पुस्तक - महक रिश्तों की
लेखिका - डॉ. शील कौशिक
प्रकाशक - पूनम प्रकाशन, दिल्ली
कीमत - 100 / -
" महक रिश्तों की " डॉ. शील कौशिक का प्रथम कहानी संग्रह है, जो 2003 में प्रकाशित हुआ था । इस संग्रह में लेखिका ने आस-पड़ौस के पात्रों और हमारे इर्द-गिर्द घटने वाली घटनाओं को लेकर 14 कहानियाँ लिखी हैं । ज्यादतर कहानियाँ आदर्श की स्थापना करने वाली और सुखान्त हैं । जीवन के उजले पक्ष का चित्रण करते हुए भी कुरूप पक्ष की झलकियाँ दिखाई गई हैं, हालांकि लेखिका का झुकाव आदर्श की तरफ ही है ।
संग्रह की कहानी ' धुंध का साया ' अमृता प्रीतम की सुप्रिसद्ध कहानी ' एक गीत का सृजन ' की तरह कथानकहीन कहानी है जो शमिता के विचार प्रक्रिया और डर को दर्शाती है, लेकिन चिंतन और चित्रण के कारण इसमें रोचकता बरकरार रहती है । दोहरे व्यक्तित्व को उन्होंने दो कहानियों में दर्शाया है । ' चेहरे ' मातादीन के ढोंग को दिखती है तो ' मुखौटे ' कहानी औरतों के दोहरे चरित्र यानी मुँह पर तारीफ़ और पीठ पीछे चुगली की आदत को दिखाती है । ' माता भला करेगी ' में अंधश्रद्धा पर व्यंग्य किया गया है और घटना के माध्यम से कर्म का महत्व दर्शाया गया है । ' सर्जरी - एक कीर्तन की ' भी व्यंग्य प्रधान कहानी है । रिश्ते इस कहानी संग्रह के केंद्र में रहे हैं । ' महक रिश्तों की ' कहानी का प्रमुख उद्देश्य रिश्तों में त्याग की भावना को दिखाना है । यह कहानी बच्चों की पढ़ाई के लिए किए गए माँ-बाप के त्याग को दर्शाती है । ' आखरी इंतजाम ' कहानी भाई-बहन के प्यार को विषय बनाकर लिखी गई है, जिसमें भाई पत्नी और बहन के चाव पूरे करने के लिए किडनी तक बेच डालता है । ' जलते-बुझते दीप ' भी रिश्तों पर आधारित है लेकिन इसमें माँ अपने एक बेटे की तरफ से उपेक्षित महसूस करती है । ' फजली ' माँ की ममता को दिखाती हुई कहानी है । इस कहानी में मालकिन की सहृदयता को भी केंद्र में रखा गया है । ' वापसी ' कहानी पति-पत्नी के बिखरते-जुड़ते संबंधों को बयान करती है । रिश्वत जैसे ज्वलंत मुद्दे पर दो कहानियाँ हैं, लेकिन दोनों एक-दूसरे से विपरीत । ' नव बोध ' कमीशन लेने के बाद आत्मग्लानि को दिखाती है तो ' शिकस्त ' कहानी भ्रष्टाचार के युग में ईमानदार की दशा का अंकन करती है, हालांकि लेखिका इसमें आख़िरकार ईमानदारी को जीतते दिखाकर आदर्श की स्थापना करती हैं, फिर भी यह हालातों की विकटता को दिखाने में सफल रहती है । ' पुरुषार्थी सूरदास ' अंधे सूरदास के पुरुषार्थ को दिखाती है । ' जूनून ' इस संग्रह की एकमात्र दुखांत कहानी है । यह कहानी अपनी महत्त्वाकांक्षा बच्चों पर थोपने और उन्हें न समझ पाने के दुष्परिणामों को बयान करती है । कहानियों के मूल रूप में आदर्श है लेकिन यथार्थ का चित्रण सर्वत्र है ।
कथानक को आगे बढ़ाने के लिए लेखिका ने सामान्यतः वर्णन का सहारा लिया है और संवाद कम हैं, लेकिन इनका प्रयोग जितना भी हुआ है, वह सटीक है । संवाद छोटे और प्रभावशाली हैं । ' आखरी इंतजाम ' कहानी को देखिए -
" कोई शान्ति नर्सिंग होम से बोल रहा था -' क्या आप विनय के घर से बोल रही हैं ? विनय हमारे नर्सिंग होम में दाखिल है । '
' क्या हुआ विनय को ? वह ठीक तो है न ?' - सीमा ने पलटकर पूछा । " ( पृ. - 36 )
संवाद कथानक को गति देते हैं -
" ' पंकज मुझे आज ही तुम्हारे पापा के पास जाना होगा ।'
उसकी बात बीच में काट कर पंकज ने कहा - ' परन्तु मम्मी, पापा तो अभी यहाँ पहुंचने वाले हैं । '
