पुस्तक - आज के प्रसिद्ध शायर बशीर बद्र
संपादक - कन्हैयालाल नन्दन
प्रकाशक - राजपाल प्रकाशन
कीमत - 150 / - ( पेपर बैक )
ग़ज़ल की विशेषता यह है कि इसके अकेले-अकेले शे'र लोगों की जबान पर चढ़कर अमरता हासिल कर लेते हैं| शायरी में रुचि रखने वाला हर शख्स इन पंक्तियों से वाकिफ होगा ही -
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए |
ऐसे अनेक अमर अशआर के रचयिता हैं बशीर बद्र साहब | राजपाल प्रकाशन की ' आज के प्रसिद्ध शायर ' श्रृंखला के अंतर्गत बशीर बद्र की प्रतिनिधि रचनाओं का संचयन, संपादन किया है - कन्हैयालाल नन्दन ने | पुस्तक के अंत में प्रकाशक की टिप्पणी है -
" बशीर बद्र मुहब्बत के शायर हैं और उनकी शायरी का एक-एक लफ्ज़ इसका गवाह है | मुहब्बत का हर रंग उनकी ग़ज़लों में मौजूद है | उनका पैगाम मुहब्बत है - जहां तक पहुंचे |"
निस्संदेह बशीर बद्र मुहब्बत के शायर हैं, लेकिन वे सिर्फ़ मुहब्बत के शायर नहीं | इस संकलन में, जिसे प्रकाशक ने माना है कि - " यह संकलन उनकी समूची शायरी का प्रतिनिधित्व करता है | " इस तथ्य को देखा जा सकता है | इस संकलन की शुरूआत में, उनके प्रसिद्ध अश'आर हैं और फिर पूरी रचनाएं हैं | इन शुरूआती पृष्ठों में ही उनका पूरा फलसफा झलकता है |
सच की, सच बोलने वाले की दशा का सटीक अंकन करते हुए वे लिखते हैं -
जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौंसला नहीं होता |
हालातों के आगे आम आदमी मजबूर ही होता है, लेकिन उस मजबूर को गुस्सा नहीं आता यह तो नहीं | शायर कहता है -
हमसे मजबूर का गुस्सा भी अजब बादल है
अपने ही दिल से उठे, अपने ही दिल पर बरसे |
घर बनाने बड़ा मुश्किल हैं, लेकिन दहशतगर्द इसे कब समझते हैं, वे लिखते हैं -
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में |
दुश्मनी के बारे में कितनी सरलता से वो कितनी बड़ी बात कहते हैं -
दुश्मनी जम कर करो, लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों |
और यह बात वो इसलिए कहते हैं क्योंकि उनका मानना है दुश्मनी लम्बी नहीं चल सकती -
दुश्मनी का सफर इक क़दम दो क़दम
तुम भी थक जाओगे, हम भी थक जाएंगे |
और इस सच से वाकिफ होने के कारण ही वे कहते हैं -
सात सन्दूकों में भरके दफ़न कर दो नफ़रतें
आज दुनिया को मुहब्बत की ज़रूरत है बहुत |
वे मुहब्बत के पक्षधर हैं लेकिन उन्हें समाज के उसूलों का पता है, इसीलिए वे कहते हैं -
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो |
यह किसी एक समाज का सच नहीं, बल्कि हर समाज और हर शहर का सच है -
दुनिया के सारे शहरों का कल्चर यकसाँ
आबादी, तन्हाई बनती जाती है |
वे एक तरफ आगाह करते हुए कहते हैं -
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर से मिला, दरिया नहीं रहता |
तो वहीं दूसरी तरफ कहते हैं -
तुम अभी शहर में क्या नए आए हो
रुक गए राह में हादसा देखकर |
वे इस बारे में ख़ुद अपना नजरिया प्रस्तुत करते हैं -
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा |
मुहब्बत से इतर का ये फलसफा इस संकलन के शुरूआती पृष्ठों में ही ब्यान हो जाता है और शेष भाग में भी मुहब्बत के साथ-साथ चलता है |
गरीबी की दशा का चित्रण भी उन्होंने बड़ी शिद्दत के साथ किया है -
चंदा के बस्ते में सूखी रोटी है
काजू, किशमिश, पिस्ते, बादाम कहाँ |
