर हम कह सकते हैं कि लघु कविताओं में भाषिक आडम्बर को कोई स्थान नहीं | यह लघुकथा की तरह ही सीधी अपनी बात कहती हैं | रूप देवगुण जी की कविताएँ क्षण विशेष को चित्रित करती हैं और यही विशेषता जापानी विधाओं में है, जो अपने लघु आकार के लिए प्रसिद्ध हैं लेकिन लघु कविताएँ बंधन मुक्त होने के कारण उनसे अलग पहचान रखती हैं | हालांकि इस प्रकार की कविताओं में सपाट बयानी का खतरा है, लेकिन रूप देवगुण जी कविताओं को देखकर आशा जगती है कि लघु कविता भी लघुकथा की तरह स्थापित हो पाएगी और अगर ऐसा हुआ तो उसमें रूप देवगुण जी का स्थान अद्वितीय होगा |
दिलबागसिंह विर्क
******
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-08-2016) को "तूफ़ान से कश्ती निकाल के" (चर्चा अंक-2430) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह , मंगलकामनाएं !
एक टिप्पणी भेजें