' नहीं, बेटे अभी उनका फोन आया है, उन्हें कोई अति आवश्यक कार्य हो गया है । इसलिए मुझे भी वहीँ बुलाया है । ' ( महक रिश्तों की, पृ. - 53 )
" मुखौटे " कहानी में वार्तालाप के माध्यम से औरतों के चरित्र का बयान है ।
लेखिका ने पात्रों के चित्रण के लिए खुद बयान करना, पात्रों के कार्य, दूसरों की टिप्पणी, पात्र का आत्मकथन आदि सभी विधियों का प्रयोग किया है । मनीष के बारे में वह लिखती हैं - " कभी-कभी तो वह उसे 'फरलो' भी दे देता था । ऐसा करके उसे बड़ा सन्तोष मिलता था । " ( चेहरे, पृ. - 28 )
लता के बारे में वह लिखती हैं - " वैसे भी उसका स्वभाव आम औरतों से भिन्न था । वह किसी की चुगली-चपाटी, नुक्ताचीनी व टीका-टिप्पणी में विश्वास नहीं रखती थी । " ( मुखौटे, पृ. - 49 )
डॉ. लोकेश के बारे में वे कहती हैं - " पोलियो अभियान के लिए उसके मन में एक विशेष गर्म-जोशी होती थी क्योंकि वह उसे एक जन आंदोलन के रूप में लेता था । " ( माता भला करेगी, पृ. - 58 )
लेखिका ने शब्द चित्रों के माध्यम से भी पात्रों को पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है -
" वह काली-सी, मैली-कुचली, उलझे बाल वाली, सहमी-सी खड़ी थी । उसका चेहरा पीला पड़ा हुआ था व आँखें अंदर को धँसी हुई थी । "( फजली, पृ. - 23 )
इसी प्रकार का शब्द चित्र " जलते-बुझते दीप " कहानी में भी है - " उसका कद लम्बा था, उसकी लम्बी सुतवां नाक पर पहना कोका उसके चेहरे का थोड़ा-बहुत आकर्षण बनाए रखे हुए थे । ........ वह अपने पतले, लटकती खाल वाले हाथों में हमेशा सोने के कड़े पहने रहती थी, जो खिसक कर कुहनियों तक आ गए थे । भारी टॉप्स होने के कारण उसके कान के सुराख इतने लम्बे हो गए थे कि समूचा टॉप्स उसमें से बाहर निकल आता था । " ( पृ. - 69 )
लेखिका ने सिर्फ बाहरी चित्रण ही नहीं किया अपितु पात्रों के अंतर्मन का भी चित्रण किया है -
" शमिता का मन भी नहर की भाँति शुष्क प्रतीत हो रहा था ।" ( धुंध का साया, पृ. - 40 )
दूसरे पात्र से भी पात्र विशेष का सच उदघाटित किया गया है । मातादीन के बारे में मनीष को दूसरों से ही पता चलता है -
" भगवान ऐसा कुपूत बेटा किसी को न दे, न जाने बेचारी किस जुर्म की सज़ा भुगत रही थी । " ( चेहरे, पृ. - 30 )
कांता के द्वारा नवीन के संस्कारी होने का पता चलता है -
" कांता सोच रही थी कि अगर नवीन को अच्छे संस्कार न मिले होते तो शायद नवीन इस बात को नजर अंदाज कर देता । .......... लेकिन यह नवीन का सौभाग्य है कि उसे ऐसे संस्कार मिले कि वह अपनी इस गलती को न पचा सका ।" ( नव बोध, पृ. - 48 )
सुनीता के कथन से ही उसकी सास के स्वभाव का पता चलता है -
" परन्तु वह हर बार तुनक कर मुझे ही दोषी ठहराती है और रंजन का ही पक्ष लेती । उसे हम दोनों से हमदर्दी नहीं थी । वह तो अपने बेटे को अपने काबू में रखने के प्रयास में ही जुटी रहती थी ताकि वह अपनी मनमानी बात उससे मनवा सके । यही तो वह चाहती थी कि रंजन का मन अपने बीवी बच्चों से हटकर बहन-भानजों की तरफ हो जाए । एक औरत होकर भी वह मेरी दुश्मन बनी हुई थी तथा मेरे दर्द समझना नहीं चाहती थी । उसकी अपने बेटे की तरफ स्वार्थ भरी बढ़ती ममता आग में घी जैसा काम करती । " ( जूनून, पृ. - 78 )
पात्रों की सोच भी उनके खुद के बारे में बताती है -
" वह सोचने लगी कि किसी ओपरी छाया ने तो इन्हें नहीं घेर लिया । "( नव बोध, पृ. - 47 )