बेटियों के महत्त्व को दर्शाती ये पंक्तियाँ देखिए -
वो शाख है न फूल, अगर तितलियाँ न हों
वो घर भी कोई घर है जहां बच्चियां न हों |
दुनिया में व्याप्त संजीदगी उन्हें परेशान करती है, तभी तो वे कहते हैं -
मेरा हँसना ज़रूरी हो गया है
यहाँ हर शख्स संजीदा बहुत है |
आज का आदमी बस नेम प्लेट बनकर रह गया है -
घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया, कोई आदमी न मिला |
बुरे लोगों को इज्जत मिलना उन्हें निराश करता है -
किसलिए हम दिल जलाएं, रात-दिन मेहनत करें
क्या जमाना है, बुरे लोगों की इज्जत है बहुत |
सियासत की दगाबाजी पर वे कहते हैं -
सियासत की अपनी अलग इक जबां है
लिखा हो जो इकरार, इनकार पढ़ना |
सत्ता शायरों को खरीदने की कोशिश अक्सर करती है, इसी पर उन्होंने कहा है -
मुझसे क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
कभी सोने कभी चांदी के कलम आते हैं |
लेकिन उन्हें अपना हुनर मालूम है -
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा |
रिश्तों को उन्होंने विशेष महत्त्व दिया है -
आँसुओं में धुली ख़ुशी की तरह
रिश्ते होते हैं शायरी की तरह |
वे मुहब्बत को दिखावे से बचाने की बात करते हैं -
मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला |
वे नहीं चाहते कि शोहरत उन्हें बदल दे, तभी वे कहते हैं-
ख़ुदा हमको ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे |
अध्यात्म और नश्वरता की झलक भी आम मिलती है -
एक मुट्ठी ख़ाक थे हम एक मुट्ठी ख़ाक हैं
उसकी मर्ज़ी है हमें सहरा करे, दरिया करे |
वह ख़ुदा से यह दुआ मांगता है -
तेरे इख्तियार में क्या नहीं, मुझे इस तरह से नवाज़ दे
यूं दुआएं मेरी कुबूल हों, मेरे लब पे कोई दुआ न हो |
प्रेम भी अध्यात्म को पाने का अंग रहा है | बशीर बद्र की रचनाओं में प्रेम के तमाम रंग हैं | प्रेम में पागल हो जाना पहली शर्त है, ये शर्त उन पर भी लागू है -
मेरा आईना भी अब मेरी तरह पागल है
आईना देखने जाऊं तो नज़र तू आए |
वे किताबों की दुनिया से बाहर निकलने की बात करते हुए कहते हैं -
किताबें, किताबें, किताबें, किताबें
कभी तो वो आँखें, वो रुखसार पढ़ना |
महबूब का छत पर आना उन्हें शे'र के मुकम्मल होने जैसा लगता है -
चाँद-सा मिसरा अकेला है मेरे कागज़ पर
छत पे आ जाओ मेरा शे'र मुकम्मल कर दो |
वे झिझक के कारण अधूरे-से प्यार का जिक्र भी करते हैं-
भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियां वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई |
लेकिन यादें बहुत गहरी हैं -
मेरे होंठों पे तेरी खुशबू है
छू सकेगी इन्हें शराब कहाँ |
उन्हें शराब का आसरा नहीं चाहिए, लेकिन महबूब का आसरा जरूर चाहिए -
हम जमाने के सताए हैं बहुत
अपने सीने से लगा लो हमको |
महबूब की सुन्दरता का जिक्र भी वे अनोखे अंदाज़ में करते हैं -
वो लब हैं कि दो मिसरे और दोनों बराबर के
जुल्फें कि दिले शायर पे छाई हुई गज़लें |
और जिसे ऐसा महबूब मिल जाए उसे चाहिए भी क्या -
चाँद चेहरा, जुल्फ दरिया, बात खुशबू, दिल चमन
इक तुझे देकर ख़ुदा ने, दे दिया क्या-क्या मुझे |
मुहब्बत हो और दुःख न हों, ऐसा हो ही नहीं सकता, लेकिन वे महबूब कि मजबूरी को समझते हुए कहते हैं -
कुछ तो मजबूरियां रही होंगी
यूं कोई बेवफा नहीं होता |