' नव बोध ' का पात्र नवीन भी पूरी कहानी में खुद से संवाद करता है, जिससे उसका चरित्र पाठकों के सामने उभरता है ।
" नवीन तुमने ये क्या किया ? बीस साल की ईमानदारी को धूल में मिला दिया । " ( पृ. - 45 )
' आखरी इंतजाम ' कहानी के पात्र विनय के चरित्र का चित्रण उसके पत्र के द्वारा किया जाता है । कार्यों के द्वारा चरित्र चित्रण करने की विधि भी लेखिका ने खूब अपनाई है ।
कृष्णा को देखिए - " वह अपनी धुन में बोलती चली आ रही थी - जय माता दी, माता भला करेगी । " ( माता भला करेगी, पृ. - 59 )
मोहित के बारे में भी उसकी क्रियाकलापों से जाना जा सकता है -
" जितना समय रंजन घर में रहता, मोहित किताब हाथ में लिए हुए छत पर बने अपने कमरे में बैठा रहता । उसका मन पढ़ाई में नहीं लगता । वह केवल पढ़ने का उपक्रम करता । " ( जूनून, पृ. - 77 )
' माता भला करेगी ' कहानी में लोकेश के कार्य कलापों से उसकी कर्त्तव्यनिष्ठा का पता चलता है ।
" लोकेश ने उन्हें प्यार से समझाया - ' देखो गलती किसी से भी हो सकती है । ' " ( पृ. -62 )
लोकेश का यह कथन उसके चरित्र के दूसरे पहलू को उदघाटित करता है ।
लेखिका ने चरित्र चित्रण के माध्यम से कथानक को गति दी है । जूनून कहानी में सुनीता का अपनी सास के बारे में बताना कथानक से हटकर एक नए पहलू को उजागर करता है, लेकिन इससे भी कथानक बाधित नहीं होता अपितु सुनीता की स्थिति और लाचारगी स्पष्ट होती है ।
लेखिका ने कथा कहने के साथ-साथ दृश्यों का भी चित्रण किया है । ' फजली ' कहानी में रहमान की घरेलू दशा को कितने शानदार ढंग से व्यक्त किया गया है -
" शरद पूर्णिमा की रात का प्रकाश झौंपड़े के अंदर झाँक कर जैसे उसकी गरीबी का मज़ाक उड़ा रहा हो । ठण्ड के कारण वह जगह-जगह से टूटी हुई रूई की रजाई से अपने को लपेटने का भरसक प्रयत्न कर रहा था । " ( पृ. - 21 )
कुछ ऐसा ही दृश्य वर्णन ' चेहरे ' कहानी में भी है -
" घर में भीतर एक कमरे में झंगली-सी खटिया पड़ी थी । उसके पास में ही एक घड़ा जिसमें पानी सड़ रहा था । चारपाई के नीचे एक टूटी प्लास्टिक की प्लेट व एक स्टील का गिलास पड़ा हुआ था । घर रंग-रोगन न होने के कारण बदरंग हो चला था । चारों तरफ जाले लगे हुए थे । " ( पृ. - 29 )
' माता भला करेगी ' में पोलियो टीम की लापरवाही का सटीक चित्र उतारा गया है -
" वैक्सीन कैरियर का ढक्कन खुला पड़ा था । वह मेज पर खुली धूप में पड़ा था । एक अध्यापक और आंगनबाड़ी हैल्पर वहाँ बैठी धूप सेक रही थी । उन्होंने वह बैनर अपने नीचे बिछा रखा था जो पब्लिसिटी के लिए टांगना था । "( पृ. - 59 )
'धुंध का साया ' कहानी में ऐसे दृश्यों की भरमार है -
" करीब आधा किलोमीटर और चलने के पश्चात बड़ी सड़क आ गई थी । वहाँ एक बड़ा चौराहा था, जो अपने विशाल हृदय में चार मार्गों को समेटता हुआ चौकीदार की भाँति गर्व से खड़ा था । " ( पृ. - 40 )
इसी कहानी में प्रकृति का चित्रण देखिए -
" वृक्ष भी मौन खड़े हुए थे । उसके पत्ते भी सफेद दिखाई पड़ रहे थे । चारों तरफ ख़ामोशी ही ख़ामोशी ।" ( पृ.- 42 )
या फिर
" उसे सारा शहर सोया हुआ प्रतीत हो रहा था । " ( पृ. - 41 )
एक अन्य चित्र देखिए -
" सड़क के दोनों और पापुलर के पेड़ खड़े थे, जिनके पत्ते ठिठुरती ठंड के कारण पीले पड़ चुके थे । इनके अधिकांश पत्ते झड़ चुके थे । दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता था कि सड़क के दोनों ओर पीली-पीली लाइटें कतार में जल रही हों । " ( पृ. - 41 )