लेकिन साथ ही वे बहुत ज्यादा प्यार न करने का संदेश भी देते हैं -
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा |
इसका कारण भी मौजूद हैं -
अच्छा तेरे शहर का दस्तूर हो गया
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया |
इसीलिए वो न परखने का संदेश भी देते हैं -
परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आइने में देर तक चेहरा नहीं रहता |
रिश्तों में गलतफहमियों की बड़ी भूमिका होती है और इन के फैलने का जिक्र भी वे करते हैं -
मैं चुप रहा तो और गलतफहमियाँ बढ़ीं
वो भी सुना है उसने जो मैंने कहा नहीं |
यादें हर प्रेमी को परेशान करती हैं, इनका जिक्र उनकी गजलों में न हो ऐसा कैसे संभव है | वे प्रियतम को याद न आने को कहते हैं -
रात से जी है सोगवार बहुत
याद आओ न आज यार बहुत |
लेकिन भूलना कब संभव हुआ है -
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं
तेरी याद शाखे-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई |
यादें हैं तो आँसू हैं और शायर का दिल तो ठहरा बच्चा -
मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा
ये बच्चा रात में रोता बहुत है |
हालांकि शायर ये भी कहता है कि यह रोना यूं ही है -
कभी-कभी तो छलक पड़ती हैं यूं ही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता |
और जब आँखें न बरसे, दिल चुप हो, तब भी दुःख नहीं होते, ये भी कब होता है | शायर कहता है -
दिल की ख़ामोशी पे न जाना
राख के नीचे आग दबी है |
शायर को ख़ुदा से शिकवा भी है -
ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने
बस एक शख्स को माँगा, मुझे वही न मिला |
इसी कारण निराशा भी शायर को घेरती है -
अब वो गेसू नहीं हैं जो साया करें
अब वो शाने नहीं जो सहारा बनें
मौत के बाजुओ ! तुम भी आगे बढ़ो
थक गए आज हम घूमते-घूमते |
बशीर बद्र निरंतर चलने में विश्वास रखते हैं | वे कहते हैं -
मुझे सुकून घने जंगलों में मिलता है
मैं रास्तों से नहीं, मंजिलों से डरता हूँ |
दुःख मिलें या सुख, सफलता मिले या असफलता वो अलग बात है, लेकिन इस विश्वास का तो कहना ही क्या -
एक दिन तुझसे मिलने जरूर आऊँगा
ज़िन्दगी मुझको तेरा पता चाहिए |
बशीर बद्र की शायरी की तारीफ उनके समकालीन शायरों ने भी ख़ूब की है | निदा फाजली के अनुसार - " बशीर बद्र की आवाज़ दूर से पहचानी जाती है |"
गुलजार कहते हैं - " उनकी ग़ज़ल का शे'र सिर्फ़ एक ख्याल नहीं रह जाता, हादसा भी बन जाता, अफ़साना भी | मैं डॉ. बशीर बद्र का बहुत बड़ा फैन हूँ |"
अनेक ग़ज़ल गायकों की जबान से लोगों के दिलों पर राज करने वाले इस शायर को सिर्फ़ मुहब्बत का शायर कहना, उनके साथ ना-इंसाफी होगी | जब भी शायरी की बात होती है, तो मुहब्बत का जिक्र तो होता ही है, लेकिन बशीर बद्र मुहब्बत के साथ-साथ बड़े महत्त्वपूर्ण फलसफे को ब्यान करते हैं | वे सियासत पर भी तंज कसते हैं और मानव के स्वार्थी स्वभाव पर भी | वे नफरत को भुलाकर मुहब्बत को अपनाने का संदेश देते हैं और उन्हें इस संदेश के फलीभूत होने का विश्वास है -
सुना है उस पे चहकने लगे परिंदे भी
वो एक पौधा जो हमने कभी लगाया था |
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दिलबागसिंह विर्क
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