डॉ. कौशिक की भाषा बड़ी मंझी हुई है । उन्होंने कहावतों का खूब प्रयोग किया है । जैसे -
" कहावत भी तो है, मरता क्या न करता " ( धुंध का साया, पृ. - 39 )
" कहावत भी है, खण्डहर बताते हैं कि इमारत भी कभी बुलन्द थी ।" ( जलते-बुझते दीप, पृ. - 69 )
" कहावत भी है, पूत कुपूत हो सकता है पर माता कभी कुमाता नहीं हो सकती । " (जलते-बुझते दीप, पृ. - 70 )
" उसकी स्थिति ऐसी हो गई थी कि आगे जाए तो खाई और पीछे जाए तो कुआँ । " ( धुंध का साया, पृ. - 43 )
ताड़ के पेड़ से तुलना उन्हें विशेष प्रिय है -
" आज की रात रहमान को ताड़ के पेड़ की तरह लम्बी प्रतीत हो रही थी । " ( फजली, पृ. - 21 )
" आज यह दूरी उसे एक ताड़ के पेड़ की तरह लम्बी मालूम हो रही थी, जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी । " ( धुंध का साया, पृ. - 42 )
लेखिका ने अनेक सूक्तियों और विचारों से भी अपनी कहानियों को सजाया है -
" गरीब के पास अपनी इज्जत ही तो होती है । " ( फजली, पृ. - 22 )
" रुपया-पैसा हर मुसीबत का तोड़ है । " ( नव बोध, पृ. - 46 )
पोलियो अभियान के सूत्र वाक्य का भी बखूबी प्रयोग कहानी ' माता भला करेगी ' में मिलता है -
" एक भी बच्चा दवाई रहित रहने का अर्थ है - सुरक्षा चक्र का टूटना । " ( पृ. - 50 )
' धुंध का साया ' कहानी में शमिता के माध्यम से जीवन दर्शन व्यक्त किया गया है -
" वह सोचने लगी कि बहते हुए पानी और खड़े हुए पानी में कितना अंतर है । प्रवाहित पानी जीवन्त, सजग, स्फूर्ति और आगे बढ़ते रहने का द्योतक है, जबकि रुका हुआ पानी कैद में पड़े हुए एक कैदी की भाँति बेबस है जिसकी सीमाएं ( इच्छाओं ) को बाँध दिया गया हो । " ( धुंध का साया, पृ. - 40 )
कहानियों में वर्णात्मक शैली की प्रधानता है । कई कहानियों जैसे फजली, आखरी इंतजाम आदि में फ्लैशबैक तकनीक का प्रयोग हुआ है । आखरी इंतजाम कहानी में पत्रात्मक शैली को भी अपनाया गया है । नव बोध आत्मचिंतन के सहारे आगे बढ़ती है । धुंध का साया में चित्रण और चिंतन का भरपूर प्रयोग हुआ है । सर्जरी एक कीर्तन की, माता भला करेगी में व्यंग्यात्मक शैली को अपनाया गया है । कुछ कहानियों का अंत निष्कर्ष के रूप में निकाला गया है , जैसे -
" उजले चेहरों के पीछे कितनी कालिख छिपी है यह उन मुखौटों के भीतर झाँकने पर ही पता चलता है ।" ( चेहरे, पृ. - 31 )
" जिन लोगों को अच्छे संस्कार नहीं मिलते वो शायद इस बात को जीवन का एक पहलू समझ कर टाल देते, उनके लिए ज़िन्दगी ऐसे चलती जैसे कुछ हुआ ही न हो । " ( नव बोध, पृ. - 48 )
कहानी ' जलते-बुझते दीप ' का अंत संकेतात्मक है - " बादल घिर आये थे । अम्मा को दिन में ही रात का आभास होने लगा " ( पृ. - 72 )
संक्षेप में, लेखिका किन्हीं पूर्वाग्रहों को लेकर नहीं चली । कहानी की मांग के अनुसार उन्होंने शैली का चयन किया है और इसी कारण उनकी सभी कहानियाँ पाठकों को कहीं गहरे जाकर छूती हैं । ये कहानियाँ बताती हैं कि कपट भरी दुनिया में उजले पहलू मौजूद हैं और अभी तक रिश्तों की महक बरकरार है ।
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© दिलबागसिंह विर्क
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3 टिप्पणियां:
बढ़िया समीक्षा...लेखिका को बधाई
प्रभावशाली एवं विस्तृत समीक्षा.......बहुत बहुत बधाई....
सुंदर समीक्षा। किताब पढने की ललक जगाती सी।
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